ईश्वर से आपके प्रति प्रेम का प्रमाण मत मांगिये!!!

१८.०२.२०१२, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न : गुरुजी कभी आप कहते है कर्मण्येवाधिकरस्ते और कभी आप कहते है विश्राम में ही राम है। तो मुझे विश्राम करना चहिये या कर्म करना चहिये।
श्री श्री रविशंकर : विरोधी मुल्य एक दूसरे के पुरक होते है। अगर आप कर्म करते है तो अच्छी तरह से आराम कर सकते है और आप विश्राम करते है तो काम कर सकते है। अगर बिना काम किये आप लेटे रहते है तो विश्राम नहीं कर पायेंगे और काम भी नहीं कर पायेंगे तो काम और विश्राम साथ साथ चलते हैं|

प्रश्न : गुरुजी क्या किसी को उसके कर्म के हिसाब से ज्ञान मिलता है?
श्री श्री रविशंकर : ज्ञान को प्राप्त करने के लिये ज्ञान के प्रति प्यास जागनी चाहिये। अगर अब आप मुझसे पूछते हो कि ज्ञान की प्यास कर्म के अनुसार होती है क्या? तो उत्तर हाँ है लेकिन ज्ञान सभी कर्म के बुरे प्रभावों को दूर करता है।

प्रश्न : गुरुजी जीवन में अनुशासन बनाये रखने के लिये क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहिली बात अनुशासन बनाये रखने की ईच्छा मन में होनी चाहिये। जब वो होगी तो समझ लो काम हो गया। अनुशासन तीन कारणों से होता है।
१ प्रेम। जबकि प्रेम में अनुशासन की जरुरत नहीं है लेकिन प्रेम के माध्यम से अनुशासन बनाया जा सकता है।
२ डर कि वजह से। अगर आप किसी से कहते हो कि आपने नियमों का पालन नहीं किया तो आप बीमार हो जाओगे तो वो बीमार होने की डर से अनुशासन में रहेंगे।
३ लोभ। अगर आप किसी को कहते हो की नियमों का पालन नहीं किया तो घाटा हो जायेगा तो वो लोभ की वजह से अनुशासन में रहेगा।
तो बिना शर्त के प्रेम से अनुशासन में रहना अच्छा है वही सबसे उत्तम है।

प्रश्न : गुरुजी ये अक्सर देखा गया है कि आपके किसी शहर आने की खबर से ही
झगड़ा शुरु होता है। ये सेवा कि वजह से इतने विवाद क्यों उत्पन्न होते है?
श्री श्री रविशंकर : पहले
झगड़ा तो होना चाहिये ना तभी तो गीता शुरु होगी। हाँ मैंने भी सुना है कि मेरे किसी शहर मैं आने से पहिले ही झगड़ा शुरु होता है।गुरुजी कहाँ रहेंगे किस के घर में रहेंगे। हर कोई कहेगा मेरे घर में। मैं ऐसा करुंगा और फिर उससे झगड़ा शुरु होता है। मैं भी आश्चर्य से ये सोचत हूँ कि क्या करना चाहिये। प्यार के बिना झगड़ा नहीं होता और झगड़े के बिना प्यार नहीं होता। कही ना कही दोनों को एक दुसरे के साथ आना पड़ता हैं।
 
