तामसिक और राजसिक अहंकार से सात्विक अहंकार में आओ


प्रश्न : अगर भगवान एक ही है तो इतने अवतार होने का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
अवतार वो है जिसने केवल जन कल्यान के लिए जन्म लिया है। उसे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए।

प्रश्न : हम अपने को बुरे विचारों से कैसे बचा सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं। विशेषकर एक भक्त जो सोचता है वो सच हो जाता है। जब तुम एक भक्त होते हो तो बुरे विचार नहीं आते। भक्ति से सब विकल्प दूर हो जाते हैं।

प्रश्न : कुंभ के दौरान गंगा स्नान करने का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
जैसे तीरथ सबको पवित्र करता है वैसे ही साधू गंगा को पवित्र करते हैं। गंगा चेतन्यमयी और ब्रह्म रूप है। यहाँ स्नान करते ही तुम नया और ताज़ा महसूस करते हो। मन की सारी अशुद्धता धुल जाती है और मन स्वस्थ बनता है।
पर कानपुर और उसके आगे के गंगा के हिस्से के लिए मैं ऐसा नहीं कहूँगा। गंगा के जल को शुद्ध रखने की आवश्यकता है।

प्रश्न : कृप्या अहंकार के बारे में बताएं।

श्री श्री रवि शंकर :
कई कहते है अहंकार को खत्म करो। कई कहते है अहंकार को त्याग दो। मैं कहता हूँ उसे अपनी जेब में रखो। यह सोचना कि मैंने अहंकार को खत्म कर दिया उससे भी बड़ा अहंकार बन जाता है। इस छोटे अहंकार को सम्पूर्ण सृष्टि के अहंकार में मिलने दो। भगवद गीता में इस विष्य में बहुत सुन्दर वर्णन है।
तीन तरह का अहंकार है - तामसिक, राजसिक और सात्विक। तामसिक और राजसिक अहंकार से सात्विक अहंकार में आओ। समाधि में सात्विक अहंकार सहज ही ब्राह्मन में लीन हो जाता है।

प्रश्न : शादी में दो लोग होते हैं - पति और पत्नी। मेरी पत्नी साधना और सतसंग को पसन्द नहीं करती। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
युक्ति से चलो। यह तुम्हारे अच्छे साधक होने की परीक्षा है। धीरे धीरे वो भी पथ पर आएगी।

प्रश्न : आलस्य से कैसे छुटकारा पाएं?

श्री श्री रवि शंकर :
जहाँ लालच हो वहाँ आलस नहीं होता। जहाँ भय हो वहाँ आलस नहीं होता। और जहाँ प्रेम हो वहाँ आलस हो ही नहीं सकता।

प्रश्न : काम भावना से कैसे छूट सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर तुम इसके बारे में सोचते रहोगे तो इसकी झकड़ मज़बूत हो जाएगी। उसी वासना को तुम प्रसन्नता और प्रेम में बदल सकते हो। जहाँ तृप्ति और मस्ती हो वहाँ काम की पकड़ सहज ही ढीली हो जाती है। जहाँ सूरज हो वहाँ मशाल की ज़रुरत नहीं रह जाती।

प्रश्न : आलस में पड़े रहने में और विश्राम में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर :
जब शरीर में तमो गुन बढ़ जाए तो तुम आलसी हो जाते हो। आलस में पड़े रहने में तुम्हे कोई शक्ति नहीं मिलती। ऐसे में तुम बैचेन ही रहते हो और मन इच्छाओं से झूंझता रहता है।
जो तुम्हे काम करने के बाद मिलता है वो विश्राम है। शरीर को पूर्ण विश्राम काम करने के बाद ही मिल सकता है। जब शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है तो मन प्रसन्न होता है। उससे तुम्हे शक्ति मिलती है और संकल्प सिद्धी होने लगती है।


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