बुद्धिमान व्यक्ति ध्यान करते हैं |

२१
२०१२
दिसंबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत

प्रश्न : प्रिय गुरूजी , कहा गया है कि भक्ति का चिन्ह है सदैव प्रसन्न रहना | तो फिर भगवान अधिकतर तभी क्यों सुनते हैं जब भक्त दुःख में , दर्द में या लालसा में पुकार उठते हैं ? मैं हैरान हूँ | क्या मैं भगवान का ध्यान पा सकता हूँ रोये बिना ? क्या एक प्रसन्न भक्त भी भगवान से वही ध्यान पा सकता है ?
श्री श्री रविशंकर : बिलकुल ! एक दुखी भक्त को सुनना ही पड़ेगा भगवान को , और एक खुश भक्त की सुनने में अति प्रसन्नता होती है !
प्रश्न : गुरुदेव , एक बुरी घटना पूरे देश को हिला देती है , पर बहुत सी अच्छी घटनाएँ क्यों अनदेखी हो जाती हैं बिना कोई तरंग उठाये ?
श्री श्री रविशंकर : उत्तेजना ऐसी ही बुरी घटना की ताक में होती है | लोग बहुत आसानी से उत्तेजित हो जाते हैं | यह इसलिए क्योंकि तनाव पहले से ही होता है और उस तनाव को एक निकास चाहिए | इस लिए उत्तेजना पैदा होना बहुत आसान होता है |
यदि हम एक आन्दोलन बुलाएँ , तो आप देखेंगे सब लोग उसका हिस्सा बनेंगे , पर ध्यान करने के लिए केवल बुद्धिमान लोग ही जुडेंगे |
फिर भी , मुझे लगता है समय बदल रहा है | हम जहाँ भी जायें , हमें ध्यान के लिए अधिक लोग मिलते है बजाय मोर्चा उठाने के लिए | इसीलिए मैंने कहा कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव आ रहा है |
मीडिया को उत्तेजना सबसे अधिक पसंद है | देखो , यहाँ हम हज़ारों लोग बैठे हैं और इसके एक चौथाई लोग भी टाउन हॉल में प्रदर्शन और नारेबाज़ी नहीं कर रहे | पर मीडिया को उस घटना में अधिक रुचि है जबकि वहां केवल ५०० व्यक्ति होंगे | मीडिया नकारात्मक खबरें बेहतर और अधिक जोश से प्रस्तुत करता है |

प्रश्न : गुरूजी , एक युवक के तौर पर मैं आपके आस पास की शांति और सुकून की ओर आकर्षित होता हूँ और संसार इन सबसे विपरीत प्रतीत होता है | यदि मैं संसार से हट कर एक सन्यासी बन जाऊं तो क्या यह अपनी ज़िम्मेवारियों से भागना होगा ?
श्री श्री रविशंकर : एक सन्यासी ज़िम्मेवारियों से भागता नहीं है , बल्कि अधिक ज़िम्मेदारी लेता है | पूरे विश्व की ज़िम्मेदारी लेना , यह होता है सन्यासी होना | अभी मैं आश्रम वासियों को बता रहा था कि हम यहाँ एक सैरगाह में हैं , हमें शहरों में जाना चाहिए जहाँ सब कुछ हो रहा है | मैं सब युवकों को और उनकी क्षमताओं को आश्रम में रोक कर नहीं रखना चाहता | मैं चाहता हूँ कि आप वहाँ समाज में कार्यशील हों | हमें ही दुनिया में शान्ति और अमन को लाना है |
आप नहीं कह सकते , मैं कितना शांत हूँ , मैं यहीं रह जाता हूँ | यहाँ आने की आवश्यकता अवश्य है | जैसे आप अपना मोबाइल फोन समय समय पर चार्ज करते हैं पर उसे हर समय चार्ज पर नहीं रख सकते | आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल कैसे करेंगे ? और वो मोबाइल कहाँ रहेगा ? आप मोबाइल को चार्ज करते हैं और फिर चार्जर से हटा देते हैं | उसी प्रकार आपको वहाँ काम करना है और यहाँ भी आना है; दोनों करना है |

