हमारा जीवन जीने लायक तब बनता है, जब हम किसी और के कुछ काम आते हैं!!!

१३.०३.२०१२, इस्लामाबाद, पकिस्तान
आप लोगों के साथ यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है!
सबसे पहले मैं सारे टीचर्स और स्वयंसेविओं को मुबारकबाद देना चाहूंगा इस कार्यक्रम कोसंभव करने के लिए| मैं उन सब लोगों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देना चाहूँगा, जिन्होंने इतनी मेहनत करी है| जिन वाय.एल.टी.पी. युवाओं ने जाकर सिंध के लोगों तक मदद पहुंचाई, जो कुछ साल पहले बाढ़-ग्रस्त थे| जब वहां काम हो रहा था, तो मुझे उनसे फोन पर बात करने का मौका मिला था, लेकिन आज मैं उन्हें वास्तव में बधाई देना चाहूँगा| लाखों लोगों तक मदद पहुंचाई गयी थी, और आघात-राहत कार्यशालादी गयीं थीं, ज़रूरी सुविधाएं दी गयी थीं और मकान बनाये गए थे|
दुनिया भर से आर्ट ऑफ लिविंग परिवार के लोग मदद के लिए आगे आये थे, और पूरी दुनिया से सहायता मिली थी| तो हमने यहाँ यह दिखा दिया, कि हम अकेले नहीं हैं, यह पूरा विश्व हमारा परिवार है| और मुझे यह देख कर अत्यधिक खुशी हो रही है, और मैं बहुत प्रसन्न हूँ, कि यहाँ वास्तव में इस पर अमल हो रहा है|
मेरी तमन्ना है, कि यहाँ ज्यादा से ज्यादा लोग टीचर बनें और देखें कि हर आँसू मुस्कुराहट में बदल जाए|
आज, जिस दर से अवसाद बढ़ रहा है, कैंसर बढ़ रहा है, हृदयरोग बढ़ रहें हैं, रक्तचाप बढ़ रहा है| शारीरिक बीमारियाँ, सामजिक झगड़े, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, ये सभी बीमारियाँ इस बात का सूचक हैं, कि कहीं न कहीं हम आध्यात्मिक तत्व को भूल रहें हैं| कहीं न कहीं, हम उस अपनेपन की भावना को भूल रहें हैं| इसलिए, आर्ट ऑफ लिविंग उस अपनेपन की भावना को समाज में वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध है, और शारीरिक तंदुरुस्ती, दिल और दिमाग की प्रसन्नता और मन में सबके लिए प्रेम|
आमतौर पर मैं कहता हूँ, कि हिंसा-विहीन समाज, रोग-मुक्त शरीर, तनाव-मुक्त मन, संकोच-मुक्त बुद्धि, आघात-मुक्त स्मृति और दुःख-मुक्त आत्मा| यह प्रत्येक इंसान का जन्म सिद्ध अधिकार है|
आप जानते हैं, हमारी बुद्धि संकुचित है| अकसर लोगों के मन में बहुत से विचार आते हैं और वे अपने आप को संकुचित कर लेते हैं| तो हमें खुद को रुकावटों से मुक्त करना है| और हमें एक ऐसा अहं चाहिये जो सबको साथ ले चले| सिर्फ मैं नहीं, बल्कि हम, इस विश्व के लोग|
तो ऐसे हिंसा-विहीन समाज और रोग-मुक्त शरीर की दृष्टि से, आर्ट ऑफ लिविंग ने अब तक जो भी काम किया है, उससे वह बहुत प्रसन्न है, और दूसरी ओर उसके ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, कि लाखों लोगों तक अभी यह शान्ति का सन्देश पहुंचाना बाकी है| मुझे यकीन है, कि आप सब यह काम ज़रूर करेंगे|
देखिये, हमारा जीवन जीने लायक तब बनता है, जब हम किस और के कुछ काम आते हैं| किसी को वस्तुएं देकर मदद करना एक बात है, लेकिन वह बहुत अधिक समय तक नहीं रहता| यदि हम दूसरे लोगों को ज्ञान और बुद्धिमत्ता पाने में मदद करते हैं, जिससे वे यह सीख जाएँ कि अपने मन, भावनाओं और अंतर्मन को कैसे संभालें; यह ज्यादा महत्वपूर्ण है|
