मन – मित्र या शत्रु ?

२६
२०१२
दिसम्बर
बैड एंटोगस्त, जर्मनी

प्रश्न : मैं इस मन को कैसे जीतूं , जो मुझे परेशान करता है ?
श्री श्री रविशंकर : ये तो उसका स्वभाव है |
क्या आप जानते हैं कि आप मन से भी बड़े हैं ? जागिये ! मन जहाँ है , वहीँ रहने दीजिए |

प्रश्न : गुरुदेव , मैं अपने जीवन साथी को कैसे पहचानूं ?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले , आप अपनी आत्मा को पहचानिये , और उसके बाद अपने जीवन साथी को | आप खुद को तो जानते नहीं , आप जानते ही नहीं कि आप कौन है | आप अपने बारे में कुछ नहीं जानते |
आप अपने मन को नहीं जानते; आपका खुद का मन आपको पागल बना देता है |
एक मिनट उसे कुछ चाहिये , और दूसरे मिनट उसे कुछ और चाहिये | मन अपना स्वभाव हर पल बदलता है और फिर उसी में फँस जाता है |
इसीलिये , भगवदगीता में कहा गया है , आपका खुद का मन आपके बंधन के लिए और आपके मोक्ष के लिए ज़िम्मेदार है’ , बस और कुछ भी नहीं है |
आपका खुद का मन , जो आपका मित्र है  , वह आपके शत्रु की तरह भी बन सकता है |
यदि आपका मन साधना के द्वारा भलीभांति प्रशिक्षित है , तब आपका मन आपको अपना दोस्त बना लेता है , और आपकी मदद करता है | नहीं तो , आपका खुद का मन आपसे एक शत्रु की तरह व्यवहार करता है | क्या ये सच नहीं है ? ये कितना सच है !
मैं आपको एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ , जो पिछले हफ्ते ही हुआ था , मेरे यहाँ आने से पहले |
आश्रम के सामने आश्रम का एक साइन बोर्ड है | तो यूं हुआ कि किसी एक राजनीतिक पार्टी के कुछ लोग आये , और उस साइन बोर्ड पर अपने कुछ पोस्टर चिपका दिए , सिर्फ शरारत करने के लिए |
उन्होंने बहुत बड़े बड़े पोस्टर लगा दिए , क्योंकि उस राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष के जन्मदिन की पार्टी थी | तो हमारे सुरक्षा अधिकारी और कुछ अन्य लोगों ने उन पोस्टरों को उतार दिया , क्योंकि आश्रम आने वाले लोगों को साइनबोर्ड दिख नहीं सकता था , और फिर उन्हें पता नहीं चलता कि कहाँ जाना है |
अब , उस पार्टी का स्थानीय नेता बिल्कुल बौखला गया और बहुत ज़ोर से चिल्लाने लगा और हमारे एक टीचर को वह धमकी देने लगा , मैं बहुत से लोगों को ले आऊँगा , और हम यहाँ धरना करेंगे | और उसके बाद हम भूख हड़ताल करेंगे’ , और इसी तरह के गुस्से से भरे हुए शब्द उसने कहे | और हमारे सुरक्षाकर्मियों ने भी कहा , हाँ , हां , आओ | हम भी देखते हैं , हम भी तगड़े हैं |’
तो जब मैं किसी अन्य कार्यक्रम के लिए शहर में कहीं और जा रहा था तो मेरे सेक्रेटरी ने मुझे ये वाकया सुनाया |
मैंने उससे कहा कि , उस स्थानीय नेता को बुलाओ और उससे बात करो |’
तो मेरे सेक्रेटरी ने उसे बुलाया और उससे कहा , गुरुदेव अभी अभी आये हैं , वे चाहते हैं कि आप यहाँ से एक फलों की टोकरी , एक फूल माला और एक शॉल उस व्यक्ति के लिए ले जाईये जिसका जन्मदिन है , और उन्हें गुरुदेव की ओर से आशीर्वाद दे दीजिए |’ वह मान गया |
फिर उसने पूछा , उन्होंने हमारे पोस्टर क्यों उतार दिए ?’
मेरे सेक्रेटरी ने भोला बनते हुए कहा , ओह , आपको कोई परेशानी हुई क्या ? आपने मुझे क्यों नहीं बताया ? आपको मुझे बताना चाहिये था | गुरुदेव तो अभी अभी आये हैं , वे टूर पर गए हुए थे | उन्होंने सुना कि कोई जन्मदिन की पार्टी थी , और वे आशीर्वाद भेजना चाहते थे | इसलिए आप जाईये और ये सारा सामान अपने अध्यक्ष को दे दीजिए और उन्हें गुरुदेव का आशीर्वाद भी दे दीजिए |’
वह पूरी परिस्थिति एक दम से बदल गयी और वह बहुत शक्तिवान महसूस करने लगा | अब वह अपने बॉस के पास एक माला और मेरे आशीर्वाद के साथ जा सकता था , और उसे पार्टी में अपने से ऊंचे पद के व्यक्ति तक जाने की छूट भी मिल गयी थी |
वो जो बड़ा ड्रामा करने वाला था , वह केवल एक फोन कॉल से ही सुलझ गया | वह गर्व से अपनी पार्टी के अध्यक्ष के पास जा सकता था , और कह सकता था , गुरुदेव ने मुझे आपके लिए माला लेकर भेजा है |’
तो इस तरह वह अपने आप को शक्तिवान समझने लगा और हमारे लोगों को भी शान्ति मिली |
देखिये , जब आप जानते हैं कि किसी भी झगड़े को कैसे रफा-दफा करना है , तो ये बहुत आसान है |
सिर्फ एक फोन कॉल की ज़रूरत थी | लेकिन हर जगह एक ही युक्ति काम नहीं करती | अलग अलग जगहों पर आपको अलग अलग तरह से काम करना पड़ता है | कहीं कहीं , आपको ठोस कदम उठाने पड़ते हैं , आपको सख्ती से काम लेकर ना बोलना पड़ता है |
कभी कभी आपको कूटनीति और कुशलता से काम लेना पड़ता है |
हर समय ऐसे लोग होंगे जो शरारत करने का प्रयास करेंगे , और ऐसी परिस्थितियों को सँभालने के लिए आपको युक्ति आनी चाहिये |
हमारे पूर्वजों ने कहा कि किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए चार तरीकें होते हैं साम , दाम , भेद और दंड |
१.       साम मतलब बातचीत करके , थोड़ा समझा-बुझा के , थोड़ा विचार-विमर्श और संपर्क साध के |
२.      दाम का अर्थ है क्षमा | कोई बात नहीं , गलती हर एक से होती है और उन्हें एक दूसरा मौका देकर |
३.      भेद का अर्थ है उनसे तटस्थ हो जाएँ | थोड़ी सख्ती से और अपनी बात को स्पष्ट करते हुए |
४.      दंड अर्थात डंडा लेना , जो कि आखिरी इलाज है |
आमतौर पर हम आखिरी दोनों उपाय शुरुआत में ही प्रयोग कर लेते हैं | हम सामंजस्यपूर्ण वाले तरीके को तो अपनाते ही नहीं | आपको सबसे पहले सामंजस्य वाला मार्ग लेना चाहिये , और फिर एक मौका देना चाहिये , और उसके बाद भेद करना चाहिये , और अगर कुछ भी काम न करे , तब दंड यानी डंडा उठा लीजिए |
इन्हें कहते हैं किसी भी परिस्थिति को सँभालने के चार युक्तिपूर्ण तरीके |

