जो ज्ञान त्रिकाल में सत्य है, वह शुद्ध ज्ञान है

बंगलोर आश्रम, भारत ३ दिसंबर २०११

प्रश्न: अगर एक व्यक्ति को लगता है कि वह किसी काम का नहीं है तो, वह जीवन में कैसे बढ़ सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ समय यहां रहो, और यह जान लो कि भगवान कोई भी बेकार चीज़ नहीं बनाते हैं। इस पृथ्वी पर जो कोई भी मौजूद है वह किसी ना किसी काम का है ही।

प्रश्न: इन में से किस का महत्व अधिक है - मोक्ष यां प्रेम और कृतज्ञता?
श्री श्री रवि शंकर: अपने भीतर कुछ मात्रा में मुक्ति ना हो तो प्रेम या कृतज्ञता का अनुभव नहीं हो सकता है। मोक्ष मुक्ति है। यह सब साथ साथ ही चलते हैं। जीवन में जितनी मुक्ति होगी, उतनी ही कृतज्ञता का अनुभव होगा।

प्रश्न: मेरे बहुत से मित्र हैं, फिर भी मुझ में असुरक्षा का भाव अब भी है। मैं क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसा पहले होता था ना! इस समय तो नहीं है न! बस आगे देखो।

प्रश्न: जब से यह ब्रह्माण्ड बना है, तभी से आत्मायें भी हैं। क्या उनकी संख्या बढ़ रही है या घट रही है? मुझे आत्माओं का गणित समझ नहीं आता।
श्री श्री रवि शंकर: कई प्रजातियां लुप्त भी हो रही हैं! कई सांप, बिच्छू, गौरेया, तितलिया...हो सकता है कि वे मनुष्य बन कर आ रहे हों!

प्रश्न: गीता के दस्वें अध्याय का अंतिम श्लोक किस प्रकार के लोगों के लिये कहा गया है?
श्री श्री रवि शंकर: भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘विश्व में तुम जो भी कुछ देखते हो वह सभी मेरा ही एक अंश है। जहां भी तुम कोई अच्छाई देखते हो, वो मैं ही हूँ। जहां भी तुम तीक्ष्ण बुद्धि देखते हो, वह मैं ही हूं। कहीं भी तुम वीरता देखते हो, वह मैं ही हूं। यह पूरा विश्व मेरा ही प्रतिबिंब है’।

प्रश्न: मेरी एक सहेली कुछ दिनों से अस्वस्थ है और साधना भी नहीं कर रही है। उसका बर्ताव समझ नहीं आता। इन सब की क्या वजह हो सकती है?
श्री श्री रवि शंकर: हो सकता है वह ठीक से भोजन नहीं ले रही है, अपने शरीर का ख्याल नहीं रख रही है। वह अपना नाड़ी परीक्षण करवा सकती है। शरीर में नरवस सिस्टम अगर कमज़ोर हो तब भी ऐसा हो सकता है। शरीर में अगर लीथियम की मात्रा कम हो तब भी मन खोया खोया सा रहता है। भोजन में प्रोटीन और मिनरल लेने से इस स्थिति का हल हो जायेगा।

प्रश्न: कई लोग कहते हैं कि हनुमान जी अब भी हिमालय में रहते हैं। क्या यह सच है? अगर यह सच है तो आप कितनी बार उनसे मिलते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हें पता है ब्रह्माण्ड में सभी कुछ एक तरंग है। सब कुछ एक ही तरंग है। यहां कुछ भी ठोस नहीं है। अगर तुम डिस्कवरी चैनेल पर क्वॉन्टम फ़िसिक्स पर वैज्ञानिकों को बोलते हुये सुनो तो तुम पाओगे कि जो भी कुछ दिखाई देता है वह वास्तव में वैसा नहीं है। सूक्ष्म रूप में सब ऊर्जा ही है। हनुमान जी किसी जगह पर बैठे हुये व्यक्ति नहीं है, वे प्राण उर्जा में चेतना के रूप में विराजमान हैं।