प्रश्न : गुरुजी ध्यान में प्राप्त की हुई स्थिति बनाये रखने के लिये मुझे क्या करना चहिये?
श्री श्री रविशंकर : जो आप अभी कर रहे है बस वो ही करते रहे। अपको वही बार बार करते रहना है। बार बार रघुवीर समाई। पुनः पुनः ध्यान लगाना है। तो ध्यान, साधना और सत्संग करते रहे और उसके बारे में परामर्श भी अवश्य करे। इससे वाणी में, मन में, और कृत्य में जो चीज आ जाती हैं वो ठीक हो जाती है| अगर आप साधना करते है और बाकी के समय फिजूल बाते करते है तो साधना से जो आपको रस मिला वो चला जायेगा। तो वाणी में भी उसी स्थिति की बात हो। जब भी आप बात करे तो ज्ञान और प्रेम की बात करे। तो आप में वो स्थिति दृढ़ता से स्थापित होगी। ये सत्संग का महत्व है। हम सत्संग में अच्छे चीजों के बारे में बात करते हैं, ज्ञान की बात करते है, ध्यान और चमत्कार की बात होती हैं। आप दूसरों के जीवन में घटित चमत्कारों की बात करते हैं| क्या यही बात करते है ना? आप में से कितने सिर्फ चमत्कारो की बात करते हैं। क्या होता है जब आप सिर्फ चमत्कारों के बारे में बात करते हैं| रोज आप के जीवन में कुछ घटित होता है। रोज नये पाठ पढते है। तो ऐसी चर्चा से मन दृढ़ होता है।

प्रश्न : गुरुजी क्या मैं जब भी चाहूँ मौन में रह सकता हूँ? मुझे ऐसा लगता है इससे मुझे बहुत फायदा होगा।
श्री श्री रविशंकर : हाँ औरों को पूँछ कर देख लो। अपने परिवार वालों से पुछलो। लेकिन ऐसा मौन मत रखो जिससे दूसरों को परेशनी या तकलीफ हो। कम बात करो और सिर्फ जितनी जरुरी है उतनी बात करो। आपको मितभाषी, गीतभाषी, प्रियभाषी और सत्यभाषी होना चाहिये| कम बोलो, लाभप्रद बोलो, सुखदायी बोलो, सत्य बोलो।

प्रश्न : गुरुजी सतगुरु से क्या मांगना चहिये? जब सतगुरु होते है तो प्रार्थना की जरुरत होती है क्या?
श्री श्री रविशंकर : जिस चीज की भी जरुरत हो उसे माँग लो तभी तो उसे जरुरत कहते है। आप बैठ के ये मत सोचो कि मैं क्या माँगू। जो भी आपकी आवश्यकता या जरुरत है वो एक सवाल एक विनती की तरह आयेगी।

प्रश्न : गुरुजी जब चेतना निराकार है तो हमे साकार में (मूर्ती में) श्रद्धा रखनी चहिये या सिर्फ निराकर में?
श्री श्री रविशंकर : अगर आप निराकार तक पहुँच गये हो तो अच्छा है। साकार भी निराकार का भाग है। आप निराकार से संबंध नही बना सकते तो जब आप खुली आँखे के द्वारा साकार से जु
ड़ते है। लेकिन जब आप आँखे बंद करके ध्यान के गहन में जाते हो तो निराकार के संबंध होते हो। इस तरह से आप शुरुआत करते हो लेकिन आगे जाकर आप पाओगे कि आँखे बंद है या खुली आप निराकार से ही जुड़े हो।

प्रश्न : गुरुजी जब मैं अपने काम या साधना पर लक्ष्य केंद्रित करता हूँ तो मेरे रिश्तो में हानि होती है। मैं चाहता हूँ कि मैं साधना पर भी ध्यान दू और मेरे आसपास के लोग भी खुश रहे। मैं ये कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : कुशलता से। आपको दोनों करना हैं। यह स्वाभाविक रूप से अपने आप हो जायेगा|

प्रश्न : गुरुजी कभी कभी मुझे सेवा के लिये वक्त नही होता क्या दान को भी सेवा समझते है।
श्री श्री रविशंकर : हाँ वो भी एक सेवा है। देखिये आप के लिये जो भी मुमकिन है वो सेवा है। अगर आप भारी पत्थर नहीं उठा सकते तो वो उठाने की जरुरत नहीं है। आपको वो नहीं करना चाहिये जो आप नहीं कर सकते। अगर कोई और कर सकता है तो उनको पत्थर उठाने के लिये सहयोग करना भी सेवा है। इसी तरह अगर आप खुद जा के बच्चों को पढा नहीं सकते तो दुसरे शिक्षक के द्वारा मदद कर सकते हो तो सेवा वो है जो आप कर सकते हो। अगर आप के पास वक्त है तो वक्त दीजिये। अगर पैसा है तो दान दीजिये। जिस भी तरीके से आप दूसरे को मदद करते हो वो सेवा है।

