अच्छे व्यक्तियों का मौन

२०
२०१२
दिसम्बर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
प्रश्न : जब में इंसानों की इस दुनिया को देखता हूँ तो मुझे वो दुनिया नज़र नहीं आती जो मेरी या किसी की भी फिक्र करती हो , उनमें अच्छाईयाँ हैं , लेकिन वो लोग ज़्यादातर अपनी कमजोरियों , लालच और असुरक्षा के भाव में बह जाते हैं , लोग यहाँ रह कर धरती के साथ और एक-दूसरे के साथ जो कर रहे हैं , उसको देखते हुए , इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता | जब आप कहते हैं की सब कुछ प्रेम से ही बना हुआ है तब इस बात को मानने की मेरी बहुत इच्छा होती है , लेकिन कभी कभी इस दुनिया के साथ सहानुभूति करना , करुणा रखना मुश्किल हो जाता है | मुझे लगता है कि ये घृणा है जो रूप बदल कर लोगो को एक दिन आतंकवादी बना देती हैं , वो अचानक लोगो को मरना शुरू कर देते हैं , ये किसी निर्दोष का बलात्कार करने लगते हैं | मैं इस दुनिया की फिक्र कैसे करता रहूँ ?
श्री श्री रविशंकर : किसी भी प्रश्न का केवल एक ही सही जवाब हो सकता है , कभी भी दो सही जवाब नहीं हो सकते | अगर ये एक सवाल है तो मैं चाहता हूँ कि आप इस का जवाब ढूँढ़ते रहे | लेकिन अगर इसे एक सवाल की बजाय , आप एक पथ के जैसे देखें तो पहले भी कई बार इस पथ पर से गुज़र चुके हैं और हर बार आपको एक नया जवाब मिलता रहा है | अब इसको आम राय का रूप दे दें | ऐसा सोचें कि लोगो में प्यार नहीं हैं , यहाँ लोगो में दया नहीं है , ये गलत है | आप ये एक साधारण राय नहीं बना सकते कि सब स्वार्थी हैं | इस समाज में बहुत से लोग हैं जो नि:स्वार्थ भाव से लोगो की सेवा करते हैं , आप सबके लिए ये नहीं कह सकते कि वो भ्रष्टाचारी हैं | मैं आपको अपने एक अध्यापक के बारे में बताना चाहता हूँ जो कि गुजरात में एक आईएएस अफसर हैं , इन साहब को किसी उद्योगपति के द्वारा ५१ करोड़ रूपये की भेंट प्रस्तुत की गयी , इन्हें सिर्फ इतना करना था कि वो लोग जो ज़मीन पहले से इस्तेमाल कर रहे थे उसको उनके ही नाम करने के कागजात पर दस्तखत करने थे | वो इस बात को बहुत अच्छे से कर के न्याय सांगत ठहरा सकते थे और या ये कह सकते थे कि मुझे ये पैसा अपने लिए नहीं चाहिए , मैं इसे गरीब लोगो को दे सकता हूँ , इसके अलावा और भी इतने सरे कारण थे जो दिमाग में सकते थे , लेकिन ये साहब ने मना कर दिया कि मैं ये नहीं लूँगा , तो आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं | जब तक कि लोग आध्यात्म के पथ पर नहीं आते वो संवेदनशील नहीं बनते , या उनमें उतनी संवेदनशीलता नहीं आती | दोनों बोध एवं संवेदनशीलता को ज्ञान और ध्यान से और ऊपर ले जाया जा सकता है | इसलिए इस ज्ञान को हर व्यक्ति , हर घर , हर विद्यालय , हर दिल तक ले जाना बहुत ज़रूरी है , आपको इस के लिए काम करते रहना चाहिए | जैसा कि मैने कहा की दुनिया इसलिए खराब नहीं है कि यहाँ कुछ लोग खराब हैं , बल्कि इसलिए है की अच्छे लोग खामोश हैं |
