गुरु के समीप बैठना

२९
२०१२
दिसंबर
बैड एंटोगस्त, जर्मनी

प्रश्न : उपनिषदों में आपने गुरु के समीप जाने के बारे में बात करी है | क्या इसका अर्थ है कि हम शारीरिक रूप से गुरु के समीप बैठें ?
श्री श्री रविशंकर : हम तो यहाँ पहले से ही हैं | हम सब के शरीर एक दूसरे के समीप ही तो बैठें हैं , है कि नहीं ?
निकटता मन से आती है और आपके दिल में महसूस होती है | यदि आपका मन कहीं और है , और वह संशय व नकारात्मकता से भरा है , तब आप अगर मेरे समीप बैठें भी होंगे , तो भी कोई फ़ायदा नहीं होगा | लेकिन यदि आपका दिल साफ़ है और आपका मन शुद्ध है ; अगर आपका स्पष्ट उद्देश्य है , तब अगर आप मुझसे हज़ारों मील दूर भी हैं तब भी मेरे समीप हो जायेंगे |
तब ही आपको इस बात का पूर्ण बोध होगा , कि हम एक हैं , हम साथ हैं |
जब ऐसा पूर्ण अनुभव हो , तभी निकटता होती है |
लेकिन यदि आप यहाँ बैठ कर ये सोचेंगे , ओह , गुरुदेव आखिर क्या चाहते हैं ? शायद ये कोई अधिकार ज़माना चाहते हैं’ , तब ऐसा नहीं हो पायेगा |
एक महिला ने मुझसे पूछा , आप ऐसा क्या करते हैं जो आप इतने लोगों पर अधिकार जमा पाते हैं ?’
मैंने उन्हें बताया , लोगों के ऊपर अधिकार ? मैं तो खुद ही बल हूँ | मुझे किसी से बल नहीं चाहिये | मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिये |’
देखिये , आप अपना बल ज़माना चाहते हैं क्योंकि आपको लोगों से कुछ चाहिये होता है , और आप वो निकलवाना चाहते हैं | लेकिन मुझे कुछ नहीं चाहिये | मैं बस इतना चाहता हूँ कि सब लोग खुश रहें , और आध्यात्मिक पथ पर चलें | बस इतना ही |
देखिये , आज इस दुनिया को आध्यात्मिक ज्ञान चाहिये | हमें एक हिंसा-विहीन समाज चाहिये |
क्या आप जानते हैं कि भारत में क्या हुआ ? इतनी भयानक घटना हुई | ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है ; पूरे देश में लोग आग-बबूला हैं | आज महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं , क्योंकि अपराध इतने बढ़ गए हैं | लोग एक दूसरे को इंसान नहीं समझते |
तो हमें ये चाहिये | हम एक सुरक्षित संसार चाहते हैं , जिसमें अपराध न हो | और हम सबको इसी की आशा रखनी चाहिये | हम सबको समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहिये , है न ?
कोई मुझसे कह रहा था , गुरुदेव , आपके पास कितनी ताकत है’ ; कैसी ताकत ?
मैंने कहा , तुम अगर कहोगे कि मैं लोगों पर रौब जमाता हूँ , तो मैं इसे अपना अपमान समझूंगा |’
ये सिर्फ लोगों के मन का खेल है , ओह ये आध्यात्मिक गुट , ये पंथ , वे सब पर रौब जमाते हैं’ , ये सब बकवास है |
मैंने उन महिला से पूछा , क्या आप मदर टेरेसा से भी यही बात पूछेंगी ?’ नहीं! और क्यों नहीं ? क्योंकि वे एक स्वीकृत धार्मिक परंपरा से जुडी हुई थीं (ईसाई धर्म)
किसी ने भी कभी भी नहीं कहा , कि मदर टेरेसा लोगों के ऊपर रौब जमाती थीं ; लोगों से काम निकलवाती थीं |
केवल उनकी मोनास्ट्री में ही चार हज़ार लोग रहते थे | उन सबने अपने अपने घर छोड़ दिए थे और दरिद्रता का प्रण लिया था |
मैं किसी से भी उनके घर छोड़ने के लिए नहीं कहता | मैं हमेशा कहता हूँ , अपने घर को संभालो और जहाँ भी हो खुश रहो ; समाज में रहो |
चार हज़ार महिलाएं आयीं और वे सब उनके साथ रहीं , इस उम्मीद में कि उन्हें मोक्ष मिल जाएगा | लेकिन आप जाकर मदर टेरेसा को ये नहीं कहेंगे कि आप लोगों पर रौब जमा रहीं हैं | ये आपके मन का वहम है |
