प्रश्न
: गुरूजी, आप
पाकिस्तान जा
रहें हैं| वहां
बहुत हिंसा है
|आपको पाकिस्तान के
भविष्य के बारे
में क्या लगता
है?
श्री
श्री रविशंकर : मेरे आने
की खबर वहां
फैल गयी है| इतने
दिनों के बाद, उन्होंने
एक ऐसे आतंकवादी
संगठन पर रोक
लगाई है, जो
बहुत से शिया
मुस्लिमों को
मारने के लिए
ज़िम्मेदार है| आज
पाकिस्तान भी
आतंकवाद का भुक्तभोगी
है|
मैं
वहां परसों जा
रहा हूँ, तीन
दिन की यात्रा
के लिए| वहां
भी बहुत से
भक्त हैं और
उन सबने मुझे
इतने प्यार से
बुलाया है |जब
मैं वहां २००४
में गया था
,तब उन्होंने कहा
था, कि ‘गुरूजी ,हमने
आपके लिए पाँच
साल इंतज़ार किया, अब
हमें और पाँच
साल इंतज़ार मत कराईयेगा|’ लेकिन
अब मैं वहां
सात साल बाद
फिर से जा
रहा हूँ| हमें
वहां पाकिस्तान में
एक ‘शांति
केन्द्र’ स्थापित
करना है|
यहाँ
के युवाओं को
आमंत्रण देना हैं
,कि वे आगे
आयें और योग
और ध्यान सीखें, और
लोगों को भी
सिखाएं| आप में से
कितने लोग शिक्षक
बनना चाहते हैं? हम
आप सबके लिए
यहाँ एक ‘टीचर ट्रेनिंग
कोर्स’ की
योजना बनाते हैं|
आज
दुनिया भर में
भारत के ‘ध्यान शिक्षकों’ की ज़रूरत
है| पाकिस्तान में, आर्ट
ऑफ लिविंग के
सेवा कार्यक्रमों से
हम करीब १
लाख लोगों तक
पहुंचे हैं |जब
सिंध में बाढ़
आयी थी, तब भी
आर्ट ऑफ लिविंग
के कार्यकर्ताओं ने
वहां ‘आघात-राहत
कैंप’ लगाया
था और वहां
काफी काम हुआ
था |मैं कहता हूँ
कि जितना पैसा
भारत और पाकिस्तान
आज अपनी सुरक्षा
पर कर रही
हैं; अगर उसमें
से केवल एक
प्रतिशत भी वे
दोनों देशों के
बीच ‘शांतिपूर्ण
समाधान’ में
लगाते हैं, और
अगर दोनों देशों
का आम आदमी
परस्पर अच्छे सम्बन्ध
बनाता है ,तब
आतंकवादी ताकतों को
उभरने का कोई
भी मौका नहीं
मिलेगा|
जब
हमें किसी अच्छे
वकील या डॉक्टर
की ज़रूरत होती
है, तब हम
यह नहीं पूछते
कि वे कौन
सी जाति या
धर्म के हैं| लेकिन
जब बात राजनीति
की होती है, तब
हम जात-पात
में फँस जाते
हैं |हमें इस
समीकरण को बदलना
है |अगर भारत
को आगे बढ़ना
है, अगर प्रत्येक
व्यक्ति को आर्थिक
और वित्तीय न्याय
मिलना है, तब
हमें इस संकुचित
विचारधारा से
बाहर आना पड़ेगा|
प्रश्न
: गुरूजी, आप इतनी
अधिक यात्रा करते
हैं, आप हवाई
जहाज व गाड़ियां
बदलते हैं, आपको
ढंग से खाने
और सोने का
समय भी नहीं
मिलता |आप यह
सब कैसे कर
पाते हैं?
