हमारी चेतना स्थूल जगत से अधिक शक्तिशाली है

२५ जनवरी, बैंगलोर आश्रम भारत
प्रश्न: ईश्वर के लिए जितना मेरा प्रेम खिलता है, मुझे अपनी चिन्ताएं और परेशानियां समर्पित करने में उतनी ही दिक्कत होती है। हम अपने सबसे प्रिय लोगों को अपनी परेशानी कैसे दे सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर:
कोई बात नहीं! परमात्मा तुमसे तुम्हारी परेशानी ले लेगा। तुम नहीं भी देना चाहते तो भी वो तुमसे छीन लेगा। जब तक तुम्हारा संबंध है, तब तक लेन देन तो चलता रहेगा। तुम्हे आशिर्वाद पहुँचता रहेगा। तुम्हे आनंद मिलता रहेगा और जो कुछ नहीं चाहिए वो अपने आप खत्म हो जाएगा।
तुम्हारा ऐसा सोचना भी अच्छा है। यह तुम्हारी चेतना के स्तर का लक्षण है। चेतना के इस स्तर पर मन को कुछ चुभता लगता हो तो अपना यां किसी और का मत देखो।

प्रश्न: मुझे मैं इस दुनिया में खोया हुआ सा लगता हूँ। पर आप कहते हैं कि जीवन के हर कण में रस है। किसी भी काम में सब रुखा सा ही लगता है। पता नहीं मैं क्या करुँ, कहाँ जायुं?
श्री श्री रवि शंकर:
तुम सही जगह पर हो! यहाँ पर रस नहीं है? यहाँ पर सब खाली है क्या? हाँ, जब तुम ध्यान में बैठते हो तो सब खाली हो जाता है, खोल हो जाता है पर अभी तो यहाँ उत्सव ही है। कोई कभी कह ही नहीं सकता यहाँ खाली है याँ रुखा है।
सब के चेहरे पर चमक देखो। हाँ जब तुम दुनिया से कुछ लेना चाहते हो तो दुनिया पूरी खाली लगेगी। पर जब तुम योगदान देना चाहते हो तो तुरन्त बदलाव आता है। 

प्रश्न: क्या शांति एक ऐसी मनोदशा है जब कोई चाह यां तृष्णा मन को तंग ना करे यां जैसे ही वो उठे वो शांत भी हो जाए। हमेशा के लिए शांति कैसे पा सकते है?
श्री श्री रवि शंकर:
जब तुम इस हमेशा की पकड़ को छोड़ दोगे तो शांति है ही!

प्रश्न: अगर मोक्ष मिलने तक आत्मा हमेशा रहती है तो नरक में कौन जाता है?
श्री श्री रवि शंकर:
तुम अभी नरक को क्यों खोजना चाहते हो? मैं वहाँ कभी नहीं गया तो बता नहीं सकता वो क्या है।

प्रश्न:बिना शर्त का प्रेम किसे कहते हैं और हम किसी से ऐसा प्रेम कैसे कर सकते हैं? और हम ऐसा कब कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर:
जब तुम्हे वापिसी में कुछ नहीं चाहिए तो वो बिना शर्त के प्रेम है। धन्यवाद यां शुकराने का भाव भी नहीं! बहुत बार हम लोगों को प्रेम करते हैं पर कुछ छोटी अपेक्षाएं रखते हैं, और यही उन्हे तंग करता है। यह भी एक शर्त हुई।
जब चेतना खिलती है तो एइसा प्रेम सहज ही मौजूद है। तुम इसे अपने पर थोप नहीं सकते यां ऐसा प्रेम पैदा नहीं कर सकते। मुझे तो नहीं मालूम ऐसा प्रेम कैसे पैदा कर सकते हैं, यह तो सहज ही होता है। जब चेतना विकसित होती है, खिलती है तो जो प्रकाशित होता है वही ऐसा प्रेम है। आप कह सकते हैं मैं यहाँ तुम्हारे लिए हूँ और मुझे कुछ नहीं चाहिए। कुछ लोगों के लिए तुम्हारा ऐसा भाव है ही, मगर कुछ अन्य लोगों के साथ तुम्हारी अपेक्षाएं हैं।