प्रश्न : गुरुदेव , आपने कहा है कि हमें लोगों को हर बात की सफाई नहीं देनी चाहिये | लेकिन अगर हमारे दिल पर कोई बोझ है , और हम उसके बारे में बात करने की ज़रूरत महसूस करें , तब क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर : इसके लिए कोई एक नियम नहीं है , कभी-कभी आप बोलकर शांत हो जाते हैं , और कभी-कभी बोलने से कोई फ़ायदा नहीं होता |
जागिये और देखिये , ये पूरा विश्व एक सपने की तरह है | वो सब विचार चले गए हैं , लोगों का व्यवहार गायब हो गया है | कुछ लोग अच्छा व्यवहार करते हैं , कुछ बुरा व्यवहार करते हैं , लेकिन सब लोग मरने वाले हैं , और ये दुनिया खत्म हो जायेगी |
लोगों का ये वाला समूह सब चला जाएगा | फिर नए लोग आयेंगे और वे सब मर जायेंगे | फिर एक नया समूह आएगा , वे आपस में लड़ेंगे , एक दूसरे को गले लगाएंगे , प्यार करेंगे , चूमेंगे , सब कुछ करेंगे , और वे सब मर जायेंगे |
आज पृथ्वी पर सात अरब लोग हैं और ये सारे के सारे सात अरब लोग मर जायेंगे | बस कुछ चंद साल की बात है | अगले सौ सालों में , क्या आपको लगता है कि यही लोग यहाँ होंगे ? जितने लोग आज यहाँ हैं , उनमें से एक भी बन्दा तब जिंदा नहीं होगा | और दो सौ साल बाद , उनके पोते-पोती भी नहीं होंगे |
देखिये , ये दुनिया एक नदी की तरह है , हर पल इस नदी में ताज़ा पानी बह रहा है | ऐसा क्या है जिसके बारे में आप इतना परेशान हैं ?
अगर आप कुछ पीछे छोड़ना ही चाहते हैं , तो वो होना चाहिये कुछ ज्ञान , जिससे किसी की मदद हो सके; जो किसी के कुछ काम आ सके | ये नहीं कि उसने क्या कहा , इसने क्या कहा , और आप उस फलां परिस्थिति के बारे में क्या सोचते हैं | अरे चलिए , ये सब बकवास है ! इन सबको खिड़की के बाहर फेंक दीजिए | इसका कोई मतलब नहीं है | आप घंटो बर्बाद कर देते हैं अपनी सफाई देते हुए , कि आप क्यों वैसा महसूस कर रहे थे , या किस तरह और क्यों बाकी लोग कुछ महसूस कर रहे हैं |
क्या आप जानते हैं , कि जब समय बदलता है , तो साथ ही मन भी बदलता है | इसके पीछे एक बहुत ही सुन्दर विज्ञान है | आपको अपनी जन्मपत्री से भी इसके बारे में कुछ संकेत मिल सकते हैं , कि किस तरह मन समय के साथ सम्बंधित है |