श्री
श्री रविशंकर
: जब कुछ
करने की इच्छा
हो, तब शक्ति
अपने आप ही
आ जाती है| जब
आपके घर में
कोई उत्सव या
कोई त्यौहार होता
है, तब आप
खाने के बारे
में नहीं सोचते| आप
उसमें ही व्यस्त
हो जाते हैं| इसी
तरह मेरे लिए
हर दिन ही
उत्सव है|
प्रश्न
: गुरूजी, यू.पी.
में आज एक
युवा मुख्यमंत्री बनने
जा रहें हैं|
उन्होंने दावा किया
है कि वे
एकतंत्रिय सत्ता
को खत्म कर
देंगे| जो पैसे
और बाहुबल के
दम पर जिंदा
है| क्या आपको
लगता है कि
एक युवा इस
देश में परिवर्तन
ला सकता है?
श्री
श्री रविशंकर
: बिल्कुल! युवाओं को
ऐसा परिवर्तन चाहिये| मैं
अखिलेश जी को
मुबारकबाद देता
हूँ, कि वे
यू.पी. को इतनी
ऊँचाईयों पर लाये
|और उन्हें अपना
आदर्श मानकर दूसरे
राज्यों के युवाओं
को भी आगे
बढ़ना चाहिये| युवाओं
को ही मंत्रालय
का हिस्सा बनाएँ| यह
बहुत ही अच्छी
खबर है|
एकतंत्रिय
सत्ता जो पैसे
और बाहुबल का
इस्तेमाल करती है, उसको
खत्म कर देना
चाहिये| और मैं
तो कहता हूँ, कि
अपने साथ आध्यात्मिकता
को भी लेकर
चलें, क्योंकि यह
सिर्फ आध्यात्मिकता ही
है जो एकतन्त्रिकता
को हटा सकती
है| एकतन्त्रिकता के
खिलाफ़ बहुत सख्त
कानून होने चाहिये|
प्रश्न
: गुरूजी, आप
हर देश, हर धर्म
और हर तरह
के लोगों से
अपनापन महसूस करते
हैं| यह आपकी
महानता है| मगर
क्या रहस्य है, कि
वे भी आपसे
अपनापन महसूस करते
हैं?
श्री
श्री रविशंकर : जो हमारे
अंदर है, वह
बाहर भी प्रतीत
होता है| यह
संसार एक आईने
की तरह है
|अगर हम अंदर
बुरा महसूस करते
हैं, तो हमें
बाहर भी सब
कुछ बुरा ही
नज़र आएगा| अगर हम
अंदर से खुश
हैं, अपने अंदर
अच्छा महसूस करते
हैं, तब जो
भी कोई अन्य
हमारे संपर्क में
आता है, वे अगर
बुरे भी हों, तो
अच्छे बनने लगते
हैं|
प्रश्न
: गुरूजी कुछ ‘रैपिड फायर’ प्रश्न हैं!
श्री
श्री रविशंकर : हाँ!
आप? मैं
आपका हूँ|
मैं? आप
मेरे हैं|
जीवन
?बहुमूल्य है|
बंधन? जिससे
आपको बाहर आना
है|
अन्धविश्वास? जब
तक आप उनमें
विश्वास करते हैं, वे
अन्धविश्वास नहीं
लगते|
खेल? जीवन
एक खेल है|
माया? सम्मानपूर्ण|
आनंद? स्वभाव|
शादी? आपकी
मर्ज़ी|
गरिमा
?लक्ष्य|
संतुष्टि? मंज़िल|
कृपा? धन|
शक्ति? आत्म-श्रम|
सत्संग
?एक माध्यम|
राजनीति? जो
एक आम आदमी
की भलाई का
सम्मान करे|
आध्यात्मिकता? जीवन
का अंग|
यौवन
?खुद में हमेशा
बना कर रखें|
आशीर्वाद? बहुतायत
में है|
भक्त? हर
जगह मौजूद हैं|
किसी
सज्जन ने एक
बार कहा था, ‘ऐसी
जगह जहाँ खाने
को रोटी और
पीने को पानी
नहीं है, वहां
भी आपको भक्त
मिल सकता है|’ अच्छा
है| अगर भक्त
हर जगह हों, तो
वे संसार में
सुगंध फैलाते हैं|
प्रश्न
: गुरूजी, हमें
पता चला है
कि आज आप
एक जेल में
भी गए थे| क्या
यह आपका कोई
कर्म था, कि
आपको जेल जाना
पड़ा?