यह वही बात है, कि हम किसी को मछली देने के बजाय उसे यह सिखा दें, कि मछली पकड़ते कैसे हैं|
एक कहावत है, किसी को मछली देने से कोई फ़ायदा नहीं है, बल्कि फ़ायदा है, अगर हम उन्हें मछली पकड़ना सिखाएं! बस बिल्कुल यही आर्ट ऑफ लिविंग कर रही है; लोगों को यह सिखाना कि अपने मन को कैसे संभालें, अपनी खुद की भावनाओं को कैसे संभालें, अपनी धारणाओं को, अपनी सीमाओं को और कैसे इन सीमाओं से बाहर आयें| लोग जैसे भी हैं, उन्हें स्वीकारना और उन्हें एक बेहतर व्यक्ति बनाना|
पूरे दक्षिणी एशिया में, अमेरिका में, और यहाँ तक की यूरोप में भी, जो सबसे बड़ी परेशानी का हम सामना कर रहें हैं, वह है भ्रष्टाचार|
भारत में आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेविओं ने बहुत अच्छा काम किया है उन्होंने तीन स्तरों पर काम किया है : बड़े बड़े सत्संगों का आयोजन किया है| इन सत्संगों में, मैं लोगों को प्रण दिलवाता हूँ, कि वे ना तो रिश्वत देंगे, और ना ही रिश्वत लेंगे|
दूसरा काम जो हमारे स्वयंसेविओं ने किया है, वह है, कि वे अफसरों की मेज़ पर एक पट्टी लगा देते हैं,मैं रिश्वत नहीं लेता| तो हमारे युवा यह पट्टी लेकर जाते हैं, और उनकी मेज़ पर लगा देते हैं| कोई कह भी नहीं सकता, कि मैं यह पट्टी अपनी मेज़ पर नहीं लगा सकता| और जब यह पट्टी वहां होती है, तो कोई उन्हें रिश्वत देता भी नहीं है|
तो यह एक ऐसी बात है, जो हम कर सकते हैं| नहीं तो, जन्म-प्रमाणपत्र के लिए, चाहे मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए, हर चीज़ के लिए आपको रिश्वत देनी पड़ती है| एक बिजली का तार खींचने के लिए आपको इतना पैसा देना पड़ता है| तो इससे एक क्रान्ति आ रही है|
तीसरी चीज़ जो हम कर रहें हैं, कि हम विधायकों से कह रहें हैं, कि वे एक ऐसा शक्तिशाली बिल लायें जो भ्रष्टाचार की छुट्टी कर देगा और दोषियों को सज़ा देगा|
तो यहाँ पाकिस्तान में, मैं जानता हूँ कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक बहुत बड़ी लहर उठ रही है, क्योंकि इसकी ज़रूरत है| इसी तरह के कार्यक्रम रूस में भी हो रहें हैं, और अफ्रीका में भी यही समस्या है| एक नागरिक संस्था को मौके पर आना चाहिये और भ्रष्टाचार को “ना” कहना चाहिये| और सिर्फ कानूनों और विधानों से इस समस्या का समाधान नहीं होगा| यह तभी संभव है, जब एक आध्यात्मिक परिवर्तन हो और लोगों में अपनेपन की भावना जागे|
भ्रष्टाचार वहीँ शुरू होता है जहाँ अपनापन खत्म होता है| इस बात पर हम सबको अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिये|
तभी अलग अलग धर्मों में सामंजस्य होगा, और समाज में विविधता रह पाएगी| हमें लोगों को यह शिक्षा देनी है| मुस्लिम धर्म में कितने सारे संप्रदाय हैं; सुन्नी, शिया, और इसी तरह से कुछ ईसाई भी होंगे, और कुछ हिंदू और कुछ सिख| एक गुलदस्ताजिसमें अलग अलग धर्मों का ज्ञान और वार्तालाप है| यही आर्ट ऑफ लिविंग है, और हम इसी को बढ़ावा देते हैं|
सबसे ज्यादा ज़रूरी है, कि आप मुस्कुराते रहें| कुछ भी हो, मुस्कुराहट बनाये रखें|

