श्री श्री रवि शंकर और डैन शिलोन वार्तालाप

डैन शिलोन : आप इस युग के साथ बहुत निराश होंगें?
श्री श्री रवि शंकर : क्या मैं निराश दिखता हूँ?

डैन शिलोन : दुनिया आपके अनुसार नहीं चल रही है|
श्री श्री रवि शंकर :
मेरे में सहन शक्ति और दृढ़ता है।

डैन शिलोन : आपकी उम्र क्या होगी?
श्री श्री रवि शंकर :
मैं अर्द्ध शताब्दी से कुछ ज्यादा हूँ और अभी मेरे पास कुछ और वर्ष हैं| आप को पता है हर कोई शांति चाहता है| मनुष्य को जन्म से ही शांति की ज़रूरत होती है, परन्तु वे नहीं जानते नकारात्मक भावनायों.धारणायों,गुस्सा और कुंठा से पीछा कैसे छुडाएं| आज लोगों को यह सीखने की जरुरत है कि वे अपनी नकारात्मकता को कैसे जाने दें,अतीत को कैसे भुलाएं और भविष्य की ओर चलें|

डैन शिलोन : आप कहते हैं 'सफलता मुस्कान से नापी जाती है’। पर आज दुनिया मुस्कुरा नहीं रही है?
 श्री श्री रवि शंकर :
मुझे पता है बहुत सारा कार्य अभी करने की जरूरत है| सुधारकों के लिए बहुत सारा कार्य है| डाक्टर का कार्य मरीज़ को ठीक करने का है, यदि वह स्वयं बीमार हो जाएं तो मरीज़ के लिए क्या आशा रह जाती है! इस तरह यदि हम अपनी मुस्कान खो दें तो दूसरों को कैसे मुस्कान दे सकते हैं| हमे स्वयं में ठहराव लाना होगा, हमें मेहनत करनी होगी ताकि लोगों के चहरे पर मुस्कान आ सके|

डैन शिलोन : जब आप कहते हो 'दुनिया को दस दिन के लिए रोक दें 'तो इसका क्या मतलब है?
 श्री श्री रवि शंकर :
अपने मन को रोकना,मन की दौड़ को रोकना| यह हमेशा अतीत के बारे सोचता है यां हमेशा भविष्य के बारे में सोचता है| हम अतीत के प्रति गुस्सा और भविष्य के प्रति चिंतित रहते हैं| दुनिया और परिस्तिथि को नए नज़रिये से देखने के लिए जागने और समझने की जरूरत है। महात्मा गाँधी भी कहते थे अतीत की ओर मत देखो| वो कहते थे, "आओ, देखें हम अभी और भविष्य के लिए क्या कर सकतें हैं|" इससे बहुत शक्ति,उत्साह,जोश आता है। यह आपको चारों ओर राख होने पर भी उठा कर उन्नत करती है।

डैन शिलोन : और यह सब भारत से शुरू होता है?
 श्री श्री रवि शंकर :
बिल्कुल, शायद दुनिया के अन्य भागों में भी|

डैन शिलोन : मुझे नहीं पता क्यों हमारे बहुत से बच्चे भारत जा रहे हैं? वे इस स्थान से इतने प्रभावित क्यों हैं?
 श्री श्री रवि शंकर :
भारत में अध्यात्मिक उत्थान का लम्बा इतिहास रहा है| जब आप देखते हो सब ख़त्म हो रहा है,सब रास्ते बंद हो गए हैं, कोई उम्मीद बाकी नहीं है, और उदासी आने लगती है, भारत इससे परे कुछ बड़े का दृष्टिकोण देता है| आपके विचार और मन की शक्ति से आपकी वास्तविकता,आपकी दुनिया बनती है और आपको उस दिशा की और ले चलती है| ज़रुरी नहीं आप तत्काल सफल हो जाएँ परन्तु दृष्टिकोण और इरादा आपको दूर तक ले जाता है|

डैन शिलोन : एक आप हो जिन्होंने व्यापार और राजनितिक दुनिया को जोड़ने का प्रयत्न किया है| क्या यह मुमकिन है?
 श्री श्री रवि शंकर :
बुनियादी तौर पर हम सब मनुष्य ही हैं| हर किसी में मानवता है और मैं यह मानता हूँ कि सुधारकों,शासकों और प्रदाताओं को मिल कर कार्य करना होगा, तभी समाज को एक साथ रखा जा सकता है|

डैन शिलोन : आपको राजनितिक और व्यापारिक नेतायों के संयोग में कोई चिंता का विषय लगता है?कभी कभी इससे भ्रष्टाचार होता है| हम जानते हैं ऐसा इस देश और अन्य पश्चिमी देशों में है?
 श्री श्री रवि शंकर :
यह सब जगह है, यहाँ तक की भारत में भी भ्रष्टाचार है| भ्रष्टाचार तब होता है जब अपनेपन की भावना नहीं होती| यदि आप अपने इर्दगिर्द अपनेपन का दायरा बना लो तो भ्रष्टाचार इसके बाद शुरू होता है| राजनीतिको को और अधिक अध्यात्मिक होने की जरुरत है| अध्यात्मिक होने से मेरा मतलब है लोगों के प्रति और अधिक अपनापन| इस शताब्दी में महात्मा गाँधी एक उदाहरण हैं| वह एक अध्यात्मिक पुरुष थे और इसके साथ साथ राजनितिक भी थे| उनमें बलिदान की भावना थी' मुझे अपने लिये कुछ नहीं चाहिए परन्तु मुझे अपने लोगों के लिए चाहिए|' यह भावना कहीं खत्म होती जा रही है| इसीलिए भ्रष्टाचार है और सभी प्रकार के अनैतिक व्यापार होने लगें हैं| विश्वास व्यापार की रीढ़ की हड्डी है| जो हमने पिछले १० वर्षों में देखा है, साम्यवाद को ख़त्म होने के लिए १० वर्ष लगे,और पूंजीवाद को ख़त्म होने के लिए १० महीने से भी कम समय लगा| इसका कारण यही है हमने अपनी व्यापार में प्रणाली के मूल्यों और नैतिकता को नजरंदाज किया है|

हमने देखभाल और सांझेपन जैसे मानवीय मूल्यों को, और समर्पण एवं भक्ति को नजरंदाज किया है| यदि हम किसी तरह अपने नवयुवकों में यह मूल्य फिर से जगा दें तो नवयुवक इसके लिए तैयार हैं| उन्हें यह चाहिए क्योंकि उन्होंने पहली पीडी को दौड़ते हुए देखा है| यह भागना ऐसा ही है मानो दौड़ने वाली मशीन पे हों जो कहीं नहीं पंहुचती|

डैन शिलोन : दुनिया के वर्तमान नेतृत्व में क्या गलत है और शायद हमारी दूरदर्शी नेतृत्व में?
श्री श्री रवि शंकर :
मैं यही कहूँगा अपनापन ख़त्म हो रहा है| वहाँ पर केवल अपने बारे में सोचने का रवैया बनता जा रहा है, बजाय इसके कि किसी उच्च कारण के लिए बलिदान किया जाए| दृष्टिकोण और इरादे की कमी हो रही है|

डैन शिलोन : एक बार आपने कहा था क्षमा एक इलाज है| क्या क्षमा ही इजरायल और अरब देशों में शांति ला सकता है?
श्री श्री रवि शंकर :
अतीत को जाने दो और नए भविष्य की ओर बढ़ो| पूर्ण आज़ादी से एक दूसरे पर निर्भरता की ओर| आजादी पिछले युग का नारा था| हर कोई आज़ाद होना चाहता था ताकि वे समृद्ध हो सकें परन्तु आज समृद्धि आज़ादी से नहीं आती, यह एक दूसरे पर निर्भरता की समझदारी से आती है| इसे लोगों को सिखाया जाना चाहिए| आज पहचान के लिए भी संकट है| एक व्यक्ति सोचता है 'मैं मुस्लिम हूँ' यां 'इसाई हूँ' यां 'हिन्दू हूँ' यां 'बौद्ध हूँ', और वे जो इस धर्म से नहीं हैं वे मेरे अपने नहीं हैं| वे उन्हे दुश्मन जैसे लगतें हैं| उन्हें इस तरह की सोच को बदलना होगा - सबसे पहले हमारी पहचान यह है हम सभी मानव हैं| तब हमारी पहचान लैंगिक है, यां तो स्त्री यां पुरुष| तीसरी पहचान राष्ट्र और अंत में धर्म। यदि पहचान की प्राथमिकता सही जगह हो तो टकराव आसानी से खत्म किया जा सकता है|

डैन शिलोन : आप भविष्य के नेता को कैसा देखना चाहोगे?
श्री श्री रवि शंकर :
मुझे लगता है शिक्षा के द्वारा हम लोगों के दिल और मन जोड़ सकते हैं| यह उन लोगों के द्वारा नहीं हो सकता जो सत्ता में हैं| ये कोई स्वयंसेवी संस्थाएं, समाज सेवक और सुधारक, जिन्हें सोचने के ढंग में परिवर्तन लाना हो और दिलों को पास लाना हो, ऐसा कर सकतें हैं|

डैन शिलोन : क्या आप जिम्मी वाल्स की तरह आशावादी हो?
श्री श्री रवि शंकर :
मैं यथार्थवादी हूँ| आशावाद केवल आशा है, परन्तु जब आप इसे संभव मानो तो यह व्यवहारिक है। मुझे लगता है मैं यथार्थवादी हूँ| लोग तनाव और चिंता लम्बे समय तक सहन नहीं कर सकते, कहीं पर जा कर हिम्मत छोड़ देते हैं| आप बहुत समय तक मुट्ठी बंद नहीं रख सकते, किसी एक क्षण में जाकर आपको विश्राम करना ही पड़ता है, और जब आप विश्राम करते हो तो आप देखते हो सारा आकाश आपके हाथ में होता है| यह दुनिया में शुरू हो चुका है| फ़्रांस, जर्मनी और सारे पश्चमी यूरोप को देखो| पिछले युग में वहां कितना संघर्ष था, परन्तु अब सारी सीमाएं ख़त्म हो चुकी हैं| इसमें एक ही मुद्रा आ चुकी है जोकि १९वीं शताब्दी में सोचा भी नहीं जा सकता था| इसी तरह से मुझे लगता है मध्यवर्ती पूर्व का संकट भी लोगों में बहु-सांस्कृतिक, बहुधार्मिक शिक्षा के द्वारा, और ज्ञान के विशाल दृष्टिकोण से ख़त्म हो जायेगा|

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"जीवन केवल ख़ुशी और करुणा के बीच चलता है"


प्रश्न : अपने आप को मोह से कैसे मुक्त करूँ,खास कर अतीत की भावनात्मक चोट से, और इसके साथ साथ विश्वास और अविश्वास से? धोखे के बाद फिर से कैसे विश्वास कर सकूँ, और इसके कारण संदेहजनक और निंदक न बनू?

श्री श्री रवि शंकर :
एक बात जो हमे याद रखनी है कि यह सारी कहानी यहीं खत्म हो जाएगी| हम सब चले जायेंगे और हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा। यदि हम अतीत में देखें तो कितने लोगों को हम जानते थे जो अब नहीं हैं| वे जो सब हमारे साथ थे वे सब मृत्यु को प्राप्त हुए| सब चले जायेंगे और एक दिन हमें भी चले जाना है| यही स्थाई सत्य है, निश्चित सचाई यही है|

मैं आज सोच रहा था, आज मेरी माँ की दसवी पुन्य तिथि है| दस वर्ष बीत भी गए| समय चलता रहता है,चीजें बदल जाती है, जब हम जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देखते हैं तो भावनात्मक चोट कहाँ रह जाती है? किसी ने कुछ कह दिया और हमें दुःख पहुँचता है, और हम रोते हैं, किसी ने कुछ अच्छा कह दिया तो हम खुश हो जाते हैं| इसमें कौन सी बड़ी बात है| कभी तुमने कुछ कह दिया और किसी को दुःख हुआ,परन्तु आपका यह इरादा नहीं था| क्या ऐसा आपके साथ नहीं हुआ? आप में से कितने लोगों को ऐसा अनुभव हुआ? आपने अपनी बेटी यां बेटे को कितनी बार गुस्सा किया होगा, क्या आपने ऐसा नहीं किया? यदि वे जीवन भर इसे पकड़ के बैठ जाएँ और कहें कि मैं इसे नहीं भूलूंगा, आपने मुझे दुःख पहुँचाया था| आप उनसे क्या कहोगे? आपका जवाब कुछ ऐसा होगा, "जाने दो,मेरा कहने का यह मतलब नहीं था| मैं तनाव में था, परेशान था, मेरा मूड खराब था इसलिए मैंने ऐसा कह दिया|" क्या आप लोगों से अपेक्षा नहीं करते कि वे आपके द्वारा दिए गए दुःख को भुला दें?

