१०.०३.२०१२, उदयपुर, राजस्थान
मनुष्य होने के नाते, हम सब की कुछ जिम्मेदारियां और कुछ जरूरतें हैं| अगर हम अपनी जिम्मेदारियों और जरूरतों की एक सूची बनाएँ, और अगर हमारी जरूरतें जिम्मेदारियों से अधिक हैं, तो जीवन में दुःख का आभास होगा| यदि जीवन में अधिक जिम्मेदारियां हों और कम जरूरतें,
तो
हमारा जीवन आनंदमय हो जायगा| यह एक रहस्य है, और यह आसान है| आज ही बैठिये, और अपनी सभी जिम्मेदारियों और जरूरतों की एक सूची बनाइये|
अब, भगवान ने हमें
बुद्धि दी है और हमे इस का उपयोग करने की आवश्यकता है| एक बुद्धिमान
व्यक्ति को यह ज्ञान होता है कि जब सब खुश होंगे तो वह भी खुश रहेगा| ‘जब मेरे परिवार
के सदस्य खुश रहेंगे, तो मैं भी खुश रहूँगा|’ तो हमे क्या
करने की आवश्यकता है? हमे
अपनी जिम्मेदारियों को समझने की जरूरत है| पहले अपने परिवार
के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने की जरूरत है, फिर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों
को समझने की जरूरत है, और फिर यह सोचना होगा कि हम पूरे देश के लिए क्या कर सकते
हैं|
हमे इन तीन स्तरों पर, यानी, समाज, परिवार और
राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के बारे में सोचने की जरूरत है| और जितनी अधिक
जिम्मेदारी हम लेंगे, हमारी क्षमताएं और शक्ति उतनी ही बढ़ जाएंगी|
अब, इच्छाएं होना बहुत स्वाभाविक है| लेकिन यदि हम इच्छाओं को पूर्ण करने में असमर्थ हैं या हमारे पास उन्हें पूरा करने के संसाधन नहीं है, तो हमे प्रार्थना करनी चाहिए! जीवन में प्रयास और प्रार्थना, दोनों आवश्यक हैं| कुछ लोग बस प्रार्थना करते हैं और कोई प्रयास नहीं करते, यह उचित नहीं है| और कुछ लोग प्रयास करके थक गए हैं किन्तु फिर भी वे प्रार्थना नहीं करते, वे भी सफलता हासिल करने में असमर्थ होते हैं|
यही
कारण
है
कि
हमारे शास्त्रों में कहा गया है, पुरुषार्थ (प्रयास) और समर्पण (आत्मसमर्पण), इन दोनों को एक साथ होना चाहिए| हमे अपनी क्षमता अनुसार,
पूरी लगन से काम करने के बाद भगवान को समर्पण कर देना चाहिए|
मेरे यहाँ आने का उद्देश्य आप को याद दिलाना है कि वहाँ, आप के अंदर, एक दिव्य शक्ति है, और आप को किसी भी तरह से उस दिव्य शक्ति से संपर्क स्थापित करना है| एक बार यह संपर्क स्थापित हो गया तो जीवन में कोई कमी नहीं होगी|
देखिये, एक धनी व्यक्ति पैसे दे सकता है, एक ज्ञानी व्यक्ति स्वाभाविक रूप से ज्ञान दे सकता है| परन्तु यदि किसी के पास ज्ञान नहीं है, वह ज्ञान कैसे दे सकते हैं? इसी तरह, जो मुक्त है, केवल वह ही दूसरों को मुक्त कर सकते हैं| यदि कोई स्वयं ही बंधन में उलझा हुआ हो जो वह किसी और को कैसे मुक्ति दे सकते हैं? यदि वह किसी को मुक्ति नहीं दे सकते तो प्यार, ध्यान, आनंद, उत्सव का प्रश्न ही नहीं उठता|
मेरे यहाँ आने का उद्देश्य आप को याद दिलाना है कि वहाँ, आप के अंदर, एक दिव्य शक्ति है, और आप को किसी भी तरह से उस दिव्य शक्ति से संपर्क स्थापित करना है| एक बार यह संपर्क स्थापित हो गया तो जीवन में कोई कमी नहीं होगी|
