बंगलोर आश्रम, भारत जनवरी ४, २०१०
प्रश्न: हम युवा लोग, सेवा, पढ़ाई और परिवार की देखभाल के बीच संतुलन कैसे बनायें?
श्री श्री रवि शंकर: तुम साइकिल कैसे चलाते हो? क्या तुम उसे किसी एक तरफ़ गिरने देते हो? जब एक तरफ़ अधिक झुक जाओ तो अपना संतुलन बना लो। पर एक निष्ठा होनी चाहिये - मुझे सेवा करनी है, पढ़ाई करनी है और अपने परिवार की देखभाल भी करनी है, अपने बड़ों की इज़्ज़त करनी है। यह विश्वास रहे कि, ‘मैं यह सब कर पाउंगा।’ अगर तुम्हें इस में कोई संदेह हो, तो यह जान लो कि वो तत्कालिक है। ये एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु पूरक हैं। जब तुम सेवा करते हो तो तुम्हें पुण्य मिलता है और कार्य करने की शक्ति मिलती है, तुम्हारा भाग्य अच्छा बनता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि तुम्हारा व्यक्तित्व सुदृढ़ बने। कालेज जाना और बहुत सी जानकारी भर कर सिर्फ़ परीक्षा पास करना काफ़ी नहीं है। तुम में कितनी मिठास और ताकत आई है? तुम कितने मज़बूत हुए हो! क्या तुम्हारा व्यक्तित्व समग्र रूप से खिल रहा है? यह देखना आवश्यक है। होश के साथ जोश! सबको एक सूत्र में बाँध सकते हैं।
प्रश्न: ऐसा कहा गया है कि भगवान को भोले लोग पसंद हैं, और किस्मत भी भोले लोगों का साथ देती है। भोले बनने के लिये क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: भोलापन तो वैसे भी सभी में है ही। बस तुम्हें उसे खिलाने की ज़रूरत है। और ये कैसे करना है? बस, ध्यान में बैठ जाओ। ‘मैं कुछ नहीं हूं - अकिंचन। मुझे कुछ नहीं पता। और, सभी मेरे अपने हैं। मैं सभी को स्वीकार करता हूं, और सभी मुझे स्वीकार करते हैं।’
जब हम यह जानते हैं कि सभी हमें स्वीकार करते हैं तब हम सहज होकर आगे बढ़ते हैं। जब तुम सोचते हो कि तुम जैसे हो, लोग तुम्हें वैसा स्वीकार नहीं करते हैं, तब हम अपने आप को स्वीकार करवाने के लिये चतुरता का प्रयोग करने लगते हैं।
प्रश्न: जब से आप मेरे जीवन में आये हैं, मैं आप से कुछ ना कुछ मांगता ही रहता हूं। कभी कभी मुझे यह अच्छा नहीं लगता। आप थक नही जाते?
श्री श्री रवि शंकर: क्या मैं तुम्हें थका हुआ लगता हूँ! जब तुम कुछ मांगते हो और वो मिलता है तो तुम्हारा विश्वास और विकसित होता है, और फिर बिना मांगे ही तुम्हारी ज़रूरते पूरी होती जाती हैं।
प्रश्न: किसी के मरने के बाद श्राध, दस्वें और तेरहवें दिन पूजा की जाती है। इसका क्या महत्व है?
श्री श्री रवि शंकर: दस्वें दिन श्राध करने की परंपरा बहुत ही वैज्ञानिक है। दस दिन तक तुम मरने वाले प्रियजन के जाने के दुख में रहते हो, उनकी याद आती रहती है। तो जितना रोना है, दुख बाहर करना है, पूरा करो। दुख को पूरी तरह जी कर उसे वहीं खत्म कर देते हैं। फ़िर तेरहवें दिन तुम उस दिवंगत आत्मा के परमात्मा में विलीन होने की खुशी मनाते हो। वह आत्मा अपने परमस्रोत पंहुच गयी। फिर तेरहवें दिन तुम उत्सव मनाते हो, उपहारों का आदान प्रदान होता है, सब लोग साथ में मिल प्रीतिभोज करते हैं। जीवन एक उत्सव है और मृत्यु भी उत्सव है। आत्मा को अपने परम धाम में प्रसन्नता और शांति मिले, इसकी खुशी मनाते थे। अगर वह शांत है तो हम भी शांत हैं।
प्रश्न: आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिये कुछ प्रयास आवश्यक है। पर आप कहते हैं कि कोई श्रम नहीं करना है।इन दोनों में सही बात क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों ही हैं। एक ट्रेन में चढ़ने के लिये तुम्हें प्रयास करना पड़ता है, तुम अपना सामान लेकर सही प्लेटफ़ार्म पर जाते हो। पर एक बार ट्रेन में चढ़ गये तो फिर अपना सामान किनारे रख कर आराम से बैठ जाते हो।
प्रश्न: पूरी लगन और मेहनत के बाद भी कुछ सपने सच नहीं हो पाते हैं, तब क्या करना चाहिये?