प्रश्न : गुरूजी, आपकी यह यात्रा पिछली यात्रा से कैसे अलग है?
श्री श्री रविशंकर : पिछ्ली यात्रा में मैं सुरक्षा घेरे में था, होटल से बाहर भी नहीं निकल पाया था| मगर इस बार, मैं लोगों के साथ अधिक हूँ, मैं कल एफ.सी.सी. कॉलेज के ९०० युवाओं से मिला और उनके साथ काफी बातचीत की| उन्होंने मुझे प्रेम दिया, और मैंने भी उन्हें प्रेम दिया| बहुत अच्छा कार्यक्रम था|
और मुझे इस बार यह भी लग रहा है कि पहले के मुकाबले यहाँ अधिक शांति है|

प्रश्न : गुरूजी, जब आप एफ.सी.सी.कॉलेज से वापस आये, तो छात्रों की काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया रही| वे सब बहुत खुश थे, और वे खुद को ज्यादा शिक्षित और अंतर्ज्ञानी महसूस कर रहें थे| इसके लिए हम आपके कृतज्ञ हैं|
श्री श्री रविशंकर : मुझे यहाँ के छात्रों के जोश में और भारत के छात्रों के जोश में कोई अंतर नहीं लगा| वह बिल्कुल एक जैसा था| इतना जोश और जिज्ञासा, उनके अंदर सीखने की प्रबल इच्छा और स्पष्टता थी| यह बेहद अद्भुत था|

प्रश्न : गुरूजी, ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने कोर्स किया है, लेकिन किसी वजह से उन्होंने बीच में ही उसे छोड़ दिया| क्या कोई ऐसा तरीका है, जिससे उन्हें अंत तक कोर्स से जोड़ा जा सके?
श्री श्री रविशंकर : मुझे लगता है कि यदि कोई सेंटर हो, तो लोग बार बार वापस आते रहेंगे| उस पर भी, अगर कोई किताबें, या ज्ञान के वीडियो हों, या सेवा के कुछ कार्यक्रम चलते रहें, तब भी लोग वापस आयेंगे|

प्रश्न : गुरूजी, हालाँकि हम दुनिया के अलग अलग भागों से हैं, फिर भी हमारा आधार एक ही है| हम सबको शान्ति और खुशी चाहिये| लेकिन मुझे ऐसा लगता है, कि हम सिर्फ ऊपरी स्तर पर काम कर रहें हैं और मूल कारण को नहीं देख रहें हैं|
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले, तो हमें यह देखना है, कि मूल कारण क्या है| यह दुनिया के अलग अलग भागों में अलग अलग हैं| कहीं गरीबी है, तो कहीं गलत मतारोपण, कहीं यह लोगों के लिए उपयुक्त अवसरों की कमी है, और कहीं यह कुछ चंद लोगों का स्वार्थ है, जो पूरी जनता की परेशानी बन जाता है|
लेकिन एक चीज़ जो इन सब मुद्दों में एक समान है, वह है, मानवीय मूल्यों के प्रति अज्ञान| अगर लोगों में मानवीयता आ जाए, तो कोई भी हिंसा में भाग नहीं लेगा, भ्रष्टाचार नहीं करेगा, कोई भी निर्दोष लोगों की हत्या नहीं करेगा| तो मूल मानवीय मूल्यों को समाज में वापस लाना है|
मैं जानता हूँ कि यह कठिन है, मगर असंभव नहीं है| कम से कम मैं तो यह बात नहीं मानना चाहता कि यह असंभव है| इसीलिए, हमें निरंतर इस बारे में प्रयास करना चाहिये कि जहाँ भी कोई कमी हो, उसे सुधारें, बाकी सब भगवान पर छोड़ दें|

प्रश्न : गुरूजी, आर्ट ऑफ लिविंग में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर : मेरे ख्याल से उन दोनों की संख्या एक सी है| आज तो मुझे उनकी संख्या एक ही लगती है| आर्ट ऑफ लिविंग महिलाओं के सशक्तिकरण में विश्वास रखता है| वे किसी भी कार्य को अधिक कुशलता से करती हैं! वे चाहती हैं, कि कम से कम पुरुष ऐसा ही कहें|

