त्याग से जीवन सुन्दर और आनंदित बन जाता है

२४ जनवरी, २०११, बंगलोर
प्रश्न: ईषा उपनिषद में बहुत खूबसूरत कहा गया है "तेन त्यक्तेन भूनजिथा" - संसार त्याग कर संसार का आनंद लो। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: यही एक कला है। अगर कोई ज्वर नहीं है तो ऐसा होता है। कभी देखा है बच्चे चॉक्लेट देखर क्या करते हैं? कुछ खा लिए फ़िर कुछ एक जेब में खुसा लिए और कुछ दूसरी जेब में! बच्चा एक आवेश में होता है। व्यसक में ऐसी ज़्वरता नहीं होती। जब वस्तुओं के लिए ऐसी ज़्वरता नहीं होती तुम सही माइनो में आनंद ले सकते हो। नहीं तो केवल एक हड़बड़ाहट की जकड़!
तुम अनुभव करते हो, आनंद लेते हो पर तुम तृष्णा से परे रहते हो। तुम इस बोध में रहते हो कि आनंद का स्रोत तुम्हारे भीतर है, वस्तु केवल एक प्रतिभिंब है। जब तुम इसके प्रति सजग होते हो कि आनंद का स्रोत तुम्हारे भीतर है, बाहर नहीं तभी तुम आनंद ले भी पाते हो। यह थोड़ा गहन है और एक पक्व मन ही इसे पकड़ पाता है।

प्रश्न: कृष्णा अर्जुन से कहते हैं कि यह मत सोचो तुम इने मार रहे हो, यह तो पहले ही मरे हुए हैं। अगर एक आतंकवादी भी धर्म के नाम पर यही कारण बताए तो आप क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर: यह बिल्कुल विपरीत परिस्थिति है और तुम इन्हे एक तरह नहीं देख सकते। एक आतंकवादी नफ़रत और अज्ञानता में करता है पर एक पुलिस अधिकारी बिल्कुल अलग कारण से ऐसा करता है। दोनो बन्दूक से मारते हैं पर जिस अन्देशे से वो ऐसा करते हैं वो भिल्कुल भिन्न है। मकसद और मानसिक दशा बिल्कुल अलग है। इसीलिए अर्जुन को कहा गया - न्याय के लिए युद्ध का हिस्सा बनो पर क्रोध, ईर्ष्या यां लालच के साथ नहीं, धर्म और न्याय के लिए!

प्रश्न: कहते हैं हमे ऊँचा स्वपन देखना चाहिए पर पीछे पीछे इतनी इच्छाओं का क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: विवेक के साथ! स्वपन रखो पर उसी समय अपनी जड़ों के साथ रहो।

प्रश्न: क्या हर वस्तु का स्त्री और पुरुष पहलू होता है। फ़िर हम वस्तुओं को स्त्री और पुरुष लिंग में क्यों विभाजित करते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, एक निष्पक्ष लिंग भी होता है। तीन लिंग हैं और कुछ चीज़ें निष्पक्ष लिंग में भी आती हैं। पत्थर और पेड़ों के लिंग पर एक पूरा शिल्प शास्त्र है। Hawaiians भी विभिन्न पत्थरों के अलग अलग लिंगों की बात करते हैं। वो पहचान सकते हैं!
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, आत्मा किसी भी लिंग से परे है।


प्रश्न: क्या एक विद्धार्थी को अच्छे अंक ना हासिल होने की पूरी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: यह अच्छा है अगर वो पूरी ज़िम्मेदारी लेता है। तुम अध्यापक, परिवेश, मां-बाप पर इल्ज़ाम दे सकते हो, और फ़िर अंत में तुम खुद को इल्ज़ाम देते हो। पर blame game से बेहतर है ज़िम्मेदारी लेना।