प्रश्न : गुरुदेव आपके इतने सारे शिष्य है तो आप उनके हर एक की अध्यात्मिक प्रगती का ध्यान कैसे रखते हो?
श्री श्री रविशंकर : (हँसते हुऐ) वह मेरा व्यापारिक रहस्य है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी दुनिया में हर वॅलेंटाईन (प्रेमी) अपने साथी को बहुत लाड प्यार करता है| हम वहीं संतुष्टी ईश्वरीय वॅलेंटईन (प्रेम) में कैसे पाये?
श्री श्री रविशंकर : ईश्वर ने आपको बहुत लाड प्यार से ही रखा है। ये जान ले कि आपको बहुत ज्यादा लाड प्यार मिल रहा है और मिलता रहेगा।

प्रश्न : गुरुजी हम अपने रोज के जीवन में कर्म बंधन से कैसे बच सकते है?
श्री श्री रविशंकर : जब कर्म करते वक्त तृष्णा या घृणा होती है तो कर्मबंधन होता है। तृष्णा या घृणा दोनों को हम कर्म बंधन कहते हैं| जब आप कोई भी कार्य बिना तृष्णा या घृणा से मुस्कुराते हुये मुक्त मन से और शुद्ध दिल से करते है तो वहाँ बंधन नहीं है। ऐसे कार्य आंतरिक मुक्ती भी लाते है।

प्रश्नः क्या आप वो लोग जो दृष्टिहीन है उनके लिये कृपया करके कुछ कहना चाहेंगे?
श्री श्री रविशंकर : हाँ दृष्टिहीन दोष को प्रगती मे रुकावट नहीं मानना चाहिये। आप सभी ये याद रखें। सुरदास जो एक महान संत थे वो नेत्रहीन थे। ध्रुतराष्ट्र जो महाराजा थे जिन्होने भारतवर्ष पर राज किया वो नेत्रहीन थे। स्वामी श्रद्धानंद जो इस सदी के महान संतो मे से है वो नेत्रहीन थे। अभी कुछ दशक पहले उनका स्वर्गवास हुआ। स्वामी श्रद्धानंद रोज वृंदावन मंदिर देखने जाते थे किसी ने उनको पुछलिया स्वामीजी आप देख नहीं सकते और मंदिर में बहुत भी
ड़ है तो आप वहाँ क्यों जाते है। आप क्या देखते है। उन्होने हँसते हुऐ कहाँ मैं नहीं देख सकता तो क्या कम से कम भगवान को तो मैं दिख रहा हूँ इसिलिये मैं वहाँ जाता हूँ। मैं देख नहीं सकता यह मायने नहीं रखता क्या तुम्हे लगता है भगवान भी मुझे देख नहीं सकता। उनको मुझे देखने दो मेरे वहाँ जाने से उनको खुशी होती है। ये भक्ती और प्रेम की गहराई है और आत्मविश्वास है कि ईश्वर मुझे प्रेम करते है। ईश्वर के आपके प्रति प्रेम का प्रमाण मत मांगिये। आपने वो कभी नही मांगना चाहिये। ये सदा जान ले कि ईश्वर मेरे से प्रेम करते है। बस पुर्णविराम आगे कोई प्रश्नचिन्ह नही। आप की रोज की जिंदगी में भी दुसरों के प्यार पर प्रश्नचिन्ह मत लगाओ।क्या गुरुजी मेरे से प्यार करते है। ये सवाल उठना ही नही चाहिये। इसी तरह क्या मेरे मित्र मेरे से प्रेम करते है क्या मेरे पति या पत्नी मेरे से प्रेम करते है या नहीं? प्रेम के आगे प्रश्नचिन्ह मत लगाईये। ये विश्वास रखे कि वो आपसे प्रेम करते है और आगे बढे। उनका जो भी व्यवहार है वो मायने नहीं रखता। प्रेम के अनेक रंग होते है और ये सब रंग प्रेम का ही भाग है और ये सोच के आराम किजिये।