प्रश्न : हमारा देश एक बहुत ही कठिन परिस्थिति से गुजार रहा है| आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य होनेके नाते आपको क्या लगता है कि हम किस तरह इन मुद्दों को सुलझा सकते हैं, खास तौर पर अपने पड़ोसियों के साथ? हमें अपने पड़ोसियों के साथ रिश्तों को और मज़बूत करना चाहिये, जैसे, भारत, अफगानिस्तान और ईरान भी|
श्री श्री रविशंकर : जो निर्णयकारी हैं, उन्हें बहुत शांत और संगृहीत रूप में रहना चाहिये| अगर निर्णयकारी ही तनाव में हैं, परेशान हैं, या गुस्से में हैं, तो वे इसी भाव को अपने निर्णय में भी दर्शायेंगे|
तो मैं कहूँगा, कि निर्णयकारी को ध्यान करने की और शांत होने बहुत आवश्यकता है, खास तौर पर तब, जब उन्हें कोई अति महत्वपूर्ण निर्णय लेना है, जिससे बहुत लोग प्रभावित होने वाले हैं| उन्हें शांत और निर्मल मन से सोचना चाहिये| यह एक बात है| तो हर स्तर के निर्णयकारी और सलाहकार|
जो लोग सलाह देते हैं, वे सिर्फ बहुत तर्क लगा कर सलाह देते हैं, और निर्णयकर्ता उसी सलाह के ऊपर अपना निर्णय लेते हैं| तो इसलिए सलाहकार और निर्णयकर्ता, दोनों को कुछ समय निकाल कर अंदर से बहुत शांत हो जाना चाहिये| तब उनका निर्णय सही होगा और मानवीय मूल्यों का समर्थन करेगा| यह एक बात है|
दूसरी बात है, कि काफी समस्याएं सिर्फ बयानबाज़ी की वजह से खड़ी हो जाती हैं| यह सिर्फ एक डर उत्पन्न करता है, ओह, खतरा है, खतरा है|
तो कुछ लोग इस तरह की खतरनाक परिस्थितियां बना कर खुद को महत्वपूर्ण समझते हैं| उन्हें ऐसा करना बंद करना चाहिये| उन्हें लोगों को और आशा देनी चाहिये|
हमें भविष्य को बेरंग नहीं दिखाना है, बल्कि उसे उज्जवल दिखाना है| इससे भी काफी हद तक तनाव कम होगा|
तो आर्ट ऑफ लिविंग लोगों को शिक्षा देना प्रारंभ कर रही है, और जहाँ जहाँ झगडों का समाधान कर सकती है, कर रही है|
मैं पहले कह रहा था, कि मैं तालिबान से जाकर बात करने के लिए तैयार हूँ, और मैं उनसे बात करना चाहता हूँ, उन्हें समझना चाहता हूँ, और अपने सुझाव उन्हें देना चाहता हूँ|
तो हम ज़रूर एक परिवर्तन ला सकते हैं, और हमें दोबारा, तिबारा, बार बार कोशिश करते रहनी चाहिये| अगर हमें १०० बार भी कोशिश करनी पड़े, तो हमें उसे छोड़ना नहीं चाहिये|
प्रश्न :  गुरुजी, एक समय आप TM गतिविधि से जुड़े थे और फिर ८० के दशक में आपने आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना की| आपको आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, TM (Transcendal Meditation) भी ध्यान करना ही सिखाते हैं और नि:संदेह वो भी विश्व शांति की बात करते हैं|
मैं जब अपनी किशोरावस्था में था तब मैंने वहां बहुत से व्याख्यान दिए हैं, और जब मैं २४ वर्ष का हो गया, मैंने आर्ट ऑफ़ लिविंग की शुरुआत की|
आर्ट ऑफ़ लिविंग ज्यादा सार्वभौमिक है, ये श्वास पर आधारित है, बेशक हमारा सहज समाधि काफी कुछ TM के जैसा है लेकिन कुछ मायनो में इसके सिद्धांत TM से काफी अलग हैं| आर्ट ऑफ़ लिविंग अलग है| हम बहुत सारा सामाजिक कार्य करते हैं जो TM नहीं करता, हम सामाजिक कार्य की गतिविधियों में ज्यादा ध्यान देते हैं, इसके अलावा संगीत और संस्कृति भी अलग हैं उन से, TM में ज्यादा ध्यान वैज्ञानिक खोज पर है| और हम किसी तकनीक या जीने के तरीके का विरोध नहीं करते| आर्ट ऑफ़ लिविंग पानी के जैसा है, जिस भी बर्तन में डालोगे उस का ही आकर ले लेगा, इसलिए किसी भी प्रकार के ध्यान एवं ज्ञान को अपना लेना ज्यादा आसान है|

प्रश्न : आर्ट ऑफ़ लिविंग के कार्यो को लोगो तक पहुचाने में मीडिया का क्या योगदान है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, मीडिया बहुत कुछ कर सकती है| वेये बता सकते हैं कि कैसे ये लोगो के मानसिक तनाव को कम करता है, उन्हें अवसाद से निकालता है, घर के मतभेदों को दूर करता है, लोगो को साथ लाता है| इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी क्या लाभ हैं, विद्यार्थियों को इससे क्या लाभ हो सकता है, लोगो और समुदायों के बीच के मन-मुटाव को कैसे समाप्त करके उनके बीच सामंजस्य बिठाया जा सकता है| इस तरह से मीडिया लोगो का ध्यान इस तरफ खींच कर उन्हें लाभ पहुंचा सकती है|