प्रश्न: आध्यात्म के रास्ते पर बलिदान का क्या महत्व है?
श्री श्री रवि शंकर: यह ज़रुरी है, आध्यात्म के पथ पर बलिदान के लिए जोश होना चाहिए। आज ही मैं कई स्वामियों से, कम्प्यूटर इंजिनियर और काफ़ी अनुभवी लोगों से मिला। समाज में सेवा और पढ़ाई के लिए उन्होने अपना जीवन त्याग के रास्ते पर लिया। उन्होने अपना जीवन स्कूल निमार्ण, कौलेज निर्माण और लाखों लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए किया। तो एक बड़े कारण के लिए यह ज़रुरी है। त्याग एक बड़े मक्सद के लिए होता है, वो आनंद कम नहीं करता पर बड़ा देता है। जब हमारी ज़रुरते अधिक होती हैं तो हम कम ज़िम्मेदारी लेते हैं। पर जब ज़रुरते कम होती हैं तो हम अधिक जिम्मेदारी लेते हैं, यह सबसे खुशहाल जीवन है।

प्रश्न: आप इतनी शांति और सुन्दरता कैसे प्रसारित करते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: क्योंकि तुम भी सुन्दर हो! तभी तुम वो देख सकते हो। अगर तुम भी खूबसूरत ना होते तो भीतरी खूबसूरती को तुम पहचान भी ना सकते। जो भी तुम्हारे भीतर होता है तुम वही बाहर भी देखते हो। जो तुम मुझ में देखते हो, उसे अपना ही मानो। अगर तुम अपनी भीतरी खूबसूरती को नहीं देख पा रहे, तो किसने मना किया है? खूबसूरती तो तुम्हारा स्वभाव है।

प्रश्न: क्या जन्म और मृत्यु का चक्र कभी खत्म नहीं होता?
श्री श्री रवि शंकर: पूरा विश्व ऐसा ही है - गोलाकार। सब चक्र में चलता है। वापिस आना होता है, पर तुम्हारे पास चुनाव है। अगर तुम बाध्यता के कारण आते हो तो वही पुरानी कहानी फ़िरसे! पर अगर तुम मुक्त होते हो तो तुम्हारे पास विकल्प होता है अपनी इच्छा के अनुसार जन्म लेने का। जब तुम मुक्ति के बाद वापिस आते हो तो वो आनंदित होता है।

प्रश्न:क्या यह सच है किसी जगह की साकारात्मक और किसी जगह की नाकारात्मक ऊर्जा होती है? नाकारात्मक जगह की ऊर्जा बड़ाने के लिए क्या किया जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: हर जगह की ऊर्जा बड़ाई जा सकती है। हर जगह बदलाव लाया जा सकता है। केवल कुछ समय की बात है।

प्रश्न: मैं अपने क्रोध पर कैसे नियंत्रण पा सकता हूँ? मैं बहुत छोटी छोटी बातों पर क्रोधित हो जाता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: अगर तुम्हे क्रोधित होना ही है तो बड़ी बड़ी बातों पर क्रोधित हो। रोज़ाना की छोटी छोटी बातों पर क्रोधित होने का क्या फ़ायदा? भ्रष्टाचार यां तुम्हारे आस पास होने वाले अन्याय पर क्रोधित हो। मैं चाहता हूँ कि तुम अपने क्रोध को बड़ी दिशा दो और बाकी सब छोटी चीज़े ऐसे ही गायब हो जाएंगी। मैं चाहता हूँ तुम भारत में और विदेश में हर युवक से बात करो। उनसे बात करो और उन्हे भ्रष्टाचार के खिलाव आवाज़ उठाने के लिए कहो। अगर सरकार का अध्यक्ष गलत लोगों का परिरक्षण करता है तो तुम क्या कर सकते हो? लोगों को जागना ही होगा और यही हमे करना है। हम सभी को भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बोलना ही होगा।