कभी बाद में हम एक कोर्स शुरू करेंगे मन , समय और ग्रहों के बीच के सम्बन्ध के बारे में |
देखिये , मैं इसे ज्योतिष विज्ञान नहीं कहना चाहता , क्योंकि उसका तो इतनी बार गलत इस्तेमाल हुआ है और गलत तरह से समझा गया है | वह तो आज के समय का सबसे ज्यादा अव्यवस्थित विज्ञान है |
कोई शक नहीं कि ज्योतिषविज्ञान एक विज्ञान है , लेकिन इसे इतनी अच्छी तरह से तोड़ा-मरोड़ा जा चुका है , कि अब आप ये भी नहीं देख सकते कि वह वास्तव में क्या था |
वेदिक ज्योतिषी के मुताबिक बारह तारामंडल हैं , और नौ ग्रह हैं |
ऐसा कहते हैं कि आपके पैदा होने के बाद से लेकर जब बृहस्पति ग्रह आंठवे स्थान में आता है , तब उसका आपके मन पर प्रभाव पड़ता है |
इसी तरह , जब शनि ग्रह आंठवे स्थान में आता है , तब वह आपकी भावनाओं को ऊपर-नीचे कर देता है | जब बृहस्पति आंठवे स्थान में होता है , तब आप अपनी सारी बुद्धि खो देते हैं | लेकिन ऐसा केवल ग्यारह महीनों के लिए ही होता है , और इन ग्यारह महीनों में भी केवल तीन ही महीने ये आपको बहुत दुखी बना देता है | सिर्फ अगर आप बहुत गहरे आध्यात्मिक ज्ञान में हैं , या फिर प्रबुद्ध हैं , मुक्त हैं , तभी आप इससे बच सकते हैं , नहीं तो ये निश्चित तौर से आपके मन को प्रभावित करेगा | लेकिन यदि आप ये जानते होंगे , ये आने वाले तीन महीने मेरे मन और मेरी भावनाओं के लिए थोड़े भारी हैं’ , तब आप उन महीनों में कोई निर्णय नहीं लेंगे , या कुछ करेंगे नहीं |
उसी तरह , हर ढाई दिन में , हमारे मन का मूड बदल जाता है |
अगर आप दुखी हैं , तो वह ढाई दिन से ज्यादा नहीं रहेगा | उसके बाद एक अंतराल आएगा , और फिर वह वापिस आ सकता है |
इस तरह , यह ब्रह्माण्ड आपके मन पर प्रभाव डालता है |
आपको इसके प्रभाव से यदि कोई बचा सकता है , तो वह है सत्संग , ध्यान और जाप | ये सब एक कवच की तरह बन जाते हैं |
एक तीर आ रहा था , लेकिन आपके पास एक कवच है , इसलिए वह तीर आपको लगा नहीं |
इसलिए , ओम् नमः शिवाय को गाना और जाप करना इससे कितनी बार आपके चारों ओर एक कवच बन जाता है और आपको इन सब अजीब चीज़ों के प्रभाव से बचाता है |
हम बंगलौर आश्रम में पूरे विश्व की भलाई के लिए और हमारे सारे भक्तों के लिए यज्ञ करते हैं | हर महीने में छह बार एक छोटा सा यज्ञ होता है , और नवरात्रि के समय हम एक बहुत बड़ा यज्ञ करते हैं जिससे पूरे विश्व और हमारे सभी भक्तों में शान्ति व समृद्धि रहे , और वे सुरक्षित रहें |
ये सब प्राचीन लोगों के तरीकें हैं | भविष्य में हम इसके बारे में और कोर्स रखेंगे और ज्ञान पाएंगे |