प्रश्नः गुरुजी भगवान ही ये दुनिया चलाते है और वे ही हमारे पिता है तो ये दुःख गरीबी और अज्ञान क्यों हैं ?
श्री श्री रविशंकर : किसी ने एक साधु को भी यही सवाल पूछा इस दुनिया में दुःख क्यों है? तो साधु ने कहा भगवान ने ये मेरे लिये रखा है। क्योंकि इतना दुखः होने के बावजूद मैं इस संसार का त्याग नहीं कर पा रहा हूँ अगर दुःख भी नहीं हो तो मैं त्याग कैसे करुंगा और त्याग नहीं करुंगा तो अपना ध्यान भगवान कि तरफ कैसे लगाउंगा। भगवान की तरफ ध्यान जाता ही नहीं है।इसिलिये भगवान ने इस दुनिया में दुःख रखा है ताकि कुछ देर इसका आनंद उठा के फिर त्याग करके भगवान की तरफ वापस मु
ड़ जाये इसिलिये ये कहावत है दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोई जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय।

प्रश्नः गुरुजी गुरु, धर्मगुरु और सतगुरु में क्या अंतर है? दुसरा सवाल है ऐसा मानना है कि इस विश्व में किसी एक समय एक ही सतगुरु होते है तो वह सतगुरु कौन है क्या आप हैं। कृपया उत्तर दीजिये ?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा कहा जाता है; मेरे गुरु जगत के गुरु है| मेरे नाथ ही जगत के नाथ है| इसी में आपने विश्वास रखना चाहिये और यही सत्य है। धर्मगुरु, जगत गुरु या सदगुरु ये सिर्फ अलग अलग नाम है जिस की आपको जरुरत है उसे आप ले लिजिये और आगे बढिये। जो सत्य के बारे में बोलते है वो सतगुरु है। सतगुरु किसी का नाम नहीं हो सकता। सतगुरु कौन है जो आपको सत्य दिखाये। जैसे कि संगीत गुरु होते है वैसे ही सतगुरु होते है। सतगुरु वे होते है जो आपको सत्य क्या है इस बारे में सचेत कराते है| असत्य क्या है, यह संसार क्या है, आत्मा क्या है बताते है। जो आपको इनके भेदों के बारे में
पढाते है वे सतगुरु है।

प्रश्नः अगर सब कुछ पहले ही नियत किया हुआ है तो मनुष्य को कुछ करने की जरुरत क्या है ?
श्री श्री रविशंकर : सब कुछ पहले से ही नियत होने के बावजुद आदमी ने जो उसे अच्छा लगता है और जो उसे चाहिये वह पाने के लिये प्रयत्न करने चाहिये। उदाहरण के तौर पर अगर आपको घर मे सुर्य का प्रकाश चाहिये तो आपको खिडकियाँ और दरवाजे खोलने पडेंगे। आप खिडकियाँ बंद रख कर रोशनी अंदर आने की चाह नहीं कर सकते। और उसी तरह आधी रात में खिडकियाँ दरवाजे खोल के सूरज की रोशनी नहीं आयेगी तो आपको आपके ध्येय की तरफ प्रयत्न करने चाहिये बाकी जो होना है वहीं होगा। आपके प्रयत्न और किस्मत एक साथ चलते है।

प्रश्नः प्रिय गुरुजी मैं चाहे जितना भी ध्यान करूं अपने क्रोध पर काबू नहीं कर पाता हूँ मैं क्या करूं?
श्री श्री रविशंकर : अपने क्रोध को काबू में करने की कोशिश मत कीजिये। नियमित रूप से प्राणायाम कीजिये| इस दुनिया में लोग जैसे है वैसे उन्हे स्वीकार कीजिये उनको बदलने की कोशिश कभी मत कीजिये उनको स्वीकार करे और ध्यान करते रहे। अगर ध्यान करने के बावजूद आप अपना क्रोध काबू नहीं कर सकते तो सोचिये बिना ध्यान के कितना क्रोध आयेगा तो प्राणायाम और ध्यान कीजिये क्रोध धीरे धीरे कम होगा।