देखिये, एक धनी व्यक्ति पैसे दे सकता है, एक ज्ञानी व्यक्ति स्वाभाविक रूप से ज्ञान दे सकता है| परन्तु यदि किसी के पास ज्ञान नहीं है, वह ज्ञान कैसे दे सकते हैं? इसी तरह, जो मुक्त है, केवल वह ही दूसरों को मुक्त कर सकते हैं| यदि कोई स्वयं ही बंधन में उलझा हुआ हो जो वह किसी और को कैसे मुक्ति दे सकते हैं? यदि वह किसी को मुक्ति नहीं दे सकते तो प्यार, ध्यान, आनंद, उत्सव का प्रश्न ही नहीं उठता|
यदि आप एक बार वह आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त
कर लेते हो, आप इस तरह खिल जाते हो कि उसके बाद कोई भी आपकी मुस्कान आप से नही छीन सकता|
हर कोई इस तरह की मुस्कान और खुशी की तलाश में है जो कभी कम नहीं हो|
हमे इसे हासिल करने के लिए क्या करने की आवश्यकता है? हमे अपने भीतर विश्वास को जगाने की जरूरत है|
जब हम खुश है तो हम दूसरों को खुशी दे सकते हैं| जो लोग जीवन में तृप्त हैं होते हैं वह दूसरों के जीवन में भी संतोष ला सकते हैं|
हर कोई इस तरह की मुस्कान और खुशी की तलाश में है जो कभी कम नहीं हो|
हमे इसे हासिल करने के लिए क्या करने की आवश्यकता है? हमे अपने भीतर विश्वास को जगाने की जरूरत है|
जब हम खुश है तो हम दूसरों को खुशी दे सकते हैं| जो लोग जीवन में तृप्त हैं होते हैं वह दूसरों के जीवन में भी संतोष ला सकते हैं|
हमारे देश में रिवाज़ है कि हम जब भी कुछ अच्छा काम या एक नया कार्य शुरू करते हैं, हम बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं, आप जानते हो क्यों?
इस के पीछे एक बहुत ही वैज्ञानिक कारण है| यह कहा जाता है कि यदि एक बार कोई व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है, उसके मन में उठा कोई भी इरादा सम्पूर्ण हो जाता है, और इसलिए उस व्यक्ति का आशीर्वाद बहुत शक्तिशाली होता है| यदि कोई व्यक्ति अपने आप दुखी है तो उनके आशीर्वाद से कोई फल कैसे मिल सकता है? तो जब हम संतुष्ट हो जाते हैं, दूसरों को आशीर्वाद देने की क्षमता हमारे पास अपने आप आ जाती है| कम से कम कुछ समय के लिए संतुष्ट होना आवश्यक है| हम गुरुओं या संतों के पास क्यों जाते हैं? क्योंकि वे संतुष्ट हैं, और जब वे किसी चीज़ के लिए आशीर्वाद देते हैं तो काम हो जाता है|
क्या ऐसा होता है? आप में से कितने लोगों की इच्छा पूरी हो जाती है? देखो!
इस के पीछे एक बहुत ही वैज्ञानिक कारण है| यह कहा जाता है कि यदि एक बार कोई व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है, उसके मन में उठा कोई भी इरादा सम्पूर्ण हो जाता है, और इसलिए उस व्यक्ति का आशीर्वाद बहुत शक्तिशाली होता है| यदि कोई व्यक्ति अपने आप दुखी है तो उनके आशीर्वाद से कोई फल कैसे मिल सकता है? तो जब हम संतुष्ट हो जाते हैं, दूसरों को आशीर्वाद देने की क्षमता हमारे पास अपने आप आ जाती है| कम से कम कुछ समय के लिए संतुष्ट होना आवश्यक है| हम गुरुओं या संतों के पास क्यों जाते हैं? क्योंकि वे संतुष्ट हैं, और जब वे किसी चीज़ के लिए आशीर्वाद देते हैं तो काम हो जाता है|
क्या ऐसा होता है? आप में से कितने लोगों की इच्छा पूरी हो जाती है? देखो!
अब, कब और कैसे हम को संतोष हासिल होगा?