आप चाहते हो आपके द्वारा दिया गया दुःख लोग भुला दें| इसी तरह क्या आपको भी उनके द्वारा दिए गए दुःख को भुला नहीं देना चाहिए? यदि किसी ने आपको दुःख पहुँचाया है तो यह किसी स्वार्थ की वजह से हो सकता है, और स्वार्थ का कारण है कि वे जीवन की विशालता और सुन्दरता नहीं जानते| उनमें डर है इसलिए वे स्वार्थी हैं| वे स्वार्थी हैं यां अपने तक ही सीमित है क्योंकि उनके पास जीवन का ज्ञान नहीं है| किसी ने उनको सिखाया नहीं है की प्रेम कैसे करना है, खामोश कैसे रहना है,इस सुंदर ज्ञान में कैसे रहना है| क्या यह उनकी गलती है?यदि आपने पड़ना लिखना नहीं सीखा है तो क्या यह आपकी गलती है? आपके अध्यापक और माता पिता आपको स्कूल ले जातें हैं, तब आप सीखते हो| इसी तरह उनके पास कोई तरीका नहीं था जहाँ वे जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देख सकते| इसलिए आप के लिए केवल दया कर सकते हो| उन्हें सीखने का अवसर नहीं मिला,कोई मार्गदर्शक यां अध्यापक नहीं मिला| उन्हें आध्यात्मिकता का पता नहीं चला| उन्हें ढंग नहीं बतया गया, यां उनको ऐसे बड़ा किया गया| तो आप किस बात को पकड़े रहोगे?

जीवन आगे बढ़ रहा है| जब आपकी मृत्यु होगी आपसे दो बातें पूछी जाएंगी - आपने कितना प्रेम किया और आपने कितना ज्ञान जीवन में प्राप्त किया? इससे आपको फरक नहीं पड़ना चाहिए कि लोगों ने आपके साथ क्या किया, परन्तु आपकी तरफ से करुणा होनी चाहिए| यदि लोग आपके प्रति अच्छे हैं तो खुश रहो| यदि वे कुछ गलत करते हैं तो दयावान रहो| जीवन केवल ख़ुशी और करुणा के बीच चलता है| कोई और तीसरा रास्ता है ही नहीं|
जब हम उदास हों, हम शक्ति के लिए प्रार्थना करें,जब हम खुश हों तो सेवा के लिए शक्ति की प्रार्थना करें|

प्रश्न : क्या जीवन में बहुत सारे प्यार की कामना करना उतावलापन है?

श्री श्री रवि शंकर :
मानलो आप जेरुसलम जाना चाहते हो| आप इसके बारे में सोचते हो और तब चले जाते हो| उतावला होना है - 'ओह मुझे जेरुसलम जाना है, ओह मैं जाना चाहती/चाहता हूँ|’ आप केवल उसी के बारे में सोचते रहते हो तो यह ज्वरता है।इस तरह आप देख सकते हो यह उतवलापन है या नहीं?

प्रश : मैं अपने आपको निर्भरता और आत्मनिर्भरता - इन दो विपरीत स्तिथियों से कैसे मुक्त कर सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जीवन में सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता जैसा कुछ नहीं है| इसे भूल जाओ| यदि आप सोचते हो कि मैं पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जायूं तो ऐसा नहीं होगा| १५, १६ यां १७ साल की आयु तक आप आत्मनिर्भर नहीं थे| आप आश्रित ही पैदा हुए थे|आप अपने आप उठ भी नहीं सकते थे, और कोई और आपको उठाता था।कोई आपके डायपर बदलता था| कोई आपको नहलाता था| कोई खिलाता था| कोई सुलाता था| आप एक आश्रित ही पैदा हुए थे और अंत में भी आश्रित ही रहोगे| जब आपकी मृत्यु हो जाती है तो आप अपने शरीर को अपने आप नहीं जला यां
दफना सकते| जब आप बीमार होते हो किसी को आपका ध्यान रखना होता है| आप अपने डाक्टर नहीं बन सकते| ५०-६० वर्ष की आयु के बाद यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि आप किसी पर निभर होते हो|

किसी हद तक आप नहीं कह सकते कि, "मैं पूरी तरह से आत्म निर्भर हूँ"|आपको किसी ना किसी की सहायता लेनी ही पड़ती है। अच्छा, फिर यह भी धारणा है कि आप पैसे से आत्मनिर्भर बनते हो। हमें अपनी ज़रुरत पूरा करने के लिए कुछ पैसा चाहिए, पर मानलो कोई भी आपके लिए कार्य करना न चाहे, तो आपका क्या होगा? आपकी धारणा गलत है कि पैसा आपको आत्मनिर्भर बनाता है|

पर इसके साथ साथ आप अपने आप को आत्मनिर्भर मान सकते हो, आप अपने कार्यों के लिए स्वतंत्र हो, आप अपनी भावनायों को नियंत्रित करने के लिए मुक्त हो, यदि आप अच्छा महसूस करना चाहते हो तो यह आपके अपने हाथ में हैं| यदि आप अच्छा महसूस नहीं करना चाहते तो यह भी आपके अपने हाथ में हैं|

आपको अष्टवक्र गीता सुननी चाहिए| मैंने इसके बारे में बताया है| जीवन निर्भरता और आत्म -निर्भरता का संयोग है| यदि आप दयालु होना चाहते हो, तो आपको पूरी स्वतंत्रता है ऐसा बनने की| यदि आप चाहते हो आपका शिष्टाचार अच्छा हो,आप मीठे बोल बोलो तो यह पूर्ण रूप से आपके उपर निर्भर करता है| आप सोच सकते हो वित्तीय रूप से आप स्वतंत्र हो परन्तु मैं आपको बता देना चाहूँगा यदि आप अपने मित्रों, परिवारजनों यां और भी किसी के अपमानजनक शब्द सहन कर लेते हो तो आप स्वतंत्र हो| यदि आपको कोई दोष देता है और आपके लिए बुरा भला कहता है, आप इसे किस तरह से लेते हो यही निर्धारित करता है कि आप कितने स्वतंत्र हो| यदि आप वास्तव में मुक्त हो तो कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता| आप उत्साह से, द्रष्टा बन कर और मुस्कान के साथ आगे बढ़ सकते हो|

प्रश्न : जीवन में आनंद कैसे प्राप्त करें?

श्री श्री रविशंकर :
आनंद को भूल जाओ, यह अपने आप आपके पास आयेगा| आप केवल विश्राम करो|

प्रश्न : मैं बहुत खुश रहने वाली महिला हूँ और बहुत सी बातो के लिए धन्य हूँ फिर भी मैं अपने मोटापे के लिए परेशान क्यों हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
आपको पता है, कोई भी बिना परेशानी के नहीं रह सकता है| इसीलिए मैंने आर्ट ऑफ़ लिविंग शुरू किया ताकि मैं और अधिक परेशानियाँ ले सकूँ| इस तरह से यह एक अच्छी परेशानी है, इससे आप एक और चम्मच आइस क्रीम नहीं लोगी| आप अपना हाथ कुछ और मीठा खाने के लिए नहीं बढ़ाओगी और बीच रास्ते में ही रुक जाओगी| इस विषय में थोड़ी चिंता करना अच्छा है, नहीं तो जब आप वृद्ध हो जाओगी तो डाक्टर को बिल देने पड़ेंगे| इसलिए अच्छा है आप अपने मोटापे की ओर ध्यान दें यदि आप डाक्टरों को और अमीर नहीं बनाना चाहते| यह आपकी मर्जी है|

प्रश्न : मैं अपने इस अपराध बोध का क्या करूँ की मैं अपने कुछ परिवार जनो और यहाँ तक नजदीकी रिश्तेदारों से भी प्रेम से नहीं रह पाया?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने पर प्यार करने के लिए जोर मत दो| इस बात को जान लो कि कुछ भावनाएं,सम्बन्ध और प्रेम पहले से ही होता है| आप इसका निरीक्षण हर दिन नहीं करते रहते हो,ठीक है? हो सकता है आपको उनका व्यवहार अच्छा नहीं लगता| यदि आपके माता पिता बूढ़े हैं और निंदक हैं,आप चिड़ सकते हो यां आपको उनका साथ अच्छा नहीं लग सकता क्योंकि वे निंदा करते रहतें हैं, और पुरानी बातें दोहराते रहते हैं| पसंद और नापसंद मन में होती है| मुझे पूरा विश्वास है आपके हृदय में गहरे में कहीं प्रेम है, कोई भावना है| क्योंकि यह है इसलिए आप प्रश्न पूछ रहे हो| सिर्फ यही है कि आप उनके लिए प्रेम को नहीं पहचानना चाहते हो| आपका एक गहरा सम्बन्ध है, पर आप को उनका व्यवहार पसंद नहीं हो सकता, उनकी विचारधारा यां कार्य करने का तरीका पसंद नहीं हो सकता| लेकिन यह केवल एक बाहिरी बात है| दूसरों के प्रति अपने प्रेम पर संदेह मत करो| इस बात को समझ लो की प्रेम हमेशा होता है और रहेगा|

प्रश्न : व्यवसायिक रूप से इस वर्ष मैंने जो कुछ भी किया, मैं उसमें सफल नहीं हुआ| मैंने हिंदी,मसाज,भौतिक चिकित्सा और शारीरिक संरचना के बारे में पढ़ा| मैं वास्तव में सफल होना चाहता हूँ| कृपया मेरी मदद करें|

श्री श्री रवि शंकर :
इसके लिए बहुत काम करना है| बहुत सी जरूरतें हैं|३०% यूरोप के लोग अवसाद में हैं और हमारे पास यह सुंदर ज्ञान है जो लोगों को अवसाद और आत्महत्या के विचारों से उबरने में मदद कर सकता है| यह हम सबके लिए बहुत अच्छा होगा कि हम एक ऐसे दुनिया को नजर में रखते हुए साथ में मिल कर काम करें जिसमें कम दुख होगा| मैं चाहूँगा बहुत से युवा लोग पूरी तरह से आर्ट ऑफ़ लिविंग के लिए कार्य करें| ३-४ दिन के लिए कहीं जायें और सब को सिखाएं| एक बार आप शिक्षक बन जाओ तो आप सिखा सकते हो,आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक समुदाय बना सकते हो| हर कोई अपना कार्य करे और योगदान भी दे| यह सबका साँझा काम हैं, जहाँ सब योगदान दे सकतें हैं| आप एक सामुदायिक रसोई शुरू कर सकते हो| आपको किराने की खरीददारी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी| एक व्यक्ति जाकर खरीद सकता है,एक खाना पका सकता है और हर कोई बारी बारी से यह सब कर सकता है| ६०-१०० लोगों का छोटा सा समुदाय ऐसे रह सकता है| वहां उत्सव,ध्यान और योग किया जा सकता है| बैंगलोर आश्रम में ८०० लोग इकट्ठे रहतें हैं| इससे पहले हम केवल १०-१२ लोग ही थे| अभी बहुत सारे लोग आकर आश्रम में रहना चाहतें हैं परन्तु हमारे पास जगह नहीं है| क्योंकि किसी को बिजली के बिल,घर टैक्स और भोजन के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती, इन सब का ध्यान रखा जाता है तो हर कोई अपने संभव तरीके से योगदान देते हैं|

इसी तरह से जर्मनी,कनाडा,यू एस ए और हाल ही में अर्जेंटीना में आश्रम हैं| यह छोटा सा जीवन अनावश्यक और फालतू चीजों में गवाने के लिए नहीं है| क्या आपको अगले ४०-५० वर्ष, जितना भी आप इस पृथ्वी पर रहोगे, अपनी सेवा कराने के लिए कोग चाहिएं यां आप दूसरों और समाज के लिए कुछ करना चाहोगे? दूसरों की मदद करना और समाज की सेवा करना क्या एक अच्छा विचार नहीं है? कोई न कोई ऐसा होना चाहिए जो दूसरों के लिए सोचे, उनका ध्यान रखे और मदद करे| मैं चाहता हूँ कि आप सब इस बारे में सोचें|

प्रश्न : ऐसे आश्रम के लिए आपकी दृष्टि है?

श्री श्री रवि शंकर :
आश्रम वह होता है जहाँ वृद्ध,युवा,बच्चे और हर कोई साथ साथ रहता है| इस तरह युवा पीढ़ी पुरानी पीड़ी के लोगों के अनुभव से सीख सके, और वृद्ध लोग युवाओं के साथ जोश का अनुभव कर सके| हम इस तरह का वातावरण बना सकते हैं, क्या कहते हो आप?