प्रश्न: आत्मज्ञान एक मंज़िल है या यात्रा? अगर हमें आत्मज्ञान हो गया तो पता चल जायेगा कि आत्मज्ञान हो गया है, या चलते ही रहना होगा?
श्री श्री रवि शंकर: हां, यह दोनो ही है। एक तरह से यह एक यात्रा है, और एक दूसरी तरह से यही आखिरी मंज़िल है। जब तुम्हें तृप्ति का अनुभव हो और जीवन में कोई आवश्यकता बाकी ना रहे! कोई कमी बाकी ना रहे, और हम पूर्णता का अनुभव करें। यह तुम कैसे जानते हो कि तुम्हें कहीं दर्द हो रहा है? तुम दर्द को अनुभव करते हो इसलिये तुम यह जानते हो कि दर्द हो रहा है। आत्मज्ञान होने पर तुम्हें तृप्ति और पूर्णता का एहसास होता है! जब तुम्हारी मुस्कुराहट कभी फीकी नहीं पड़ती! यह सहज ही घटित होता है।

प्रश्न: अपने आप को दूसरों के नकरात्मक भावों से कैसे बचायें?
श्री श्री रवि शंकर: ॐ नमः शिवाय का जप करो! या, जय गुरुदेव से भी चलेगा!

प्रश्न: मन और आत्मा में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: मन यानि विचार। आत्मा वह है जिस के भीतर सब घटित हो रहा है।

प्रश्न: अपने जीवनसाथी को कैसे चुनें?
श्री श्री रवि शंकर: मुझे इसका अनुभव नहीं है!

प्रश्न: कोई शादी क्यों करता है? एक सफल विवाहित जीवन का रहस्य क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: एक सफल विवाहित जीवन में पति-पत्नि दोनों ही सुखी होते हैं। तब उनके बच्चे भी खुश रहते हैं। चुनाव तुम्हारा है, और मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है! पर यह चुनाव तुम अपना दिमाग लगा कर नहीं करना। भविष्य में कुछ ठीक जमे, तो जोखिम उठा लेना। जीवन में जोखिम तो है ही।

प्रश्न: ज्ञान का मतलब क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: ज्ञान का मतलब सूचना नहीं है। ज्ञान का अर्थ है सजगता। ज्ञान वह पात्र है जिस के भीतर सूचनायें हैं। चेतना ही ज्ञान है। सत्यम् ज्ञानम् अनंतम् ब्रह्म - ब्रह्म की चार विशेषतायें हैं सत्य, अनंतता, ज्ञान और ईश्वर। ज्ञान के यही चार पहलू हैं। सभी कुछ एक ही है। जो ज्ञान समय के सापेक्ष है वह सूचना है। जो ज्ञान त्रिकाल में सत्य है वही असल में ज्ञान है।

प्रश्न: मेरा जीवन किसलिये है? पृथ्वी पर मेरा जन्म क्यों हुआ है?
श्री श्री रवि शंकर: ताकि, जैसे तुम अभी मुस्कुरा रहे हो, वैसी ही मुस्कुराहट तुम दूसरों के जीवन में लाओ।

प्रश्न: फ़ोलो अप में सुदर्शन क्रिया करने के बाद मैं अपने भीतर बहुत ऊर्जा का अनुभव करता हूं। मैं उस ऊर्जा को संभाल नहीं पाता हूं। क्या मैं अडवांस कोर्स में भाग लूं?
श्री श्री रवि शंकर: आसन और प्राणायाम करके मज़बूत हो जाओ!

ज्ञान का मोती:
एक समय की बात है, तब मार्च को साल की शुरुवात माना जाता था। मार्च पहला महीना है। मार्च का अर्थ है आगे बढ़ना। उस समय सूर्य पहली राशि, मेष राशि में प्रवेश करता है। आज भी इराक़, ईरान, अफ़गानिस्तान, तुर्की, और भारत के कई भागों में मार्च को ही साल का पहला महीना माना जाता है। तो, असली नया साल, मार्च में शुरु होता है। इस तरह दिसंबर साल का दस्वां महीना हुआ। दश+अंबर=दिसंबर। संस्कृत में दश का अर्थ है दस। अंबर का अर्थ है आकाश। दिसंबर का अर्थ है दस्वां आकाश। इसी तरह नवंबर का अर्थ है नवां आकाश, और आगे भी ऐसा ही है। महीनों के इन नामों का जन्म संस्कृत से ही हुआ है। जनवरी ग्यारहवां महीना है और फ़रवरी आखिरी महीना है।
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