संतोष एक संतुष्ट व्यक्ति के साथ बैठ कर आ सकता है, या सत्संग के माध्यम से| यदि आप एक कुंठित व्यक्ति के साथ बैठते हैं, आप और अधिक निराश हो जाएँगे| एक बेचैन व्यक्ति बेचैनी फैलाता है| खुश और संतुष्ट, खुशी और संतोष फैलाता है|
तो इस का रहस्य सादगी और सहजता है| हमे साधारण और सहज होना चाहिए| अब तक, हम सब कुछ औपचारिकता से कर रहे हैं| लोग आए और हमने उनका स्वागत किया, बधाई दी और उन्हें माला पहनाई और सम्मान दिया| कोई संदेह नहीं हैं कि इन औपचारिकताओं की जीवन में जगह है| लेकिन, हमे इन औपचारिकताओं में अटकना नहीं चाहिए| उदाहरण के लिए, आप एक दुकान से माला खरीदते हैं और एक प्लास्टिक की थैली में दाल लेते हैं| अब, थैली मुख्य सामग्री नही है, लेकिन जो उस थैली के अंदर है, वह मुख्य है| हमे थैली के अंदर तक पहुँचने की जरूरत है| इसी प्रकार, जीवन में हम क्या करते हैं? हम प्लास्टिक की थैली को मुख्य सामग्री मान लेते हैं, ठीक उसी तरहं जैसे हम किसी भी अपनेपन के बिना औपचारिकताओं के साथ जीवन जीते हैं| जब यह अपनापन बढ़ जाता है, भ्रष्टाचार समाप्त हो जाता है, और हर कोई अपना लगता है| कोई भी अजनबी नही रहता| जहाँ अपनापन है, जीवन समृद्ध है| और जब प्रत्येक व्यक्ति समृद्ध है, समाज समृद्ध हो जाता है|
संतोष एक संतुष्ट व्यक्ति के साथ बैठ कर आ सकता है, या सत्संग के माध्यम से| यदि आप एक कुंठित व्यक्ति के साथ बैठते हैं, आप और अधिक निराश हो जाएँगे| एक बेचैन व्यक्ति बेचैनी फैलाता है| खुश और संतुष्ट, खुशी और संतोष फैलाता है|
तो इस का रहस्य सादगी और सहजता है| हमे साधारण और सहज होना चाहिए| अब तक, हम सब कुछ औपचारिकता से कर रहे हैं| लोग आए और हमने उनका स्वागत किया, बधाई दी और उन्हें माला पहनाई और सम्मान दिया| कोई संदेह नहीं हैं कि इन औपचारिकताओं की जीवन में जगह है| लेकिन, हमे इन औपचारिकताओं में अटकना नहीं चाहिए| उदाहरण के लिए, आप एक दुकान से माला खरीदते हैं और एक प्लास्टिक की थैली में दाल लेते हैं| अब, थैली मुख्य सामग्री नही है, लेकिन जो उस थैली के अंदर है, वह मुख्य है| हमे थैली के अंदर तक पहुँचने की जरूरत है| इसी प्रकार, जीवन में हम क्या करते हैं? हम प्लास्टिक की थैली को मुख्य सामग्री मान लेते हैं, ठीक उसी तरहं जैसे हम किसी भी अपनेपन के बिना औपचारिकताओं के साथ जीवन जीते हैं| जब यह अपनापन बढ़ जाता है, भ्रष्टाचार समाप्त हो जाता है, और हर कोई अपना लगता है| कोई भी अजनबी नही रहता| जहाँ अपनापन है, जीवन समृद्ध है| और जब प्रत्येक व्यक्ति समृद्ध है, समाज समृद्ध हो जाता है|
क्योंकि समाज केवल तत्त्वज्ञान से प्रगति नहीं कर सकता, समाज प्रत्येक व्यक्ति की प्रगति के साथ प्रगति करता है| हर एक व्यक्ति
समाज के निर्माण के लिए योगदान देता है| यही कारण है कि अपनेपन का दृष्टिकोण प्रत्येक व्यक्ति में
होना महत्वपूर्ण है| अगर
अपनापन
होगा तब एक बड़ा परिवर्तन आयेगा और तब लोगों में सुस्ती या निष्पक्षता का सफाया किया जा सकता है|
सुस्ती और निष्पक्षता सभी इच्छाओं और खामियों के कारण है| लेकिन अगर खुशी और आनंद हमारे भीतर उत्पन्न हो जाएँ, तो आप देखेंगे आप के लिए सब कुछ अपने आप आ जाएगा|
सुस्ती और निष्पक्षता सभी इच्छाओं और खामियों के कारण है| लेकिन अगर खुशी और आनंद हमारे भीतर उत्पन्न हो जाएँ, तो आप देखेंगे आप के लिए सब कुछ अपने आप आ जाएगा|
जीवन में खुशी पाने के लिए वहाँ तीन चीजें महत्वपूर्ण हैं:
१. ज्ञान २. ध्यान ३. गान (संगीत)
अपने जीवन में इन तीनों को मन में बैठाना होगा| हर दिन कुछ समय के लिए कीर्तन और सत्संग करो| कुछ समय के लिए ज्ञान की बातें सुनो, कुछ सेवा गतिविधियों में भाग लो और ध्यान करो| पंद्रह या बीस मिनट के लिए चुप होना और भीतर से शांत होने से हमें बहुत से लाभ होते हैं| शरीर मजबूत हो जाता है मन लगता है, हमारे व्यवहार में सुधार आता है, बुद्धि एंव स्मृति शक्ति बढ़ जाती हैं और आत्मा आनंदित हो जाती है| इसके इलावा और क्या चाहते हैं आप?
