बुधवार, १६ फरवरी २०११
अपने दिल को सुरक्षित रखे, यह बहुत नाज़ुक होता हैं | कुछ छोटी छोटी बातें और घटनायें इस पर गहन प्रभाव छोड़ देती हैं | एक बहुमूल्य रत्न को सोने चांदी में मढ़ कर रखते हैं। उसी तरह ज्ञान और विवेक से अपने दिल के दिव्यत्व को सहेजो। मन और दिल को साफ और स्वस्थ्य रखने के लिए दिव्यता से उत्तम कुछ भी नहीं हैं | फिर गुजरता हुआ समय और घटनायें आपको स्पर्श भी नहीं कर पायेंगी और न कोई घाव दे पाएगी |
जब कोई आपके प्रति प्रेम को बहुत अधिक अभिव्यक्त करता है तो अक्सर आप समझ नहीं पाते कि उस पर प्रतिक्रिया कैसे करें या आभार कैसे प्रगट करें। सच्चे प्रेम को पाने की क्षमता प्रेम को देने/बाँटने से आती हैं | आप जितना अधिक केंद्रित होते हैं, अपने अनुभव के आधार पर आप यह समझ पाते हैं कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं हैं, वह आपका शास्वत आस्तित्व हैं, फिर आप सहज हो जाते हैं, चाहे कितना भी प्रेम किसी भी रूप में अभिव्यक्त किया जाए|
प्रेम के तीन प्रकार होते हैं| प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं, प्रेम जो सुख सुविधा से मिलता हैं और फिर दिव्य प्रेम| प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह क्षणिक होता हैं क्योंकि वह अनभिज्ञता या सम्मोहन की वजह से होता हैं | इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते हैं। यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता है और भय, अनिश्चित्ता,असुरक्षा और उदासी लाता है|
जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह, या आनंद नहीं होता है| उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते हैं क्योंकि वह आपसे परिचित हैं | उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता हैं | यह सदाबहार और नवीन रहता है| आप जितना इसके निकट जायेंगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती ह। इसमें कभी भी ऊबते नहीं हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता है|
सांसारिक प्रेम सागर के जैसे हैं , परन्तु सागर की गहराई का भी एक माप होता है| दिव्य प्रेम आकाश के जैसे हैं जिसकी कोई सीमा नहीं हैं | सागर की गहरई से आकाश की ओर ऊँची उड़ान को भरो |
प्राचीन प्रेम इन सभी संबंधो से परे हैं और इसमें सभी सम्बन्ध सम्मलित होते हैं |
अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते हैं | फिर जैसे समय गुजरता हैं, यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता हैं | जब वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं जिसमे ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वह प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता है| वह हमारी स्वयं की चेतना है| आप इस वर्तमान शरीर, नाम, स्वरूप और संबंधो से सीमित नहीं हैं | आपको अपना अतीत और प्राचीनता पता नहीं है।
बस इतना जान लेना कि आप प्राचीन हैं पर्याप्त है।
जब प्रेम को चोट लगती हैं तो वह क्रोध बन जाता हैं, जब वह विक्षोभ होता हैं तो वह ईर्ष्या बन जाता है, जब उसका प्रवाह होता हैं तो वह करुणा है और जब वह प्रज्वलित होता हैं तो वह परमान्द बन जाता है|
( गुरुदेव ने नारद भक्ति सूत्र में प्रेम की और अधिक व्याख्या की है। )
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
अपने दिल को सुरक्षित रखे, यह बहुत नाज़ुक होता हैं | कुछ छोटी छोटी बातें और घटनायें इस पर गहन प्रभाव छोड़ देती हैं | एक बहुमूल्य रत्न को सोने चांदी में मढ़ कर रखते हैं। उसी तरह ज्ञान और विवेक से अपने दिल के दिव्यत्व को सहेजो। मन और दिल को साफ और स्वस्थ्य रखने के लिए दिव्यता से उत्तम कुछ भी नहीं हैं | फिर गुजरता हुआ समय और घटनायें आपको स्पर्श भी नहीं कर पायेंगी और न कोई घाव दे पाएगी |
जब कोई आपके प्रति प्रेम को बहुत अधिक अभिव्यक्त करता है तो अक्सर आप समझ नहीं पाते कि उस पर प्रतिक्रिया कैसे करें या आभार कैसे प्रगट करें। सच्चे प्रेम को पाने की क्षमता प्रेम को देने/बाँटने से आती हैं | आप जितना अधिक केंद्रित होते हैं, अपने अनुभव के आधार पर आप यह समझ पाते हैं कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं हैं, वह आपका शास्वत आस्तित्व हैं, फिर आप सहज हो जाते हैं, चाहे कितना भी प्रेम किसी भी रूप में अभिव्यक्त किया जाए|
प्रेम के तीन प्रकार होते हैं| प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं, प्रेम जो सुख सुविधा से मिलता हैं और फिर दिव्य प्रेम| प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह क्षणिक होता हैं क्योंकि वह अनभिज्ञता या सम्मोहन की वजह से होता हैं | इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते हैं। यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता है और भय, अनिश्चित्ता,असुरक्षा और उदासी लाता है|
जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह, या आनंद नहीं होता है| उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते हैं क्योंकि वह आपसे परिचित हैं | उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता हैं | यह सदाबहार और नवीन रहता है| आप जितना इसके निकट जायेंगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती ह। इसमें कभी भी ऊबते नहीं हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता है|
सांसारिक प्रेम सागर के जैसे हैं , परन्तु सागर की गहराई का भी एक माप होता है| दिव्य प्रेम आकाश के जैसे हैं जिसकी कोई सीमा नहीं हैं | सागर की गहरई से आकाश की ओर ऊँची उड़ान को भरो |
प्राचीन प्रेम इन सभी संबंधो से परे हैं और इसमें सभी सम्बन्ध सम्मलित होते हैं |
अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते हैं | फिर जैसे समय गुजरता हैं, यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता हैं | जब वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं जिसमे ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वह प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता है| वह हमारी स्वयं की चेतना है| आप इस वर्तमान शरीर, नाम, स्वरूप और संबंधो से सीमित नहीं हैं | आपको अपना अतीत और प्राचीनता पता नहीं है।
बस इतना जान लेना कि आप प्राचीन हैं पर्याप्त है।
जब प्रेम को चोट लगती हैं तो वह क्रोध बन जाता हैं, जब वह विक्षोभ होता हैं तो वह ईर्ष्या बन जाता है, जब उसका प्रवाह होता हैं तो वह करुणा है और जब वह प्रज्वलित होता हैं तो वह परमान्द बन जाता है|
( गुरुदेव ने नारद भक्ति सूत्र में प्रेम की और अधिक व्याख्या की है। )
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality