मंत्र किसी धर्म विशेष के ना होकर सार्वलौकिक हैं

बैगलोर आश्रम, ८ फ़रवरी २०१०

प्रश्न : गुरुजी, सत्संग में गाये जाने वाले भजनों और मंत्रों का क्या महत्व है? हालांकि हम इनसे सकरात्मक ऊर्जा पाते हैं, फिर भी कई लोग भजन गाने में कुछ संकोच करते हैं। वे सत्संग के असली महत्व और मंत्रो के गहन अर्थ को नहीं जानते। इसके बारे में कुछ बताएं।

श्री श्री रवि शंकर :
ॐ नमः शिवाय मंत्र में पंचतत्वों का समावेश है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। हज़ारों वर्षो से इन मंत्रों का उच्चारण हो रहा है। मंत्र वो ध्वनियां हैं जिन्हे ध्यान में भीतर की गहराई में सुना गया। मंत्रों का उद्देश्य तुम्हें अपने स्तोत्र तक वापस ले जाना है। मंत्रों में कुछ ऊर्जा निहित है। ये मंत्र किसी धर्म विशेष के ना होकर सार्वलौकिक हैं।
लैटिन अमरीका के चर्चों में भी ‘मारा: नाथ’ मंत्र का उपयोग होता है। इसका संस्कृत और लैटिन में अनुवाद बहुत मिलता जुलता है। नाथ संस्कृत में भगवान को कहते हैं। मारा: का अर्थ हुआ, मेरे। ’मारा: नाथ’ का अर्थ हुआ - My Lord।
इस तरह चर्च में इस्तेमाल होने वाले, ‘मारा: नाथ’ का मूल संस्कृत भाषा में है।
संस्कृत मंत्रो का उच्चारण लाभकारी है। संस्कृत मानव सभ्यता की सबसे पुरानी भाषा है। संस्कृत का हमारी चेतना पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
हम सभी भजनों का स्वागत करते हैं – जापानी, कोरियन, स्पैनिश...आप कोई भी भजन गाना चाहें, आपका स्वागत है। दक्षिण अमरीका में सत्संग में हम कई स्पैनिश और पुर्तगाली भजन गाते हैं। भारत में सभी लोग मंत्रों से आसानी से संबंध बना लेते हैं। किसी भी भाषा में गाओ, साथ में संस्कृत मंत्र भी गाओ।
आप में से कितने लोग मंत्रों के उच्चारण और गायन से उत्पन्न हुई ऊर्जा को महसूस करते हैं? (बहुत से लोग हाथ उठाते हैं।) ये प्रत्यक्ष है।
वैदिक मंत्रो के उच्चारण का कभी- कभी अर्थ समझ नहीं आता, पर उसका सकरात्मक असर महसूस होता है।
आज सुबह हमनें जो रुद्राभिषेक किया, ये हज़ारों सालों से चला आ रहा है। हम स्फटिक(crystal), दूध, दही, फूल, इत्यादि का उपयोग करते हैं। इस सब का कुछ सकरात्मक असर होता है।

प्रश्न : हम शिवरात्रि के बारे में बहुत कुछ सुन रहे हैं। शिवरात्रि का क्या महत्व है?

श्री श्री रवि शंकर :
हमारी चेतना इन तीन में से किसी एक अवस्था में होती हैं – जागृत, सुषुप्त या स्वप्न। चेतना की चौथी अवस्था शिव है – ध्यान की अवस्था। शिवरात्रि के दिन लोग उत्सव मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी मनोकामना हो, वो पूरी होती है। साधारण लोगों के लिये शिवरात्रि की रात उत्सव की रात है। साधक के लिये हर दिन और हर रात उत्सव है।

प्रश्न : हम अपने पिछले जन्मों का वजूद कैसे भूल जाते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ये जानना कठिन नहीं है। Eternity process में तुम ये जान सकते हो।

प्रश्न : गुरुजी, हम सब रजत जयंती(silver jubilee) समारोह से बड़ा उत्सव कब देखेंगे?

श्री श्री रवि शंकर :
क्या रजत जयंती महोत्सव से बड़ा उत्सव करें? (दर्शकों ने एक स्वर मे कहा, ‘हां’।) हां, क्यों नहीं! अगले साल, २०११ में आर्ट आफ़ लिविंग के ३० साल पूरे हो जायेंगे - तीन दशक। कुछ विचार करते हैं। तुम भी सोचो। हम विचारों को इकट्ठा कर लेते हैं...|


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