प्रश्न : विचार कहाँ से आते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : आपको ये विचार अभी आया है ? ये विचार कहाँ से आया है ? ये आपके अंदर आया है , तो आप बैठ कर देखते क्यों नहीं कि ये कहाँ से आ रहा है ?
जिस पल आप बैठ कर ये सोचते हैं कि इस विचार का मूलस्त्रोत क्या है , आपका मन एक दम से खाली हो जाता है | ये इस बात का संकेत देते है , कि विचार कहाँ से आ रहे हैं |
आप ही वह स्त्रोत हैं , जहाँ से विचार आते हैं , आइडिया और भावनाएं आती हैं वह आंतरिक स्थान |
ये तो वही बात हुई , कि आप किसी से पूछें बादल कहाँ से आते हैं ?’
बादल तो बस आकाश में मंडरा रहे हैं | उसी तरह , हमारे आंतरिक आकाश में , तीन आकाश हैं एक बाहरी स्थान , दूसरा अंदर का स्थान जहाँ विचार और भावनाएँ आती हैं , और फिर एक तीसरा स्थान जो इन सबका साक्षी है | यहाँ कुछ नहीं है , केवल आनंद है |

प्रश्न : ऐसी श्रद्धा कैसे पाएं जो कभी हिले ही नहीं ?
श्री श्री रविशंकर : अगर वह सच्ची श्रद्धा है , तो उसे हिलने दीजिए |
सत्य कभी नहीं जाएगा , और यदि आपकी श्रद्धा सत्य के साथ है , तो उसे हिलने दीजिए | वह कभी खोयेगी नहीं |
बल्कि , आपको तो ज्यादा से ज्यादा शक करना चाहिये |
आप कह सकते हैं
, शक मत करो’ , लेकिन आप ये तभी कहेंगे जब कोई बात पहले से ही सच्ची नहीं है |
अगर शुद्ध सोना है , तो मैं कहता हूँ , कि जितना मुमकिन हो उसे उतना खरोंचो | लेकिन अगर वह सिर्फ सोने में लिपटा है , या सोने की पॉलिश है , तो आप कहेंगे , इसे ज्यादा मत कुरेदो , नहीं तो सोना निकल जाएगा’ |
सच्चे सोने के साथ , आप जितना भी कुरेदेंगे , वह निकलेगा नहीं |
आपको संशय तभी होता है , जब आपमें ऊर्जा की कमी होती है | जब आप ऊर्जा से भरे होते हैं , तब संशय कहाँ है ?
संशय तभी आता है जब आपकी प्राणशक्ति कम होती है | सच्ची श्रद्धा वही है , जिसे यदि आप सौ बार भी हिलाएँ , लेकिन फिर भी वह रहती है | वही सच्ची श्रद्धा है , और वह रहती है |

प्रश्न : आपने कहा था कि आश्रम आईये और पुनर्जनन पाईये ये पूरा विश्व ही आश्रम क्यों नहीं है ?
श्री श्री रविशंकर : मेरे लिए तो पूरा विश्व ही मेरा आश्रम है |
लेकिन जब आप किसी भौतिक जगह में आते हैं , या फिर किसी आश्रम में , जहाँ हमेशा ध्यान हो रहा होता है , तब उस जगह में वैसी तरंगें होती हैं |
देखिये , आपके घर में भोजन करने की एक जगह है , एक विश्राम करने की जगह है , एक कूड़ा रखने की जगह है | उसी तरह , दुनिया में हर चीज़ की एक जगह है |
मैं तो चाहूंगा कि आप सब अपने अपने घर को आश्रम बनाएँ | और आश्रम क्या होता है ? ये एक ऐसी जगह है , जहाँ ज्ञान है , और जहाँ प्रेम है | ये एक ऐसी जगह है , जहाँ जो भी आये उसका स्वागत होता है , और उसे कुछ भोजन देते हैं , ताकि वह आकर वहां विश्राम कर सके |
यदि आप ऐसी शक्ति पैदा कर सकते हैं , तब पूरा विश्व ही आश्रम है | बल्कि , जब आप किसी जंगल में जाकर प्रकृति के साथ समय व्यतीत करते हैं , तब वह भी आश्रम ही है |
मैं तो कहूँगा कि इस विश्व में हर एक पेड़ , मेरे ही बगीचे में है , मेरे ही आश्रम में है | यही बात है , लेकिन कभी कभी आपको ऐसा लग सकता है कि इससे तो काम नहीं बन रहा , और आपको एक ऐसी जगह चाहिये , जहाँ आप जा सकें , और अपने को ऊर्जावान बना सकें | तब आप यहाँ (आश्रम में) आईये |
आप यहाँ की ऊर्जा को सहज ही महसूस कर पाएंगे | ठीक वैसे ही , जैसे आप कहीं भी हों , लेकिन अगर आपको भोजन की सुगंध चाहिये , तो आपको रसोई घर की तरफ ही जाना होगा | आप खा कहीं भी सकते हैं , लेकिन रसोई घर में या डाईनिंग रूम में सुगंध रहती है |