प्रश्न : मैं डरपोक हूँ| मैं सारा जीवन छोटी छोटी चीजों से डरता रहा| मुझे हर बात में खतरा और जोखिम दिखता था और हर चीज से और हर किसी से डरता रहा| मुझे चोट लगने का डर लगता था| मैं इस सब से कैसे पार जा सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले अपने उपर से यह लेबल हटा दो - 'मैं डरपोक हूँ'। कौन कहता है आप डरपोक हो? जब आप ऐसे लेबल लगा देते हो तो आप वैसे बन जाते हो। बाइबल में भी कहा गया है' जैसा आप बोयोगे वैसा ही काटोगे| आप उसी को बढ़ावा देते रहते हो| आप बहुत अच्छे हो| हम सब यहाँ आपका समर्थन करते हैं| अपने आपको कमजोर मत समझो| इस विचार को मन से निकल दो|

प्रश्न : क्या कोई घर पर भी hollow and empty mediation कर सकता है?

श्री श्री रविशंकर :
घर पर आपको यह करने कि जरूरत नहीं है| केवल बैठ जाओ, ऐसा होने लगेगा| आप एक कार को गेराज में पूरी सफाई के लिए देते हो और वापिस मिलने पर इसे चलाने लगते हो| यह पहले से ही तैयार होती है| हर दिन घर पर आपको इसकी पूरी सफाई की जरूरत नहीं होती| इसलिए इसी तरह आप बस आंखें बंद करो और ध्यान करो|

प्रश्न : मैंने लोगों को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार कर लिया है| यद्यपि हमने उत्तरदायित्व के विचार को भी समझा है| मेरा बेटा १३ बर्ष का है| वह प्रौढ़ है,नियम तोड़ता है,स्कूल बीच में छोड़ देता है,सीखता नहीं,घर समय से नहीं आता और दोस्तों के साथ घूमता रहता है|मुझे उसकी चिंता होती है| मैं कैसे माँ होने का दायित्व पूरा करूँ,उसे और स्तिथि को कैसे स्वीकार करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
आप पहले ही ये सब कर रही हो| किशोरों के साथ निभाना बहुत मुश्किल होता है| कभी कभी आपको बहुत सख्त होने की ज़रूरत होती है, और इसके साथ साथ प्रेम भी दिखाना पड़ता है| यह एक घुड़सवारी की तरह है| कभी आप इसे ढीला छोड़ते हो और कभी आपको इसे ज़ोर से पकड़ना पड़ता है| इस तरह किशोरों के साथ निभाना घुड़सवारी करने जैसा है|


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"कोई भी चीज जो आनंद, उत्साह, समरसता, और करुणा लाये, और सब लोगों के साथ अपनेपन की भावना लाये आध्यात्मिकता का हिस्सा है"

शांति और समृद्धि साथ साथ चलतें हैं| यदि शांति होगी तो समृद्धि भी होगी| सारी दुनिया चाहती है कि मध्य वर्ती पूर्व में शांति हो| परन्तु हम सब जानते हैं आज जिस समस्या का सामना दुनिया को करना पड़ रहा है - वह आतंकवाद है जो जल्दी खत्म होने वला नहीं है| आज दो बड़े समुदायों में आतंकवाद ठहर गया है - एक है भारत और दूसरा इसरायल| और कोई भी राष्ट्र आतंकवाद से इतना प्रभावित नहीं है जितना भारत प्रभावित है| पिछले वर्ष हर महीने आतंकवाद का हमला हुआ| इसका कारण था हठधर्मी और कट्टरवादी| जिसको मेरे विचार में बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक शिक्षा के द्वारा टाला जा सकता है| जब कोई बच्चा यह सोच कर बड़ा होता है, ’केवल मैं स्वर्ग में जायूँगा और बाकी सब नरक में जायेंगे’ ,'वे बाकि सब के लिए नरक बना देतें हैं|

इसलिए सब को प्रेम से गले लगा कर हमें बच्चों की इस विचारधारा को बदलना होगा| किसी भी धर्म यां सांस्कृतिक भेदभाव के परे हम यह प्रयास कर रहे हैं ताकि उनका मन शांत हो सके| मन हर समय अतीत और भविष्य में भटकता रहता है| हमे इस मन को वर्तमान में लाने की जरूरत है जहाँ से यह अतीत को भूलकर और भविष्य के बारे चिंतित हुए बिना आगे बढ़ सके| मैं कहूँगा हमने लोगों को मन को कैसे संभालें इसके सिवाय सब कुछ सिखाया है| बचपन से बच्चों में गुस्सा, ईर्ष्या और घृणा है| हम उनको बोलते हैं गुस्सा मत करो,लालच मत करो,उदास मत हो| परन्तु हम उन्हें यह नहीं बताते कैसे उदास ना हो, यां इन नकारात्मक भावनाओ को कैसे छोडें|

यहाँ पर मुझे लगता है अपने श्वास की शक्ति को इस्तेमाल करना है क्योंकि श्वास मन और शरीर को जोड़ता है| श्वास की शक्ति से हम अपने मन को शांत कर सकतें हैं और अपनी धारणायों,अवलोकन और अभिव्यक्ति को बेहतर बना सकतें हैं| श्वास के द्वारा लाखों लोगों को मन शुद्ध करने में मदद मिली है| हालाँकि कुछ योग अभ्यास ५००० वर्षों से हैं पर यह सबके साथ बांटे नहीं जाते थे, परन्तु कुछ लोगों को ही बताया गया| वे अभ्यास बहुत उपयोगी थे और उपयुक्त व्यक्ति को ही सिखाये जाते थे| मैंने सोचा ये अब सबके लिए उपलब्द्ध होने चाहिए - जो सब लोगों के लिए बहुत उपयोगी हैं, भले ही वे किसी भी धर्म और संस्कृति के हों, यह कुछ ऐसा है जो मन को शांत करने के लिए है और अंदर से ख़ुशी लाने वाला है| मुझे लगा यह सारी दुनिया की संपत्ति है और इसे सबके साथ बाँटना चाहिए| तब से हमने इस ज्ञान को बाँटना शुरू किया और हमें लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली - इस से उनको गुस्से,घृणा और डर से भी छुटकारा मिला|

यहाँ इज़रायल में भी सीमा रेखा के साथ साथ लोगों में इतना ज़्यादा डर था क्योंकि कभी ही किसी भी समय धमाके ,बम या आतंकवाद का हमला होने की संभावना रहती है। ये लोग भी इन चिन्ताओ से मुक्त हो कर शांत बने और इनमें धैर्य आया| इस तरह का काम हो रहा है|

व्यापर के लिए भी यह बहुत प्रासंगिक है,जैसा कि आपको पता है कैसे व्यापारिक बाजारों में गिरावट आई, साम्यवाद को दुनिया से जाने के लिए लगभग १० वर्ष लगे| पूंजीवाद को खत्म होने में १० महीने से भी कम समय लगा। कुछ लोगों के लालच के कारण लाखों लोगों को दुःख उठाना पड़ा| ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है|

इसलिए हम यह सम्मेलन कर रहे हैं जो कारपोरेट संस्कृति और आध्यात्मिकता पर है| जिसमें यह विचार करेंगे हम कैसे इस स्थिति का सामना कर सकते हैं| आप में से बहुत से लोगों ने अपना कार्य इमानदारी और सच्चाई से किया होगा, परन्तु आप का उदाहरण लोगों के सामने लाने की आवश्यकता है। उन्हें पता चलना चाहिए कि यह कंपनी बहुत ज़िम्मेदार है, और यह अपना कार्य ईमानदारी और सच्चाई से कर रही है| इससे युवा व्यपारियों को प्रेरणा मिलेगी| इसी विचार से हम कंपनियों के संस्कृति और आध्यात्मिकता सम्मेलन कर रहे हैं जहाँ लोग यह महसूस करते हैं कि विश्वास व्यापर की रीढ़ की हड्डी है, और यदि विश्वास खो जाए तो सब कुछ खो जाता है| इस विचार को और अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि युवायों को प्रेरणा मिल सके|

जब हम सब बच्चे थे हम महात्मा गाँधी की बहुत सी कहानियां सुनते थे और उनसे प्रेरणा लेते थे| परन्तु आज,युवायों को व्यापर के क्षेत्र में अग्रणी उदाहरण चाहिए जो उन्हें ईमानदारी से व्यापर करने के लिए प्रेरित कर सकें| इसलिए यह प्रयोजना शुरू की गई| आध्यात्मिकता मेरे अनुसार वह है जो आत्मा को उन्नत करे - कोई भी चीज जो आनंद, उत्साह और समरसता लाए, और अधिक करुणा लाए और सब लोगों के साथ अपनेपन की भावना लाए आध्यात्मिकता का हिस्सा है|

आज अमेरिका में यहूदी समुदाय बहुत शक्तिशाली और सुसंगठित है|मैं दो बर्ष पहले उनके शताब्दी समारोह में मुख्य वक्ता था| वे बहुत अच्छी तरह से संगठित हैं और अमेरिका की आर्थिक उन्नति में उनका बहुत योगदान है| भारत में भी यहूदी समुदाय है| यह बहुत छोटा ,परन्तु बहुत शक्तिशाली और सुदृढ़ समुदाय है| केरल और मुंबई में हजारों वर्ष पुराने यहूदी समुदाय हैं| दो प्रकार की विचारधाराएं - तोरह और वेद सबसे पुराने हैं| सबसे पुराने धर्मों में से एक यहूदी धर्म और दूसरा हिन्दू धर्म है|

इन में बहुत सी सामानताएं हैं| दोनों एक ही बात कहतें हैं."शलोम,"और हम कहते हैं,"ॐ शांति" - सब जगह शांति हो, और सब मिलके रहे| दुनिया एक सुंदर परिवार है| यह सन्देश हमे सब जगह ले जाना है, हर घर तक पहुंचाना है| एक तो व्यक्तिगत शांति है - शांति केवल संघर्ष का ना होना ही नहीं है| यह एक आन्तरिक सकारात्मक भावना है| जब हम खुश होते हैं केवल तभी मैं समझता हूँ कि हम शांतिपूर्ण होते हैं| उस ख़ुशी को फिर से जगाना होगा|

इज़रायल में नौजवानों में बहुत कुंठा है| थोड़े बहुत आत्महत्या की कोशिशें भी हो रही हैं| इन नौजवानों का आन्तरिक शांति के लिए मार्गदर्शन किया जाना चाहिए, और यह केवल श्वास के द्वारा हो सकता है| मैं प्राय कहता हूँ हमे धर्म को धर्म निरपेक्ष बनाना होगा,व्यापर को सामाजिक , और राजनीति को अध्यात्मिक बनाना होगा| धर्मनिरपेक्ष धर्म का अर्थ है नेता यह नहीं कह सकते कि वे केवल अपने लोगों का ही ध्यान रखेंगे| उन्हें दुनिया के सभी लोगों का ध्यान रखना होगा| एक इमाम यह नहीं कह सकता कि मेरा उत्तरदायित्व केवल मुसलमानों के प्रति है| उसे कहना चाहिए मेरा उत्तरदायित्व यह देखना है कि संसार के सभी लोग खुश रहे| इसी तरह से एक इसाई पादरी यां रब्बी कह सकते है मुझे दुनिया के सभी लोगों का ध्यान है| संस्कृत में हम कहते हैं,"सर्वजन: सुखिनो भवन्तु," - दुनिया में सभी लोग सुखी रहें| धर्म की धर्म निरपेक्षता से मेरा यही मतलब है| तब हट्ठ-धर्मी और आतंकवाद खत्म हो जायेगा|
दूसरा है राजनीति को अध्यात्मिक बनाना| यदि राजनितिज्ञ आध्यत्मिक होंगे तब वे लोगों का ध्यान रखेंगे| तब भ्रष्टाचार और भाई भतीजा बाद राजनीति से ख़त्म हो जायेगा| हम महत्मा गाँधी के युग में पहुँच जायेंगे जहाँ राजनितिज्ञ लोगों का ध्यान रखते थे|

फिर व्यापार को सामाजिक बनाना| जिसका अर्थ है हर व्यापार कोई सामाजिक दायित्व ले, संस्थाओ की मदद, स्त्री और बच्चों की मदद - ना केवल उन्हें पैसे ही दें बल्कि उनके सही रहन सहन का भी रखें| यदि आपके सभी कर्मचारी खुश है, यदि वे एकीकृत है तो वे इमानदार और प्रतिबद्ध होंगे|

यदि नहीं,उन्हें बुलाओ और उनसे बात करो| यदि आपके पास समय नहीं है हम आपके लिए यह कर सकते हैं| हम इसे ए पी इ एक्स(APEX) कार्यक्रम कहते हैं जिसके लिए चार दिन का समय चाहिए| २०० से ३०० व्यापारी कम्पनियों ने यह कार्यक्रम इस्तेमाल किया है जिसमें युवा कर्मचारियों ने हिस्सा लिया, और कार्यकम ने उन्हें प्रतिबद्धता और ख़ुशी प्रदान की।ख़ुशी तो अपने अंदर से ही आती है|

