बैंगलोर, भारत, १० जनवरी २०११
प्रश्न: ‘अपने जीवन में तुम जिस भी चीज़ के ख़िलाफ़ हो जाते हो, उस से छुटकारा नहीं पा सकते,’इस ज्ञानोक्ति को मैं समझ नहीं पा रहा हूं। क्या सिगरेट पीने की इच्छा हो तो उसे पूरा करना ठीक होगा, या फिर किसी बीमार व्यक्ति की बहुत अधिक कॉफ़ी पीने की इच्छा हो तो उसे पूरा करना चाहिये?
श्री श्री रवि शंकर: तुम्हारा मतलब है कि अगर तुम अपने जीवन में सिगरेट छोड़ना चाहते हो, सिगरेट के ख़िलाफ़ हो, तब भी सिगरेट पीने की इच्छा रहती है। इस से बाहर कैसे निकले, यह पूछ रहे हो?
जब तुम यह अनुभव करते हो कि सिगरेट ना पीने में जो सुख है, वह सिगरेट पीने के सुख से अधिक है, तब यह स्वाभाविक रूप से छूट जाती है! मन हमेशा वहीं जाता है जहां उसे कुछ सुख की आशा होती है। सुख की आशा में मन वहां भी चला जाता है जहां सुख है ही नहीं! तो, मन आदतों का ग़ुलाम हो जाता है, और इन आदतों से कोई सुख नहीं मिलता, दुख ही मिलता है। जब मन यह जान जाता है कि वहां सुख नहीं दुख है, तो वह आसानी से उस आदत से बाहर निकल आता है। जब तुम्हारी बुद्धि कहती है कि,‘यह मेरे लिये अच्छा नहीं है, फिर भी इसके प्रति मेरी लालसा है,’तो जीत किसकी होनी चाहिये - बुद्दि की, मन की, या भवनाओं की? इसीलिये मैं कहता हूं कि किसी भी बुरी आदत से छुटकारे के लिये तीन चीज़े बहुत सहायक हैं। जब तुम्हें किसी और चीज़ में अधिक प्रेम और आनंद मिलता है तब वह बुरी आदत छूट जाती है। सुदर्शन क्रिया करने पर लोगों के साथ ऐसा ही होता है। इतना आनंद मिलता है कि सिगरेट का नशा या कोई भी बुरी आदत अपने आप ही छूट जाती है। क्रिया और ध्यान करने से इस में सहायता मिलती है। तो, प्रेम होने से सहायता मिलती है, लालच भी सहायक सिद्ध होता है। यदि कोई तुमसे कहे कि ‘दो महीने तक सिगरेट नहीं पियोगे तो तुम्हारी लॉटरी निकल आयेगी,’तो उस लालच से तुम्हारा मन तुम्हें उस आदत से मुक्ति दिला देगा। तो, दूसरी ची़ज़ है, लालच!
तीसरी चीज़ जिस से तुम्हें बुरी आदत से छुटकारा पाने में मदद मिलती है वह है भय। यदि कोई तुम से कहे कि,‘शराब पीने से तुम्हारा लिवर खराब हो जायेगा, और तुम मर जाओगे,’ तो तुम बीमारी के भय से या किसी परेशानी में पड़ने के भय से तुम किसी भी सुख के प्रलोभन से बच जाओगे। कई लोग जो व्यभिचारी हुआ करते थे, एड्स के भय से यह आदत छोड़ चुके हैं। तो, एड्स के भय से वे अपने जीवन साथी के प्रति वफ़ादार बन गये! प्रेम, लालच या भय, इन तीन चीज़ों से तुम किसी भी बुरी आदत से छुटकारा पा सकते हो।
प्रश्न: योगवाशिष्ठ में देवी सरस्वती, लीला को चेतना के अलग अलग स्तरों की सैर करवाती हैं। वे लीला को एक ही समय पर अलग अलग जीवन जीने का अनुवव करवाती हैं। उन जीवनों को जीते हुये, हर एक जीवन में लीला, अन्य जीवनों की जीने वाली लीला को नहीं जानती है। मैं सोच रहा था कि क्या हम भी चेतना के अलग अलग स्तरों पर ऐसा ही जीवन जीते हैं, और उसके बारे में अनभिज्ञ हैं? आज वैज्ञानिक बताते हैं कि हमें जो वस्तुतः सत्य दिखाई पड़ता है, पर सृष्टि के रहस्य का केवल 0.03% भाग ही है!
श्री श्री रवि शंकर: हां, हां! हमारी चेतना में कई परतें हैं। बहुत सारी चीज़े हैं। एक स्वनावस्था है जिसमें सत्य की अलग अलग परते हैं। यही ठीक होगा कि जब तक तुम भीतर से बहुत मज़बूत ना बन जाओ, तुम चेतना के इन विभिन्न स्तरों के बारे में अनभिज्ञ रहो। जिन लोगों को स्कित्ज़ोफ़्रेनिया या कोई और मानसिक बीमारी होती है उन्हें चेतना के विभिन्न स्तरों का कुछ कुछ अनुभव होता है। वे यहां भी रहते हैं और वहां भी, इसलिये इस जीवन में इतनी रुचि नहीं लेते, उन्हें वह दूसरा स्तर अधिक लुभावना लगता है।
तुर्की की एक बुज़ुर्ग महिला है जिसे अचानक अलग अलग चित्र नज़र आते थे। उसे दवायें दी गई, पर दवा लेने से वह थकान महसूस करती थी, और उसने दवायें लेने से मना कर दिया। उसे अलग अलग भ्रांति दर्शन होते हैं। जब तक हम स्व में केन्द्रित नहीं हो जाते, चेतना के विभिन्न स्तरों को जानने में खतरा है। और इसकी आवश्यकता भी नहीं है। इसीलिये सरस्वती देवी, लीला को स्वयं हाथ पकड़ कर उस अनुभव में ले गई। सरस्वती, ज्ञान की देवी हैं। लीला के पास ज्ञान था। ज्ञान की शक्ति से चेतना के विभिन्न स्तरों को अनुभव करते हुये उनसे अछूता रहा जा सकता है।
बाईपोलर लोगों को ऐसी समस्या होती है। अचानक उन्हें अपने सामने कोई नज़र आता है, और वे उससे बातें करते हैं। तुम देखो तो वहां कोई और नज़र नहीं आता। यह चेतना के अलग स्तरों की बात है। जब तक तुम्हारी चेतना ज्ञान में सुदृढ़ता से स्थापित ना हो, और सत्य के विभिन्न स्तरों में फ़र्क जान सके, तब तक इस ज्ञान का उदय नहीं होता।
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