श्री
श्री रविशंकर
: हाँ !सिर्फ आज
ही नहीं, बल्कि मैं
तो वहां बहुत
बार जा चुका
हूँ| भगवान कृष्ण
का जन्म स्थान
भी तो जेल
ही था| हँसते हुए)
वे जेल में
पैदा हुए थे)
यहाँ उदयपुर की
जेल में हज़ारों
लोगों ने आर्ट
ऑफ लिविंग का
पार्ट १ कोर्स
किया है, और
मौन के कोर्स
भी किये हैं| वे
सालों से साधना
कर रहे हैं, इसलिए
मैं आज उन्हें
मिलने गया था| वे
बहुत खुश थे,
और उनकी खुशी
देख कर मैं
भी बहुत खुश
हुआ| और उनमें
से दो लोग
जेल से बाहर
आकर आर्ट ऑफ
लिविंग के टीचर
भी बन गए
हैं|
प्रश्न
: गुरूजी, अगर आपकी
कृपा से मेरा
हर काम हो
रहा है, तो
मैं आत्म-श्रम
क्यों करूँ?
श्री
श्री रविशंकर
: तो फिर
आप सेवा के
काम में लग
जाईये| ‘सुख में
सेवा, दुःख में
त्याग’; यह जीवन
का सिद्धांत होना
चाहिये |जब
आप खुश हों, तब
सेवा करिये, और
जब आप दुखी
हों, परेशान हों, तब
समर्पण करिये| अगर
आप दुःख को
भी नहीं त्याग
सकते, तो आप
सुख को कैसे
त्याग पायेंगे?
सुख
वह है, जिसे आप
छोड़ नहीं पाते| तो
जब आप खुश
हैं, सेवा करिये, और
जब आप दुखी
हैं ,तो त्याग
करिये|
प्रश्न
: गुरूजी, आपमें ऐसी
क्या बात है
कि बस आपकी
फोटो देखने से, और
आपका नाम लेने
से ,और आपके
आने की खबर
सुनकर ही सब
काम अपने आप
हो जाता है| मैं
इस तरह का
प्रभाव डालने के
लिए क्या करूँ?
श्री
श्री रविशंकर
: ये तो मैं
भी नहीं जानता
|मैं तो एक
साधारण सा बालक
हूँ जो बड़ा
नहीं होना चाहता| आपके
अंदर भी एक
बालक है| उस
बालक को जगाईए
और अपने अंदर
बैठ गयी वृद्धता
से छुटकारा पाईये|
प्रश्न
: गुरूजी, आजकल के
बच्चे केवल कंप्यूटर
के सामने बैठना
चाहते हैं, या
टीवी देखना चाहते
हैं, या पार्टियों
में जाना चाहते
हैं| हम और
कहाँ उनकी ऊर्जा
को केंद्रित कर
सकते हैं?
श्री
श्री रविशंकर
: अगर वे
ये सब काम
करते हैं, तो
कोई बात नहीं कोई
दिक्कत नहीं है, मगर
उन्हें सामजिक कार्य
में भी लगना
चाहिए| युवाओं को
चाहिये कि वे
इस देश के
लोगों में जागरूकता
फैलाने में भाग
लें| युवाओं को
जागना चाहिये और
आगे आना चाहिये, उन्हें
राजनीति का हिस्सा
बनना चाहिये|
बहुत
से लोग तो
जाकर वोट तक
नहीं करते हैं
क्योंकि उन्हें लगता
है कि सारी
राजनैतिक पार्टियां एक
सी है और हर
जगह भ्रष्टाचार है| वे
आराम से बेपरवाह
होकर बैठ जाते
हैं |ऐसा मत
करिये!