प्रश्न : आओ हम एक विचार लें - की इमाम कहे,"हम अन्य धर्मों में विश्वास करने वालों का ध्यान रखते हैं," और रब्बी केवल यहूदियों के लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए सोचे| वास्तव में हमें ऐसे विचार विकसित करने के लिए क्या करना चाहिए, क्योंकि आज के दिन सभी घटनाएं अतिवादियों के हाथ में हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले ऐसे लोगों के लिए परस्पर विश्वास और शिक्षा बहुत जरुरी है|
दूसरा उसी समुदाय में लोगों को अतिवादियों का पता लगाना होगा और उन्हें अलग करना होगा| इन सब के लिए एक निष्पक्ष व्यक्ति का वहाँ होना जरुरी है| किसी अन्य व्यक्ति को बीच में आकर बातचीत करवानी चाहिए और पास लाना चाहिए| ऐसा हमने कश्मीर में किया था| वहाँ पर १५०० हेज्बोल्लाह मोहदीन लोग थे जिनमें परिवर्तन आया| ये लोग आये और उन्होंने बताया ,"हम कुछ गलत कर रहे थे| हम लोगों को मार रहे थे|" उन्हें भारत में जेल में रखा था जहाँ हमने उनको अभ्यास करवाया था| इससे उन्हे बदलाव के लिए मौका मिला। इसलिए कल सबसे पहला कदम यही होना चाहए, आतंकवादियों को जेल में अभ्यास करवाया जाए| उनके द्वारा दुनिया के अन्य आतंकवादियों से सम्पर्क किया जा सकता है| उन्हें यह शिक्षा,यह आध्यात्मिक अनुभव दो और उन के सोचने के तरीके में परिवर्तन लाओ| मुझे पता है यह एक तत्कालिक कार्य नहीं है, इसके परिणाम में कुछ समय लगता है| २००१ में कोई भी कश्मीर नहीं जा सकता था| व्यापर बंद हो गया था| चुनावी प्रक्रिया नहीं थी| कश्मीर का राज्य अस्त व्यस्त था| तब २००४ तक हमारे कार्य से बहुत अंतर आया| आज ६९% लोगों ने मतदान किया| व्यापार शुरू हुआ हालाँकि इस सब को शुरू होने में ५ से ७ वर्ष लग गए| थोड़ा थोड़ा करके हम अंतर ला सकते हैं कुछ परिवर्तन लाया जा सकता है|

ऐसे ही हम इज़रायल और पैलस्तीन में १०० युवा ले सकते हैं जो इसके लिए कार्य करें और इन लोगों को अलग तरह से सोचने के लिए प्रशिक्षण दें| मुझे विश्वास है हमें शांति मिल सकती है, मैंने इसे इराक में सफल होते देखा है|
मैं आपको इराक का एक उदाहरण देना चाहूँगा इराक में हमने शिया और सुन्नी के बीच कार्य शुरू किया| इन दोनों के बीच बहुत दुशमनी थी| ८००० सुन्नी लोगों को शिया गाँव से निकल दिया गया था| जब हम शिया लोगों से मिलाने उन्हें शिया गावं में ले गए और उन्हें समझाया तो इसके फलस्वरूप सुन्नी वालों ने शिया वालों से वापिस आ सकने के लिए कहा| यह केवल एक उदाहरण है| ऐसे बहुत से और उदाहरण भी हैं।

मुझे पता है बहुत कुछ करने को बाकी है| मुझे पता है इराक में हमे सम्पूर्ण शांति नहीं मिली है परन्तु हम महत्वपूर्ण ढंग से आगे बढ़े हैं| हमने इराक और मोरोक्को से ५०-५० लोगों को बुलाया| ये लोग बहुत कट्टर थे| कई लोग यह सोचते थे कि वे हमें स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि हम हिन्दू हैं, और हिन्दू का मतलब मूर्ति पूजा करने वाले लिया जाता था| परन्तु केवल तीन सप्ताह के समय में वे हमारे साथ दोस्त बनने लगे और नाचने लगे| बहुत सद्भावनापूर्ण वातावरण बन गया|

हमारे यहाँ इज़रायल से २२ लोग और अरब देशों से १५० लोग थे| जब वे बैंगलोर पहुंचे ईरानी,इराकी,अरबी ,वे बहुत गुस्सा हो गये| उन्होंने कहा की उन्हें पहले क्यों नहीं बताया गया कि यहाँ इजरायली भी हैं| जैसे हमने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो| उन्होंने कहा हमने उन्हें धोखा दिया है| परन्तु केवल तीन दिन में ही उनमें अंतर आ गया - वे एक दूसरे को पसंद और सम्मान करने लगे| अरब से १५० लोग शालोम ओर ॐ शांति गा रहे थे| इससे हमें बहुत उम्मीद हो गई हम कुछ कर सकतें है|

प्रश्न : इजरायल के बहुत से युवा अच्छे अवसर की तलाश में देश छोड़ कर कहीं और चले जा रहे हैं| क्या इससे हमारी अर्थ व्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा? कृपया बताइए|

श्री श्री रवि शंकर :
यदि यह केवल २५% लोग ही हैं तो मैं कहूँगा यह अच्छा है| उनमें अपने देश,अपने मूल स्थान के प्रति अपनेपन की भावना आयेगी| अच्छा है लोग जाएँ और इसे सब जगह फैलाएं| इसके साथ यह भी है कि विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था ख़त्म हो रही है| यह ऐसे ही है मान लो आप किसी बच्चे की पढाई में मदद कर रहे हो परन्तु बच्चा कहीं और चला जाता है, और सरकार या प्रणाली में योगदान नहीं देता - कमी तो आती है| यह सार्वभौमिक समस्या है| यह केवल इज़रायल तक ही सीमित नहीं है| यह एशिया,जापान,सब जगह है| मैं कहूँगा यह विश्वविद्यालय और सरकार का उत्तरदायित्व है कि आपने जिनको शिक्षा दी है इनको अच्छे अवसर प्रदान करें| यह लोगों में आना चाहिए|

आध्यात्मिकता से आत्मा और चेतना उन्नत होती है| पैसा आपके आराम के लिए है| यह भौतिक स्तर पर आराम लाता है| हम अपना आधा स्वास्थ्य धन कमाने में लगा देते हैं और तब आधा धन अपना स्वास्थ्य वापिस लाने के लिए लगा देते हैं। इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो क्योंकि आपका स्वास्थ्य ही आपकी पूंजी है| यह आध्यात्मिकता का हिस्सा है| पैसे को अपनी जेब में ही रखना चाहिए,मन में नहीं| यदि आप हमेशा पैसे के बारे में ही सोचते रहोगे तो जो भी पैसा आपने कमाया है, उसका आनंद नहीं उठा सकते| इसलिए पैसा तो ज़रुरी है परन्तु कुछ और है जो इससे ज्यादा ज़रुरी है, और वह है मानवता और ख़ुशी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती|

वर्तमान पीड़ी परवाह नहीं करती कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं| वे दिखावे में रूचि नहीं लेते जितनी पहले के लोग लेते थे| पूंजी को सम्मान का प्रतीक मानते थे,परन्तु आज की युवा पीड़ी ऐसा नहीं सोचती| जोकि बहुत अच्छा है| वे पैसा कमाते हैं केवल अपने लिए नाकी दिखावे के लिए| मैं कहूँगा युवा पीड़ी बहुत अधिक समझदार है वे जानतें हैं बहुत से लोगों के पास बहुत पैसा है परन्तु ख़ुशी नहीं है| वे मैत्रीपूर्ण नहीं हैं,न खुश हैं और हमेशा उलझे रहतें हैं| युवा लोग सोचतें है उन्हें जीवन में अधिक से अधिक हासिल करना है| यह अंतर तो है| केवल यही ज़रुरी है कि पीड़ी के अंतर को खत्म किया जाए| यह समझदारी से और शिक्षा के ज़रिये ख़त्म हो सकता है| मैं कहूँगा आज के युवा बहुत प्रतिभाशाली,चिंतापूर्ण और उपयोगी हैं| वे शराब और नशे में नहीं फस जाते| यह उनके लिए खतरा है - यदि वे इस प्रकार के नशे से प्रभावित हो जाते हैं तो यह बड़े दुःख की बात है|


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"जब हम परेशान होते हैं तो हमारे लिए एक अवसर होता है यह जान लेने का कि हम ज्ञान के साथ कितना आगे बढ़े हैं"

कई वर्षों के बाद मैं यहाँ डरेसडेन में आया हूँ। इस स्थान में बहुत परिवर्तन आ गया है| इसी तरह से हम लोग भी बदलते रहते हैं| आज आप कल जैसे नहीं हो| जो आप दस महीने पहले थे आज आप वैसे नहीं हो| हम सब विकास के साथ प्रगति करते हैं| आपका शरीर, मन, भावनाएं, विचार बदलते रहते हैं। परन्तु एक चीज़ है जो नहीं बदलती, इसे जान लेना,पहचान लेना,इस में स्थिर होना ही आध्यत्मिकता है| परिवर्तन का पता लगाने के लिए आपको कुछ ऐसी चीज़ का पता चलाना पड़ता है जो नहीं बदलती| केवल वही सनातन और स्थिर है| जीवन में स्थिर होने के लिए आपको कुछ ऐसा पकड़ना पड़ता है जो नहीं बदलता| क्योंकि जो सनातन है, जो स्थिर है वही विश्राम और शांति ला सकता है| ठीक है? अब आप मुझे बताओ क्या आप केवल १० दिन की शांति के इच्छुक हो? नहीं| हम स्थाई और हमेशा रहने वाली शांति चाहते हैं,ऐसा प्रेम जो आपकी आत्मा को उन्नत करे,मैं इसे आध्यात्मिकता कहता हूँ|

कुछ क्षणों के लिए बादल आ सकते हैं| आपकी भावनाएं बदल सकती है परन्तु उससे आप में कुछ स्थिरता मिलती है| क्या ऐसा नहीं है? उस स्थिरता के लिए जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देखो| विश्राम में रहना सीखो,कुछ देर के लिए रोज़ ध्यान अवश्य करो|

क्या आप सब यहाँ हो?

१०० प्रतिशत?

अब आप यहाँ हो| अब जब मैं यह प्रश्न पूछता हूँ,अचानक मन यहाँ आ जाता है|क्या ऐसा नहीं है? पता है हम अपने श्वास के बारे में नहीं सीखते| श्वास में स्वस्थ होने के लिए बहुत से गुण हैं और ध्यान में तो इससे भी ज्यादा|

प्रश्न : समय के बारे में आपके क्या विचार हैं? आधुनिक भौतिक विज्ञान के विद्वान् कहते हैं समय विकास शील है|आपका अनुभव समय के बारे क्या है?

श्री श्री रवि शंकर : वेदों में यह बहुत समय पहले ही कहा गया है| समय और मन जुड़े हुए हैं| समय और मन में सम्बन्ध आश्चर्यचकित कर देने वाला है| हमारे पास मन और समय के विषय पर एक पुस्तक है| यदि आपकी रूचि है तो आप पढ़ सकते हो|

प्रश्न : डर से कैसे निभाएं?

श्री श्री रविशंकर : प्राणायाम से मदद मिलेगी| सुदर्शन क्रिया से मदद मिलेगी| ध्यान से मदद मिलेगी| यदि आपके पास कोई डर है तो मुझे दे दो| आप मुस्काते हुए घर वापिस जाओ|

प्रश्न : आपको इतने विशाल परियोजनाओं के लिए शक्ति और विचार कहाँ से आते हैं? आप जब अस्वस्थ होते हो क्या करते हो?

श्री श्री रवि शंकर : पता है, सारी शक्ति एक ही स्रोत से आती है| जब आप उस स्रोत से जुड़ जाते हो तो सब कुछ अपने आप आने लगता है|

प्रश्न : मनुष्य होने के नाते क्या सबसे आवश्यक है?

श्री श्री रविशंकर : मनुष्य के लिए सबसे जरुरी है प्रेम, यह आपका स्वभाव है| आपको केवल शांत होने की आवश्यकता है| जब आप विश्राम में होते हो तो आपको पता चलता है कि मनुष्य जीवन का प्रयोजन क्या है|

प्रश्न : आप किसानो की आत्महत्या और बीजों में अनुवांशिक परिवर्तन के विषय में क्या कहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : किसानो द्वारा आत्महत्या प्रगतिशील राष्ट्रों की बहुत बड़ी समस्या है| अनुवांशिक बीज का उत्पादन कर रही कुछ कम्पनियाँ गरीब किसानो से असली बीज खरीद के जला रहे हैं| कुछ लोग लालच में आकर उनके साथ मिल गए हैं| आज किसानो को इसके बारे में शिक्षित करना बहुत ज़रुरी है| आर्ट ऑफ़ लिविंग ने ५२० गाँवो में काम किया है जहाँ किसानो को उपयुक्त शिक्षा दी गई| अब इन सब गाँवो में आत्महत्या पूरी तरह से बंद हो गई है| परन्तु अभी भी बहुत कुछ करने के लिए है| हमे और अधिक काम करने कि जरूरत है|

प्रश्न : क्या हिंसात्मक व्यक्ति को वो जैसा है वैसे स्वीकार कर सकते हैं? क्या हमे सहनशील रहना चाहिए?

श्री श्री रविशंकर :सहनशक्ति का मतलब यह नहीं है किसी को कोई हिंसात्मक कार्य करने की आज्ञा दो, परन्तु हिंसा को हिंसा से वश में नहीं किया जा सकता| बुद्धिमत्ता से, बिना परेशान हुए,जैसे एक डाक्टर मरीज को देखता है वैसे ही हिंसा को रोकना है| हिंसा के प्रति जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया दिखाने का कोई लाभ नहीं होता। हिंसा के प्रति प्रतिक्रिया दिखाना ठीक नहीं परन्तु इसके खिलाफ कार्य करने की जरूरत है|

प्रश्न : गुरूजी,मुझे नहीं पता कि मैंने ठीक निर्णय लिया है यां नहीं| मेरा किसी के साथ सम्बन्ध था, मैंने वो संबंध खत्म कर दिया और फिर दोबारा किसी और से रिश्ता शुरू किया| क्या यह नई शुरुआत है? क्या मैंने ठीक निर्णय लिया है?

श्री श्री रविशंकर : समय आप को बता देगा! पता है जब हम परेशान होते हैं तो यह अवसर इस बात को जानने का होता है कि हम ज्ञान में कितना आगे बढ़े हैं| जब हम इस बात की जिम्मेदारी लेते है, ’मैंने किसी के साथ कुछ गलत किया है’ तो ५०% दुःख ख़त्म हो जाता है| बाकि का ५०% भी चला जाता है जब आपको पता होता है कि भविष्य में सबकुछ बदल जायेगा| एक बार एक सज्जन अपने पत्नी के साथ बहुत नाराज़ था|

जब उससे पूछा गया कि वह अपनी पत्नी के साथ नाराज़ क्यों है तो उसने कहा,"क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूँ। यदि मुझे उसकी कोई परवाह नहीं होती तो मैं उससे क्यों लड़ता?" आप लड़ाई करते हो क्योंकि आप में स्वामित्व और अपनेपन की एक भावना होती है| इसी अपने पन की भावना की वजह से आप लड़ते हो और इसी अपनेपन की वजह से फिर मिल जाते हो| क्या ऐसा नहीं है? आप कुछ और लोगों से भी संपर्क कर सकते हो,मुझे तो इसका अनुभव नहीं है|

प्रश्न : आपके और अन्य लोगों के साथ में अंतर क्यों है?

श्री श्री रविशंकर : मुझे कोई अंतर नहीं लगता| यदि आपको कोई अंतर लगता है तो आप मुझे बताओ| जहाँ कहीं भी मैं जाता हूँ शायद सब के साथ सहज रहता हूँ| मुझे अपने लिए कोई चिंता नहीं है। मैं यह नहीं सोचता, ’मेरा क्या होगा?’ मैं हर किसी के बारे में महसूस करता हूँ चाहे वे मुझे जानते हो यां नहीं| मुझे किसी प्रकार का भय नहीं है। आपको भी शायद ऐसा ही लगता हो| यह जानना आपके लिए है| क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

प्रश्न : मैं आपकी तरह पथ पर और सशक्त और प्रतिबद्ध कैसे हो सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर : आप पहले से ही प्रतिबद्ध हो| अपने पर संदेह मत करो| आपके पास सभी गुण हैं| एक बीज के रूप में आपके पास सब है| एक कली में वह सब होता है जिससे वे फूल बन सके| केवल इसके लिए कुछ समय लगता है| सभी पंखुडियां खुल जाएँगी और यह पूर्ण रूप से खिला फूल बन जायेगा| यद्यपि यह एक कली है परन्तु इसके पास सब कुछ है| इसी तरह एक व्यक्ति के पास सब कुछ है| आपको केवल कुछ पोषण की जरूरत है| इसलिए आप जानलो कि आपके अंदर सब गुण हैं| इसके लिए कुछ समय लगता है| कुछ प्राणायाम,ध्यान करो और अच्छे साथ में आप इसे और भी जल्दी होते देखोगे|

प्रश्न : मैं बहुत से लोगों को शराब और सिगरेट पीते देखता हूँ| मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर : मेरे पास भी यही प्रश्न है! शिक्षा,शिक्षा! इन लोगों को किसी बड़े आनंद का अनुभव होना चाहिए| देखो सुदर्शन क्रिया के साथ वे अपनी इस आदत को कितनी जल्दी छोड़ देते हैं और इससे बाहर निकल आतें हैं|
हम इनके लिए एक कार्यक्रम करेंगे| हम ने कुछ देशों में ऐसा किया है और यह बहुत कामयाब रहा है|६५ प्रतिशत लोग बिना सिगरेट के रहे| ३०-३५ प्रतिशत वापिस सिगरेट पीने लगे परन्तु मात्रा में फर्क आया है| उनके सिगरेट यां शराब के सेवन में ८० प्रतिशत घटौती हुई है।

प्रश्न : क्या मुझे चर्च की सदस्यता छोड़ देनी चाहिए? (मैं कथोलिक चर्च से हूँ)

श्री श्री रविशंकर : यह आपकी अपनी मर्जी है| आप सदस्य बने भी रह सकते हो और यदि आप को नहीं बनना तो छोड़ भी सकते हो| आप सदस्य हो यां नहीं हो यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है| क्या महत्वपूर्ण है? क्या आप एक अच्छे इन्सान हो? क्या आप प्रेम और करुणा से परिपूर्ण हो? क्या आप दूसरों की मदद करने में रूचि लेते हो? क्या आप दूसरों के साथ जुड़ना चाहते हो?

प्रश्न : बिना शर्त के प्यार के डर से कैसे उभरें?

श्री श्री रवि शंकर : ओह! ध्यान से| जब आप अपने अंदर गहरे जाते हो तो सभी तरह के डर ख़त्म हो जाते हैं|

प्रश्न : आपको शक्ति के एक क्षेत्र और बुद्धिमत्ता को पा कर कैसा लगता है?

श्री श्री रविशंकर : अच्छा! यह बहुत कठिन प्रश्न है| पता है, मैं जहाँ भी जाता हूँ मुझे लगता है मैं अपना शक्ति क्षेत्र साथ ले जाता हूँ|

प्रश्न : हम जो मन्त्र गाते हैं क्या आप हमें उनका अर्थ समझा सकते हो?

श्री श्री रविशंकर : मन्त्र केवल एक ध्वनि है, एक तरंग है| "ॐ नम: शिवाय" पांच तत्वों को संबोधित करता है :पृथ्वी,अग्नि,वायु, जल और व्योम ..जिनसे हम सब बने हैं|

प्रश्न : क्या आप हमें २०१२ में दुनिया में होने वाले बदलाव के बारे बता सकते हो?

श्री श्री रवि शंकर : अच्छा समय होगा| लोग और अधिक अध्यात्मिक हो जायेंगे,और अधिक दयालु,कम लालची, घृणा कम हो जायेगी,और अधिक समझदार हो जायेंगे| सब बहुत अच्छा होगा, सब वास्तव में बहुत अच्छा होगा|

प्रश्न : बर्लिन और अन्य जगहों पर आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर के बारे आप का क्या ख्याल है?

श्री श्री रवि शंकर : अच्छा है। आप सब साथ रहो और कहीं पर भी केन्द्र बनाओ| ज्यादा से जयादा लोग सेंटर में आयेंगे और उनका फायदा होगा| यही मैं चाहता हूँ कि सब खुश रहे| हमें ऐसे खुशीहाल सेंटर बनाने होंगे जहाँ लोग आएं और ख़ुशी से कूदते हुए बाहर जाएं| जहाँ पर जाकर वे अपना मानसिक तनाव,परेशानी और मन की संकीर्णता भूल सकें|

प्रश्न : लोगों के लिए एक दूसरे को समझना इतना मुश्किल क्यों होता है?

श्री श्री रवि शंकर : क्योंकि वे पहले अपने आपको ही नहीं समझते| आप अपने मन को तो समझते नहीं और दूसरों के मन को समझने की कोशिश करते हो| यह बहुत मुश्किल हो जाता है|

प्रश्न : क्या समलैंगिकता एक बीमारी है? क्या आप इसके बारे में कुछ बतायेंगे?

श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले यदि आप सोचते हो यह एक बीमारी है तो आप पहले ही इसके विषय में मन बना चुके हो| यह सब मानसिक तौर पर शारीरिक झुकाव है| ये प्रवृतियाँ बदल सकती हैं। मैं कुछ लोगों से मिला हूँ जो ४०-५० वर्ष के बाद समलैंगिक बन गए और कुछ जो पहले समलैंगिक थे बाद में उनके परिवार और बच्चे हुए| दुनिया में सब तरह की प्रवृतियाँ हैं| हमे किसी के साथ इस प्रवृति की वजह से मतभेद नहीं रखना चाहिए| हमे सभी को उनके ध्येय की ओर बढ़ने में प्रेम से मदद करनी चाहिए, जो कोई भी ध्येय उन्होंने अपने लिए बनाया हो| शरीर की सभी जरूरतें बहुत कम हैं,छोटी हैं|
यदि आप शरीर की जरूरतों में ही अटक के रह जाओगे तो हम कुछ भूल रहे है। हमारे पास इससे भी कुछ विशाल है, कुछ जिसके लिए हमने जन्म लिया है| सभी की अध्यात्मिक जरूरत पूरी होनी चाहिए| दुर्भाग्य की बात है लोग छोटी छोटी जरूरतों में ही फसे रहते हैं| भोजन,मनोरंजन,भाईचारा ही उनकी मुख्य चिंता होती है और वे जीवन का उद्देश्य - सार्वर्भौमिक आत्मा के साथ जुड़ना भूल जातें हैं| हमारे जीवन का असली अर्थ है ब्रह्मांड के साथ जुड़ना है|


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वासुदेव कुटुम्बकम विषय पर वार्तालाप

पिछली पोस्ट के शेष अंग:

प्रश्न : बहुत से लोग ऐसे हैं जो बुरा कर रहे हैं| यहाँ तक की ज्ञान को सुनकर भी उनके हृदय नहीं पिघलते| ऐसे लोगों के लिए जो वास्तव में बहुत बुरा कर रहे हैं हम क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
केवल इस विचार से कि ’लोगों की मदद की जाए’ कौन उन तक नहीं पहुँच सकता।.यदि बहुत से लोगों के मन में यह विचार आ जाए तो यह संभव है| बहुत से ऐसे स्वयं सेवक हैं जो इस प्रकार से कार्य कर रहें हैं| रुथ कुओक मुझे बता रहा था जब मनीला में बाढ़ आई ३००,००० लोग बेघर हो गए| आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वयंसेवक राहत कार्य करने में जुट गए| और अब रेड क्रोस उन्हें ध्यान और श्वास से राहत कार्य सिखाने के लिए कह रहे हैं| सामूहिक रूप से कार्य करने से अच्छा होगा| हम सब दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं|

प्रश्न : सूचनाओं के अनुसार ३० वर्षों में दुनिया खत्म हो जाएगी| हम क्या कर सकतें है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह मेरी भी चिंता है| पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र के United millenium goals में आर्ट ऑफ़ लिविंग का २५% योगदान रहा| १०.८ मिलियन लोगों ने ५५.६ लाख पेड़ एक वर्ष में लगाये| यदि हर कोई इसी तरह से अपना योगदान देने लगे ,कम प्रदूषण करे, तो ही इस ग्रह पर जीवन के लिए आव्शयक वातावरण रह पाएगा ।जब हम सब मिलकर काम करेंगे तो यह संभव है।

प्रश्न : यदि आप ध्यान करने लगो तो कौन सा समय सही है,जब आप ध्यान कर रहे हो आपको क्या सोचना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले हमें ध्यान कब करना चाहिए? ध्यान सुबह के समय, दोपहर में, यां शाम में कभी भी भोजन से पहले किया जा सकता है| नाश्ते, दोपहर और रात के भोजन से पहले ध्यान कर सकते हैं|
जब विचार आते हैं तब हम आम तौर पर उनका पीछा करने लगते हैं| जितना आप इनका पीछा करते हो ये उतने ही बढ़ते जाते हैं और आप को पकड़ लेते हैं| अच्छे विचार आते हैं तो आप कहते हो आओ आओ| बुरे विचार आते हैं तो आप उनसे भागने की कोशिश करते हो| आपको चतुर होना होगा, विचार अच्छा हो यां बुरा आप उनसे लड़ते नहीं हैं।ठीक है आओ, यहाँ रहो,उन्हें अपनाना होगा, और वे गायब हो जायेंगे| विचार आपसे ज्यादा डरते हैं, इस तरह विचार भाग जाते हैं|इसीलिए ध्यान आरम्भ करने के लिए इसे सांकेतिक सी डी, या सांकेतिक ध्यान के साथ करें|शुरू में इससे मदद हो जाती है, और बाद में आप इसके बिना कर सकते हो|

प्रश्न : अपने सपनो को कैसे पूरा करें?

