१८ , फरवरी २०११, नई दिल्ली
गुरूजी प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के श्रोताओ को संबोधित करते हैं, कभी कभी समाज के विशेष वर्ग के लोगो को, इसलिए टीम ने ज्ञान को इस रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया हैं कि अधिक से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो सके , हमें अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट बॉक्स में लिखे|
सत्य और झूठ की सीमा !!!!
प्रश्न : जो लोग झूठ बोलते हैं कोई उनसे कैसे निपटे? क्या सच्चाई के साथ किसी का विकास संभव है?
श्री श्री रविशंकर: नैतिकता के साथ विकास हो सकता है| आपको उन्हें वास्तव में एक बात समझानी होगी कि वे सत्यम के जैसे काफी ऊपर उठ सकते हैं और असत्यम के जैसे उनका पतन भी हो सकता है! ऐसे कितने उदहारण है! जो वास्तव में ईमानदार हैं, वह राजा के जैसे जीते हैं , और जो गलत मार्ग पर हैं उसका स्वयं का मन उसे दिल से मुस्कुराने की अनुमति नहीं देता| ऐसे लोग ठीक से सो भी नहीं पाते है|
ठीक है ! क्या इसका यह अर्थ हुआ कि राजा हरीशचंद्र के जैसे जीवन व्यतीत करना होगा? १०० % सत्य भी व्यावहारिक नहीं है| इसलिए शास्त्रों में बहुत ही सुन्दर रूप में इसकी व्याख्या की है| एक ब्राह्मण या सन्यासी को बिलकुल भी झूठ बोलने की अनुमति नहीं है| एक गुरु को भी नहीं है| परन्तु एक राजा, प्रशासक थोड़ा बहुत झूठ कह सकते हैं यदि वह सामान्य रूप से लोगो की भलाई के लिए है| व्यवसायीयो के लिए थोड़ी बहुत और गुंजाइश है| बहुत खुश नहीं हो जाना! इसका यह मतलब नहीं है कि आपको झूठ बोलने की अनुमति मिल गयी| भोजन में जितना नमक होता है व्यवसाय में उतना झूठ बोला जा सकता हैं | जैसे १ या २ बात उदहारण के लिए, यदि आपको अपना कोई उत्पाद बेचना है तो आप कह सकते हैं कि यह सबसे उत्तम है चाहे यह आपको पता है वह उत्तम नहीं है! इसमें आपको कोई पाप नहीं लगेगा| यह भोजन में नमक होने का उदाहरण है| यदि भोजन में अधिक नमक हो तो फ़िर भी क्या वह खाने योग्य होगा?
मृत्यु:
प्रश्न: मृत्यु की तयारी कैसे की जाए?
श्री श्री रविशंकर: मृत्यु के लिए कोई तैयारी करने की आवश्यकता नहीं है? आप अतीत के लिए मरते हैं, जब आप अतीत को मार देते हैं तो फिर आप वर्तमान में जीने लगते हैं | जब अतीत पर आप अपनी पकड़ डीली छोड़ देते हैं तो आप वर्तमान में आ जाते हैं। जीवन जीने की कला और मृत्यु की कला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं| अतीत में जो कुछ बीत गया उसे भूल जाये| वर्तमान में जिए| यदि आप वर्तमान में जीना चाहते हैं तो अतीत में जो कुछ भी हो गया है उसे भूल जाये (तालियां)| हर क्षण अतीत भूलते जाए| यदि प्रत्येक क्षण में आपको मरने की कला आती है तो फिर जीवन सबसे उच्चतम अवस्था में खिल जाता है | प्रत्येक क्षण मन का मरना मृत्यु है| वैसे भी आत्मा का कोई अंत नहीं होता है | जो आप मृत्यु को समझते हैं वह सिर्फ शरीर और मन का वियोग है| शरीर ,मन, बुद्धि , सबकुछ बदल रहा है| जो नहीं बदलता है वह आपका भीतरी अविनाशी सत है|जब आप अपने भीतर के न बदलने वाले स्वरुप से जुड़ जाते हैं तो फिर जीवन विनोदपूर्ण बन जाता है| (ताँलिया )
भ्रष्ट बॉस से कैसे निपटा जाये
प्रश्न : यदि बॉस इतना भ्रष्ट है कि वह चाहता है कि आप भी उसका हिस्सा बने तो ऐसे साहब (बॉस) से कैसे निपटा जाये ? ऐसी स्थिति में जीवित रहना बहुत कठिन है|
श्री श्री रविशंकर : मुझे मालूम है( हँसते हुए, तालिया)! मैं आपकी परेशानी को समझ सकता हूँ| इसके लिए आपको काफी कुशलता चाहिए| आपको अपने बॉस से कहना होगा, “ साहब मैं इन सब बातो में बहुत कुशल नहीं हूँ , यदि मुझ से कोई गलती हो जाये तो आप परेशानी में आ सकते हैं| बेहतर होगा कि आप इसके लिए किसी अन्य व्यक्ति को चुने| मैं इसमें कुशल नहीं हूँ” आप उसे यह कह सकते हैं या अपना कोई सुझाव दे सकते हैं और कह सकते हैं, “ शायद यह बेहतर होगा | आप ज्यादा जानते हैं , आप सबसे उत्तम निर्णय ले सकते हैं” | जब आप यह आखिरी वाक्य कह दें , तो वह आपका सुझाव मानने के लिए तैयार हो सकता है| परन्तु यदि आप उसे से कहेंगे कि वो गलत है और आप ही सही हैं तो यह समझाने का गलत तरीका होगा | ना सिर्फ अपने साहब के साथ परन्तु आपके पालको के साथ भी और कभी कभी अपने जीवन साथी के साथ भी|
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