आपने सुना होगा, 'एक साधे सब साधे, सब साधे सब जाए|’ (यदि आप एक चीज प्राप्त करने का प्रयत्न करें तो पा सकते हैं, लेकिन यदि आप अनेक चीज़ों को एक साथ पाने का प्रयत्न करते हैं, तो आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाते)| एक चीज को पाने के प्रयत्न करो, वह है स्वयं! बैठे और ध्यान करे|
१. ज्ञान २. ध्यान ३. गान (संगीत)
अपने जीवन में इन तीनों को मन में बैठाना होगा| हर दिन कुछ समय के लिए कीर्तन और सत्संग करो| कुछ समय के लिए ज्ञान की बातें सुनो, कुछ सेवा गतिविधियों में भाग लो और ध्यान करो| पंद्रह या बीस मिनट के लिए चुप होना और भीतर से शांत होने से हमें बहुत से लाभ होते हैं| शरीर मजबूत हो जाता है मन लगता है, हमारे व्यवहार में सुधार आता है, बुद्धि एंव स्मृति शक्ति बढ़ जाती हैं और आत्मा आनंदित हो जाती है| इसके इलावा और क्या चाहते हैं आप?
आपने सुना होगा, 'एक साधे सब साधे, सब साधे सब जाए|’ (यदि आप एक चीज प्राप्त करने का प्रयत्न करें तो पा सकते हैं, लेकिन यदि आप अनेक चीज़ों को एक साथ पाने का प्रयत्न करते हैं, तो आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाते)| एक चीज को पाने के प्रयत्न करो, वह है स्वयं! बैठे और ध्यान करे|
गीता
में कहा है, योगस्थ
कुरु कर्माणि, जो योग अभ्यास
करेगा वह अधिक योग्य होगा| उसमे कौशल वृद्धि होगी और उसे
सरलता से सफलता प्राप्त होगी|
तो आज, हम ये तीनों करेंगे| हम गायेंगे, ध्यान करेंगे, कुछ ज्ञान की चर्चा करेंगे और समाज और देश के लिए कुछ प्रतिज्ञा लेंगे|
तो आज, हम ये तीनों करेंगे| हम गायेंगे, ध्यान करेंगे, कुछ ज्ञान की चर्चा करेंगे और समाज और देश के लिए कुछ प्रतिज्ञा लेंगे|
हम
सब
चाहते हैं कि भारत एक मजबूत देश के रूप में उभरे| मैं भी यह देखना चाहता हूँ|
हम सो रहे हैं किन्तु अब हमे जागना पड़ेगा| हमारा जागना जरूरी है| जब किसी देश के युवा जाग जाते हैं, उस देश की प्रगति को कोई नहीं रोक सकता| यदि युवा दवा व्यसनों, हिंसा, जातिवाद और संकीर्ण उदारता के साथ संघर्ष कर रहे हैं, वे अपनी जड़ों की दृष्टि खो देते हैं, और उस देश को कोई बचा नहीं सकता|
हम सो रहे हैं किन्तु अब हमे जागना पड़ेगा| हमारा जागना जरूरी है| जब किसी देश के युवा जाग जाते हैं, उस देश की प्रगति को कोई नहीं रोक सकता| यदि युवा दवा व्यसनों, हिंसा, जातिवाद और संकीर्ण उदारता के साथ संघर्ष कर रहे हैं, वे अपनी जड़ों की दृष्टि खो देते हैं, और उस देश को कोई बचा नहीं सकता|
मैं
एक
दिव्य समाज बनाना चाहता हूँ|
बचपन
में मुझे लगता था कि मैं भारत के ज्ञान को पूरी दुनिया में ले जाऊँगा| विदेशी क्लब भारत में आये और लोग रोटरी क्लब में जाते थे| में सोचता था कि भारत के भी कुछ संगठन दुनिया भर में होना चाहिए| आज, आर्ट ऑफ़ लिविंग ने ३० साल पूरे कर लिये हैं और यह दुनिया के १५२ देशों में मौजूद है| यह बहुत स्वाभाविक रूप से हुआ| मैंने कुछ नहीं किया| मैंने सिर्फ मन में
