मन का विरोधाभास में रहना!!!

परम पूज्य श्री श्री रविशंकरजी के द्वारा
मानवीय मन अत्यंत जटिल होता है; जटिल का तात्पर्य है कि उसका काफी कोमल और सुंदर स्वरूप है और वह अत्यंत कठोर और सख्त भी है। जीवन में आपको इन दोनों का सामना करना पड़ता है। जीवन में यह स्वयं और दूसरों के साथ भी इस स्वरूप से निपटने के लिए तैयार और सक्षम होते हैं और कभी आप इसके लिये नहीं होते हैं। परन्तु जीवन या मन की अवस्था हमारी अनुमति से नहीं घटती है। वस्तुतः ये हमारी आकाक्षाओं और इच्छाओं की सीधे अवज्ञा करते हुए घटती है। एक साधक (जिज्ञासु) के तौर पर हमने भूतकाल, हर समय बदलते रहनेवाली मानसिक स्थिति की निराशा और अस्थिर इच्छा को देखने की प्रतिबद्धता कर ली है। यद्यपि उसे करने के लिए हमें मन के दो विरोधाभास स्वरूप को जानना होगा और मन को समझाना होगा।
काठोर और सख्त विरुद्ध सौम्य और कोमल।
कभी कभी आप इतने कठोर और दृढ़ होते हैं कि आपमें प्रतिरोध होता है। कुछ और समय आप बहुत सौम्य और मधुर होते हैं। जब सत्व का स्पर्श आप पर होता है तो सौम्य, सुंदर और कोमल स्वरूप आपके अंदर होता है। आप अच्छा और प्रसन्नता महसूस करते हैं। परन्तु आप हर समय वैसे नहीं रह सकते, नहीं तो आप बहुत संवेदनशील हो जायेंगे।
प्रकृति के कारण महिलाओं के मन का स्वरूप अधिक कोमल और सौम्य होता है जबकि पुरुषों का स्वरूप अधिक कठोर और सख्त होता है। यह एक सामान्य नियम है और हर मामले में सही नहीं होगा। ऐसी महिलायें भी हैं जो कठोर होंगी और ऐसे पुरुष भी जो बहुत सौम्य हैं।
इन दोनों स्वरूपों को आगे और पीछे से बदलने की क्षमता को उभारना ही जीवन का सम्पूर्ण अभ्यास है। सामान्यतः जब आप कठोर और सख्त महसूस कर रहे हैं तो आप किसी वजह से कठिन समय से गुजरे हैं। फिर आप का कठोर और सख्त स्वरूप सामने आ जाता है और आप उसी में फॅंस जाते हैं। फिर आप जीवन के सौम्य और कोमल स्वरूप के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हो जाते हैं। इसका विपरीत भी सही है, जो लोग सौम्य और अच्छे होते हैं इस बात से टूट जाते हैं कि उन्हें कोई काठोर दृष्टि से घूर रहा है। वे रोने लगते हैं और टूट जाते हैं और सारे संपर्क बंद कर देते हैं।
किसी को यह क्षमता उभारनी हागी किसी एक क्षण में कठोर और सख्त हैं और दूसरे क्षण में सौम्य। सुंदर और अप्रतिरोध में परिवर्तित करने में सक्षम होना होगा। मन को सकारात्मकता में परिवर्तित करने की कला का विकास करना होगा क्योंकि वही आपके भीतर की सही चेतना है।
सारे रूखे लोगों में एक पीड़ित सौम्य मन भीतर होता है। उनका सौम्य मन पीड़ित है इसलिए वे रूखे हो जाते हैं। उसी तरह जब रुखे लोगों को यह महसूस हो जाता है कि वे काफी रुखे हो गये हैं तो फिर वे कोमल और सौम्य हो जाते हैं।
बच्चे आपको इस विरोधाभासी स्वरूप को महसूस और अनुभव कराने में माहिर होते हैं। यदि आपके घर में बच्चे है तो वे आपको कठोर बना सकते हैं और दूसरे ही क्षण वे आपको बहुत सौम्य और उदार बना देंगे क्योंकि आप वह भीतर का संबंध महसूस करते हैं। आप जिनसे प्रेम करते हैं उनके लिए बात सही है। आप एक क्षण में इन लोगों के लिये आगे और पीछे से परिवर्तित होने में आसानी महसूस करते हैं जिनसे आप प्रेम करते हैं। आप उनसे काफी अपनापन महसूस करते हैं और दूसरे क्षण गुस्सा का दौरा आ सकता है। आप इस चक्र में २ मिनट में ही जा सकते हैं।
जब आप समीक्षा करके दर्शाते हैं तो आप महसूस करते हैं कि मैं पूरी दुनिया के साथ उस तरह क्यों नही हो सकता। आप कुछ परिस्थिति में आकर कहते हैं नही और प्रतिरोधक हो जाते हैं, परन्तु कुछ परिस्थितियों में आप ऐसा नहीं कर पाते हैं। यदि आप मित्रो के संग है और वे शराब और सिगरेट पीने लगते हैं तो क्या आप वास्तव में नहीं कह सकते हैं? यदि, हाँ तो आप में शक्ति है। अगर आप उस में खिचे चले गये; यदि आपको शराब और सिगरेट पसंद भी ना हो तो भी आप दिशा में बह जाते हैं, तो आपका सख्त और कठोर स्वरूप अपना कार्य ठीक से नहीं कर रहा है।