हाँ , बेशक आध्यात्म के मार्ग पर बहुत से सच्चे लोग नहीं हैं | इसीलिये मैं लोगों को स्पिरिचुअल शौपिंग पर जाने की सलाह नहीं देता | सिर्फ ज्ञान से जुड़े रहिये , एक पथ से जुड़े रहिये | दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं , जो आध्यात्म के नाम पर क्या क्या नहीं करते | हालांकि आजकल ये बात सच है , लेकिन हमें इस बारे में कोई वहम नहीं पालना चाहिये | हमें ये नहीं कहना चाहिये , कि हर आध्यात्मिक संस्था लोगों का इस्तेमाल कर रही है , और इस तरह की बातें | इससे बाकी लोगों के मन में भी वहम आता है | मैंने हमेशा कहा है कि एक संस्था केवल एक फ्रेम की तरह है जो किसी तस्वीर को एक जगह रखती है | उसकी ज़रूरत है | एक संस्था के बिना कुछ काम नहीं होगा |
क्या आप जानते हैं कि कितने लोग हैं जो पीछे आपके अच्छे रहने , अच्छे भोजन और बाकी सब के लिए काम कर रहे हैं ? आपको उन सबको धन्यवाद देना चाहिये जिन्होंने इतना अच्छा इटालियन भोजन बनाया है | इन्होंने ये काम कोई नौकरी या पेशा समझ के नहीं किया है , बल्कि निस्वार्थ सेवा के रूप में किया है | लोग पूरी भक्ति से काम करते हैं , अपना पूरा मन और दिल लगा कर सेवा करते हैं | मैं खुद भी करता हूँ!
मैं पूरे विश्व में यात्रा करता हूँ और लोगों को कोर्स सिखाता हूँ , मैं किसी से कोई पैसे नहीं लेता , न ही अपने लिए कुछ रखता हूँ | तो मेरे साथ जो भी कोई काम करता है , वह भी सहजता से ऐसा ही करता है | अगर मैंने सारा पैसा अपने पास रखा होता , तो मैं अब तक अरबपति बन गया होता |
मैं आता हूँ , और कोर्स लेता हूँ , और एक जगह से दूसरी जगह जाता हूँ | अगर मैं एक साल तक इस आश्रम में नहीं आऊँगा , तो इस आश्रम को बन कर देना पड़ेगा | ये लोग अकेले इसे नहीं चला सकते | तो इसलिए मैं समय समय पर आकर इनके काम में मदद करता हूँ |
ऐसा मत सोचिये कि हर एक कोई काम करता है और उसका फल गुरु को दे देता है | बल्कि , आप को ये मालूम होना चाहिये कि वे गुरु हैं , जो काम करते हैं और सबको सहारा देते हैं | ये उलटी बात है |
मैं दिन में 19 घंटे काम करता हूँ और मैं कितने सारे लोगों को सहारा देता हूँ | और मैं बस इतना चाहता हूँ कि वे खुश रहें | यदि वे नाखुश रहते हैं , तो मैं भी नाखुश हो जाता हूँ |
क्या आप जानते हैं कि इन दिनों दुनिया में बहुत अविश्वास हो गया है |
पति-पत्नी के बीच में अविश्वास , बच्चों और माता-पिता में , पड़ोसियों में | हाँ , अगर पूरी व्यवस्था ही ऐसी हो जायेगी तो हमारा समाज वाकई में बीमार हो जाएगा | इसे बदलना होगा |
लोगों को अपने ऊपर ही भरोसा नहीं होता | हमें खुद पर भरोसा होना चाहिये , समाज की अच्छाई पर भरोसा होना चाहिये और उस अनदेखी शक्ति , उस दिव्यता पर भरोसा होना चाहिये जो सर्व-व्याप्त है | ये तीन तरह के विश्वास बहुत ज़रूरी हैं , और अध्यात्म यही है |
खुद पर विश्वास करिये , अपने आस-पास के लोगों पर विश्वास करिये और दिव्यता में विश्वास करिये | यही इसका सार है |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहता है कि समय बदल रहा है और आकाश स्थिर है | प्राचीन ग्रन्थ कहते हैं कि समय स्थिर है और आकाश बदल रहा है | क्या आप इस घटना को समझा सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : समय में भी दो प्रकार के समय होते हैं |
एक वह समय जो बदलता है , यानि , भूत , वर्तमान और भविष्य ; और दूसरा है महाकाल जो बदलता नहीं ; इसी को केन्द्र बिंदु रखकर बाकी सारे समय मौजूद हैं |
जब आप कहते हैं कि कुछ बदल रहा है , तो आपको एक ऐसे केन्द्र-बिंदु की आवश्यकता होगी जिससे कि आप उस बदलते समय को मापेंगे | परिवर्तन को जानने के लिए कुछ ऐसा तो ज़रूर होगा जो कि नहीं बदल रहा , फिर चाहे वह आकाश के सन्दर्भ में हो या समय के सन्दर्भ में |
इसलिए , ये केन्द्र-बिंदु बदलता नहीं है और यही सभी परिवर्तनों का मूल है |
समय को जानने के लिए , आपको मन को जानना होगा | जब तक आप मन को नहीं जानेंगे , आप समय को नहीं पहचान सकते , और मन अपरिमेय है | इसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता |
इसीलिये , आप जितने अंश तक मन को समझ पाएंगे , उतने ही अंश तक समय को भी समझ पाएंगे |

