१० फरवरी २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: गुरूजी निर्वाण क्या है? यां बेहतर होगा आप उसे हमें प्रदान करें?
श्री श्री रविशंकर: जीवन में संतुलन लाना और इच्छा के ज़्वर से मुक्त होना निर्वाण है। इच्छा का अर्थ है अभाव! जब कोई अभाव लगता है तभी ना इच्छा उठती है। जब आप कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं संतुष्ट हूँ, वह निर्वाण है| पर इसका अर्थ यह नहीं कि सब छोड़कर बैठ जाओ। अपना काम निष्ठा से पूरा करो, पर अपने केन्द्र से भी जुड़े रहो। यहाँ तक ज्ञानोदय की तृष्णा भी अपने केन्द्र से दूर ले जाती है|
सभी भावनाएं व्यक्ति, वस्तु और घटनाओं से जुडी हैं| वस्तु, व्यक्ति और सम्बन्ध में फंसे रहना मोक्ष और मुक्ति मिलने में बाधा है| जब मन सभी आवृत्तियों और अवधारणाओं से मुक्त हो जाता है तो आप को मोक्ष प्राप्त हो जाता है| कुछ भी नहीं या शून्य की अवस्था को निर्वाण, ज्ञानोदय, समाधी कहते हैं | मैं से स्वयं में जाना निर्वाण है |
मैं कौन हूँ? जब आप परत दर परत स्वयं के गहन में जाते हैं, तो आप स्वयं को पाते हैं, वह निर्वाण है| यह एक प्याज को छीलने जैसा है! आप प्याज के केंद्र में क्या पाते हैं ? कुछ नहीं!
जब आप समझ जाते हैं कि सारे सम्बन्ध, लोग, शरीर भावनाएं सब कुछ बदल रहे हैं – तो फिर वह मन जो दुखों में झूंझ रहा होता हैं, वह एकदम अपने स्वयं में वापस आ जाता है | मैं से स्वयं में वापसी संतोष देती है और दुःख से मुक्ति देता है | उस संतोष की अवस्था का विश्राम निर्वाण है |
प्रश्न : मोक्ष प्रयास से या बिना किसी प्रयास से प्राप्त होता है?
श्री श्री रविशंकर: दोनों से ! यह एक ट्रेन को पकड़ने के जैसे है | जब आप किसी ट्रेन में बैठ जाते हैं तो फिर आपको विश्राम करना होता है | पूरे समय आपको यह नहीं सोचना होता कि मुझे इस स्टेशन पर उतरना है| आपको सिर्फ विश्राम करना होता है | सिर्फ बैठ कर विश्राम करना होता है।
प्रश्न: जब किसी ने कोई गलती की है, उसके बावजूद भी यदि उसे उसका एहसास नहीं है, तो उसे कैसे माफ करें ?
श्री श्री रविशंकर: जब आप माफ कर देते हैं तो आपका मन शांत हो जाता है| उन्हें करुणा और प्रेम से समझाएं, क्रोध से नहीं | यदि आप किसी के मन में दोष देकर प्रसन्न होते हैं तो वह भी ठीक नहीं है| उन्हें प्रेम से समझाएं और फिर भूल जाएँ|
प्रश्न: गुरूजी निर्वाण क्या है? यां बेहतर होगा आप उसे हमें प्रदान करें?
श्री श्री रविशंकर: जीवन में संतुलन लाना और इच्छा के ज़्वर से मुक्त होना निर्वाण है। इच्छा का अर्थ है अभाव! जब कोई अभाव लगता है तभी ना इच्छा उठती है। जब आप कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं संतुष्ट हूँ, वह निर्वाण है| पर इसका अर्थ यह नहीं कि सब छोड़कर बैठ जाओ। अपना काम निष्ठा से पूरा करो, पर अपने केन्द्र से भी जुड़े रहो। यहाँ तक ज्ञानोदय की तृष्णा भी अपने केन्द्र से दूर ले जाती है|
सभी भावनाएं व्यक्ति, वस्तु और घटनाओं से जुडी हैं| वस्तु, व्यक्ति और सम्बन्ध में फंसे रहना मोक्ष और मुक्ति मिलने में बाधा है| जब मन सभी आवृत्तियों और अवधारणाओं से मुक्त हो जाता है तो आप को मोक्ष प्राप्त हो जाता है| कुछ भी नहीं या शून्य की अवस्था को निर्वाण, ज्ञानोदय, समाधी कहते हैं | मैं से स्वयं में जाना निर्वाण है |
मैं कौन हूँ? जब आप परत दर परत स्वयं के गहन में जाते हैं, तो आप स्वयं को पाते हैं, वह निर्वाण है| यह एक प्याज को छीलने जैसा है! आप प्याज के केंद्र में क्या पाते हैं ? कुछ नहीं!
जब आप समझ जाते हैं कि सारे सम्बन्ध, लोग, शरीर भावनाएं सब कुछ बदल रहे हैं – तो फिर वह मन जो दुखों में झूंझ रहा होता हैं, वह एकदम अपने स्वयं में वापस आ जाता है | मैं से स्वयं में वापसी संतोष देती है और दुःख से मुक्ति देता है | उस संतोष की अवस्था का विश्राम निर्वाण है |
प्रश्न : मोक्ष प्रयास से या बिना किसी प्रयास से प्राप्त होता है?
श्री श्री रविशंकर: दोनों से ! यह एक ट्रेन को पकड़ने के जैसे है | जब आप किसी ट्रेन में बैठ जाते हैं तो फिर आपको विश्राम करना होता है | पूरे समय आपको यह नहीं सोचना होता कि मुझे इस स्टेशन पर उतरना है| आपको सिर्फ विश्राम करना होता है | सिर्फ बैठ कर विश्राम करना होता है।
प्रश्न: जब किसी ने कोई गलती की है, उसके बावजूद भी यदि उसे उसका एहसास नहीं है, तो उसे कैसे माफ करें ?
श्री श्री रविशंकर: जब आप माफ कर देते हैं तो आपका मन शांत हो जाता है| उन्हें करुणा और प्रेम से समझाएं, क्रोध से नहीं | यदि आप किसी के मन में दोष देकर प्रसन्न होते हैं तो वह भी ठीक नहीं है| उन्हें प्रेम से समझाएं और फिर भूल जाएँ|