बैंगलोर आश्रम, ९ फ़रवरी २०१०
श्री श्री रवि शंकर रात्रि ८.३० बजे आश्रम पंहुचे, और सीधे सत्संग के लिये विशालाक्षी मण्डप में पधारे। वे तमिलनाडू के वेलंगन्नी से वापस आये हैं। श्री श्री ने इंडियन प्रेसटीज़ कौंग्रेस में रोमन कैथोलिक चर्च के पादरियों को संबोधित करने का अपना अनुभव सब के साथ बांटा।
तदुपरान्त एक छोटी लड़की ने उठ कर कहा कि उसके शहर में ’आर्ट आफ़ लिविंग’ का केन्द्र ना होने के कारण ’आर्ट आफ़ लिविंग’ के कार्यक्रम नहीं हो पाते हैं। ऐसा कह कर वो रोने लगी। श्री श्री ने उसे आश्वासन दिया कि उसके शहर में आर्ट आफ़ लिविंग का केन्द्र अवश्य खुलेगा। उस लड़की की मां ने खड़े होकर कहा, ‘हमारे पास जो भी है, उसे दे कर हम एक ज़मीन का टुकड़ा खरीदना चाहते हैं जिस पर ’आर्ट आफ़ लिविंग’ का केन्द्र बना सकें।’
श्री श्री ने कहा, ‘तुम भावुकता में आकर अपना सब कुछ नहीं दे सकते। मैं उसे स्वीकार नहीं करूंगा। इस केन्द्र को बनाने में कई लोगों को मिलकर थोड़ा थोड़ा योगदान देना चाहिये। हरेक को इस कार्य में योगदान का मौका मिलना चाहिये।’
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