मैं ये भी कहना चाहूँगा कि किसी के बारे में भी धारणाएं नहीं बनाओ , आप कुछ नहीं जानते हैं , क्या आप स्वयं को जानते हैं ? क्या आपको पता होता है कि कब आप लोगो के साथ दयालु हैं , कब आप उनके साथ कटु हैं ? आपको नहीं पता | कभी कभी आप लोगो से कठोरता से बात करते हैं और उसको न्यायसंगत ठहराते हैं , आप कहते हैं की वो इस लायक ही हैं , क्या आपको ऐसा नहीं लगता ? और कभी कभी आप लोगो से बहुत करुन से पेश आते हैं और फिर उसको न्यायसंगत ठहराते हैं , है ? तो जब आप अपने ही भावनाओं , अपने ही व्यवहार को नहीं जानते तो किसी और के लिए कोई भी धारणा कैसे बना सकते हैं ? और आप को क्यों हर एक के लिए धारणाएं बनानी हैं ? "ये संसार में सब निर्दयी , भ्रष्टाचारी और बुरे लोग हैं" , आपको क्यों ऐसा लगता है की वो सब बुरे लोग हैं , नहीं , ऐसा नहीं है | आपको अपनी बात पर दुबारा गौर करने की ज़रूरत है | क्या आपको खुद के लिए अच्छा लगता है ? क्या आपको लगता है कि आप एक अच्छे इन्सान हैं ? आप सोचते हैं की आप एक अच्छे इंसान हैं , लेकिन अगर आप उन लोगो से पूछेंगे जिनसे आप बात चीत करते हैं , व्यवहार करते हैं , उनका मत इस से बिलकुल अलग होगा | आपको कैसा लगेगा अगर कोई आपको ये कहे कि आप स्वार्थी हैं ? कहीं अन्दर आप जानते हैं कि आप स्वार्थी नहीं हैं , लेकिन कोई अगर आपसे ये कहता है कि आप बहुत स्वार्थी हैं , या उन्हें आपमें नकारात्मक प्रवत्तियान दिखती हैं , आप उन्हें क्या कहेंगे ? ,"अरे देखो , मुझ में अच्छी बातें भी हैं | "क्या आप उन्हें ऐसा नहीं कहेंगे ? ऐसा कोई भी इंसान नहीं है जिसमें अच्छी बातें या अच्छा दिल हो | याद रखिये , अच्छाई से विहीन कोई मनुष्य नहीं है , बस कभी कभी वो सब तनाव और अज्ञानता से ढक जाती हैं | यहाँ तक कि वो लोग भी , जिन्होंने उस महिला के साथ कुकृत्य किया , अब वो कह रहे हैं ," हमें फांसी दे दो , हमने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है | " वो भटक गए थे , वो होश में नहीं थे , अब वो बहुत ज्यादा पछतावे की आग में जल रहे होंगे | इतना ज्यादा पछतावा और इतना ज्यादा कष्ट | देखिये , आप सब कभी कही कुछ गलती करते हैं , आपको कैसा लगेगा अगर कोई लगातार आपकी गलतियों को पकड़ के उसकी याद दिलाता रहे? क्या आपको वो अच्छा लगेगा? बिलकुल नहीं | आप अवश्य ही कहोगे कि अरे उस बात को छोड़ दो और आगे बढ़ो | है या नहीं? तो इस सच की तरफ हमें जागृत हो जाना चाहिए | ये सब आपकी खुद की दृष्टि है कि आप संसार को कैसे देखते हैं? अगर आपको लगता है कि सब धोकेबाज़ हैं , तब सब के प्रति आपका व्यवहार रूखा एवं कठोर हो जायेगा और आप भी उसका हिस्सा होंगे |
इसलिए ही ऐसी एक कहावत है कि जैसा आप देखोगे वैसी ही सृष्टि होगी | जैसे आप सोचने लगेंगे , वैसा ही ये संसार बन जायेगा - यथा दृष्टि तथा सृष्टि |