इरादा रखा था और यह सब हुआ|
भारत
का
ज्ञान इतना महान है! हमे युवाओं को इस
तरह से यह ज्ञान समझाना हैं कि उनकी रूचि इसमें जागे| और यह हो रहा है| हजारों युवा आर्ट
ऑफ लिविंग के साथ जुड़े और उनके जीवन खिले हैं| लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, हमे अधिक युवाओं तक पहुँचने की जरूरत है| व्यसनों और हिंसा को समाज से हटाया जाना चाहिए| मैं इस तरह के एक दिव्य समाज स्थापित करना चाहता
हूँ जहां कोई तनाव न हो, कोई हिंसा या भ्रष्टाचार न हो| आप में से कितने लोग इसका एक हिस्सा बनना चाहते हैं? अपने हाथ उठाएँ| इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम सब को कुछ करना पड़ेगा| एक साथ काम कर
के हम समाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं|
प्रश्न : गुरुजी, भगवत गीता के अनुसार जो भी हुआ, अच्छा हुआ| जो हो रहा है वो अच्छा हो रहा है एवं जो होगा वो अच्छे के लिए ही होगा| फिर अच्छे और बुरे में फर्क क्या है?
श्री श्री
रविशंकर : मैं २ व्यक्तियों को आपके पास भेजता हूँ, उनमें से एक को आपकी बहुत तारीफ़ करने को कहा जाये और दूसरे को बहुत आलोचना, आपको अच्छे और बुरे के बीच का फर्क तुरंत मालूम हो जायेगा|
कोई आपको दर्द देता है, दर्द तो किसी को भी पसंद नहीं| यहाँ तक कि एक कीड़े को भी दर्द से तकलीफ होती है, वो भी दर्द नहीं चाहता| वो जो दर्दनाक है, वो बुरा है| और वो जो आपको कुछ वक़्त के लिए सुकून और बाद में लम्बे समय के लिए तकलीफ देता है वो भी बुरा है| जो आपको कुछ वक़्त के लिए तो तकलीफ दे लेकिन उसके बाद लम्बे समय तक ख़ुशी दे वो अच्छा है; ये है नापने का पैमाना|
प्रश्न : अगर मुझे अपनी चुनी हुई और अपने माता-पिता की चुनी हुई आजीविका में से किसी एक को चुनना हो तो किस का चयन करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : उन को कुछ हद तक समझाने की कोशिश करे| उन्हें बताये की आपको वो जीविका पसंद नहीं जो वो चुन रहे हैं, उनसे बात करे| इसके अलावा वो जो आप बता रहे हो, हो सकता है वो आपको अपनी दूरदर्शिता के हिसाब से कुछ बता रहे हो| अगर उनका पारिवारिक व्यवसाय है वो आपको एम.बी.ए., करना चाह रहे हो और चाहते हो की वो करके आप व्यवसाय संभालो| लेकिन अगर आप कोई और पेशा अपनाना चाहो तो ये बात ऐसे किसी भी माता पिता को गवारा नहीं होगी जिनका पारिवारिक व्यवसाय हो, क्योंकि उन्हें डर होगा कि उनके जाने के बाद उनका व्यवसाय कौन संभालेगा|
इसलिए सोच समझ कर ही कार्य करे| अक्सर हम अपनी रूचि और पेशे को एक ही समझ कर उसमें उलझ जाते हैं| हम अपने शौक़ को अपना पेशा बनाना चाहते हैं और अपने पेशे के विषय में लापरवाह हो जाते हैं| इसलिए, अपने माता पिता से विचार विमर्श करे या अपने अध्यापकों से इस बारे में बात करे|
प्रश्न : मन उदास क्यों हो जाता है जब मैं आपसे नहीं मिल पाता ?