प्रश्न : हम भारतीय और पाकिस्तानी मीडिया तक आर्ट ऑफ़ लिविंग के लाभ से सम्बंधित खबरों को कैसे पहुंचा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : भारतीय मीडिया हमेशा ये सब लोगो तक पहुँचाती है, क्योंकि आर्ट ऑफ़ लिविंग के कार्य काफी सक्रिय हैं, इसलिए कुछ कार्यकर्ता मीडिया में हैं और इसलिए हमेशा कुछ न कुछ खबर भारतीय मीडिया के द्वारा लोगो को पता चलता रहता है| पूर्वोत्तर राज्यों के और माओवादीग्रुप के बहुत से लोग है, उन्होंने जब यहकोर्स किया , तब उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया, हथियार डाल दिए और वो मुख्यधारा से जुड़ गए; ये सब समाचार अखबारों में आतारहता है| मुझे लगता है कि पाकिस्तानी मीडिया भी ये सब खबरें आवाम तक पहुंचा रही है|
मीडिया वास्तव में बहुत से बड़े बदलाव ला सकती है, ये एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है| जैसे कि तालिबान और चरमपंथियों के बीच शांति वार्ता में, भ्रष्टाचार मिटाने में, लोगो को सशक्त करने में और तीसरा दोनों पक्षों से सकारात्मक खबरें पहुचने में|
जब लोगो को पता चला कि मैं यहाँ आ रहा हुईं, तब उन्होंने मुझे मना किया, कि "अरे, वहां मत जाइये, वहां बहुत खतरा है; और अपने खुद के अंगरक्षक के बिना तो बिलकुल मत जाइये| वहां कोई भी सुरक्षित नहीं है, रोजाना कोई न कोई मार दिया जाता है"|
मीडिया से लोग सुनते हैं कि यहाँ केवल चरमपंथी हैं, कोई सहनशीलता नहीं है, रोजाना गोली बारूद से तबाही होती है|
मैंने कहा कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है|मैंने वहां जाने का पहले से ही मन बना लिया है| कल रात ही कुछ सरकारी अफसर और सरकार की तरफ से कुछ लोग मेरे पास आये और बोले, " गुरूजी, आप वहां मत जाइये"| मैंने कहा कि मेरी सुरक्षा कि चिंता मत कीजिये,मेरी सुरक्षा कहीं और, किसी और के हाथ है, मुझे कोई कुछ नहीं करेगा| मैं ज़रूर जाऊँगा|
तो मीडिया बहुत बड़ा किरदार निभा सकता है| लोगो को ये बताने में कि यहाँ लोग एक दूसरे का सम्मान करते हैं और विविधता को भी अपनाया जाता है| वो ये खबर लोगो तक पहुंचा सकते हैं और इस तरह से पर्यटन को बढावा दे सकते हैं|
यहाँ बहुत से दर्शनीय स्थल हैं| जैसे तक्षशिला और बाकी बहुत सी जगह| आप लोग पर्यटन को बढावा दे सकते हैं और इस तरह से राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि कर सकते हैं|
मैं आपको बताना चाहता हूँ, ग्रीस एक छोटा सा देश है और हर साल वहां १२० लाख लोग घूमने आते हैं| ये है पर्यटन|
भारत में ४० लाख लोग आते हैं, और पाकिस्तान में शायद कुछ लाख| यहाँ पर्यटन सबसे कम है, इसलिए पाकिस्तान को को अपने पर्यटन उद्योग को बढावा देना चाहिए जिस से यहाँ की अर्थव्यवस्था और विकसित होगी| श्रीलंका ने भी यही किया और उसका परिणाम ये हुआ कि आज वहां की अर्थव्यवस्था काफी विकसित हो गयी|
पता है उन्होंने क्या किया, उन्होंने वो सारी जगह जो रामायण से जुड़ी हुई थी, उन्हें पुनर्जीवित किया और पर्यटन स्थल बना दिया| १० साल पहले तक किसी को पता भी नहीं था कि ऐसी कोई जगह भी है| अभी श्रीलंका में भरपूर पर्यटन है और उन्होंने वहां हवाई जहाज़ और नौका आदि से जिस जिस तरह के इंतज़ाम होने चाहिए, सब किये हैं|
थाईलैंड भी एक छोटा सा देश है, लेकिन वहां काफी पर्यटन है| बाली एक बहुत छोटा सा टापू है लेकिन वहपर्यटन पर ही जीता है|
इसलिए अखबार पर्यटन बड़ा सकते हैं| यहाँ चीन, जापान और कोरिया से बहुत से बुद्ध धर्म के अनुयायी आयेंगे, भारत से हिन्दू गांधार, तक्षशिला और बाकी जगहों को देखने आयेंगे, इस तरह से देश कीअर्थव्यवस्था को एक मजबूती मिलेगी| ये सब काम आप यहाँ कर सकते हैं|

