अपनी सीमाओं को जानें!!!

परम् पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा
जब कभी भी सीमायें टूटती हैं, वे भय उत्पन्न करती हैं। भय, अप्रसन्नता उत्पन्न करता है। यह अप्रसन्नता हमें फिर से सीमा में बांध देता है। और अपने आप को सीमा में रखने के लिए आप बचाव करते हैं। जब आप अपनी स्थिति का बचाव करते हैं तो तनाव उत्पन्न होता है। जब कभी भी आप अपनी स्थिति का बचाव करते हैं, वह आपको कमजोर बना देता है। सारे बचाव को छोड़ दें। जब आप सारे बचाव से मुक्त होते हैं तो फिर आप मजबूत बन जाते हैं।
हर समय जब आप दुखी या अप्रसन्न होते हैं तो आप स्वयं की सीमाओं के करीब आ जाते हैं और फिर आप क्या कर सकते हैं? आप सिर्फ कृतज्ञपूर्ण महसूस करें, ओह मैं स्वयं की सीमाओं और हद के समपर्क में हूँ। आप उस स्थिति को प्रार्थना में परिवर्तित कर दें। प्रार्थना वह क्षण होता है जब आप अपनी सीमाओं और हद के सम्पर्क में आते हैं।
गलतियों का ज्ञान आपको तब मिलता है जब आप मासूम होते हैं। जो भी गलती हो जाये उसके लिए आप अपने आप को पापी न समझें क्योंकि उस वर्तमान क्षण में आप फिर से नवीन, शुद्ध और निर्मल हो जाते हैं। अतीत की गलतियाँ भूतकाल है। जब यह ज्ञान मिल जाता है तो आप फिर से परिपूर्ण हो जाते हैं। कई बार माँ अपने बच्चों पर नाराज होती है और उसके उपरांत अपने आप को दोषी समझती है।
क्रोध सजगता की कमी के कारण आता है। स्वयं, सत्य और कौशल का ज्ञान आप में उत्तमता को उभार देता है। इसलिए गलती करने से न डरें परन्तु वही गलती दोबारा न करें। आपको अपनी गलतियों में नवीनता रखनी चाहिए।
कई बार आप अपनी गलतियों को सुधारना चाहते हैं। आप उसे कितना सुधार पाते हैं? जब आप दूसरों की गलतियाँ सुधारते हैं तो दो स्थितियाँ होती हैं। पहली जब आप किसी की गलती सुधारते हैं क्योंकि वह आपकी परेशानी का कारण होती है। दूसरी जब आप किसी की गलती को सुधारते हैं तो वह इसलिए नहीं होता कि वह आपको परेशान करती है परन्तु वह सिर्फ उनके लिए होता है जिससे उनका विकास हो सके।
गलतियों को सुधारने के लिए आपको अधिकार और प्रेम की आवश्यकता होती है। अधिकार और प्रेम एक दूसरे के विरोधाभास होते है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। अधिकार के बिना प्रेम दम घुटने जैसा है। प्रेम के बिना अधिकार उथले के जैसा है। एक मित्र के पास अधिकार और प्रेम दोनों होना चाहिए परन्तु वह सही मेल में होना चाहिए। यह सिर्फ तब हो सकता है जब आप पूर्णतः आवेगहीन और केन्द्रित होंगे।
जब आप गलतियों के लिए जगह देंगे तो आप दोनों अधिकारपूर्ण और प्यारे हो जायेंगे। दैव इसी तरह के होते हैं। दोनों का सही संतुलन। कृष्ण और ईसा मसीह में यह दोनों था। दूसरों की तरफ उंगली उठाकर गलतियाँ न करे। किसी व्यक्ति को इस गलती के बारे में मत बताओ जो उसे पता है, उसने करी है। ऐसा कर के आप उसे और अधिक अपराधी बना देंगे। एक महान व्यक्ति दूसरों की गलतियों को नहीं पकड़ेगा और उन्हें अपराधी महसूस होने नहीं देगा, वह उन्हें आवेग और देखरेख के साथ ठीक कर देगा।
जब आप दया दिखाते हैं तो आपका सही स्वभाव सामने आता है। क्या आपने दया के कुछ कृत्य किये हैं उससे बिना कुछ अपेक्षा किये हुए? हमारी सेवा बुद्धिहीन नहीं होना चाहिए। आपको दया के कृत्य करने के लिए योजना नहीं बनानी चाहिए। अनायास में कुछ करे। जब आप यादृच्छिक दया के कृत्य करते हैं तो आप अपने सही स्वभाव में आ जाते हैं और सारी सीमायें टूट जाती हैं।



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