श्री श्री
रविशंकर : जब दिल मिले हुए हैं तब गले मिलने की क्या ज़रूरत है? हम सब में एक ही आत्मा, एक ही ईश्वर का वास है, हम सब एक हैं| मैं अब तक बहुत से देशो में गया हूँ, मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी अजनबी से मिल रहा हूँ| मैं जिससे भी मिलता हूँ मुझे वो अपना ही लगता है, और उन्हें भी मेरे लिए यही अनुभव होता है| इसलिए आप भी हर एक को समान दृष्टि से देखे और सबको अपनाये| यही आत्मज्ञान है, आत्मा का ज्ञान है जहाँ कोई पराया नहीं लगता|
प्रश्न : हमारा कौन हैं और हमारा अस्तित्व क्या है?
श्री श्री
रविशंकर : ये बहुत अच्छा प्रशन है, इसको किसी को मत देना| समय समय पर ये प्रश्न स्वयं से पूछते रहे; ये सवाल अपने भीतर रखे|
कुछ प्रश्न बहुत कीमती होते हैं| उन्हें कौड़ियो के दाम पर नहीं बेचना और उनके लिए यहाँ वहां से मिलने वाले थोड़े बहुत जवाबो से संतुष्ट नहीं होना| वो जो आपको इन सवालो के जवाब देंगे वो आपके साथ बहुत नाइंसाफी करेंगे और जो इस का जवाब जानते हैं, वे आपको इन सवालो का जवाब कभी नहीं देंगे क्योंकि वो जानते हैं कि ये प्रश्न तुम्हारे भीतर वितर्क की चिंगारी के लक्षण हैं| वितर्क से ही स्वयं का आत्मा का ज्ञान होता है| और जो जानते हैं इनके जवाब, वो ये देख कर बहुत खुश होंगे कि आपके भीतर ये चिंगारी पैदा हुई| जो नहीं जानते वो लम्बी व्याख्या से आपको उलझा देंगे|
प्रश्न : ईश्वर हमारी रक्षा कैसे करते हैं ?
श्री श्री
रविशंकर : ये चमत्कार है, जब से आप पैदा हुए, तब से अनेक तरह से आपकी देखभाल, आपकी सुरक्षा, आपकी देख रेख की गयी है| वो आपकी देख रेख माता पिता के प्यार के रूप में करता है| जिस से भी आपको प्यार मिलता है, वो सब ईश्वर का ही प्यार है| ईश्वर ही आपको सब कुछ दे रहे हैं|
प्रश्न : हमें ईश्वर को उत्कृष्ट समय देना चाहिए, ये उत्कृष्ट समय क्या है?
श्री श्री
रविशंकर : इसका अर्थ ये है कि अपना सबसे बेकार समय ईश्वर को मत दीजिये| जब आपके पास देखने के लिए फिल्म नही है, या कोई और कार्य पूरा करने को नही तब अगर आप सोचते हैं कि चलो ये मय अब भजन कर लें तो वो बिलकुल बेकार है, ये बचाकुचा समय ईश्वर को मत दीजिये|
प्रतिदिन दो बार १० -१० मिनट को सुबह-शाम ध्यान के लिए बैठो, आप ये ईश्वर के लिए नही कर रहे| ईश्वर को आपसे कुछ नही चाहिए, ये आपके स्वयं के भले के लिए है कि आप ध्यान में बैठे, ज़रूरत मंदों की मदद करे , लोगो की सेवा करे, और ये समय सबसे उत्तम समय है| सेवा के लिए उद्यम करे|
प्रश्न : हर एक को मोक्ष चाहिए, २१वी शताब्दी में मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए क्या करना चाहिए?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ, हर एक व्यक्ति आज़ादी पाना चाहता है, मुक्ति पाना चाहता है| हर एक सुख की एक सीमा होती है, और उसके बाद मुक्त होने कि इच्छा होती है|
उदाहरण के लिए, अगर आप किसी को १० परांठे खाने को कहेंगे तो वो नही खा पायेगा, ६ या ७ परांठे खाने के बाद वो कहेगा, "अब बस हो गया"|
ये मुक्ति की मोक्ष की प्यास बहुत स्वाभाविक है, हर एक व्यक्ति अन्दर से मुक्ति चाहता है, ये स्वाभाविक इच्छा है|
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