चाणक्य नाम की एक फिल्म के बाद अब सभी गांधार के बारे में जानते हैं| क्या आप लोगो ने चाणक्य के बारे में सुना है? चाणक्य गांधार से एक महान मंत्री और बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे| ये वही व्यक्ति था जिसकी वजह से चन्द्रगुप्त मौर्या का राज हुआ| उसने यहाँ के एक बहुत गरीब से लड़के (चन्द्रगुप्त मौर्या) को चुना और उसे उस पूरे राज्य का चक्रवर्ती सम्राट बनाया| उसने एक पुस्तक भी लिखी, "अर्थशास्त्र" , जो की अर्थशास्त्र पर है और आज भी भारत के बहुत से प्रबंधन विद्यालयों में पढ़ाईजाती है, इसमें अर्थशास्त्र की बेहद सुन्दर नीतियाँ हैं| तो वो सब यहाँ, पाकिस्तान से थे| आयुर्वेद और योग भी पाकिस्तान की ही देन है| सबसे पहले योग के बारे में ज्ञान यहाँ ही दिया गया था| इस तरह पाकिस्तान को अपनी पुरानी सभ्यता को फिर से जीवित करना चाहिए और तब आप के पास एक बड़ा पर्यटन उद्योग होगा और खुशहाली बढेगी|

प्रश्न : पाकिस्तान आने पर कैसा लग रहा है?
श्री श्री रविशंकर : अब यह पूरी तरह से अलग है| हमने युवाओ से वार्तालाप किया है और मुझे भारत के युवाओ की तरह वही अपनापन और उत्साह महसूस होता हैयहा पर सभी लोग, शिक्षित है और मुझे किसी प्रकार का कोई छोटापन नहीं दिख रहा| मैं जो कह रहा हूँ कि प्रक्षेपण गलत है| मिडिया ऐसा ही हैवे ऐसे ही जगह प्रक्षेपण करते है| जहा मुसीबते है| अत: हमे इस देश की ऐसी नयी छबी बनानीहोगी, कि यह देश भी सहिष्णु है, हम विविधता का सन्मान करते है, हम सभी जगह के लोगों का स्वीकार करते है| इस तरह का सन्देश जोर से आकर स्पष्ट रूप से बहार जाना चाहिए| तब ऐसा होगा कि पाकिस्तानी पर्यटन में सुधार होगा और इस से एक बड़ा आर्थिक बढावा मिलेगा| मुझे अच्छा लग रहा है की लोग यहाँ कितने सुन्दर और अच्छे है| ऐसा सन्देश दुनिया में जाना चाहिए, की यहाँ पर लोगों में कितना प्यार है| और यहाँ की मेरी यात्रा इसी सन्देश को भारत ले जाएगी और इस से एक बड़ा लहर उठेगा| मीडिया ने पहले ही यह सन्देश ले लिया है कि गुरूजी का वहाँपर स्वागत हुआ है और लोग भी बहुत खुश है और गुरूजी भी बहुत खुश है| यह सन्देश दोनों देशो को बहुत समीप ला देगा| इसी तरह मैं यह कह रहा था की इक्कीसवी सदी की चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद है और यह पाकिस्तान से सम्बंधित है; यह यहाँ पर जन्मा था|
आयुर्वेद जो की सभी जड़ी बूटियों की औषध विवरणीहैं(कौनसी जड़ी बूटीकिस उपयोग के लिए) वह तक्षशिला में लिखा गया था| यहाँ के विश्वविद्यालय में पूरी दुनिया से दस हज़ार से भी ज्यादा छात्र अध्ययन के लिए आते थे| दुर्भाग्यवश, आयुर्वेद जिस जगह पर जन्मा वहाँपर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा| भारत और पुरी दुनिया आयुर्वेद का लाभ उठा रही है और मेरे ख्याल में पाकिस्तान को भी इस पर अपना ध्यान केन्द्रित कर के वापस लाना चाहिए|
(श्री श्री रविशंकर शक्ति बूँद का प्रदर्शन कर रहे है| एक आयुर्वेदिक औषधि श्री श्री आयुर्वेद की ओर से|)
आपको पता है कि एक बूँद ज़हर आपके शारीर को नष्ट कर सकता है| जब एक बूँद ज़हर एक सत्तर किलो के मॉस को नष्ट कर सकता है, एक बूँद अमृत उसे शक्तिवान बना सकता है| तो यह (शक्ति बूँद) तीन जड़ी बूटियोंका संयोजन है जो पानी में आसुत है जो आपके शरीर के रोगक्षम तंत्र को इतना बढ़ा देता है कि आपके शारीर को शक्ति मिल जाती है| यह वास्तव में अविश्वसनीय है|
सुबह में यदि आप तीन से चारबूँद पानी में मिलाकर पी जाए तो आप बहुत उर्जव्वन महसूस करते हैं| परीक्षा समय के यदि आप बस थोड़ा सा अपनी त्वचा पर मलते हो, तो आप बिना थके और दो घंटे जाग सकते हो| उसी तरह एक और उत्पाद है "ओजस्विता" जो बोर्नविटा की तरह है| वह सात जड़ी बूटियों से बनाया गया है और यह सात जड़ी बूटी हमारे दिमाग और तंत्रिका तंत्र के लिए बहुत अच्छा है| यदि आप एक कप लेते हो तो आप कितना अच्छा और फुर्तीला महसूस करते हैं| यहाँ पर कितने डॉक्टर है? आप हमारी वेबसाइट पर जाए और हमारी आयुर्वेद अस्पताल को देखना चाहिए| हमारी अस्पताल में एक बूँद रक्त, बिना संग्नहरण और बिना कोई दर्द, दांत को निकालने की तकनीक है| उसी तरह नाड़ी चिकित्सा में, डॉक्टर आपकी नाडी पकड़कर बस कुछ हीसेकंड में आपके स्वस्थ के विषय में पूरा इतिहास बता सकते है| आपको एक्सरे मशीन से नहीं गुजरना पड़ता| यह आयुर्वेद की विशेषताए हैं , और मुझे यह कहना है कि योग और आयुर्वेद का जन्म यहाँ पाकिस्तान में हुआ है| दुर्भाग्यवश इसके बारे में किसी को पता नहीं है| बहुत सारे लोगों को चिकित्सा की सभी प्रणालियों के बारे में नहीं पता| आयुर्वेद सभी लोगों के लिये बहुत उपयोगो हो सकता है|

