२१ फरवरी २०१२, जयपुर, राजस्थान
माननीय
प्रमुख सलाहकार, उपकुलपति, एवं समस्त शिक्षक गण,मैं अत्यंत विनम्रता से आपके द्वारा दी गयी यह डिग्री स्वीकार करता हूँ|
देखिये आज मुझे यह दी गयी है लेकिन अक्सर मैं देता हूँ| शिक्षा को यही करना चाहिए, जो भी हमें समाज से मिलता है वो हमें उसको वापस करना चाहिए| विद्यार्थी के रूप में आपने यहाँ बहुत सी शिक्षा ग्रहण की है, अब देखिये, सोचिये कि कैसे उसे जीवन में लाभदायक बना सकते हैं| आज विश्व में समस्या शिक्षा के अभाव की नहीं है बल्कि इस बात की है कि शिक्षा को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है, और गलत रूप में समझा जा रहा है| ये तीन बातो को हमें ठीक करना होगा| शिक्षा के मायने हमें जानकारी का पुतला मात्र बनाना नहीं है बल्कि हमें सदाचार के जीते जागते उदहारण बनाना है| इसका उद्देश्य हमें ऐसे मज़बूत व्यक्तित्व का स्वामी बनाना है जो आपसी भाईचारा फैला सकें जिससे समाज की तरक्की हो और वहां प्यार और संवेदनशीलता पैदा हो सके| इसलिए हमें स्वयं को और अपने आस पास के लोगो को शिक्षित करना है| शिक्षा ऐसी हो जो किसी भी व्यक्ति को एक ऐसा इंसान बना सके जो बातो और घटनाओ की विवेचना कर सके और एक रचनात्मक समीक्षा सामने रख सके| एक ऐसा इंसान जो सब जगह सौहार्द फैलाये, सरस हो, और अपनत्व का भाव रखता हो और ये ही है जिसका आज समूचे विश्व को इंतज़ार है|
कोई भी व्यक्ति रचनात्मक तब होता है जब उसे आज़ाद रूप से सोचने का मौका मिलता है और ये धरती पर हर एक के पास इस खुली आज़ाद सोच की पूँजी है, लेकिन बदकिस्मती से हम उसका इस्तेमाल नहीं करते| हम एक ढर्रे पर ही सोचते हैं, वही गिने चुने रास्ते| हम सब को आजादी से, स्वतंत्र भाव से सोचना चाहिए और ये संकीर्ण मानसिकता से मुक्त होना चाहिए| मुझे ख़ुशी है कि ज्ञान विहार विश्वविद्यालय ने जयपुर में ये प्रतिभा को उबारने का अवसर प्रदान किया है, और मुझे पूरी उम्मीद है कि आप लोग अपने देश और इस विश्वविद्यालय का नाम ज़रूर रोशन करेंगे|
मैं एक बार फिर से प्रबंधन समिती , उपकुलपति जी, माननीय अध्यक्ष महोदय एवं आप सभी गण्य मान्य व्यक्तियों का धन्यवाद प्रदान करता हूँ और आपको अपनी शुभकामनाएं देता हूँ| मैं आप सब का ही एक हिस्सा हूँ और अब मैं इस विश्वविद्यालय का एक भूतपूर्व छात्र भी हूँ|
मैं चाहता हूँ कि आप लोग विज्ञान एवं अन्य ललित कलाओं का अध्यन करें, उन में भी पारंगत हों| विज्ञान दिमाग का विषय है और कला दिल का, हमें दोनों ही चाहिए| भगवान् कृष्ण ने कहा है कि बुद्धि और भाव दोनों ही ज़रूरी हैं| ये भगवत गीता का सार है, दिल और दिमाग दोनों का विकास ज़रूरी है, तभी आप संपूर्ण रूप में मनुष्य बनते हैं|
मैं आप सब को जीवन में सब सफलता की शुभकामनाएं देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपका जीवन सभी खुशियों से भरपूर हो और वो समाज सेवा के कार्य में लगे|
प्रश्न : गुरूजी, आप कहते हैं कि आत्म ज्ञान सर्वोच्च ज्ञान है फिर इसे इतना छुपा कर क्यों रखा गया है और इसको पाना इतना कठिन क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : वास्तव में अब ये एक गुप्त नहीं रहा| दुर्भाग्य से पहले समय में लोगो ने अपने स्वार्थ कि वजह से हर मूल्यवान और उपयोगी बात को गोपनीय रखा लेकिन अब ये सब के लिए उपलब्ध है| प्राणायाम पहले सब को नहीं सिखाया जाता था केवल कुछ लोगो को ही सिखाया जाता था| वो हमारे देश की दुखद कथा थी लेकिन अब ऐसा नहीं है अब सब कुछ सबको उपलब्ध है|
प्रश्न : गुरूजी, असली शिक्षा तो जीवन के अनुभवों से होती है तब कॉलेज जाने की क्या आवश्यकता है ?
श्री श्री रविशंकर : कॉलेज का समय भी बहुत अच्छा होता है, आप वहां भी बहुत कुछ सीखते हो| ये मत सोचो कि कॉलेज में कोई मस्ती नहीं या जीवन नहीं| दरअसल कॉलेज का समय एक तरीके से असली ज़िन्दगी है क्योंकि आप वहां बहुत कुछ सीखते हो| कई बार आपको प्यार होता है, कई बार आपका दिल टूटता है, फिर जुड़ता है, वहां बहुत कुछ होता है|
प्रश्न : गुरूजी, आपकी सफलता का राज़ क्या है?
श्री श्री रविशंकर : जो कहते हो वो जियो और जो जीते हो वो कहो|
प्रश्न : गुरूजी, अगर सब कुछ पूर्व-निर्धारित है तो प्रार्थना की क्या शक्ति है?
श्री श्री रविशंकर : सब कुछ पूर्व-निर्धारित नहीं है| कुछ ऐसी चीज़ें है जो निश्चित हैं और कुछ निश्चित नहीं हैं, और प्रार्थना उनके बीच का पुल है जो अनिश्चितता से निश्चितता की ओर ले जाता है|
प्रश्न : गुरुदेव, अगर पैसा सब कुछ नहीं तो सभी सफल व्यक्ति अमीर क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर : अमीर व्यक्ति हमेशा खुश नहीं होता| मेरे
लिए सफलता का मतलब सिर्फ बैंक में ढेर सारे पैसे होना नहीं है, सफलता मनुष्य का आत्मबल और उसकी मुस्कराहट में है|
© The Art of Living Foundation