समय का मन पर प्रभाव का गहन विज्ञान


२६ जनवरी २०११, बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न: गुरुजी, क्या एक गुरु का शिष्य होने का यह मतलब है कि दूसरे गुरुओं के बताये गये मार्ग पर नहीं चलना चाहिये? क्या किसी व्यक्ति के एक से अधिक गुरु हो सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: ओह! एक ही गुरु को संभालना बहुत कठिन होता है, और तुम...! (हंसी।) यह आसान नहीं है। सब का आदर करो, परंतु एक ही मार्ग पर चलो। सभी का आदर करो, और तुम देखोगे कि सभी गुरु ने एक ही बात बताई है। सत्य एक ही है, इसलिये सभी ने एक ही बात बताई है, पर सब के तरीके समय की आवश्यकता के अनुसार भिन्न रहे।
इस मार्ग पर आये हो तो अपने मन में कोई दुविधा मत रखो। पहले तुम जिस भी मार्ग पर थे, उनके आशीर्वाद से ही यहां आये हो। तुम सच्चाई से उस पथ पर चले हो, गुरुओं की आज्ञा का पालन किया है, और उनके आशीर्वाद से ही तुम यहां पंहुचे हो। यह जान कर आगे बढ़ो। ठीक है?
अगर तुम हर मार्ग पर थोड़ा थोड़ा चल कर परखने का प्रयास करोगे तो भ्रांत हो जाओगे! तो, मैं यही कहूंगा एक में सब को और सब में एक को देखो।

प्रश्न: अगर गुरु अप्रसन्न हो तो क्या करना चाहिये?
श्री श्री रवि शंकर: शीघ्र प्रगति करो! गुरु तुम्हारी प्रगति से अप्रसन्न है। तो, अब अपनी गति बढ़ाओ, और प्रगति करो, जल्दी दौड़ो!

प्रश्न: गुरुजी, क्या व्यक्ति के मूड का कोई संबंध समय के साथ है? हम दिन के अलग अलग समय अलग अलग मूड क्यों अनुभव करते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: हां, हां! समय का मन पर प्रभाव पड़ता है। समय और मन एक दूसरे के पर्यायी हैं। आठ पदार्थ हैं: वैशेषिक, कनड़ा...इन सभी महापुरुषों ने देश, काल और मन के संबंध को बताया है। देश हुआ स्थान। काल, समय है। ये सभी तत्व हैं, सिद्धांत हैं। और ये सभी सिद्धांत आपस में संबंधित हैं। पृथ्वी पर एक दिन, किसी अन्य...चन्द्रमा पर कई दिनों के बराबर है। चन्द्रमा पर समय अलग चलता है। यदि तुम बृहस्पति ग्रह पर हो...मनुष्यों का एक साल वहां केवल एक महीने के बराबर है। बृहस्पति पर एक साल, पृथ्वी के १२ सालों के बराबर है। बृहस्पति को सूर्य की परिक्रमा लगाने में १२ साल लगते हैं। यदि तुम शनि ग्रह पर जाओ तो वहां ३० सालों का एक साल होता है!
हमारे पित्रों के लिये, दिवंगत आत्मा के लिये, पृथ्वी का एक साल, एक दिन के बराबर होता है। हमारे छः महीने उनके लिये एक दिन हैं, और छः महीने उनके लिये एक रात हैं। अलग अलग आयामों में काल और स्थान भिन्न होते हैं।
काल और स्थान आपस में संबंधित हैं। इसे टाइम-स्पेस कर्व कहते हैं। मन इसका तीसरा आयाम है!
मन-रहित काल के परे चेतना, महाकाल है, शिव है, चेतना की चौथी अवस्था है।
इसे महाकाल कहते हैं, अर्थात महा-काल, या मन-रहित, जो मन पार है। प्रातः ४.३० से ६.३० तक, सूर्योदय से पहले, भोर से पहले का समय बहुत ही रचनात्मक कहा गया है – ब्रहम-मुहूर्त! और फिर हर दो घंटे के अंतराल को एक लग्न कहते हैं, यानि समय का एक माप। समय के इस माप का संबंध मन से है। और फिर यह चन्द्र की गति, सूर्य की अवस्था से संबंधित है। बहुत सारी बाते हैं! मन पर दस चीज़ों का प्रभाव पड़ता है। केवल समय ही नहीं, दिनों का भी मन पर प्रभाव पड़ता है। ढाई दिनों में मन बदल जाता है! मन का मूड बदल जाता है! तो, अगर तुम परेशान हो, तो ज़्यादा से ज़्यादा ढाई दिनों तक उस मनोवस्था में रह सकते हो, फिर मन बदल जायेगा। उतार चढ़ाव आते हैं पर ढाई दिनों से अधिक तुम एक ही मूड को उतनी ही तीव्रता से नहीं बनाये रख सकते हो। असंभव! यह बहुत गहन विज्ञान है कि मन, मूड और समय का क्या संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में इसके बारे में बहुत ज्ञान है। पर आजकल, आमतौर पर ज्योतिषी लोग साप्ताहिक भविष्यवाणियों में समय के बारे में कुछ ना कुछ बोलते हैं - यह समय अच्छा है, यां यह समर बुरा है। ज्योतिष विद्धा एक विज्ञान है पर हर ज्योतिष वैज्ञानिक नहीं। हालांकि, इसका आधार, समय का मन पर प्रभाव - यह सत्य है।