श्री श्री रविशंकर :
जब मन स्थिर होता है, इसमें किसी भी विचार को पूरा करने की शक्ति आ जाती है| इस तरह न केवल आप अपने विचार ही पूरे कर सकते हो बल्कि दूसरों के विचार पूरे हो जायें ऐसा आशीर्वाद भी दे सकते हो| यह विचार ऐसा होना चाहिए जिसमें आपको विश्वास हो और जो व्यवहारिक हो| यह कोई ऐसा नहीं हो सकता जैसे आप अभी चाँद पर जाना चाहें| कोई भी व्यवहारिक,संभव विचार हो इसके लिए इरादा बनाओ और यह पूरा होने लगेगा| इसका आधार है मन का खाली होना|

प्रश्न : खालीपन क्या है,शून्य मन? क्या आप इसके बारे और बताएँगे?

श्री श्री रविशंकर :
श्री श्री खाली आकाश की ओर इशारा करते हैं| समझ गए क्या?यही खालीपन है यदि नहीं तो पहले ही से मन खाली है|

प्रश्न : हमे वेदों के बारे में अध्ययन का एक अवसर मिला| ये कहते हैं आप परिणाम की इच्छा किए बिना केवल कार्य करो|जोकि मुश्किल है| कृपया कोई सुझव दें|

श्री श्री रवि शंकर :
देखो मानलो आप किसी व्यक्ति की मदद करते हो और वे आपको धन्यवाद नहीं करते। आपको कैसा लगता है? क्या आप उदास हो जाते हो? दुखी? केवल एक धन्यवाद आपका दिमाग खराब कर सकता है, आपके अच्छे काम के बावजूद| क्या यह ठीक है?अपेक्षा आपके आनंद को कम कर देती है|कोई भी चीज आपके पास अनजाने आ जाये तो आपको ख़ुशी देती है| क्या ऐसा नहीं होता?

प्रश्न : ऐसे लोगों के साथ कैसे निभाएं जो बुरा कहते और करते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
सबसे पहले इसे स्वीकर करो चाहे वे जैसे भी हों| दूसरा उनको ऐसे देखो कि वे बदल जायेंगे| कल,अगले सप्ताह,या अगले वर्ष वे बदल जायेंगे| अपना मन खुला रखो। शायद ५,१० बर्षों में,अगले जन्म में वे बदल जायेंगे| जब आप जान लेते हो वे ऐसे हैं और बदल सकते हैं तो आपका मन शांत हो जाता है| कोइ भी परेशान करने वाली स्तिथि हो तो उसका मज़ाक बना सकते हैं| यदि आप थोड़े से भी मजाकिया हों तो आप दुःख देने वाली परिस्तिथि से निकल सकते हो| परन्तु आपको दो पल में सामान्य होना होगा| पता है किसी और के व्यवहार की वजह से अपने मन की शांति खो देना बिलकुल बुद्धिमानी नहीं है| क्या आप ऐसा नहीं सोचते?

प्रश्न : भारत और नेपाल में सभी संत दुनिया एक परिवार है के लिए एक जुट होकर कैसे कार्य कर रहे हैं?

श्री श्री रविशंकर :
सभी का इरादा दुनिया को एक परिवार के रूप में जोड़ने का है| तरीके और कार्य क्षेत्र अलग हैं पर एक ही लक्ष्य है|


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"वासुदेव कुटुम्बकम विषय पर वार्तालाप"


श्री श्री रविशंकर :
टोक्यो में १५ अक्तूबर को ’वासुदेव कुटुम्बकम’ विषय पर वार्तालाप
ॐ शांति शांति शांति।

जैसे की आदरनीय उचिंदा और अन्य मानणीय महोदयों ने कहा, आज हमें दुनिया को एक अलग दृष्टि कोण से देखना होगा। हम अपने अतीत से बहुत कुछ सीखते हैं और भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं| यदि हम भूतकाल की सांसारिक सभ्यता देखें तो दुनिया में दस बड़े धर्म थे| चार मध्वर्ती पूर्व से,छह पूर्व और दूरवर्ती पूर्व से| दूरवर्ती पूर्व के छह धर्मों में कभी कोई संघर्ष नहीं हुआ।

मैंने राष्ट्रपति निक्सन के साथ होने वाली एक घटना की कहानी सुनी है| वह जापान में थे, और एक बौद्ध संत और शिंटो पादरी के साथ बैठे थे| उन्होंने शिंटो पादरी से पूछा,"जापान में शिंटोवादियों की क्या संख्या है|" शिंटो पादरी ने जबाब दिया,"८०%" | तब वे बौद्ध साधू की ओर मुड़े और उनसे पूछा जापान में बौद्ध लोगो की कितनी संख्या है? दोबारा उन्हें बताया गया ८०%| राष्ट्रपति निक्सन असमन्जस में पड़ गए। उन्होंने कहा ऐसे कैसे हो सकता है कि दोनों का जबाब एक ही हो| बौध और हिन्दू धर्म में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है, और न ही बौद्ध और शिंटो में| हम मिल जुल जाते हैं और सब के साथ अपनेपन की भावना है| भारत में हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म में कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है क्योंकि सब एक साथ सद्भावना से रहतें हैं| दुनिया को यह सीखने की ज़रूरत है| क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

यदि दुनिया थोड़ा सा भी यह सीख ले जो जापान और भारत में हो रहा है तो आतंकवाद की समस्या खत्म हो जाएगी| आतंकवाद तब बढ़ता है जब कोई व्यक्ति यह कहता है कि सिर्फ उनका रास्ता ही सही रास्ता है| मेरा रास्ता ही केवल ईश्वर की ओर ले जाने वाला है| क्या ऐसा नहीं है?

हमें शिंटोवाद के बारे में और जानने की जरूरत है| यद्यपि यह जापान में ही जाना नाता है परन्तु भारत और दुनिया के अन्य भागों में नहीं जाना जाता| मैंने भारत में एक संस्था खोलने का न्योता दिया है जिसमें शिंटो और हिन्दू धर्म का अध्ययन हो सके, तुलनात्मक अध्ययन।

वर्तमान की भाषा विज्ञान की भाषा है| आज विज्ञान और आध्यात्मिकता साथ साथ आ गए हैं| अपने समय के महान वैज्ञानिक आइनसटाईन ने भगवद् गीता पढ़कर कहा. था कि भगवद् गीता का ज्ञान सबसे ज्यादा परिवर्तनकारी ज्ञान है जो उसे मिला है|" आज विज्ञान जो कुछ भी हो,यदि आप किसी वैज्ञानिक वक्ता को सुने तो आपको लगेगा कि आप बौद्ध धर्म को सुन रहे हो, आपको लगेगा आप वेदांत सुन रहे हो|

जर्मनी में मैंने कहा था कि हमारा शरीर जैसा हम समझते हैं वैसा नहीं है। शरीर केवल एक उर्जा है| यदि हम अपने शरीर का निरिक्षण करें तो हमारे शरीर का हर अणु एक शक्ति है और यह हर समय बदल रहा है| ठीक ऐसा ही वेदांत कहतें हैं कि हम समुद्र में बुलबुलों की तरह हैं, एक शक्ति| हम सब एक शक्ति का हिस्सा हैं|

आध्यात्मिकता के लिए यह संदर्भ अवश्यक है| इस संदर्भ की कमी से तनाव और परेशानी हमारे जीवन में भर चुकी है| जब हम तनाव में हों तो दो बातें हो सकती हैं, यां तो हम बहुत उदास हो जायेंगे और आत्महत्या के विचार आ सकते हैं, यां फिर आक्रामक और हिंसात्मक बन जाते हैं। इसीलिए समाज में अपराध हो रहा है,लोग आत्महत्या कर रहे हैं और उदास हो रहे हैं| ये दो बातें होतीं हैं| यह सुन कर दुख होता है जापान में भी बहुत से लोग आत्म हत्या कर रहे हैं। जब भी मैं यह सुनता हूँ मुझे लगता है मैं कुछ कर सकता था क्योंकि यह श्वास, मन और ध्यान का ज्ञान आत्महत्या करने की प्रवृति से बाहर आने में, उदासी और हिंसात्मक प्रवृतियों से निकलने में मदद करता है| सारा रहस्य श्वास,कुछ समय के ध्यान में है, और ध्यान से शक्ति का स्तर भी बढ़ जाता है| जब मन की शक्ति बढ़ती है तो उदासी और आत्महत्या की प्रवृति ख़त्म हो जाती है|
(आप हमे इनके लाभ के बारे में कुछ विस्तार से बता सकते हैं?)

सबसे पहले तो एक हिंसा रहित समाज बनेगा| हमने लगभग दुनिया भर के जेलों में २,००,००० लोगों को सिखाया| उन सब को परिवर्तनकारी अनुभव हुए हैं| मुझे नहीं लगता हमने अभी जापान में यह कार्यक्रम शुरू किये हैं? हम जापान में भी कैदियों के लिए यह कार्यक्रम शुरु करना चाहेंगे| उनका गुस्सा और नफरत पूरी तरह से खत्म हो जायेगी| इसलिए हिंसा रहित समाज, चाहे हिंसा घरेलू हो,महिलायों पर हो, यां माता-पिता और बच्चों के बीच हो इन सब को रोका जा सकता है यदि हम उनको श्वास के द्वारा अपनी नकारात्मक भावनायों पर काम करना सिखाएं|
हाँ, क्या आप सब यही हों?

इस तरह हिंसा-रहित समाज, दूसरा रोग मुक्त शरीर| आज वैज्ञानिको ने अनुसन्धान किया है यदि आप श्वांस के तकनीक, सुदर्शन क्रिया करते रहे तो रोगों से बचाव की क्षमता तीन गुणा बढ़ जाती है| इससे हृदय को अघात, उच्च रक्तचाप,मधुमेह और बहुत से शरीरिक और मानसिक रोगों से बचा जा सकता है|
इस तरह से रोग मुक्त शरीर, दूसरा बिना कम्पन के श्वास,दुविधा के बिना मन,अवरोध के बिना बुद्धि होती है| लोगों का अतीत में पक्षपात हुआ करता था| वह पक्षपात आज समाप्त हो रहा है,बहुत कम हो गया है परन्तु इसे और भी कम करना है| जातिय पक्षपात,लैंगिक,आयु सम्बन्धी,धार्मिक,भाषा सम्बन्धी,राष्ट्रीय ये सभी तरह के पक्षपात।जब आप ध्यान करने लगते हो तो स्वभाविक रूप से आप दुनिया में सबके साथ सम्बंध महसूस करने लगते हो|
पता है जहाँ कहीं भी मैं गया हूँ सबके साथ अपनापन लगता है चाहे यह दक्षिणी ध्रुव हो या उत्तरी ध्रुव|
इस तरह पक्षपात से मुक्त और सभी को अपना लेने का रवैया और उदासी से मुक्त आत्मा!

* अहिंसा रहित समाज
* रोग मुक्त शरीर
* कम्पन रहित श्वास
* भ्रम से मुक्त मन
* अवरोध से मुक्त बुद्धि
* सबको अपनाने वाला अहम
* उदासी से मुक्त आत्मा


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"हम में से हर कोई एक प्रकाश है"

आज प्रकाश का त्यौहार है| दीवाली का मतलब है प्रकाश का त्यौहार| आप में से हर कोई अपने आप में एक प्रकाश है| यह त्यौहार सारे भारत,नेपाल,सिंगापोर,मलेसिया,श्री लंका,इंडोनेसिया,मारीशस,सूरीनाम,त्रिनिदाद और दक्षिण अफ्रीका में मनाया जाता है| लोग एक दूसरे को दिवाली की शुभ कामनाएं देते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं| दिवाली के समय हम अतीत के सारे दुःख भूल जाते हैं| जो कुछ भी दिमाग में भरा पड़ा हो ,आप पटाखे चलाते हो और सब भूल जाते हो| पटाखों की तरह अतीत भी चला जाता है,सब जल जाता है और मन नया बन जाता है| यही दिवाली है|
एक मोमबत्ती पर्याप्त नहीं है| हर किसी को खुश और प्रकाशित होना होगा| हर किसी को खुश और बुद्धिमान होना होगा| बुद्धिमता का प्रकाश प्रज्वलित हो चुका है| रोशनी को ज्ञान का द्योतक मानते हुए हम ज्ञान रूपी प्रकाश करते है, और आज उत्सव मनाते हैं| आप क्या कहते हो?

