ध्यान से हम विश्व की चेतना से जुड़ जाते हैं।

२१ जनवरी, बुद्ध जयन्ति, श्री लंका

२६०० के इस बुद्ध जयन्ति के मौके पर यह संगीत कार्यकम रखा गया है। यह समाज में धर्म वापिस लाने के लिए है। जब समाज से धर्म गिर जाता है, तभी पीड़ा और दुख के घेरे में आते हैं। जब अपने मूल्य भूल जाते हैं तब ऐसा होता है।
आप सबके साथ यहाँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। आप सब श्री लंका की उम्मीद हैं। हमे अपनी जड़ों को मज़बूत और दृष्टि को विशाल करने की आवश्यकता है।
जब अधर्म शिखर पर था, लोग धर्म का सही अर्थ भूल गए थे, तब भगवान बुद्ध ने धर्म को फ़िर से स्थापित करने के लिए अहिंसा का संदेश दिया - अहिंसा परमो धर्मा।
मुझे बहुत खुशी है कि अब श्री लंका में निर्भयता है और लोग हर जगह आ जा सकते हैं। सभी चैक पोस्ट हटा दिए गए हैं और लोगों में निर्भयता आई है।
हर सभ्यता और धर्म के लोग - तमिल, सिंगालिसेम, मुस्लिम और बुद्ध - सब एक साथ रह रहे हैं। समाज में और खुशी आएगी और इसके लिए युवाओं को सामने आना होगा। जब युवा भाग लेते हैं तो देश का विकास होता है। विकास के लिए चाह और रिसर्च के लिए विसतृत मानसिकता विकास का रास्ता है।
एक वैज्ञानिक मुझे बता रहे थे ४० वर्ष के अध्ययन के बाद उन्होने यही पाया कि यह कुछ है ही नहीं (Matter doesn't exist)। महात्मा बुद्ध और वेदान्त यह बात कितने वर्ष पहले ही कही।
युवाओं के लिए ध्यान का क्या लाभ है? कई लोग यह प्रश्न पूछते हैं। क्या आप एक पूर्ण व्यक्तित्व चाहते हैं?
अगर जीवन में उत्साह, खुशी, अच्छी स्मरण शक्ति, एकाग्रता, करुणा और प्रेम चाहिये, तो ध्यान करना ही होगा। ध्यान करने से ही ये सभी मानवीय गुण आपके भीतर खिलने लगते हैं।

ध्यान करने के तीन नियम हैं। पहला नियम यह कि अगले दस मिनट जब तक ध्यान करेंगे, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिये।’ ठीक है? यह कैसे संभव है? मुझे तो स्कूल-कालेज में अच्छे अंक लेने हैं, मुझे पढ़ाई में अच्छे अंक चाहिये, अच्छी नौकरी चाहिये, अच्छा परिवार चाहिये, जीवन में समृद्धि चाहिये। वो सब ठीक है पर, केवल अगले दस मिनट तक, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिये।’

फिर? ‘मैं कुछ नहीं करता हूं।’ ध्यान का अर्थ कुछ करना नहीं है। ध्यान का अर्थ कुछ भी नहीं करना है। एक बार एक महाकश्यप नाम के ब्राह्मण पंडित, भगवान बुद्ध के पास आये। महाकश्यप बहुत कुछ करते थे – जप, तप, यज्ञादि। भगवान बुद्ध ने उनसे कहा, ‘नहीं। विश्राम करो। भीतर से खाली हो जाओ।’ खोल और खाली।

तो, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिये।’ अगले दस मिनट तक, ‘मैं कुछ नहीं करता हूं।’ मैं अपने मन को एकाग्र नहीं कर रहा हूं। मैं अपने मन को पकड़ने की, विचारों से छुटकारा पाने की चेष्टा नहीं कर रहा हूं। अच्छे विचार आते है, तो आने दो। बुरे विचार आते हैं, तो आने दो। जो भी हो, होने दो। ‘मैं कुछ नहीं करता हूं। ना ही मैं अच्छे विचारों का स्वागत करता हूं, ना ही बुरे विचारों को रोकने की चेष्टा करता हूं।’

ध्यान करने का तीसरा नियम है, ‘मैं कुछ नहीं हूं।’
अगले दस मिनट के लिए ना मैं विद्धार्थी हूँ, ना मैं शिक्षक हूँ, ना मैं संगीतज्ञ हूँ .........कुछ नहीं हूँ।
(गुरुजी के साथ ध्यान और हमेशा की तरह समय कुछ क्षणों में बीत गया)
क्या तुम्हें पता है कि तुमने १५ मिनट तक ध्यान किया? कितने लोगों को समय का भान नहीं रहा? १५ मिनट तक तुमने ध्यान किया! समय का भान ना रहना ध्यान है। है ना? और तुम्हें विश्राम का अनुभव होता है। तुम विश्व की चेतना शक्ति से जुड़ जाते हो। हर दिन थोड़ा थोड़ा ध्यान करो। एक साथ मिलकर ध्यान करने से, संघ में ध्यान करने से ध्यान अधिक शक्तिशाली होता है। हर दिन स्कूल में प्रार्थना करने के बाद कुछ देर शांत बैठ जाओ। १०-१५ मिनट कुछ भी मत करो। ऐसा करने से हमारी काबलियत बढ़ती है। बहुत अच्छा! तुम सब युवाओं के साथ मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं चाहता हूं कि तुम सभी बहुत मेधावी बनो, करुणा रखो, और समाज को शक्तिशाली नेतृत्व दो। हम सभी को विश्व नागरिक बनना है। विश्व नागरिक बनने के लिये विश्व के हर भाग से अच्छी चीज़ें सीखो। हर जगह कुछ ना कुछ अच्छी बात होती है। भारत में श्री-लंका का नाम बच्चे बहुत जल्दी जानते हैं। श्री लंका कैसी थी? स्वर्णमयी लंका! श्री लंका में बहुत समृद्धि थी। श्री राम स्वयं कहते हैं, ‘स्वर्णमयी लंका’।

लंका में इतनी समृद्धि थी! मैं चाहता हूं कि तुम सब ऐसी ही स्वर्णमयी श्री लंका का स्वप्न देखो जहां हर युवा में उत्साह हो, प्रतिभायें हों, करुणा हो।

जापान से हम टीम में काम करना सीख सकते हैं। काम को बारीकी से करना जर्मन से। बिक्री की कला अमरीका से और मानवीय गुण एशिया से - भारत, नेपाल, श्री लंका... यहां से मानवीय गुण सीखने योग्य हैं। यह सब सीखने से हम संपूर्ण मनुष्य बनते हैं। ठीक है? मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं!

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