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया हमें समझाएं कि (Blessing) ब्लेस्सिंग किस तरह काम करती है ?
श्री श्री रविशंकर : (Blessing) ब्लेस्सिंग और कुछ नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा है जो एक शुद्ध मन से निकलती है |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , आपने कितने सुन्दर ढंग से वैराग्य के बारे में और व्याकुलता रहित रहने के बारे में बताया है , लेकिन जब आप आस-पास होते हैं , तब ये सारा ज्ञान खिड़की के बाहर चला जाता है और केवल व्याकुलता ही रहती है |
श्री श्री रविशंकर : ये तो मन का स्वभाव है कि वह किसी को पकड़ के बैठना चाहता है | तो जब तक ये बाकी सब चीज़ों से मुक्त नहीं हो जाता , तब तक एक चीज़ को पकड़ के रखना ठीक ही है |
लेकिन जैसे जैसे मन शान्त होगा , तब समय के साथ ये उस एक चीज़ से भी मुक्त हो जाएगा |

प्रश्न : गुरुदेव , क्या ये समझना ठीक है कि बच्चे न करने से या किसी रिश्ते में न पड़कर आपका कर्म कटता है , या ये केवल मेरी मर्जी के ऊपर है ?
श्री श्री रविशंकर : ये सिर्फ आपकी मर्जी पर निर्भर है | असली बात ये है कि आप अपने मन को किस तरह सँभालते हैं |

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया क्या आप उन तीन ध्यानों के बारे में बात कर सकते हैं जो 12.12.12. को मानवता , पृथ्वी और इस पूरे ब्रह्माण्ड के लिए की गयीं थीं ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये , आप ध्यान के प्रभाव को कुछ सीमित मापदंडों से नहीं माप सकते | इसका प्रभाव हमारे जाने-बूझे मापदंडों से भी परे है | इसका प्रभाव अवश्य है , और इसके इस प्रभाव को समय ही बताएगा |