प्रश्न : महाभारत में क्यों भीष्म जैसे ज्ञानी पुरुष ने इतने महत्वपूर्ण मुद्दों पर खामोश रहने का निर्णय लिया और वो क्यों दुर्योधन के पक्ष में लड़ने को राज़ी हो गए ?
श्री श्री रविशंकर : आप क्यों चाहते हैं की मैं महाभारत के बारे में कुछ कहूं ? भीष्म ने पहले ही कहा जो भी कुछ वहां हुआ , वो बहुत आभारी थे , दुर्योधन उस दल में मुख्या पद पर था , और अच्छे व्यक्ति इस प्रभावशाली ऊंचे पद के जल में फँस जाते हैं | खराब दल में एक खराब मुखिया के साथ कई बार अच्छे व्यक्ति होते हैं और ऐसे ही कई बार अच्छे मुखिया के साथ भी बुरे लोग होते हैं | आप क्या करोगे ? यही आजकल हो रहा है | हर एक दल एक अपराधी तत्व को टिकट देने को तैयार है | आप जानते हैं क्यों ? क्योंकि उनके पास एक वोट बैंक होता है , आपराधिक व्यक्तियों के पास पैसा और बहुबल होता है , तो अगर आप उन्हें टिकट देंगे वो चुन लिए जायेंगे , और प्रजातंत्र में सब कुछ नंबर का खेल बनता जा रहा है | निश्चित रूप से वो जाकर जीत जाते हैं क्योंकि अच्छे लोग घर बैठे रहते हैं और कहते हैं , "कौन वोट देगा और ये सब काम करेगा , ऐसे भी सभी भ्रष्ट हैं , और सभी दल बेकार हैं | " इसलिए एक उदासीनता है और वो लोग जाकर अपने मत का अधिकार इस्तेमाल नहीं करते , यही वजह है | मैं कहता हूँ कि अच्छे लोगो को एक वोट बैंक तैयार करना चाहिए , तब कोई भी दल अपराधियों या आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को चुनाव की टिकट नहीं देगी , वो सब उन व्यक्तिओं को ढूँढेंगे जिनमें सेवा का भाव हो |

प्रश्न : गुरुदेव , दिल्ली में हाल ही में जो हुआ उसको लेकर लोगो में बहुत आक्रोश है , क्या इस कुकृत्य के लिए फांसी की सजा की मांग उचित है ? क्या अधिकतर लोग डर से सुधर जाते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये , इतने सारे लोग हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है लेकिन आज अभी उन्हें ये सजा मिली नहीं |
यहाँ तक कि जेल में ऐसे बहुत से आतंकवादी है जिन्होंने बहुत जघन्य अपराध किये हैं , जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी लेकिन अब तक उनके साथ ऐसा अमल में नहीं लाया गया | ऐसा ही कुछ कसाब के साथ भी किया गया , पहले उस पर ३१ करोड़ रुपये खर्चे गए , फिर उस को फांसी की सजा दी गयी | एक आतंकवादी पर ३१ करोड़ का खर्च !ज़रा सोचिये , उन ३१ करोड़ में कितने गाँवों को विकसित किया जा सकता था?कितनी सडकें बन सकती थी , कितने घरो में बिजली सकती थी? केवल अकेले कानून से कुछ नहीं होता , हमें एक सामाजिक बदलाव लाना होगा , उसके लिए हमें प्रशासको , कानून बनाने वालो , उन्हें लागू करने वाले लोगो की मानसिकता बदलनी होगी |