इस
समाज में अच्छे
लोग ज्यादा हैं, मगर
वे चुपचाप बैठे
हुए हैं| आज समाज
में गिरावट बुरे
लोगों के कारण नहीं
आयी है, बल्कि इसलिए
आयी है कि
अच्छे लोग चुप
बैठे हुए हैं
|ऐसे लोगों को
प्रेरित और उत्साहित
करने के लिए
,युवाओं को आगे
आना चाहिये| तब आप
देखेंगे कि हमारा
देश कितनी जल्दी
समृद्ध होता है|
जब
हमारे देश में
आध्यात्मिकता अपनी
ऊँचाई पर थी तब
हम बहुत समृद्ध
थे |किसी भी
तरह की कोई
कमी नहीं थी
|दुनिया की एक
तिहाई जी.डी.पी.
भारत से आती
थी| अब अगर
आप देखें तो हम
हर तरह के
नुकसान झेल रहें
हैं, और इसीलिये
मैं चाहता हूँ
कि युवा जागें और
आगे आयें| आगे आईये
और अज्ञानता और
अन्धविश्वास को
उखाड़ फेंकिये| आज
भी कई जगह
कई मंदिरों में
पशु-बलि दी
जाती है| इसे
रोकना चाहिये| जाति
के नाम पर
होने वाले भेदभाव
को रोकना चाहिये| हमारे
बहुत से संत
महात्मा नीची जाति
में ही हुए
थे|
‘पाद-पूजा’ हमारे देश
की संस्कृति रही
है| पैरों को
कभी भी नीचा
या क्षुद्र नहीं
माना गया है| यहाँ
भारत में हम
‘पाद-पूजा’ करते हैं
बल्कि सिर की
पूजा नहीं होती
है, पैरों को
ज्यादा महत्त्व दिया
जाता है|
विदेशों
में, ‘माय
फुट’ कहना
एक गाली माना
जाता है| लेकिन
भारत में, पैरों
को पवित्र माना
जाता है और
सिर से ज्यादा
महत्व दिया जाता
है| तो अगर
‘शुद्र’ की पैरों
से तुलना की
जाती है, तो
इसका यह अर्थ
नहीं है, कि
वे नीचे हैं बल्कि
यह है, कि वे
सम्मानजनक हैं| हर
एक जाति और
संप्रदाय को एक
भाव से देखना
चाहिये और प्रत्येक
को अपनी कर्तव्य पूरे
करने चाहिये|
प्रश्न
: त्रेता युग में
भगवान राम रावण
के विरुद्ध थे| द्वापर
युग में भगवान
कृष्ण कौरवों के
विरुद्ध थे |इस
कलयुग में आप
किसके विरूद्ध युद्ध
कर रहें हैं?
श्री
श्री रविशंकर
: मेरा युद्ध
है अज्ञानता ,अन्याय, अभाव
और अपवित्रता के
विरुद्ध है|
मैंने
सुना है, कि
कुछ लोग कहते
हैं, कि सतयुग
में आत्मा बहुत पवित्र
होती थी और
धीरे धीरे वह
कम पवित्र होती
गयी और कलयुग में
अपवित्र हो गयी| यह
बिल्कुल ही बेतुकी
बात है| ऐसा
बिल्कुल भी नहीं
है| सतयुग में
भी राक्षस थे जैसे
हिरण्यकश्यप और
हिरण्याक्ष| जब भी
कोई भगवान का
नाम लेता था
या पूजा करता
था, तो वे
उसमे विघ्न डालने
आ जाते थे|
फिर चार बार
अवतारों को आना
पड़ा, पृथ्वी को
उनसे बचाने के
लिए| हर युग
में, आत्मा समय
से परे है, और
हमेशा पवित्र है
|ऐसा सोचना गलत
है कि आत्मा
अपवित्र हो गयी
है |कलयुग भी
अच्छा है |समय
को दोष मत
दीजिए |आपने यह
कहावत सुनी होगी, ‘कलयुग
केवल नाम आधारा’ सिर्फ भगवान
का नाम भजने
से कलयुग में
भी भगवान प्राप्त
हो सकते हैं| तो
ऐसा मत कहिये, कि
सतयुग कलयुग से
बेहतर था|
समय
चाहे जैसा भी
हो, साधक अपनी
साधना करते रहें
हैं और उन्होंने
परम लक्ष्य को
प्राप्त भी किया
है |तो आप
भी चाहें तो
आज भी वैसी
ही परिपूर्णता प्राप्त
कर सकते हैं|
प्रश्न : इस आकर्षण से भरी दुनिया में अपनी परंपरा और रीति-रिवाजों को कैसे बनाये रखें?