प्रश्न: किसी को अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति जागरूक कराने का सबसे उच्च तरीका क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भी जो काम करे! जो भी उन्हे जागरूक करे वो अच्छा है। बैठ कर यह मत सोचो कि सबसे बेस्ट तरीका क्या है। जो भी विचार आते हैं उन्हे लाघु करो और देखो क्या काम करता है। जो काम करता है वही बेस्ट है।

प्रश्न: अगर आप कोई निर्देश देते हैं तो क्या उसका सार लेना चाहिए यां वैसे का वैसे लाघु करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: तुम बड़ा अस्पष्ट सवाल पूछ रहे हो और तुम उसका अपनी सुविधा के अनुसार अनुसरण करोगे। मैं इसमें फ़सने वाला नहीं हूँ!


प्रश्न: व्याकुलता और मुश्किलें रोज़मर्रा के जीवन में आती हैं। क्या एक पृथक और शांत जीवन व्यतीत करना बेहतर नहीं है?
श्री श्री रवि शंकर: गतिशीलता और मौन, अराजकता और वैराग्य। तुम्हे किसी से भी डरने की आव्श्यकता नहीं है। जो लोग उथल - पुथल से अभ्यस्त हैं वो मौन से ज़्यादा मैत्रीभाव नहीं रखते। कई बार सार्वजनिक बातचीत के दौरान मैने देखा है कि कई लोग अपनी आँखे भी बंद नहीं कर पाते, वह इतने भयभीत होते हैं। कई बार नेता और यहाँ तक कि प्रोफ़ैसर्ज़ भी दस मिनट भी आँखे बंद नहीं कर पाते। लोग शांति से, अपने भीतर से, आँखे बंद करने से इतना डरते हैं। और इसी तरह जो लोग मौन से यां अपने भीतर की शांति से लगाव रखते हैं वो अशांति और उपद्रव से भागते हैं। दोनो पूर्ण नहीं हैं। तुम्हे शौर में भी वैसा ही आराम देखना चाहिए जैसा तुम शांति में देखते हो और यही जीवन जीने की कला है। मौन में गतिशीलता और अराजकता में मौन। जब तुम दोनो स्तर पर अपने स्रोत में स्थित होते हो तो तुम दोनो परिस्थितिओं में योगदान दे सकते हो।

प्रश्न: भारत गुरुओं से भरा है। मुझे नहीं मालूम मैं किन्हे अपना गुरु स्वीकार करुँ? मुझे बताएं कि गुरु हमे चुनता है यां हम गुरु चुनते हैं? अगर मैं चुनता हूँ तो मैं कैसे चुन सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: मैं तुम्हे कोई माप - दंड तो नहीं बता सकता। तुम चुनाव करते हो और यह तुम पर है। यह तुम अपनी बुद्धि से तो नहीं चुनते। तुम्हारे दिल से कोई तुम्हे दिशा दिखाता है। तुम्हे घर जैसा लगता है, तुम्हारा मन विश्राम महसूस करता है। नहीं तो तुम यही प्रश्न बार बार हर जगह पूछ सकते हो। उसका कोई तुक नहीं है।

प्रश्न: साधना के बजाय भी लालच, ईर्ष्या और लालसा कभी कभी मन को तंग करती है। मैं इसके लिए क्या कर सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हारी इससे मुक्त होने की इच्छा का मतलब ही यही है कि तुम इससे बाहर आ रहे हो। यह तो पहले ही बाहर जा रहा है। अपने पर इतना कठिन होने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न: जब इच्छाएं मन को परेशान करें तो हम वैराग्य को कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: यह जानो कि सब बदल रहा है, सब नश्वर है। तुम में एक इच्छा उठी, वो पूर्ण हो जाएगी। तो क्या? समय के साथ सब नष्ट हो जाएगा। तो आगे बड़ते रहो। जब तुम जानते हो सब नश्वर है और फ़िर भी तुम बिना ज़्वरता से, सब का आनंद ले सकते हो, वो वैराग्य है।  

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