परम् पूज्य
श्री श्री रविशंकरजी के द्वारा
एक तीव्र
मन बिना किसी फैलाव के चिंता, क्रोध और निराशा देता है। केन्द्रित
मन और फैली हुई चेतना से पूर्णता आती है।
यह सही है
कि इस सूचना को समझना आसान है। परन्तु यदि समझ अधूरी है तो यह नहीं उम्मीद कर सकते
कि हम उस ज्ञान को अपने जीवन में सहजता से ग्रहण कर सकते हैं। एक तरीका यह है समझने
के लिए कि हमारी समझ पूर्ण है कि नहीं तो यह सोचें कि हमारी समझ किस प्रकार की है।
समझ तीन प्रकार
की होती है - बुद्धिजीवी समझ, अनुभवात्मक समझ, अस्तित्वपरक समझ।
बुद्धिजीवी
समझ कहती है हाँ। अनुभवात्मक समझ महसूस करती है - यह प्रत्यक्ष है। अस्तित्वपरक समझ
अखंडनीय है और वह आपका स्वभाव है।
यह आप ऊपर
दिये हुए अद्वैत सख्त, कठोर और सौम्य से समझ सकते हैं। यदि
आपकी सिर्फ बुद्धिजीवी समझ हैं तो आप सोचेंगे कि आप को सब मालूम है। धर्मशास्त्री इस
श्रेणी में आते हैं। आप बुद्धिजीवी स्तर पर यह समझ सकते है कि आप खोखले और खाली हैं, पर बैठ कर यह महसूस करना कि आप खोखले और खाली हैं बिलकुल अलग है। आप जो भी सुनेंगे
वह सिर्फ शब्दों का जाल होगा और यदि अनुभवात्मक समझ सही है, क्योंकि वह महसूस करने के स्तर पर अधिक हैं। यदि आपको कोई अनुभव है तो आप उसे और
समझना चाहेंगे और फिर आप जिज्ञासु बन जाते हैं। अस्तित्व परक अनुभूति में बुद्धिजीवी
समझ और अनुभवात्मक समझ सम्मिलित होने के बावजूद यह उन दोनों से परे है।
आप अस्तित्व
अनुभूति को कैसे प्राप्त करें - कोई आसान तरीका नहीं है। जब फल पक जाता है तो गिर जाता
है। फल अपने कर्म के अनुसार पकता है और हम उस प्रक्रिया को ध्यान के द्वारा बढ़ा सकते
हैं।
कुछ लोग अपने
विवेक मन से समाज से द्रोह करने के लिए भटक जाते हैं। वे सामाजिक कानून को अपने अहंकार
के लिए तोड़ना चाहते हैं। वे यह क्रोध, घृणा और द्रोह के कारण ध्यान
आकर्षित करने के लिये करते हैं।
ध्यान मन
को तीव्र और केन्द्रित करता है और विश्राम से मन को फैलाता है। एक फैला हुआ मन बिना
तीव्रता के सम्पूर्ण विकास नहीं ला सकता। उसी तरह एक तीव्र मन बिना फैलाव के चिंता, क्रोध और निराशा लाता है। केन्द्रित मन और फैली हुई चेतना का संतुलन पूर्णता लाती
है। सुदर्शन क्रिया और आर्ट आॅफ लिविंग एडवांस कोर्स की तकनीक का उद्देश्य एक तीव्र
और असीम चेतना का विकास करने का होता है। यह हमारे मन के दोनों पहलू का विकास करने
मे मदद करता है। सेवा और प्रतिबद्धता भी इसमें प्रमुख कार्य करते हैं, जैसे कि भोजन जो आप रोज करते हैं और रोजमर्रा जीवन में आपका रुख। फैली हुई चेतना, शांति और आनंद है। केन्द्रित चेतना प्रेम और सृजनात्मकता है। जब सब कुछ फैला हुआ
केन्द्रित हो जाता है तो वह देवत्व का जागना है।
मन की परक
समझ पूर्वाभास के साथ साथ खोज और नवीनतम ज्ञान से विवेकी मन से परे है और उसकी बुद्धिजीवी
समझ तत्व से परे चले जाते हैं जो विवेकी मन के भाग हैं क्योंकि सत्य विवेकी मन से परे
है। एक विवेकी मन उस रेल की पटरी के जैसा है जो खांचे में फंसा रहता है। इसके विपरीत
एक विमान की कोई पटरी नहीं होती और वह कहीं भी उड़ सकता है। एक गुब्बारा भी कहीं भी
उड़ सकता है। मन में कोई खांचा नहीं होता। कुछ लोग अपने विवेकी मन से समाज से द्रोह
करने के लिए भटक जाते हैं। वे समाज के कानून को अपने अहंकार के लिए तोड़ना चाहते हैं।
वे यह क्रोध, घृणा और द्रोह के कारण ध्यान आकर्षित करने के लिए करते
हैं। यह विवेकी मन से भटकना नहीं है हालांकि वे ऐसा सोच सकते हैं। हम अपने विवेकी मन
से भटक कर जब कुछ करते हैं जब उसका कोई उद्देश्य नहीं है। यह स्वीकार कर लेना कि घटना
एक खेल है तो जीवन और भी हलका हो जाता है। यदि आप सिर्फ विवेकी हरकतों में फंसे रहेंगे, जिंदगी बोझ बन जायेगी।
यदि आप कोई
खेल यह सोचकर खेले कि उसमें जीत और हार नहीं है, और आप अविवेकी रूप से बर्ताव
करें। किसी कार्य को बिना किसी उद्देश्य के करना स्वतंत्रता से जुड़ा है, जैसे विवेकी मन से बाहर निकलने पर अधिक स्वतंत्रता और अनंत गहराई ही मिलेगी। वास्तविकता
तर्क और विवेकी मन पर अतिक्रमण करती है। जब तक विवेकी मन को नही बढ़ायेंगे तब तक आप
असीमित और सृजनात्मकता को हासिल नहीं कर पायेंगे।© The Art of Living Foundation