श्री श्री रवि शंकर: तुम अपना प्रयास जारी रखो। एक कहावत है कि बार बार प्रयास करते रहो, अंतः सफलता तुम्हारे हाथ आकर ही रहेगी। तो, हो सकता है कि एक बार तुम सफल ना हो, दूसरी बार भी सफल ना हो, पर अगर तुम्हारा संकल्प दृढ़ है तो सफलता मिलेगी।
प्रश्न: पृथ्वी की ऐसी हालत को देखते हुये, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते, आगे के समय में हम लोग कैसे जी पायेंगे?
श्री श्री रवि शंकर: लोग अब अधिक जागरूक हो रहे हैं। हम सब को इस दिशा में काम करने की आवश्यक्ता है।
प्रश्न: समर्पण के भाव को कैसे बढ़ायें?
श्री श्री रवि शंकर: बस, मान लो कि तुम समर्पित हो। इस में कोई प्रयास ना लगाओ। समर्पण तो है ही, ऐसा मान लो और आगे बढ़ो।
प्रश्न: स्वामी लोग अपने सिर के बाल और दाढ़ी क्यों बढ़ाते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: एक अर्थिंग है और एक ऐनटीना! यह बस एक यूनिफ़ार्म है! स्वामी लोग जो भी करते हैं, पूरी तरह से करते हैं, या सब छोड़ देते हैं, या फिर सब रख लेते हैं।
प्रश्न: मुझे बचपन से बताया गया है कि मांसाहार करना पाप है। क्या ऐसा है?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसा मत सोचो कि मांसाहार करने वाले लोग पापी हैं। मांसाहार भोजन करने से उनकी तामसिक वृत्तियों को बढ़ावा मिलता है। ये ना उनके लिये अच्छा है, ना विश्व के लिये और ना समाज के लिये। अपने पेट को कब्रिस्तान मत बनाओ भई!
प्रश्न: क्या श्रद्धा के बिना ज्ञान संभव है, या फिर दोनों में कोई संबंध है?
श्री श्री रवि शंकर: श्रद्धा और ज्ञान साथ साथ चलते हैं, क्योंकि जहां ज्ञान होता है, वहां श्रद्धा भी होती है, और जहां श्रद्धा होती है, वहां ज्ञान भी होता है। तुम में श्रद्धा है, तभी तो तुम यह पूछ रहे हो। तुम्हें विश्वास है कि मैं तुम्हें जवाब दूंगा, और तुम मेरा जवाब स्वीकार कर लोगे। तो ज्ञान और श्रधा साथ साथ चलते हैं।
प्रश्न: भाग्य पूर्वनिश्चित है या बदला जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भाग्य पूर्वनिश्चित है, और कुछ चीज़ें बदली जा सकती हैं। तुम ज्ञान के सूत्र पढ़ सकते हो।
प्रश्न: क्रोध को नियंत्रित करना कठिन है। ऐसा क्या करें कि क्रोध आये ही नहीं?
श्री श्री रवि शंकर: पहले क्रोध पर काबू पा लो, और फिर मन तृप्त और प्रसन्न हो जाये, तब ध्यान करो। और गल्तियों को स्वीकार कर लो, तो फिर क्रोध आयेगा ही नहीं। यह जान लो कि कोई भी गल्ती, क्रोध से नहीं सुधरती। सजगता से ही कुछ भी ठीक कर सकते हो।
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