प्रश्न : गुरूजी, यदि हम एलोपथिक औषधियां ले रहे है, तो उसके साथ क्या आयुर्वेद लेने से उसका दुष्प्रभाव होगा?
श्री श्री रविशंकर : नहीं! आयुर्वेदिक दवाइयों की यह खूबसूरती है कि उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और वे किसी और दवायिओं के साथ प्रतिवाद नहीं होता|

प्रश्न : हमे कैसे पता चलेगा की आयुर्वेद का कोई दुष्प्रभाव नहीं है?
श्री श्री रविशंकर : यह समय केद्वारा प्रमाणित किया गया है|यहीजड़ी बूटियोंकी सुन्दरता है| यदि आप जड़ी बूटियोंके माध्यम से औषधिलेते हो तो उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता| दुनिया की सारी हर्बल औषधि के वेब पेज पर यदि आप जाए उनका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, लेकिन यदि आप कोई जड़ी बूटी अधिक मात्रा में लेते है तो आपक के लिए अच्छा नहीं होता| उदहारण, त्रिफाला बहुत अच्छा है और उसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है लेकिन यदि आप बहुत अधिक मात्रा में त्रिफला लेते हो तो आपको अतिसार(दस्त) हो जाएगा लेकिन आप उसे दुष्प्रभाव नहीं कह सकते|

प्रश्न : गुरूजी क्या इच्छाएं दर्द का कारण हैं ?
श्री श्री रविशंकर : इच्छाओंके वजह से दर्द नहीं होता| कुछ इच्छाएं जब आप उसे पूरा करना चाहते हो लेकिन पूरा करने की आपके पास ताकत नहीं है, तो वे आपकोदर्द देती है|

प्रश्न : सफलता क्या है?
श्री श्री रविशंकर : अलग अलग लोगों के लिए सफलता अलग अलग हो सकती है| मेरे लिए सफलता यह है कि आप अपने चेहरे पर मुस्कान रख सके| यदि कोई भी आपके चेहरे से मुस्कान हटा नहीं सकता , तो मैं आपको सफल व्यक्ति कहूँगा| और यह विश्वास की आपको कोई भी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, यह सफलता का दूसरा मापदंड है|