प्रश्न: ऐसी परिस्थिति को कैसे संभाले जब कोई बिना किसी कारण इल्ज़ाम दे?
श्री श्री रवि शंकर:
मुस्कान से! इस दुनिया में अज्ञानता के लिए भी स्थान है। अगर कोई तुम्हे इल्ज़ाम दे रहा है तो यह अज्ञानता के कारण है। और अगर अज्ञानता नहीं पर किसी बुरे संकल्प से यां ईर्ष्या के कारण ऐसा है तो इसे भी मैं अज्ञानता का नाम ही दूँगा। तो सबसे बेहतर है कि तुम आगे बड़ो और इस में मत फ़ंसो क्योंकि किसी और की राय पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है, और इसकी ज़रुरत भी नहीं है - हर कोई अपना मत रख सकता है। सबसे बेस्ट यही है कि तुम उन्हे शिक्षा दो और फ़िर नज़र अन्दाज़ करो। अगर तुम शुरुआत में ही नज़र अन्दाज़ करते हो तो यह उद्ददंडता होगी। शिक्षा भी भारी शब्द है, उन्हे अवगत कराओ  और नज़र अन्दाज़ करो। शिक्षा में अधिक श्रम है और क्रोध में तुम उन्हे कुछ पाठ पढ़ाना चाहते हो। तो अवगत कराओ और फ़िर नज़र अन्दाज़!

प्रश्न: कई बार पहले से योजना ना बनाई जाने पर गड़बड़ी हो जाती है। ऐसी गड़बड़ पैदा करने वाले व्यक्ति से कैसें निपटें?
श्री श्री रवि शंकर:
गडबड़ पैदा करने वाला परदे के पीछे रहना चाहता है और अपना चेहरा और पद बचाना चाहता है। वह बहुत से तर्क देकर अपनी सफ़ाई पेश कर सकता है। तो तुम उसकी हालत समझते हो। हो सकता है कि तुम उन हालात में वैसा ही करते। इसलिए दूसरे क्या कहते हैं इस पर निर्भर मत रहो। बहुत बार समस्या तब होती है जब हम दूसरों के शब्दों में फ़ंस जाते हैं बजाय उनकी असली भावना जाने। एक माँ अपने बच्चे को कहती है यहाँ से चले जाओ पर वो सच में ऐसा नहीं चाहती। वो शब्द बहुत गहरे आते हैं और अगर बच्चा उन्हे पकड़ लेता है तो बिना किसी कारण मुश्किल मे पड़ जाता है। इसलिए मैं कहता हूँ शब्दों के परे देखो। हमारी बातचीत शाब्दिक स्तर से अधिक होनी चाहिए। यह केवल शाब्दिक स्तर पर नहीं, पर उसके परे होनी चाहिए। अगर कोई तुम्हे सब बुरा भला भी कहता है क्या तुम अपने में स्थिर रह सकते हो? अपना मन शांत रख सकते हो? तब तुमने कुछ पाया है। तुम लोगों से उनके शब्दों के परे कनेक्ट कर सकते हो! तुम्हारे अन्दर की चेतना मास्टर की है। वो बहुत शक्तिशाली है और हर परिस्थिति बदल सकती है जैसा तुम चाहते हो। तुममें वो यकीन होना चाहिए। पाँच बार ना भी हो पर छठी बार हो सकता है। यह सब तुम्हारे यकीन और अटलता पर निर्भर करता है। और इसकी चिंता मत करो कि लोग क्या कहते हैं।