श्री
श्री रविशंकर : हम यह सोचते हैं कि आध्यात्मिकता लोगों
को निरुत्साही ,सुस्त और उबाऊ बनाती है। नहीं| आध्यात्मिकता
एक आनंद से भरपूर जीवन जीने का ज़रिया है। एक जीवन जो शान्ति, आनंद
और आत्मसंतुष्टी से परिपूर्ण हो। ऐसा अनुभव ही ध्यान है। जब एक बार आपको ध्यान की अनुभूति होती है तो बाकी सब
फीका लगने लगता है। जब आप एक बार अपनी अंतरात्मा से वह संपर्क बना लेते हैं तो
बाहर का सब रुखा और निरुत्तेजक लगने लगता है।
प्रश्न : गुरुजी भगवान चाहता है कि मैं एक अच्छा इन्सान बनूँ। आप भी यही चाहते
हैं ,मेरे माता पिता भी यही
चाहते हैं। तो कृपा करके यह बतायें कि भगवान ने बुराईयां बनायीं हीं क्यों?
श्री
श्री रविशंकर : किसने
कहा कि आप बुरे हैं? मैने कभी यह नहीं कहा कि आप को अच्छा ‘बनना’ चाहिये। आप पहले से ही अच्छे हैं। बस जाग जाईये और देखिये कि आप ये जो छोटी छोटी आदतों को पकड़ कर बैठे हैं, आपमें
उनको छोड़ने की
क्षमता है। ठीक है? बस
उनको छोड़ दीजिए|
प्रश्नः गुरुजी आध्यात्मिक शिक्षकों और भक्तों के बढ़ने के बावजूद अपराध और भ्रष्टाचार क्यों बढ़ रहा है?
श्री
श्री रविशंकर : देखिये, आध्यात्मिक शिक्षक अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण नही हैं। मैं आपको एक सवाल पूछता हूँ। दस साल पहले भारत में इतने
अस्पताल नहीं थे जितने आज हैं। अस्पतालों की संख्या बढ़ी है तो क्या अस्पताल लोगों की बीमारियों के लिये जिम्मेदार हैं?
अस्पताल
और बीमारियाँ दोनों इस दशक में बढ़ें हैं। क्या आप अस्पतालों को बढ़ती बीमारियों का कारण मानेंगे? नहीं|
अस्पताल
होने के बावज़ूद बीमारियाँ बढ़ रही हैं। उसी तरह अगर संतों के बावज़ूद अपराध बढ़ रहें हैं तो जरा सोचिये कि भारत या दुनिया की स्थिति आध्यात्म के बिना क्या होती। मेरे कहने का भाव
आप समझ रहे हैं; है ना?