प्रश्न : प्रेम क्या है?
श्री श्री रविशंकर : किसी मासूम बच्चे की आखों में देखिये, वही प्रेम है| अपने पालतू कुत्ते को देखने के लिए घर आइये, देखिये कैसे वह अपनी पूछ हिलाता है और आपके ऊपर उछलता है, वही प्रेम है!
और जब आप किसी के प्रेम में हो और उसे आप याद कर रहे हो, अपना चेहरा आइने में देखिये! आपको वहीँप्यार अपनी आखों में दिखाई देगा| प्रेम ऐसा है किपत्थर को भी पिघला देता है| जैसे अपना शारीर अमीनो एसिड, कार्बोहाईद्रेड, प्रोटीन्स, विटामिन्स से बना हुआ है, हमारी चेतना प्रेम और सुन्दरता से बनी है|

प्रश्न : अहंकार क्या है?
श्री श्री रविशंकर : अहंकार वही है जो प्रेम का नाश कर देता है| आप सहज रहकर, जैसे आप अभी हो, अहंकार का नाश कर सकते है|

प्रश्न : मेरे ह्रदय में आनेवाली बेचैनी को कैसे समझाया जाए जब मुझे लगता है, "मैं कौन हूँ?" और "मैं यहाँ क्यों हूँ?
श्री श्री रविशंकर : यह बहुत अच्छा है| यह लालसा जीवन में बहुत जरुरी है| यह लालसा आपको ऊपर उठाएगी| मैं कौन हूँ? यह सब क्या है? मैं यहाँ क्योंहूँ?
यह सब सुन्दर प्रश्न है, उनके साथ रहिये| किसी से भी इनका जवाब तलब मत कीजियेगा, सिर्फ अपने आप से पूछते रहिये. जब आप यह प्रश्न पूछते है और अपने भीतर के स्व में विश्राम करते है, आप देखोगे की आप प्रकाश है जो सब जगह पर हर एक व्यक्ति में है| आप कोऐसा भी महसूस होगा की आप की कोई सीमा नहीं है| आम तौर पर हमे लगता है कि शरीर के भीतर मन है, नहीं, मन के भीतर शरीर है| आपका मन आपके आपके आस पास करीब एक फीट तक होता है| जैसे मोमबत्ती मैंबाती होती है और फिर लौ/ज्वाला होती है, नहीं! उसी तरह हमारा शरीर बाती है और हमारा मन ज्वाला/लौ है, जो सब जगह पर है| एक जीव उर्जा हमारे पूरे शरीर पर है| इसीलिए जब आप किसी चीज़ को स्पर्श करते है, वह काम करता है, आपके टार्च स्क्रीनकी तरह|
बीस साल पहले यदि आप लोगों को बताये कि सिर्फ स्पर्श करते ही आपका आय पैड काम करने लगेगा, कोई आपका विश्वास नहीं करता| कोई आपका विश्वास नहीं करता कि सिर्फ स्पर्श करने से फ़ोन काम करेगा या कोई पर्दा खुलेगा| वह कहते, "हमे मुर्ख न बनाये"| आज ऐसी आधुनिक तकनीक है की यदि आप स्पर्श करते हो तो ही खुलता है| यदि कोई दूसरा स्पर्श करता है, वह नहीं खुलेगा| तो इसका मतलब यह है कि हम सब एक विशेष उर्जा लेकर चलते है, एक स्पंदन| क्या आपने इसके बारे में सुना है? कुछ बायोमेत्रिक ताले होती है जिसमे आपकी उर्जा होती है और जब आप अपने हाथ रखते हों, तो ही वह खुलता है| कोई दूसरा हाथ रखता है तो वह नहीं खुलता| तो तकनीक पौराणिक विचारधारा से इतना नजदीक है कि सभी उर्जा है| हम सब जीव उर्जा है और हम सब में बहुत सारी क्षमताएं है|

प्रश्न : योगी शादी क्योंनहीं करते?
श्री श्री रविशंकर : कोई ऐसा नियम नहीं है किशादी नहीं कर सकते| लेकिन वे बच्चे जैसे बन जाते है और बाल विवाह निषेद है|

प्रश्न : तनाव क्या है?
श्री श्री रविशंकर : मुझे नहीं पता| शायद आपको उन लोगों से पूछना चाहिए जो यातायात में फँस गए है और उन्हें तत्काल विमान पकड़ना है, वे बताएँगे की तनाव क्या होता है|

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