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव , आप कहते हैं कि ये शरीर केवल कुछ ही समय के लिए है | तब फिर महाभारत में भीष्म पितामह इतने लंबे समय तक कैसे जीवित रहे और उन्होंने मृत्यु भी अपनी मर्जी से प्राप्त करी ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , मैं भीष्म की वकालत नहीं करूँगा , या फिर किसी भी और किरदार की | आप किसी वकील के साथ या किसी मानव-विज्ञानी के साथ बैठकर ये सारी रिसर्च कर सकते हैं |
जब हम छोटे बच्चे थे , हम यहाँ तक आश्चर्य करते थे कि कैसे एक पक्षी अपनी पीठ पर इतने सारे लोगों को बिठा सकता है | हम सोचते थे कि पक्षी की पीठ तो इतनी छोटी है , वहां ये झरोखा कैसे बन गया |
आम तौर पर पौराणिक चित्रों और कथाओं में हमने एक पक्षी के बारे में पढ़ा है और देखा है , कि वह अपनी पीठ पर एक बड़ा मंडप लेकर उड़ रही है |
लेकिन , आप जानते हैं कि जब आप विज्ञान में और गहरे जाते हैं , तब आप पायेंगे कि हमारे वैज्ञानिक भी ये बात कहते हैं कि वास्तव में इतने बड़े बड़े पक्षी हुआ करते थे , जिनका भार ३०० टन के लगभग होता था |
डायनासोर के ज़माने में , इतने बड़े बड़े पक्षी हुआ करते थे कि वे हवाई जहाज जैसे थे | यदि वे इतने बड़े थे , तो आप निश्चय ही दस लोगों को उनके ऊपर बिठा सकते थे | और दस ही क्यों , सौ लोग भी उनके ऊपर बैठ सकते थे |
उन पक्षियों को इस तरह के काम करने की ट्रेनिंग दी जा सकती थी | ये सब बिल्कुल संभव है |
हमें हमेशा यही कहना चाहिये , कि सब कुछ संभव है’ |

प्रश्न : गुरुदेव , हम किस तरह सजगता और सावधानी हर समय बरकरार रख सकते हैं , और जब सब कुछ गड़बड़ हो रहा हो , तब भी क्रोधित कैसे न हो ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , कभी कभी यदि आप क्रोधित हो भी जाते हैं , तो कोई बात नहीं | सिर्फ क्रोधित ही रहिये | लेकिन उसे आपके सिर में ज्यादा देर तक नहीं रहना चाहिये | उसे सिर्फ आकर चले जाना चाहिये |
क्रोध लाज़िमी है और कभी कभी ज़रूरी भी है | इसलिए , उसे रहने दीजिए |
यदि वह किसी अच्छे कारण के लिए है , यदि आपका गुस्से से लोगों का भला हो रहा है , तब वह ठीक है | लेकिन , यदि आपका गुस्सा आपका खुद का ही सिर काट रहा है , आपकी उंगली , या फिर आपको परेशान कर रहा है , तब फिर वह ठीक नहीं है , और आप उसके बारे में सावधान हो जाएँ |
क्या आप जानते हैं कि आप नाराज़ क्यों होते हैं ? क्योंकि या तो आपको लगता है कि दूसरे गलत हैं , या फिर आपको लगता है कि आप खुद गलत हैं और आप खुद से ही नाराज़ होते हैं |
इसीलिये , ये ज्ञान आपके लिए ज़रूरी है , क्योंकि इससे आप अपने मन को संभाल सकते हैं |
यदि आप बहुत बिगड़े हुए हैं , तब आप ये नहीं देख पाते कि आपके पास क्या है , और आप ये भी नहीं देख पाते कि आप क्या हैं |
इसलिए , प्रकृति आपको सही समय पर सही पाठ पढ़ाती है और वास्तविकता के प्रति आपको जागृत करती है |