"समिष्टि अर्थात सारी सृष्टि"

आज श्री श्री ने क्या कहा:
बेंगलोर आश्रम,फ़रवरी 25:

प्रश्न : यष्टि और समष्टि क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
क्या तुम रोज़ गाती हो?(महिला ने कहा कि वह अकेले में गाती हैं|) जब तुम अकेले गाती हो तो वह यष्टि है,जब यहाँ पर सब के साथ मिलके भजन गाती हो तो यह समष्टि है| समष्टि का अर्थ है सारी सृष्टि|

प्रश्न : यह कहा जाता है की आत्माएं अपने माता - पिता चुनती हैं| तो फिर गर्भपात और बलात्कार क्यों होतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
इसे कहते हैं जन्म रहस्य| बहुत सी आत्माएं शरीर लेने के लिए होड़ लगाती हैं केवल कुछ ही जीत पाती हैं| यह एक तरह की दौड़ प्रतियोगिता जैसी होती है| जैसे लाखों प्रतियोगियों में केवल एक ही जीतता है, उसी तरह से वहां भीड़ है और केवल एक को ही शरीर मिल पाता है| इसीलिए कहा गया है मनुष्य जन्म बहुत मूल्यवान है| इन्हें बेकार की बातों में मत गँवाओ| बहुत सी संभावनाएं हैं - कौनसी आत्मा आयेगी और कौनसी नहीं| अनगिनत संभावनाएं हैं| कोई नहीं जानता|

प्रश्न : असंवेदनशील लोगों से कैसे निभाया जाए?

श्री श्री रवि शंकर :
इस के प्रभाव में मत आओ| जब तुम कहते हो कि कोई असंवेदनशील है तो तुम अपने आप को बहुत संवेदनशील बता रहे हो| जब तुम अपने आप को संवेदनशील होने का लाइसेंस दे देते हो, खुद का परेशान होना सही साबित करने लगते हो| दुनिया बहुत बड़ी है और यहाँ सब तरह के लोग हैं| हमें सबके साथ रहना और काम करना है|

प्रश्न : स्त्रीधन क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
प्राचीन भारत में एक प्रथा थी| घर का पुरुष अपनी पत्नी को कुछ धन देता था| इस पैसे को कोई हाथ नहीं लगाता था| पत्नी के पैसे हमेशा बढ़ते रहते थे| पुरुष अपनी कमाई का एक हिस्सा ,पांच-दस प्रतिशत, अपने वेतन में से स्त्री को दे देता था। पुरुष को इस पैसे को खर्च करने का अधिकार नहीं था| स्त्री इस पैसे को इकट्ठा करती थी|
यह हमारी प्रथा होती थी| यह सब खत्म हो गई| सब अच्छी प्रथाओं को हमने भुला दिया और बुरी आदतें अपना ली|

प्रश्न : गुरूजी, श्रीमद भागवद से अजमिला की कहानी के बारे में बताइये|

श्री श्री रवि शंकर :
श्रीमद भागवद में राजा अजमिला की एक कहानी है| उसमें बहुत सी बुराइयाँ थीं| उसका नारायण नाम का एक बेटा था। अपनी मृत्यु के समय उसने अपने बेटे को पुकारा| और जैसे ही उसने नारायण कहा उसे मुक्ति मिल गई| यह कहानी लोगों को विश्वास दिलाने के लिए है कि अतीत चाहे कैसा भी रहा हो, उसके लिए परेशान होना बेकार है और अतीत को लेकर किसी तरह का अपराध बोध नही होना चाहिए| यदि आप अंतिम पलों में भी नारायण (भगवान) का नाम लोगे तो भी मुक्ति मिल सकती है| परन्तु इसका यह मतलब भी नहीं कि आप सारी उम्र चाहे जो मर्जी करो और अंत में नारायण का नाम लो| इस से आप को बुराइयाँ करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता| इस से केवल यह संकेत मिलता हैं कि आप को अपने अतीत को ले कर अपराध बोध नहीं होना चाहिए और उस पर पश्चताप नहीं करते रहना चाहिए| तुम वर्तमान में भक्त बन जाओ और इश्वर से जुड़ जाओ|

प्रश्न : समय क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
(अपने हाथ को उपर से नीचे लाकर) पता चला? यदि नहीं पता चला तो कभी भी पता नहीं चलेगा|

प्रश्न : क्या प्रतिस्पर्धा कि भावना होनी चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने आप से| अपने आप से होड़ लगाओ|


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