प्रश्न : मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ रिश्ते में हूँ जो हर क़दम बहुत सोच समझ के उठता है , वो इस बात से डरते हैं कि अगर वो किसी से बहुत जुड़ गए तो इनकी आध्यात्मिक प्रगति पर इसका असर पड़ेगा | क्या ये सही है ?
श्री श्री रविशंकर : किसी से भी उनका प्यार साबित करने को मत कहिये , जब ऐसा करते अहिं तभी ये सब बातें आती हैं | अगर कभी हम किसी पर बहुत प्यार दिखाते हैं तब वो समझ नहीं पाते कि उसको कैसे संभालें और वो उलझन में पड़ जाते हैं |बहुत से लोग हैं जिन्हें ये भी नहीं आता कि प्यार कैसे पाएं , देना तो दूर की बात है | इसलिए ही मैं कहता हूँ कि ये सब में मत फंसो , आराम से बैठो और ये मान के चलो कि मैं सबको प्यार करता हूँ और सब मुझे प्यार करते हैं | और तब जो भी ज़ाहिर करना है वो ज़ाहिर भी हो जायेगा | ये प्राकर्तिक रूप से स्वतः ही हो जायेगा |
जब कोई कहता है कि उसको जुड़ने से दर लगता है , तब इसका अर्थ ये होता है कि वो कहीं जुड़े हुए हैं | तो इसलिए लोगो के चेहरे पर जायें , लोग तो कुछ भी कहते हैं पर सच में वो कुछ और ही होता है | जब आप किसी व्यक्ति को शब्दों से परे जानने लगते हैं तब एक सच्चा रिश्ता बनता है , लेकिन आप अगर शब्दों में ही फंसे रहेंगे तब वो केवल ऊपर की सतह पर ही रह जायेगा और ज्यादा लम्बा नहीं चलेगा | आपका रिश्ता , शब्दों से , भावनाओ से परे होना चाहिए | |क्योंकि शब्द और भावनाएं दोनों ही बदल जाते हैं , तब ही ये एक अच्छा मज़बूत रिश्ता बनता है | चाहे वो कोई भी रिश्ता हो , दोस्तों का , पति-पत्नी का , जब आप भावनाओं से भी परे देखने लगते हैं , तभी वो एक सच्चा रिश्ता बनता है | जब आप सब तरह की भावनाओं , सब तरह के शब्दों और विचारो को अपना लेते हैं , तब आप एक ऐसे धरातल पर चल रहे होते हैं जो तो हिलता है और ही टूटता है |

प्रश्न : गुरुदेव क्या तलाक लेना आध्यात्मिक पथ पर बाधा है ? जब से मेरी शादी हुई है, मैं अपने जीवन से बहुत परेशान हूँ |
श्री श्री रविशंकर : आप अपना १००% दीजिये | यदि आपकी शादी सफल है तो यह अच्छी बात है | यदि वह सफल नहीं होती और आप दोनों परेशान है और शादी से बिलकुल कोई सुख नहीं है तो फिर ऐसी परेशानी को पकड़ के रखने का कोई मतलब नहीं है | फिर दोनों को आपसी सहमति से एक दूसरे से कहना चाहिये, तुम अपने रास्ते पर जाओ और मैं अपने फिर भी हम दोस्त रहेंगे |
जैसे मैंने कहा कोई भी फैसला गहन भावनाओं से न ले | शांत और एकाग्र मन से विचार करे कि आपको क्या चाहिये |

प्रश्न : ऐसा कहा जाता है कि हम पृथ्वी पर प्रेम अनुभव करने आये है क्योंकि स्वर्ग में कोई प्रेम नहीं है | फिर सब लोग स्वर्ग ही क्यों जाना चाहते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : यह इसलिये है क्योंकि वे प्रेम क्या है, यह नहीं जानते | वे प्रेम की कामना करते रहते हैं लेकिन उन्होंने प्रेम का अनुभव नहीं किया | जब वे दिव्य प्रेम का स्वाद चख लेंगे, फिर उन्हें गहन तृप्ति प्राप्त होगी |
नारद भक्ति सूत्र में नारद ने कहा है, तृप्तो भवति, जब कोई दिव्य प्रेम का अनुभव करता है तब वह पूर्णतः संतुष्ट हो जाता है |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, कल आपने कहा कि , धैर्य के साथ लड़े | उसे कैसे कर सकते हैं |
श्री श्री रविशंकर : आपके पास उसे करने का सिर्फ आशय होना चाहिये और फिर वह अपने आप होने लगेगा |
जब आप किसी मुद्दे के लिये लड़ते हैं बिना किसी के प्रति घृणा रखे हुये तो फिर आपका दिमाग और मन सतर्क रहेगा |
जब लोग क्रोधित और घृणा रखते हैं तो फिर उनका दिमाग काम नहीं करता , या गलत दिशा में काम करता है |