दिवाली का सन्देश है: अतीत को जाने दो ,भूल जाओ| जीवन का उत्सव बुद्धिमता से मनाओ| बुद्धिमता के बिना वास्तव में उत्सव नहीं मनाया जा सकता| बुद्धिमता यह जान लेना है कि ईश्वर मेरे साथ है| आज के दिन हम सब के पास जो भी सम्पति है उसे देखो| याद रखो आप के पास बहुत सारी सम्पति है और पूर्णता महसूस करो| नहीं तो मन हमेशा कमी में ही रहेगा,"ओह यह नहीं है,..वो नहीं है,इसके लिए दुखी,उसके लिए दुखी| कमी की ओर से प्रचुरता की ओर बढ़ो| प्राचीन पद्वति है कि अपने सामने सभी सोने चांदी के सिक्के रखे जाते हैं, आप अपनी सारी सम्पति सामने रखते हो और कहते हो, ' देखो भगवान ने मुझे इतना सब दिया है| मैं बहुत आभारी हूँ’| बाईबल में कहा गया है जिनके पास है उन्हें और मिलेगा, और जिनके पास नहीं है ,जो भी थोड़ा बहुत है वो भी ले लिया जायेगा| उसकी प्रचुरता महसूस करो| तब आपको पता चलेगा आपको बहुत दिया गया है|

तब हम लक्ष्मी पूजा करते हैं| धन और एश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और गणेश - चेतना का आवेग जो हमारे रास्ते के सारे विघ्न हर लेते है - यह जप आज के दिन किया जाता है|

यूरोप में २७ राष्ट्र हैं|हम हर राष्ट्र के लिए एक दिया जलाएंगे| तब हम कुछ देर के लिए ध्यान करेंगे| जब हम ध्यान करते हैं हम सार्वभौमिक आत्मा को अपनी प्रचुरता के लिए धन्यवाद देते हैं| हम और ज्यादा के लिए भी प्रार्थना करतें हैं ताकि हम और ज्यादा सेवा कर सकें| सोना चांदी केवल एक बाहिरी प्रतीक है। दौलत हमारे भीतर है। भीतर में बहुत सारा प्रेम,शांति और आनंद है| इससे ज़्यादा दौलत आपको और क्या चाहिए? बुद्धिमत्ता ही वास्तविक धन है| आप का चरित्र,आपकी शांति और आत्म विश्वास आपकी वास्तविक दौलत है| जब आप ईश्वर के साथ जुड़ कर आगे बढ़ते हो तो इससे बड़कर कोई और दौलत नहीं है| यह शाही विचार तभी आता है जब आप ईश्वर और अनंतता के साथ जुड़ जाते हो| जब लहर यह याद रखती है कि वह समुद्र के साथ जुड़ी हुई है और समुद्र का हिस्सा है तो विशाल शक्ति मिलती है|


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" श्री श्री रवि शंकर श्री लंका में"


श्री लंका,
अक्तूबर ५,२००९

श्री श्री रवि शंकर
ने श्री लंका में अपने पांचवे दौरे में १०,००० से अधिक लोगों को ’सुगठ दसा’ स्टेडियम में ध्यान, प्रार्थना और पवित्र मंत्रोच्चरण करवा के आशीर्वाद दिया| इस बड़े अभियान का नाम था "Uniting Hearts and Minds" जोकि ५ अक्तूबर को हुआ जिसमें देश भर से सभी वर्गों के लोग शामिल हुए| बहुत से इसाई पादरी, इस्लाम के विद्वान्, बौद्ध संत, हिन्दू स्वामी और पादरी एक आस्था और एकता की भावना से इकट्ठे हुए| कई सौ लोग श्री श्री की एक झलक पाने के लिए जाफना,त्रिकोमली,बतिकलोया,वावुनिया,मन्नार,गल्ले,मात्र,कोलोम्बो और बहुत से दूरदराज क्षेत्रों से आये| जैसे ही श्री श्री स्टेडियम में दाखिल हुए स्कूल के बच्चों ने ठेवार्म गाया।

ध्यान है "कुछ भी ना करना"। ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं - मैं कुछ नहीं करता,मुझे कुछ नहीं चाहिए और मैं कुछ भी नहीं हूँ| यदि आप सोचो कि मैं कोई हूँ - अच्छा हूँ, बुरा हूँ, बुद्धिमान हूँ, मूर्ख हूँ यां कुछ भी हूँ तो ध्यान नहीं होता। इन तीन धारणाओं से आप देखोगे मन अपने आप ही कैसे स्थिर होने लगता है| ध्यान लगाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना है। ध्यान का अर्थ ध्यान केन्द्रित करना नहीं है। ध्यान माने केवल विश्राम। ॐ का अर्थ है शांति, ॐ का अर्थ है प्रेम, - बिना शर्त के प्रेम| ध्यान आपको अपने भीतर ले जाता है, और आपको यह एहसास होता है कि ईश्वर का राज्य हमारे भीतर है| प्रेम ही ईश्वर है(अन्म्बे शिवम् "उल्ला कदक्कारा कदल ठान कदवुल", अपनी सारी परेशानिया यहीं छोड़ दो| एक नियम याद रखो-आप अपनी सारी चिंताएं यहाँ ला तो सकते हो परन्तु आप वापिस नहीं ले जा सकते| आप चिंताओं को यहाँ छोड़ सकते हो और मुस्कुराते हुए वापिस जा सकते हो, और जरूरतमंद लोगों की सेवा करो| मुस्कुराओ और सेवा करो|

प्रश्न : तमिल लोगों की श्री लंका और सारी दुनिया में क्या स्तिथि है?

श्री श्री रविशंकर :
तमिलों को बिना किसी डर के रहना चाहिए। डर केवल उनके मन में है| उन्हें डर को मन से निकाल देना चाहिए और सबके साथ मिलजुल के रहना चाहिए| उनकी संस्कृति शांति वाली है, उन्हें शांति को बढ़ावा देना चाहिए और सब के साथ मिलकर एक समृद्ध समाज का निर्माण करना चाहिए| शांति और समृद्धि साथ साथ चलती है| इसलिए अपने दिल, मन, परिवार और समाज में शांति रखो, और शांति तभी आती है जब आप में विश्वास और आत्मविश्वास होता है| कोई भी आपसे आपका आत्म सम्मान और गौरव नहीं छीन सकता| आपके पास श्री लंका और अन्य दूसरे स्थानों पर अपने जीवन में प्रगति करने के सारे अवसर हैं| शांति और प्रेम फैलाओ और समृद्धि लाओ| तमिल लोग दुनिया में सब जगह मेहनती लोग हैं, वे निश्चय ही समृद्धि लाते हैं। हमे सबको मानसिक और हृद्य के स्तर पर जोड़ना है।

प्रश्न : क्या कर्म और प्रवृतियाँ पीड़ी दर पीड़ी चलतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
यह आवश्यक नहीं है कि आदतें अनुवांशिक हों, ना ही यह आवश्यक है कि हर रोग अनुवांशिक हो| यद्यपि हम माता-पिता की प्रवृतियाँ लेते हैं परन्तु हम बहुत सी प्रवृतियों और कर्मों को बदल सकतें हैं| कर्मों का अर्थ क्या है? इसका मतलब है डी एन ए पर पड़े गहरे छाप। यही तो भगवान बुद्ध ने कहा था," कर्मों को ध्यान के द्वारा मिटाया जा सकता है, शरणागती के द्वारा|"

प्रश्न : इस स्वार्थी संसार में मैं ही क्यों विशाल दृष्टिकोण रखूं?

श्री श्री रवि शंकर :
दुनिया में अच्छा और बुरा होता ही है| परन्तु हमारी चेतना को सब स्तिथियों में कुछ फायदा हो सकता है| जैसे जब बहुत अधिक बारिश या गर्मी होती है तो आप छाता लेकर अपना बचाव करते हो| उसी तरह से जागरूकता, ज्ञान, भक्ति वैसा ही छाता है जो अप्रिय परिस्तिथियों में आपको बचाता है| शांति और प्रेम वह नीव है जिस पर चल कर व्यक्तिगत, सामूहिक, राष्ट्र और दुनिया प्रगति करतें हैं| आप जानते हो पूजा शब्द, - पू का अर्थ है पूर्णता और जा का अर्थ है जो पूर्णता से आता है|जब आपका हृदय पूर्ण होता है,आप ईश्वर के आभारी होते हो| पूजा में फूलों के साथ आप ईश्वर से कहते हो," मेरा दिल इन फूलों की तरह खिल उठा है|" दुनिया पांच तत्वों से बनी है - व्योम,हवा,अग्नि,जल,और पृथ्वी| प्राचीन लोग ये सभी तत्व इस्तेमाल करते थे| मंत्रोच्चारण या ध्वनि व्योम तत्व है,अगरबती जलना हवा तत्व है,कपूर और दिया जलना अग्नि तत्व है और फिर जल और पृथ्वी तत्व।

विभिन्न प्रकार के फूल,फल,दही,शहद सभी प्रकार की चीजें इस्तेमाल की जाती हैं| मंत्रोच्चरण से अपने चारों ओर उर्जा बढ़ती है। मंत्रोचारण हजारों सालों से चला आ रहा है| मंत्रोचारण क्या है? मन जोकि बाहर(दुनयावी चीजों की ओर) जाता रहता है जब अन्तर्मुखी हो जाता है तो यह नम: बन जाता है| नमो का अर्थ है मन अंदर की ओर| हे प्रभु, आप बच्चे के अंदर हो,आप वृद्ध के अंदर हो,आप पेड़ में हो,पक्षी,जल,पानी और पत्थर में हो|आप सूरज,चाँद,आप हर जगह हो,सृष्टि में कुछ भी ऐसा नहीं है जहाँ आप नहीं हो और मैं आपकी पूजा करता हूँ,मैं आप में विलीन हो जाता हूँ और आप में मिल जाता हूँ| कपूर की तरह मेरा जीवन जलता है और आप में विलीन हो जाता हूँ|मेरा जीवन अगरबत्ती की तरह चारों ओर खुशबु फ़ैलाता है| फूलों की तरह मैं खिलता हूँ और सब को ख़ुशी देता हूँ| फलों की तरह मेरे सब कार्य फलदायक बन जाते हैं, मेरे सारे इरादे फलदायक बन जाने दो| पानी की तरह हमेशा विनम्र रहूं।यदि पानी को गिराया जाए तो हमेशा निम्नतर स्तर को जाता है| क्या ऐसा नहीं है? ऐसी विनम्रता से मुझे ऐसा निम्न स्तर ले कर समाज की सेवा करने दो| मुझे अग्नि की तरह बन जाने दो जो हमेशा उपर की ओर उठी रहती है,मेरा उत्साह हमेशा बना रहे| आप आरती करते हो, एक दिया ले कर कहते हो मेरे जीवन का प्रकाश हमेशा

ईश्वर के आसपास रहे, इसे कभी गिरने मत देना,हमेशा उत्साह बना रहे और हर किसी के जीवन में आनंद लाये| इसी को पूजा कहतें हैं| इसी भाव से हम पूजा करते हैं| मुझे अंधकार में मत रहने दो, वहां उजाला हो जाने दो,इस तरह मैं इस ज्ञान के सुंदर प्रकाश को स्वीकार करता हूँ| और तब आप मंगल आरती लेते हो| तब थोड़ा पानी दिया जाता है, आप इसे यह कहते हुए पी लेते हो मेरा हृदय शीतल रहे,भीतर ख़ुशी बनी रहे| और यह कृत्ज्ञता का सन्देश है जो पूर्णता से आता है, जिसे पूजा कहा जाता है| बोद्ध धर्म में अगरबत्ती जलाई जाती है और बुद्ध के सामने फूल चढ़ाये जाते हैं| इसी प्रकार से चर्च में किया जाता है,मोमबत्ती जला कर इसा या माँ मैरी के सामने रखी जाती है| बोद्ध धर्म में फल भी चढ़ाये जाते हैं। बाहरी कार्य कि बजाय आन्तरिक भाव अधिक महत्वपूर्ण है| केवल एक रीती को करना पर्याप्त नहीं है, यह ध्यान पूर्वक होना चाहिए| यह भाव पूर्ण होना चाहिए| आज की पूजा सभी के लिए स्वस्थ्य,ख़ुशी और शांति लाने के लिए है, खास तौर पर इस महादीप के उन पीड़ित लोगों के लिए ताकि उनको और अधिक शक्ति मिले और सारे दुःख और पीड़ा के भाव खत्म हों।देश भर में और अधिक शांतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण और आनंद भरा वातावरण बने| आज की पूजा का यही हमारा संकल्प और इरादा है| रुद्राभिषेक के बाद सतसंग किया गया|