और भी अधिक यदि आप हर समय समझौता ही करते हैं तो आपका सख्त और कठोर स्वरूप अपना कार्य ठीक से नहीं कर रहा है। उसके कोमल संतुलन को विवेक की जरूरत है कि कौन सा कार्य यहाँ करें और कौन सा वहां करें।
एक संतुलित मां को इसकी ज्यादा समझ है। एक विवेकपूर्ण माँ जो अपने बच्चे से अधिक लगाव नहीं है, उसे पता होता है कहाँ पर अपने पैरों को नीचे करना है और ना कहना है। इस तरह पालक गुरु या प्रतिपालक का कार्य करते हैं। एक गुरु और उपदेशक को पता है कि वह आवेगहीन है और वह स्नेहात्मक और सौम्य या सख्त और कठोर भी हो सकता है यदि आवश्यकता हो तो।
परन्तु हम जो चर्चा कर रहे हैं हम सब के भीतर के स्वरूप के बारे में है, हमारा आंतरिक मन। आपका आंतरिक मन जब कठोर और सख्त हो जाता है तो इस पर ध्यान दें कि वह कितने समय रहता है और आपकी दिनचर्या में आपके भावों और आचरण पर कितना प्रभाव करता है।
यदि कार्यस्थल पर आपका दिन रूखा बीता हो तो वह भाव कार्यस्थल पर ही समाप्त नहीं हो जाता। वह आपकी कार को चलाते समय से घर तक रहता है फिर वह आपकी पत्नी और बच्चों पर भी छलकता है। वैसे ही जब आप अच्छा, सौम्य और कोमल महसूस करते हैं तो आप चाहते हैं कि वह सब में फैले और सभी आपको उसी तरह उत्तर दें। उस समय आपको कोई छोटी चीज भी निराश कर सकती है।
तो जब आप स्वयं को बेचारा समझने लगते हैं, आप उस भाव में हैं पर आप उस वास्तिविकता को नहीं देख पाते कि उस क्षण क्या हो रहा है। इसलिए जब आप अच्छा, सौम्य महसूस करते हैं तो आप सामान्यतः यह शिकायत करते हैं कि आपको कोई नहीं समझता। यह शिकायत की मुझे कोई नहीं समझता सही में इसी भाव से आती है।
यह विडम्बना है कि यह भाव एक के बाद एक आते हैं। आप कोमल भाव से शुरुआत करते हैं और आपको यदि कोई समझ नहीं पाता तो आप कठोर हो जाते हैं। हर कठोर व्यक्ति में एक पीडि़त सौम्य मन होता है। उनका सौम्य मन पीड़ित होने के कारण वे कठोर हो जाते हैं। उसी तरह जब कठोर लोगों को यह अहसास होता है कि वे अधिक कठोर हो गये हैं तो वे कोमल और सौम्य हो जाते हैं।
इसलिये मन इस तरह यहाँ से वहाँ तक और वहाँ से यहाँ तक झूलता है। जीवन में इस तरह के दुख चलते रहते हैं जब तक कि कोई परेशान न हो जाय। सिर्फ ज्ञान ही आपको इस दलदल से निकाल सकता है। इसलिए इसे हृदय दौर्बल्य कहाँ गया है; हृदय का कमजोर होना। अर्जुन जैसा योद्धा भी युद्ध भूमि में आने पर लड़खड़ाने और रोने लगा था। फिर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया और कहा अर्जुन खड़े हो जाओ और इस भावनात्मक कमजोरी, हृदय की कमजोरी और सौम्य की कमजोरी को त्यागो।
हृदय आपको मजबूत बना सकता है। हृदय आपको कमजोर भी बना सकता है। ज्ञान के साथ भावनायें आपको भावनात्मक शक्ति प्रदान करती हैं, अज्ञानता आपकी भावनाओं को कमजोर बना देती हैं।
एक मजबूत व्यक्ति भी अपनी पत्नी के समक्ष कमजोर हो जाता है। समीक्षा से आप यह जान सकते हैं कि ध्यान और ज्ञान को छोड़ देने से आप अपने भीतर के सौम्य और कोमल स्वरूप से सख्त और कठोर में परिवर्तित हो सकते हैं। जब आवश्यकता हो तो आप खड़े हो सकते हैं और आवश्यक हो तो आराम कर सकते हैं। यह योग्यता सब में होती है और ध्यान करने से यह दोनों कार्य हम प्रयासहीन तरह से कर सकते हैं। इसलिए जब आप रूखा, प्रतिरोधक और क्रोध महसूस कर रहे हों तो बैठ कर विश्राम करें और ध्यान दें मन पर और उस विचार को जाने दें।
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