प्रश्न : गुरुदेव जब कोई सच्चाई से प्रार्थना करता है, तो उसे उत्तर भीतर से मिलते हैं | लेकिन इसमें हम फर्क कैसे करे कि कौनसा उत्तर सही है और कौनसा सिर्फ कल्पना ?
श्री श्री रविशंकर: समय यह आपको बतायेगा |

प्रश्न : गुरुदेव मैंने एमटेक की परीक्षा दी है | यह अत्यंत प्रतिस्पर्धी है | यदि मुझे अपने पसंद के कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला तो मेरा जीवन बर्बाद हो जायेगा | क्या मैं अपने पसंद के कॉलेज में नहीं गया तो भी क्या मैं जीवन में सफल रहूँगा ?
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल : सफलता को कोई छोटी सी घटना न बनाये या उसे जीवन कोई छोटी घटना न बनाये |
आप जीवन में तभी सफल होंगे जब असफलता आपके जीवन में एक पहलू के तरह आती है |

प्रश्न : गुरुदेव मैं नये विषयों का अध्ययन कर के उसे सीख लेता हूँ लेकिन बीच में ही मेरा उत्साह समाप्त हो जाता है | जिस के कारण मैं सब विषयों का जैक बन गया हूँ लेकिन किसी भी विषय का मास्टर नहीं बन सका | मैं आप की तरह सभी विषयों का मास्टर कैसे बनूं ?
श्री श्री रविशंकर : बिना रुके चलते रहो | अपने प्रयास करते रहो | जीवन प्रयास और निष्क्रियता का मेल है | प्रतिदिन कुछ समय के लिये कुछ भी नहीं करे, यहीं ध्यान है और फिर १००% प्रयास करे |
यह गहन विश्राम और सक्रीय कृत्य के जैसे हैं |
यदि आप विश्राम नहीं करेंगे तो आपके कृत्य सक्रीय नहीं हो पायेंगे |
यदि आप में वैराग्य नहीं है तो फिर आप वास्तव में पूर्णतः आवेशपूर्ण भी नहीं हो पायेंगे | इसलिये जीवन इन दो विरोधाभास बातों का मेल है , वैराग्य और आवेश, निष्क्रियता और १००% प्रयास |

प्रश्न : चंद्र पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य के , कोई पैसा और सत्ता के लिये चक्कर लगाता है | अब मैं अपने आप को आपके चक्कर लगते हुये पाता हूँ | इन चक्करों का क्या महत्व है ?
श्री श्री रविशंकर : जब आपको यह पाता लग गया है कि आप क्या कर रहे हैं तो आप ही इसे समझायें कि इसका क्या महत्व है और आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
मुझे लगता है कि पृथ्वी को सूर्य के लिये आकर्षण होता है और इसलिये वह सूर्य के चक्कर लगाती है और चंद्र को हमारे लिये आकर्षण होता है इसलिये वह पृथ्वी के चक्कर लगाता है |

प्रश्न : एक शिष्य को गुरु के साथ कैसा होना चाहिये कि वह गुरु को पूरी तरह से समझ सके और गुरु से ज्ञान प्राप्त कर सके ?
श्री श्री रविशंकर : सहजता से रहे | आपको गुरु के साथ वैसा ही होना चाहिये जैसे आप अपने पास के लोगों के साथ होते हैं, स्वाभाविक और सहज |