प्रश्न : गुरूजी , शादी की रस्म का क्या महत्व है ? यदि दो लोग आपस में प्रेम करते हैं और एक दूसरे की इज्ज़त करते हैं , क्या वे केवल एक साथ रहने का निर्णय ले सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : शादी की रस्म एक संकल्प है | आप एक साथ रहते हैं एक संकल्प के साथ | जब एक संकल्प होता है , तो आपको एक दूसरे में पूरा विश्वास होता है | आपके जीवन का एक पहलु तय हो जाता है | यह है शादी का महत्व | नहीं तो , आपका मन एक साथी ढूँढता रहता है | शादी में , साथी की खोज का अंत हो जाता है , “अब मुझे एक साथी मिल गया है , अब यह पहलु निश्चित हो गया है , अब मैं और कार्यों पर ध्यान दे सकता हूँ” | जब संकल्प होता है , वह आपको एक निश्चित मार्ग पर ले आता है |
प्रश्न : गुरूजी , जीवन में जो लोग एक दूसरे के साथ मेल नहीं खाते , उनको साथ जोड़ दिया जाता है , और जो एक दूसरे के साथ एकदम मेल खाते हैं , वे एक साथ नहीं हो पाते | क्या यह ईश्वर की कोई योजना है ? क्या वे जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं ?
श्री श्री रविशंकर : आपका अभिप्राय अपने विवाह से है ?
आप जानते हैं , जब आप की आपस में नहीं बनती , तब आप वे सब दिन भूल जाते हैं जब आपकी अच्छी बनती थी | क्योंकि जिन दिनों आपकी बनती नहीं है आप सोचते हैं , “ओह , शुरू से ही हमारी नहीं बनी” | एक अमेरिकन जोडा जिनकी शादी को ४० वर्ष हो गए थे , मेरे पास आये और बोले कि वे तलाक लेना चाहते हैं | वे महिला बोलीं , “आप जानते हैं गुरूजी , हमारी शादी को ४० वर्ष हो गए हैं पर हमारी एक दिन भी नहीं बनी” | मैंने कहा , “आप एक साथ ४० वर्ष कैसे गुज़ार सकते हैं बिना एक दिन भी आपस में बने” ? वे ६० से ७० साल के तो अभी हैं ! वे ४० वर्ष से निभा नहीं पा रहे थे पर फिर भी वे साथ थे | आमतौर पर अमेरिकन समाज में ऐसा होता नहीं है | यदि दो लोगों की आपस में नहीं बनती , तो वे साथ रहते ही नहीं हैं | अचानक अपने दिमाग में आप सोचते हैं , “ओह , हमारी तो कभी भी नहीं बनी !” यह दुनिया ऐसी ही है | कोई प्रत्याभूति नहीं है कि जिन्हें आप समझते हैं कि उनके साथ आपका बहुत अच्छा मेल होगा , उनके साथ आपकी बने ही | हमेशा दूसरी ओर की घास अधिक हरी लगती है !

प्रश्न : गुरुदेव , अष्ट गणपति के बारे में कुछ बताइए |
श्री श्री रविशंकर : आठ का अंक आठ प्रकृतियों से जुड़ा है अष्ट प्रकृति | अष्ट प्रकृति कौनसी हैं ? धरती , आकाश , जल , वायु , अग्नि , मस्तिष्क , बुद्धि , और अहं | ये सब हमारी प्रकृति में होते हैं | एक संत या ज्ञानी व्यक्ति ने कहा , हर प्रकृति के लिए एक गणपति निर्धारित कर देते हैं | इन सब बातों में पड़ने की आवश्यकता नहीं है | क्यों १२ ज्योतिर्लिंग या अष्ट गणपति क्यों ? पुराने समय में यह सब बातें समाज को एकजुट करती थीं | प्राचीन समय में लोग जनता को जोड़ना चाहते थे क्योंकि हमारे देश में हर ६०० किलोमीटर पर भाषा और संस्कृति बदल जाती थी | पूर्व , पश्चिम , उत्तर और दक्षिण में कुछ भी समानता नहीं है | ऐसे में आप देश को कैसे जोड़ें ? तब वे कहते थे , “१२ ज्योतिर्लिंगों तक जाओ | काशी जाओ , रामेश्वरम जाओ , त्रिम्बकेश्वर जाओ” वगेहरा | इस तरह वे धार्मिक पर्यटन और राष्ट्रीय एकता बढाते थे | बस | ऐसा ही अष्ट गणपति के साथ भी है | उद्देश्य था कि लोग महाराष्ट्र के हर कोने में जाएँ | वे लोगों को जोड़ना चाहते थे तीर्थयात्रियों की तरह | तीर्थ दर्शन ही तब पर्यटन था | जब धार्मिक स्थलों पर जाना हो तो लोग सोचते हैं , “मुझे यह करना है” , इसी लिए उन्होंने विभिन्न मंदिर बनाये लोगों के जाने के लिए |