हर
एक गांव मे संतों की जरुरत है। पुरोहित की जरुरत है| एक
इन्सान जो लोगों का उत्थान करे और उनको एक सूत्र में बांधे। जो सबकी भलाई के लिये
चिंताशील हो और जब भी टकराव हो तो वह वहाँ के लोगों को समझाने के लिये, स्थिति मे
शांति लाने के लिये मौजूद हो। एक इन्सान जो कमियों को दूर कर सकता हो, ऐसे इन्सान की जरुरत है।
भारत
मे सात लाख गांव हैं। अगर हर गांव में ऐसे दो लोग हों, जो
लोगों की भलाई के लिये काम करते हैं, योग
और ध्यान सिखा सकते हैं, तो
हमारा देश बहुत परिणत हो जायेगा। हमें चौदह लाख सेवाभावी योग और ध्यान सिखाने वाले शिक्षकों की जरुरत है। तो आप
भी उनमें से
एक शिक्षक बनें। आप खुद भी योग सीखें और दुसरों को भी सिखायें ताकि और लोग भी अपने जीवन मे शांति पायें।
प्रश्न
: गुरुजी ग्रह और काल का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
श्री श्री रविशंकर : जो भी प्रभाव पड़ता हो, आप उसे ‘ॐ
नमः शिवाय’ के
जाप से हटा सकते हैं और भक्ति और ध्यान से भी उनका प्रभाव कम होता है। बाकी किसी चीज की जरुरत नही है।
इस संसार में हर चीज का दूसरी चीज पर प्रभाव है। ऐसा कहते हैं कि दक्षिण अमेरिका मे जब एक तितली अपने पंख फड़फड़ाती है तो उसका प्रभाव चीन के बादलों पर पड़ता है। यह वैज्ञानिक कहते हैं। तो यह मुमकिन है कि चंद्रमा, सूर्य
और बाकी ग्रहों का हमारे जीवन पर कुछ प्रभाव हो। लेकिन वह इतनी मात्रा मे नहीं हो सकता कि आप भ्रम मे पड़ जाएँ और परेशान हो जाएँ। बहुत बार हम ज्योतिषियों की बातों
मे आकर बहुत सारे काम करते हैं और इच्छानुसार परिणाम न आने पर मायूस होते हैं।
हमे यह सब करने की जरुरत नही है। प्रत्येक के जीवन मे अच्छा और बुरा समय आता
है। वह शरीर, मन
और बुद्धि को कुछ हद तक प्रभावित भी करता है।
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन चंद्रमा शरीर और मन पर अवश्य प्रभाव डालता है। प्राणायाम, योग और ध्यान इसका समाधान हैं।
प्रश्न : गुरुजी, राजस्थान
की धरती मे वीरता और मूल्यों को उँचा दर्जा दिया जाता रहा है। लेकिन आज के युवक ये
भूल कर पश्चिमी विचारों से प्रभवित हो रहे हैं। हम उनमें भारतीय मूल्यों को कैसे जीवित रखें?
श्री श्री रविशंकर : निश्चित
रूप से इन मुल्यों को जीवित रखना चाहिये!
