७ फरवरी २०११, सत्संग, बैंगलुरू, आश्रम
प्रश्न: वास्तविकता और अवास्तविकता क्या हैं ?
श्री श्री रविशंकर: सबकुछ बदल रहा है, और सबकुछ जो बदल रहा है, वह अवास्तविक है!
प्रश्न : सिद्ध पुरुषों को भी ज्ञानोदय होने के लिए कुछ जन्म लेने पड़ते हैं| ज्ञानोदय को प्राप्त करना इतना मुश्किल क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर :यह कठिन नहीं है| यह चुनौतीपूर्ण है|
प्रश्न : क्या विभिन्न प्रकार के निर्वाण होते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : हां ! जैसे आइसक्रीम के कई स्वाद होते हैं , वैसे ही कई विचार धाराए हैं | परन्तु सब का सार एक ही है|
प्रश्न : ब्रह्मचर्य का क्या महत्त्व है?
श्री श्री रविशंकर: ब्रह्मचर्य स्वाभाविक रूप से होता हैं | जब आपके शरीर की प्रत्येक कोषिका प्रसन्न होती है तो आप को प्रसन्न होने के लिए कोई कृत्य नहीं करना पड़ता|
यह कोई कृत्य नहीं, आभास है | और ब्रह्मचर्य कुछ हद तक अच्छा होता हैं क्युकि यह उर्जा को बचाता है|
प्रश्न : मैं आर्ट ऑफ लिविंग(जीवन जीने की कला ) का स्वयंसेवी हूँ | आर्ट ऑफ लिविंग का प्रतिनिधित्व करने से, मैं कैसे श्रेष्ठ हूँ ?
श्री श्री रविशंकर: सिर्फ यह बात कि आप प्रतिनिधित्व करते हुए कृतज्ञ हैं, वही आप को श्रेष्ठ बनाता हैं | विनम्रता इस गृह में सबसे उत्तम गुण है|
प्रश्न: इस अत्यंत सक्रिय मन का क्या करे ?विचार दुखद होते हैं , कृपया करके इसके लिए मार्गदर्शन करे ?
श्री श्री रविशंकर : बहुत सारे विचार इसलिए आतें हैं क्युकि आपके पास बहुत सारा खाली समय हैं | बहुत सारे विचार आपके मन और दिल में असंतुलन को दर्शाता हैं | जब भावनाए प्रज्वलित हो जाती हैं तो विचार शांत हो जाते हैं |यह अनुचित पाचन की वजह से भी हो सकता हैं, इस लिये अपने पाचन क्रिया पर ध्यान रखें|
प्रश्न : क्या यह सच हैं कि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक छोटी ऊँगली पर उठाया था श्री श्री रविशंकर:आजकल कई बड़े वेट लिफ्टर हैं | सबकुछ संभव हैं | कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया , इस पर विश्वास नहीं करने का कोई औचित्य नहीं हैं |( जिसे वह गोवर्धन पर्वत कहते हैं,वह एक छोटी पहाड़ी है। आप उसे जाकर देख सकते हैं|)
‘गौ’ का अर्थ ज्ञान हैं|
‘वर्धन’ का अर्थ ज्ञान की बढ़ोत्तरी|
बासुंरी को बजाते हुए हजारों लोगो की चेतना को उठाना, भगवान कृष्ण के लिए बहुत आसान था | इन्द्र सामूहिक सोच या सामूहिक चेतना को दर्शाता है| इसलिए भगवान कृष्ण ने अपने समूह के साथ सम्पूर्ण समाज की चेतना को उठाया| यही इसका अर्थ है |
प्रश्न : जय गुरुदेव का अर्थ बड़े मन की विजय है | परन्तु क्या इसमें छोटे मन की भूमिका भी हैं ?
श्री श्री रविशंकर : छोटे मन की अपनी भूमिका हैं | यह स्पष्ट हैं कि छोटे मन के कारण ही बड़े मन की विजय होती है| दो प्रकार के लोग होते हैं | पहले जो विजयी होते हैं और दुसरे वे जो अन्य को विजयी बनाते हैं|
प्रश्न : हिंदू पुराणो के अनुसार, प्रत्येक भगवान का कोई शस्त्र हैं | आपका शस्त्र क्या हैं ?
श्री श्री रविशंकर :मेरे अनुसार सिर्फ मुसकुराहट पर्याप्त हैं |जब सारे शस्त्र विफल हो जाते हैं तो यह काम करती है|
प्रश्न: क्या आप कुछ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष के बारे में बताएँगे? जैसे आपने मन को सामूहिक चेतना बताया हैं ?
श्री श्री रविशंकर : आप मन को नहीं देख सकते ,आप सिर्फ उसे महसूस कर सकते हैं | आत्मा उर्जा है | विद्युत तरंगे हर जगह मौजूद होती हैं | शरीर तार के जैसा हैं ,जिसमे आत्मा उसकी विद्युत तरंग होती हैं |आकार और निर्विकार दोनों आवश्यक होते हैं |विश्व ईश्वर का प्रदर्शन है परन्तु वह स्वयं निर्विकार है| सारा विश्व दोनों, दिखने वाली प्रत्यक्ष और न दिखने वाली अप्रत्यक्ष चेतना हैं |
यहाँ भारत में इसे सहजता से स्वीकार किया जाता हैं |
* कर्म का सरल अर्थ कृत्य हैं |
कृत्य के तीन प्रकार होते हैं ; पहला अप्रत्यक्ष हैं, जो कृत्य बनने वाला हैं,
फिर कृत्य और फिर कृत्य का परिणाम |
पहला वृक्ष के बीज के जैसे हैं, दूसरा पूर्णता विकसित वृक्ष हैं और तीसरा जब वृक्ष फिर से बीज बन जाता है|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
प्रश्न: वास्तविकता और अवास्तविकता क्या हैं ?