प्रश्न : गुरुदेव , क्रिया करने के बाद बहुत बार मैं खुद को अनजाने ही मुस्कुराता हुआ पाता हूँ | जब मैं अकेला होता हूँ तब भी मुस्कुराता रहता हूँ | मुझे स्वयं नहीं पता होता कि मैं मुस्कुरा रहा हूँ | हर कोई सोचता है कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है | मैं उनसे क्या कहूँ ?
श्री श्री रविशंकर : आपको गंभीरता से स्वयं को देखना चाहिए यदि हर कोई सोच रहा है कि आपके साथ कुछ गड़बड़ है | यदि हर कोई ऐसा बोल रहा है तो ठीक नहीं है | आपको उनके मत पर ध्यान देना चाहिए | यहाँ मैं ये नहीं कहूँगा कि आप दूसरों के विचारों की गेंद बन जाइए | जो आप सोचते हैं एक बात है , और कैसे उसे व्यक्त करते हैं , यह दूसरी | आप बहुत शांत , या खुश महसूस कर सकते होंगे , पर जब आप उसे व्यक्त करते हैं , तो आप को देखना चाहिए कि आप उसे कैसे और कहाँ व्यक्त करें |
प्रश्न : प्रिय गुरूजी , क्या आपकी कुछ ख़ास पसंद हैं ? आपका सबसे पसंदीदा व्यक्ति कौन है ? आपका ख़ास राग कौनसा है ? ख़ास खेल कौनसा है ?
श्री श्री रविशंकर : मैं इनमें से कुछ भी नहीं बताऊँगा , क्योंकि मेरी ऐसी कोई ख़ास पसंद नहीं है | एक बार , बहुत पहले , मैं इंगलैंड में था और एक महिला ने मुझसे पूछा , “गुरुदेव , मैं आपके लिए नाश्ते में क्या बना सकती हूँ ?
मैंने कहा , “कुछ भी बना लीजिए , जो भी आपको पसंद हो” |
तो वे बोलीं , “क्या मैं ढोकला बना सकती हूँ ?” मैंने कहा , “हाँ ढोकला बना सकती हैं” |
उन्होंने पूछा , “क्या आपको पसंद है ? , मैंने कहा “हाँ” |
तो उन्होंने ढोकला बनाया और सबको फोन करके कहा , “गुरुदेव को ढोकला बहुत पसंद है” | ज़रा सोचिये , फिर क्या हुआ | हर दिन , जहाँ भी मैं गया अगले १५ दिनों तक , नाश्ते , दिन के भोजन और रात के भोजन में बस ढोकला ही मिला |

प्रश्न : गुरुदेव , मैं आप जैसी हास्य विनोद की कला कैसे पाऊँ ?
श्री श्री रविशंकर : आपके पास पहले से ही है | निश्चिन्त रहिये | किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश मत करिये | मुझे बहुत अफ़सोस होता है उन लोगों को देख कर जो मज़ाकिया होना का प्रयत्न करते हैं | ये हास्य अभिनेता कहलाने वाले , हर दिन संघर्ष करते हैं नए चुटकुले ढूंढने के लिए , लोगों को हँसाने के लिए | और वो सब कितनी नकली हंसी होती है | यदि आप उन सब अभिनेताओं को देखें तो वे सब दुखी हैं | यह सही में मज़ाकिया नहीं होता , उनको देख कर रोने का मन करता है |