अगर आप किसी भी पश्चिमी वस्तु के लिए जाते हैं
तो आपको अंत में वापस भारतीय मूल्यों पर आना पड़ेगा। आजकल तो विदेशी भी भारत की तरफ मुड़ रहे
हैं। वे भारत की संस्कृति के बारे मे जानना चाहते हैं, वे भारतीय पद्धति के द्वारा विवाह करना चाहते हैं। दुनिया गोल है, अगर
आप पश्चिम की तरफ जाते भी हैं, तो
भी अंततः वापस यहीं आना है।
जल्दी आने में ही होशियारी है।
प्रश्न : गुरुजी, बहुत
लोगों ने अपनी समस्याएं और चिंताएं यहाँ स्टेज पर लिख कर भेजी हैं|
श्री श्री रविशंकर : हाँ, आप अपनी सारी समस्याएं और चिंताएं यहाँ छोड़ दें|
मैने सुना है कि आजकल आत्महत्या का दर बढ़ गया है, वह
भी सुशिक्षित और समृद्ध परिवारों से। मैं यह कहूँगा कि यदि आपके मन में ऐसी कोई समस्या या दुखः है तो सिर्फ इतना जान लें, कि
आप अकेले नही हैं। मै आपके साथ हूँ। आप अपनी सारी मुश्किलें मुझे दे दें। मै आपके साथ हूँ।
साधना, सेवा और ध्यान करें। आगे आकर इस देश के लिये
कुछ करें।
इसलिए, मुस्कुराते हुए वापस जायें और सोने से पहले दस मिनट ध्यान करें, और आपके मन में जो भी इच्छाएं हैं, उन्हें समर्पित करके आनंद से सो जायें। यह
संकल्प लेना का तरीका है| संकल्प लें और उसे छोड़ दें।
प्रश्न : गुरुजी
आपने कहा है कि योग में सफलता पाने के लिए वैराग्य और अभ्यास की ज़रूरत है। मैं अपनी साधना तो कर रहा हूँ, लेकिन मैं शादीशुदा हूँ और मेरे अंदर वैराग्य नहीं है। मैं योग में कैसे
प्रगति कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर: नहीं! अपनी जिम्मेदारियां निभाना भी वैराग्य है। अपनी जिम्मेदारियां निभायें। आपको
जो भी करना चाहिये, वह करें और विश्राम करें। जो आपको छोड़ना चाहिये, वह छोड़ दें और विश्राम करें; यही
वैराग्य है। आपको
अपना घर छोड़ कर कहीं भी भागने की जरुरत नहीं है। आप योग के पथ पर अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुऐ चल सकते हैं। घर में रहते हुए भी आप परम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है।
प्रश्न : गुरुजी, कृपया उदयपुर के लोगों के लिये तीन संदेश दीजिये।
श्री श्री रविशंकर : आप
हजारों की संख्या में आज यहाँ आये हैं। आप सबको स्वयंसेवक बनना चाहिये और कुछ सेवा का काम करना चाहिये| कम से कम, हफ्ते
मे दो घंटे समाज सेवा के लिये दें।
हर रविवार सुबह ९ से ११ बजे आप सब एकत्रित होकर शहर की सफाई करें, व्रुक्षारोपण
करें, नशाबंदी और कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के लिये लोगों में जागरूकता लायें।
पन्द्रह-बीस लोगों के समूह बना कर
नजदीकी गांव मे सत्संग करें। उनको कुछ अच्छी बातें बतायें और उनको यह एहसास
दिलायें कि हम एक परिवार की तरह हैं। अगर हम सब इस तरह एकत्रित होकर, समाज के लिये कार्य करते हैं, तो
हम एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। तब इस देश मे भक्ति, ज्ञान और अध्यात्म की एक लहर उठेगी।
प्रश्न : गुरुजी आप राजनीति में कब आ रहे हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं
राजनीति में आकर सारे अच्छे लोगों को किनारे नहीं करना चाहता।
अच्छे लोगों की जरुरत सत्ता और विपक्ष दोनों में हैं।
एक पत्रकार, संत
और समाज-सुधारक
के लिये निष्पक्ष रहना ही अच्छा है, और अच्छे व ईमानदार लोगों का चयन करके चुनाव के समय उन्हें आगे भेजना चाहिये। जाति, पैसा या गुंडागर्दी के बल पर नहीं। इसलिए, मैं तो एक सुधारक और मार्गदर्शक की भूमिका ही लेता हूँ| और अगर युवा राजनीति में आना चाहते हैं, तो
मैं उनका पूरी तरह समर्थन करुंगा और उन्हें आध्यत्मिक तथा सेवाभाव की वृत्ति से
काम करने के लिये प्रोत्साहित करुंगा और नाकि राजनीति को व्यवसाय
बनाने के लिये।
देश सबसे पहले है, उसके बाद राजनैतिक पार्टी और अंत में ‘मैं’। यह मानसिकता होनी चाहिये।© The Art of Living Foundation