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"चाहे जितना भी अँधेरा हो वो प्रकाश को प्रभावित नहीं कर सकता"


प्रश्न : यदि किसी व्यक्ति के दो आध्यात्मिक गुरु हों तो उसे किसका अनुसरण करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
यदि आप उलझन में हो तो मुझे इस उलझन में क्यों डाल रहे हो! कोई फरक नहीं पड़ता मैं कुछ भी कहूँ, आपका मन फिर भी उलझन में ही रहेगा| यदि मैं कहूँ कि दूसरे गुरु का अनुसरण करो तो तुम कहोगे मैंने आपको अस्वीकार कर दिया| यदि मैं कहूँ मेरा अनुसरण करो तो आप सोचोगे कि मैंने दूसरे को छोड़ देने के लिए क्यों कहा? सभी में एक को देखो और सभी को एक में देखो| आपके पहले गुरु ने आपको यहाँ आने के लिए तैयार किया| आप फैसला करो। क्या आप यहाँ आकर संतुष्ट हो? आप केन्द्रित हो? क्या आप अपने आप में स्थिर हो? सभी मतों का आदर करो परन्तु एक रास्ते के लिए प्रतिबद्ध रहो। इस तरह से आप उलझन में नहीं पड़ोगे। आप इस पथ पर आ गए हो, इसके साथ जुड़े रहो| मस्त रहो, खुश रहो, देखो क्या आपकी मुस्कान बढ़ रही है| यदि नहीं तो मैं ही कह दूंगा कि कहीं और चले जाओ|(तालियाँ)

प्रश्न : वैराग्य,मोक्ष और सिद्धि क्या ये एक तरह का पलायन है या प्रबोधन का पथ है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्रबोधन का पथ ही मुक्ति और स्वतंत्रता है| मुक्ति की इच्छा रखना पलायनवाद नहीं है| स्वतंत्रता या मुक्ति आपको अपना कर्तव्य ईमानदारी से पूरा करने देती है|

प्रश्न: मनुष्य होने के नाते मेरे क्या कर्तव्य हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
कर्तव्य वह है जिसे ना करना आपको पीड़ा देता है, जिसके लिए कुछ करने की पुकार रहती है| जब आप वो नहीं करते तो असंतुष्ट रहते हो| आपका भाव और समाज बताएगा आप का कर्तव्य क्या है?

प्रश्न : गरूजी, मेरे भाई ने एक किताब लिखनी शुरू की और दस साल पहले उनकी मृत्यु हो गई| कृपया मुझे आशीर्वाद दें कि मैं यह किताब पूरी कर सकूँ|

श्री श्री रविशंकर :
गुरूजी ने आशीर्वाद दिया और कहा कि हर व्यक्ति अपने आप में एक किताब है ,एक उपन्यास है| यदि वे अध्यात्मिक पथ पर हैं तो इसका अंत ख़ुशी पूर्ण होगा| यदि ऐसा नहीं है तो यह त्रासदी है| एक पुस्तकालय में बहुत सी किताबें होती हैं - सारी दुनिया एक पुस्तकालय है| मानव जाति इस पुस्तकालय का हिस्सा है| इन सब किताबो का केवल एक ही लेखक है और वह बाज़ार को भरता जा रहा है और कोई भी लेने वाला नहीं है| केवल कुछ लोग ही जो जगे हुए हैं वे ही जान पातें हैं कि ये केवल कहानियां हैं| केवल कुछ भक्त ही इसे जान पातें हैं और इसका आनंद उठातें हैं| और आप भी उन कुछ लोगों में से एक हो| यदि आप सोचते हो कि आप नहीं हो तो इसी वक्त बन जाओ| आपके पास जीवन भर के लिए इस पुस्तकालय की सदस्यता है|

प्रश्न : मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं आध्यत्मिक पथ पर प्रगति कर रहा हूँ?

श्री श्री रविशंकर :
आपका संदेह करना ही इस बात को प्रमाणित करता है कि आप इस पथ पर प्रगति कर रहे हो| यदि कोई प्रगति न हुई होती तो आप में कोई संदेह नहीं होता इसे लेकर।

प्रश्न : इस बार आप ५००० बर्षों के बाद आये हो| क्या आप मुझे अपने साथ ले चलेंगे या और ५००० बर्षों तक इंतजार करना होगा?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न से अधिक एक आश्चर्य है। तो आपकी वापिस आने की योजना है?(हंसी) ठीक है, हम देखेंगे, हम अपना समय निर्धारित कर लेंगे! क्या एक जीवन काल पर्याप्त नहीं है? एक ही समय वापिस आना पर्याप्त नहीं है, आपको गुरु के प्रति जागरूक भी होना होगा|

प्रश्न : ऐसा कहना ठीक है यदि आपके जीवन में गुरु है तो आपको हर जीवन काल में वही गुरु मिलेंगे?

श्री श्री रविशंकर :
क्या आप इस जीवन काल में गुरु का काम अधूरा छोड़ देना चाहते हो?क्या आप इसी जीवन काल में अटक के रह जाना चाहते हो और बाकी का ज्ञान अगले जीवन के लिए छोड़ देना चाहते हो? तब आपको इस जीवन में भी गुरु की आवश्यकता नहीं है|

प्रश्न : सत्य की परीक्षा बार बार क्यों होती है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्योंकि झूठ किसी परीक्षा का सामना नहीं कर सकता| जो पढ़ा ही ना हो वह परीक्षा के लिए क्या जाएगा? जिसने आइ ए एस की तैयारी की होगी वही तो परीक्षा देने जायेगा| जब आपको विश्वास होता है की आप सफल हो जाओगे, तभी आप परीक्षा देने के लिए तैयार होंगे| जो परीक्षा से सफल होकर निकलता है वही सत्य है|

प्रश्न : हम अहं को 'मैं' के साथ जोड़ते हैं| क्या यह भी अहं नहीं है जब कृष्ण, जीसस और अन्य गुरु लोगों को अपने प्रति समर्पित होने के लिए कहतें हैं?

श्री श्री रविशंकर :
अहं दूसरों को अपने बारे में ऊँचा सोचने और पूजा करने के लिए कहती है| यदि कोई किसी से कुछ कहता है तो देखो शब्द कहाँ से आ रहे हैं| यह देखो कि शब्दों का स्रोत क्या है| उनके शब्द उस छोटे मन से नहीं आ रहे हैं परन्तु किसी अन्य आकाश से आ रहे हैं| जीसस ने कहा - मैं ही केवल एक रास्ता हूँ| ये शब्द किसी और जगह से आ रहे हैं, भीतर की आवाज़ है, ईश्वरीय आवाज़ है| वैसे ही जैसे एक माँ बच्चे से कहती है,"वैसे ही करो जैसे मैं कहती हूँ!" - यह अहं नहीं है परन्तु अपनापन है| उसी तरह से एक अध्यापक अपने शिष्यों से कहता है,"वही करो जो मैं कहता हूँ!" - यह अहं नहीं है| अहं का मतलब है अस्वभाविक होना| अहं कब होता है? जब आप अपनी गलती छुपाने की कोशिश करते हो| यदि आप एक खुली किताब की तरह हों तो आप लोगों से खुले मन और दिल से मिल सकते हो| यदि ऐसी स्तिथि हो कि साथ काम करते वक्त, आपको महसूस हो कि आप में अहं आ गया है तो आप उस से पीछा छुड़ाने कि कोशिश मत करो| ऐसा कहना कि मैं अपना अहं ख़त्म कर रहा हूँ और ज्यादा अहं लाता है| इसको बना के रखने की भी कोशिश मत करो| सहज रहना ही इसका एक उपाय है|
(श्री श्री एक कहानी सुनातें हैं)

श्री श्री रवि शंकर :
एक बार जब हम मिलते हैं तो हम कभी अलग नहीं होते| कोई ३० वर्ष पहले मैं धनबाद से दिल्ली जा रहा था - २४ घंटे की यात्रा थी| हमारे रेल के डिब्बे में एक लड़का था| हमने आपस में बातचीत की| तब २० बर्ष बाद वह मुझे वृन्दावन गार्डन में मिला| वह मुसलमान था और तब तक उसकी शादी हो गई थी और बच्चे भी थे| वह मेरे पास आया और बोला,"मैं आपसे रेल में ३० वर्ष पहले मिला था| तब से मेरा जीवन पूर्णतया बादल गया| मैं हर दिन आपको याद करता था और आपसे दोबारा मिलने का इन्तजार कर रहा था| कृपया मेरे बच्चों और बीवी को आशीर्वाद दें|" मन में हर रोज़ एक सम्बन्ध रहता है| पता है यहाँ कुछ लोग इरान,इराक, मंगोलिया से हैं जिनसे मैं कभी मिला भी नहीं हूँ ,वे कहतें हैं की गुरूजी उनके बहुत करीब हैं| यदि मन में दूरी है तो चाहे आप एक ही घर में हों तो भी अंतर रहता है| नहीं तो १००० मील की दूरी का भी कोई फर्क नहीं पड़ता|

प्रश्न : कभी कभी मेरे मन में प्रश्न आतें हैं और जब मैं ध्यान में बैठता हूँ तो उनके जवाब भी मिल जातें हैं| तथापि कभी कभी कोई जबाब नहीं मिलता| क्या ऐसा इस लिए होता क्योंकि तब सम्बन्ध टूट जाता है?

श्री श्री रवि शंकर :
आपका मतलब की आप को रेंज नहीं मिलती?(हंसी) ऐसा केवल कभी कभी होता है ना, तो ठीक है| शायद यह एक मुश्किल प्रश्न है, मेरे पास इसका जबाब नहीं है| शायद इसीलिए सम्बन्ध टूट जाता होगा|(हंसी)

प्रश्न : क्या इस देश में जनसंख्या और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है? यह हम कैसे कर सकतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मुद्रास्फीति को रोकने के लिए किसी प्रकार का क्षय नहीं होना चाहिए| और अधिक लोगों को कृषि में रूचि लेनी चाहिए|भोजन को बर्बाद नहीं करना चाहिए| घर में केवल उतना ही अनाज रखो जितने की जरुरत है| कुछ और दिनों तक सब्जी को बचा के रखने की आदत छोड़ दो| पहले लोगों को ताज़ा भोजन खाने की आदत थी| परन्तु अभी फ्रिज होने की वजह से लोग इसमें भोजन एकत्रित करने लग गए| पता है इस फ्रिज की वजह से मुद्रास्फीति हुई है! इस फ्रिज की आदत छोड़ दो और ताज़े को अपनाओ|

जनसंख्या के लिए इसका सकरात्मक पक्ष है| हमारी जनसंख्या की वजह से हमारी संस्कृति ,विरासत बची हुई है| भारत में जनसंख्या का बहुत ज्यादा होना एक आशीर्वाद ही है| अन्य स्थानों जैसे आस्ट्रेलिया,इंग्लैंड जहाँ की जनसंख्या कम है उनकी संस्कृति मिटती जा रही है| वहां की स्थानीय जनसंख्या ना के बराबर है| यहाँ तक की २०० सालों का ब्रिटिश सम्राज्य भी हमारी संस्कृति को नहीं मिटा सका| इसका मुख्य कारण जनसंख्या ही था|

प्रश्न : आप हमेशा कहते हो कि हमें अपने दुःख आपको समर्पित कर देने चाहिए परन्तु मुझे आप को अपनी सारी चिंताएं और समस्याएं समर्पित करने में अपराध बोध आता है|

श्री श्री रवि शंकर :
पता है जो भी अवयव धरती माँ को सौंपे जातें हैं वे हमें खाद और फूलों के रूप में वापिस मिल जातें हैं| तो यदि धरती माँ आपका कचरा ले लेती है तो क्या मैं कुछ कम हूँ? हमारे पास दुखों को ख़ुशी और आनंद में बदलने की शक्ति है| कोई फरक नहीं पड़ता कि वहाँ कितना अँधेरा है, यह प्रकाश को प्रभावित नहीं कर सकता| जब आप आश्रम आते हो क्या पहले ही आपको अच्छा महसूस नहीं होता?
भक्त: हम जानतें हैं आप ही प्रकाश हो गुरूजी!


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