प्रश्न : क्या आत्मा का कोई लक्ष्य होता है ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ , बिल्कुल ! आत्मा का लक्ष्य होता है , कि वह परम-आत्मा से एक हो जाए | छोटे मन का लक्ष्य होता है कि वह बड़े मन से एक हो जाए |
हर लहर चाहती है कि वह तट को धो दे , और समुद्र में मिल जाए , उस समुद्र में जो वो पहले से ही है !

प्रश्न : समय क्या है ?
श्री श्री रविशंकर : दो घटनाओं के बीच की दूरी |
अब अगर आप पूछेंगे कि दूरी क्या होती है , तो मैं कहूँगा कि दो वस्तुओं के बीच का स्थान |

प्रश्न : मूल स्त्रोत तक वापिस कैसे जाएँ ?
श्री श्री रविशंकर : सिर्फ शांत रहकर , ज्ञान को भूलते हुए , खुलते हुए आप सहज ही मूलस्त्रोत तक पहुँच जायेंगे |

प्रश्न : क्या आप हमें कलयुग के बारे में बता सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : चार युग हैं , समय को चार पहलुओं में बांटा गया है
१.       सतयुग जब बहुत सी सकारात्मकता होती है |
२.      त्रेतायुग जब सकारात्मकता थोड़ी सी नीचे हो जाती है |
३.      द्वापरयुग जब सकारात्मकता थोड़ी सी और नीचे चली जाती है |
४.      कलयुग जब सकारात्मकता थोड़ी और नीचे हो जाती है |

यही कलयुग के बारे में कहा गया है | लेकिन मैं आपसे कहूँ , कि कलयुग में भी सतयुग है | जिन दिनों आप खुश महसूस करते हैं , ये जानिये कि आप सतयुग में हैं | और जब आप बिल्कुल दुखी हैं , तब आप कलयुग में हैं |
इस तरह से देखें , तो महा कलयुग में अच्छा समय भी है |

प्रश्न : आपने कहा है कि सत्य परस्पर विरोधी है | क्या आप इसे समझने का आसान तरीका बता सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : दूध अच्छा है और दूध बुरा है |
यदि आप दूध का एक गिलास पीते हैं , तो दूध अच्छा है | लेकिन अगर दो लीटर पीते हैं तो बुरा है | समझ गए ? !
यदि आप Freudenstadt (जर्मनी में एक स्थान) से Bad Antogast (जर्मनी का दूसरा स्थान) जाते हैं , तो आपको सीधा जाकर अपनी दायीं ओर मुड़ जाना है | लेकिन Oppenau (जर्मनी का तीसरा स्थान) से आने के लिए आपको सीधा आना है और बाएं मुड़ना है |
ये दोनों निर्देश सही हैं , लेकिन ये परस्पर विरोधी हैं |
सत्य गोलाकार है , यह एक रेखा में नहीं है | जब कोई चीज़ गोलाकार होती है , तब उस तक पहुंचने के लिए एक से अधिक रास्ते होते हैं |

प्रश्न : क्या भारत फिर से वैसा ही देश बनने वाला है जैसा वह २००० वर्ष पूर्व था ?
श्री श्री रविशंकर : यदि राजनेता ऐसा होने देंगे , तो ऐसा ज़रूर होगा |
ये राजनेता हर जगह एक मुसीबत बन गए हैं , इटली में , भारत में , ग्रीस में | ये राजनेता ही हैं , जो देश को कंगाली की हालत में ले जा रहे हैं |
हर देश में पर्याप्त मात्रा में साधन हैं और अच्छे लोग हैं | सक्रियता है , लेकिन भ्रष्टाचार इन सभी देशों को एक प्राचीन और मध्यकालीन युग में ले जा रहा है |