मन का अर्थ ही है मूड, विचार, इन सब को हम इकठ्ठा कर लेते हैं। मन-रहित होने का अर्थ है ध्यान। सुर्योदय और सुर्योस्त ध्यान करने के लिये अच्छा समय है। तो, जब भी बुरा समय आये, ध्यान करो। जब तुम ध्यान करते हो तब तुम मन के प्रभाव से बाहर निकल कर अपने भीतर अपनी आत्मा के निकट होते हो। आत्मा ही शिव तत्व है। शिव तत्व का अर्थ है हमेशा कल्याणकारी, प्रेम करने वाला, ऊपर उठाने वाला। तुम्हारे भीतर जो चेतना है, वह कल्याणकारी है, प्रेममयी है, ऊंचा उठाने वाली है, और वह मन के, समय के सभी बुरे प्रभावों को नष्ट कर देती है।

भारत में यह मान्यता है कि जब कभी बुरा समय आये तो ॐ नमः शिवाय का जप करने से वह बुरा समय चला जाता है। मन को उल्टा कर दें, तो हो गया नमः। जब चेतना बाहर के जगत की तरफ़ जाती है तो हो गया मन, और जब वही चेतना भीतर की ओर जाती है, तो नमः हो गया।
भीतर, शिव तत्व की ओर। शिव ही चेतना की चौथी अवस्था है, चेतना की सबसे सूक्ष्म अवस्था, शिव तत्व! तो, नमः, जब मन प्रकृति के मूल शिव तत्व की ओर जाता है, तो वह बुरे काल को भी पलट कर कल्याणकारी अनुभव से परिपूर्ण कर देता है।

प्रश्न: गुरुजी, आप सभी प्रश्नों के उत्तर कैसे जानते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: इस प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है!

प्रश्न: गुरुजी, क्या हम जीवन और मृत्यु के चक्र से छूट सकते हैं? अगर हां, तो हमें इस चक्र से छूटने के लिये क्या करना चाहिये?
श्री श्री रवि शंकर: ध्यान करो, बस। और अचाह! ध्यान के लिये तीन चीज़ की आवश्यकता है – अप्रयत्न, अकिंचन, अचाह। ’मैं कुछ नहीं हूं, मुझे कुछ नहीं चाहिये, और मैं कुछ नहीं करूंगा, अप्रयत्न’। इन तीनों से, मुक्ति ही मुक्ति है।


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