श्री श्री रविशंकर: सबकुछ बदल रहा है, और सबकुछ जो बदल रहा है, वह अवास्तविक है!
प्रश्न : सिद्ध पुरुषों को भी ज्ञानोदय होने के लिए कुछ जन्म लेने पड़ते हैं| ज्ञानोदय को प्राप्त करना इतना मुश्किल क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर :यह कठिन नहीं है| यह चुनौतीपूर्ण है|
प्रश्न : क्या विभिन्न प्रकार के निर्वाण होते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : हां ! जैसे आइसक्रीम के कई स्वाद होते हैं , वैसे ही कई विचार धाराए हैं | परन्तु सब का सार एक ही है|
प्रश्न : ब्रह्मचर्य का क्या महत्त्व है?
श्री श्री रविशंकर: ब्रह्मचर्य स्वाभाविक रूप से होता हैं | जब आपके शरीर की प्रत्येक कोषिका प्रसन्न होती है तो आप को प्रसन्न होने के लिए कोई कृत्य नहीं करना पड़ता|
यह कोई कृत्य नहीं, आभास है | और ब्रह्मचर्य कुछ हद तक अच्छा होता हैं क्युकि यह उर्जा को बचाता है|
प्रश्न : मैं आर्ट ऑफ लिविंग(जीवन जीने की कला ) का स्वयंसेवी हूँ | आर्ट ऑफ लिविंग का प्रतिनिधित्व करने से, मैं कैसे श्रेष्ठ हूँ ?
श्री श्री रविशंकर: सिर्फ यह बात कि आप प्रतिनिधित्व करते हुए कृतज्ञ हैं, वही आप को श्रेष्ठ बनाता हैं | विनम्रता इस गृह में सबसे उत्तम गुण है|
प्रश्न: इस अत्यंत सक्रिय मन का क्या करे ?विचार दुखद होते हैं , कृपया करके इसके लिए मार्गदर्शन करे ?
श्री श्री रविशंकर : बहुत सारे विचार इसलिए आतें हैं क्युकि आपके पास बहुत सारा खाली समय हैं | बहुत सारे विचार आपके मन और दिल में असंतुलन को दर्शाता हैं | जब भावनाए प्रज्वलित हो जाती हैं तो विचार शांत हो जाते हैं |यह अनुचित पाचन की वजह से भी हो सकता हैं, इस लिये अपने पाचन क्रिया पर ध्यान रखें|
प्रश्न : क्या यह सच हैं कि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक छोटी ऊँगली पर उठाया था श्री श्री रविशंकर:आजकल कई बड़े वेट लिफ्टर हैं | सबकुछ संभव हैं | कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया , इस पर विश्वास नहीं करने का कोई औचित्य नहीं हैं |( जिसे वह गोवर्धन पर्वत कहते हैं,वह एक छोटी पहाड़ी है। आप उसे जाकर देख सकते हैं|)
‘गौ’ का अर्थ ज्ञान हैं|
‘वर्धन’ का अर्थ ज्ञान की बढ़ोत्तरी|
बासुंरी को बजाते हुए हजारों लोगो की चेतना को उठाना, भगवान कृष्ण के लिए बहुत आसान था | इन्द्र सामूहिक सोच या सामूहिक चेतना को दर्शाता है| इसलिए भगवान कृष्ण ने अपने समूह के साथ सम्पूर्ण समाज की चेतना को उठाया| यही इसका अर्थ है |
प्रश्न : जय गुरुदेव का अर्थ बड़े मन की विजय है | परन्तु क्या इसमें छोटे मन की भूमिका भी हैं ?
श्री श्री रविशंकर : छोटे मन की अपनी भूमिका हैं | यह स्पष्ट हैं कि छोटे मन के कारण ही बड़े मन की विजय होती है| दो प्रकार के लोग होते हैं | पहले जो विजयी होते हैं और दुसरे वे जो अन्य को विजयी बनाते हैं|
प्रश्न : हिंदू पुराणो के अनुसार, प्रत्येक भगवान का कोई शस्त्र हैं | आपका शस्त्र क्या हैं ?
श्री श्री रविशंकर :मेरे अनुसार सिर्फ मुसकुराहट पर्याप्त हैं |जब सारे शस्त्र विफल हो जाते हैं तो यह काम करती है|
प्रश्न: क्या आप कुछ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष के बारे में बताएँगे? जैसे आपने मन को सामूहिक चेतना बताया हैं ?
श्री श्री रविशंकर : आप मन को नहीं देख सकते ,आप सिर्फ उसे महसूस कर सकते हैं | आत्मा उर्जा है | विद्युत तरंगे हर जगह मौजूद होती हैं | शरीर तार के जैसा हैं ,जिसमे आत्मा उसकी विद्युत तरंग होती हैं |आकार और निर्विकार दोनों आवश्यक होते हैं |विश्व ईश्वर का प्रदर्शन है परन्तु वह स्वयं निर्विकार है| सारा विश्व दोनों, दिखने वाली प्रत्यक्ष और न दिखने वाली अप्रत्यक्ष चेतना हैं |
यहाँ भारत में इसे सहजता से स्वीकार किया जाता हैं |
* कर्म का सरल अर्थ कृत्य हैं |
कृत्य के तीन प्रकार होते हैं ; पहला अप्रत्यक्ष हैं, जो कृत्य बनने वाला हैं,
फिर कृत्य और फिर कृत्य का परिणाम |
पहला वृक्ष के बीज के जैसे हैं, दूसरा पूर्णता विकसित वृक्ष हैं और तीसरा जब वृक्ष फिर से बीज बन जाता है|
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