प्रश्न: चेतना पदार्थ से कैसे अधिक शक्तिशाली है?
श्री श्री रवि शंकर:
जब प्रेशर कूकर में अधिक प्रेशर होता है तो वो कैसे बनता है? भाप से! और क्या वो पानी से अधिक शक्तिशाली है कि नहीं? जितना तुम गहराई में जाते हो, सूक्ष्म उतना ही अधिक शक्तिशाली है। (हाथ में एक चांदी का खिलौना दिखाकर गुरुदेव पूछते हैं) इसमें चांदी के अणु हैं, और सूक्ष्म में जाएं तो परमाणु हैं, यदि और गहराई में जाएं तो उप परमाणु कण हैं। और इससे भी गहराई में जाएं तो सब wave function है। तो क्या अधिक शक्तिशाली हुआ - चांदी यां wave function? 
सारा जगत चेतना से ही बना है तो जितना सूक्ष्म हम जाते हैं वो और अधिक शक्तिशाली है।
मैं जापान की एक रिसर्च देख रहा था। एक बोतल में कुछ पानी रखकर उसकी तस्वीर खींची। प्रार्थना के बाद, विभिन्न प्रकार के संगीत के साथ, कुछ बुरे शब्द कहने के बाद, और यह कितना अद्भुत है जब तुम पानी का प्रभाव देखते हो। विचार की सूक्ष्म तरंगे पानी में गईं। उनका प्रभाव तो दिखना ही था!
भारते में इसे अभ्यमंत्र कहते हैं। मंत्र उच्चारण का पानी पर गहरा प्रभाव पड़ता है, और हमारा शरीर 70 प्रतिशत पानी है। रुद्राभिशेक के दौरान क्रिस्टल lingam पर जल डालते हैं जब एक विशेष मंत्र उच्चारण किया जाता है। उस जल में बहुत charged कण होते हैं और यह वातवरण में उच्च उर्जा प्रसारित करता है।
Micro scopic तस्वीरों में इसका प्रभाव अब उपलब्ध है।
इसी तरह एक सज्जन ने महाबलिपुरम, तमिलनाडु में एक प्रयोग किया जब वहाँ आरती हो रही थी। उसने तस्वीरें ली और देखा कि सभी नाकारात्मक कण वातावरण से गायब हो गए। सभी साकारात्मक में बदल गए और साकारात्मक कणों से ही सब होता है और यह सभी अभ्यास साकारात्मक तरंगों को बड़ाने का ही तरीका है। अग्नि का भी यही रोल है। जब एक विशेष संकल्प से अग्नि में आहुति देते हैं तो उसका वातावरण पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न: गुरुजी मैं यह मानता हूँ कि जैसे हम बोते हैं हम वो ही पाते हैं। पर बहुत बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति किसे बुरे दौर से गुज़र रहा होता है जबकि उसने कुछ ऐसा विशेष बुरा नहीं किया होता। ऐसा क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:
कर्मों की गति बहुत गहन है। कर्म एक समुद्र की तरह हैं। यह एक ही जीवन काल नहीं है, हमने बहुत से जीवनकाल में बहुत कुछ किया और उसका प्रभाव तो रहता है। कौनसा कर्म कौन से बीज से उपजा है और यह कर्म क्या बीज देगा यह कहना बहुत मुश्किल है। इसीलिए कहा गया है ’गहना कर्मणोगति’। इसलिए किस जीवन काल का कौनसा कर्म अब अंकुरित होता है यह कह नहीं सकते। इसलिए इसमें ज़्यादा मत फ़ंसो। सक्रिय रहो और अपनी चेतना की सुनो।

प्रश्न: हम बिना कर्तापन के भाव से अपने कृत की ज़िम्मेदारी कैसे ले सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर:
जब ज़िम्मेदारी लेते हो तो केवल ज़िम्मेदारी लो। कर्तापन मतलब परिणाम के बारे में सोचना। कुछ भी हुआ हो, जिस क्षण तुम ज़िम्मेदारी लेते हो तुम में शक्ति जगती है। तुम वर्तमान क्षण में आते हो और तुमने परिणाम को स्वीकार कर ही लिया है।
जब कोई काम करते हो तो कर्तापन - अकर्तापन की philosophy में मत पड़ो। अपना शत प्रतिशत दो। जब तुम अपना १०० प्रतिशत  देते हो तो अचानक तुम्हे लगता है कि तुम नहीं कर रहे हो, सब हो रहा है। अकर्तापन एक अनुभव है। यह ऐसा कुछ नही है जो तुम करने की यां पाने की चेष्टा करते हो।


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