प्रश्नः गुरुजी मैं आपका पिछले चार साल से अनुयायी हूँ और मैं ने दाढी भी बढाना शुरु किया है और श्वेत कपड़े भी पहनता हूँ| मेरे माता-पिता और पत्नी मेरे से बहुत दुखी है।
श्री श्री रविशंकर : आपको ये सब करने की जरुरत नहीं है वो दाढी काट दीजिये और साधारण रंगीन कपड़े पहनिये और आम आदमी की तरह रहे। किसी का अनुयायी होने का मतलब यह नहीं कि आप उसी तरह कपड़े पहनो और सब कुछ उसी तरह करो। नहीं। करुणामय रहे, प्रेममय रहे और जो आपने करना है वह अच्छा काम करते रहे।

प्रश्नः गुरुजी क्या आप शिवरात्रि और उसके महत्व के बारे में बात करेंगे?
श्री श्री रविशंकर : महाशिवरात्रि के दिन शिव तत्व पृथ्वी की भूमि को छूता है। चेतना जो इस स्थूल भूमि से दस इंच उपर रहती है| प्रभामंडल या आकशीय शक्ति जो सतह से दस इंच उपर होती है वो महाशिवरात्रि के दिन धरती को छुती है तो जो उस रात्री जगते है और ध्यान करते है उनके लिये ये सहायक होती है। ज्यादा भोजन न खाये, हल्का खाना खाये और ध्यान कीजिये उससे मनोकामना पूरी होंगी। यह पुरानी धारणा है। यह आपको आत्मिक बल प्रदान करता है। ये एक साधक के लिये नववर्ष की संध्या की तरह है। अध्यात्मिक प्रगती, अध्यात्मिक प्राप्ती और भौतिक सुखों की प्राप्ती के लिये यह समय शुभ माना जाता है। इस रात को जब नक्षत्र एक विशिष्ट स्थिति में हो तो ध्यान के लिये शुभ होते है, यह पुरानी धारणा है। इसका मतलब यह नहीं कि और दिनो में ध्यान नहीं होता। जब भी आपक हृदय खुला होता है, मन शांत होता है और स्थिर होता है तो आपकी प्रार्थना सुनी जाती है लेकिन शिवरात्री को भजन का गान करके वेदिक मंत्रो के साथ विधि करके मनाया जाता है| यह आध्यात्मिक साधक के लिये बहुत ही शुभ समय माना जाता है। यह भौतिक जगत का अध्यात्मिक जगत से विवाह मिलन है।भौतिक जो आठ स्तर का है, वह आठ स्तर के आकाशीय तत्व के नजदीक आता है तो ये आठ स्तर कि प्रकृतियाँ क्या है? भूमि, जल, वायु, आकाश और अग्नि; मन, बुद्धी और अहंकार ये सब जो सूक्ष्म आठ तत्व यानी शिव तत्व है उनके साथ संपर्क में आते है। लोग अक्सर बहुत कम खाते है थोडे फल या ऐसा ही कुछ और उपवास करते है। मैं आपको बिना कुछ खाये उपवास करने की सलह नहीं दूंगा। थोड़े  फल या आसनी से पचनेवाले भोजन लिजिये और दिन में जगते रहे और रात को ध्यान करे। आपको पूरी रात ध्यान करने की जरुरत नहीं है। कुछ देर ध्यान करे। हम लोग सत्संग करेंगे और कुछ धूमधाम से उसे मनायेंगे। बस यही है। वैसे तो रोज का दिन ही शुभ है क्योंकि हम रोज ही सत्संग करते है। पुराने समय में लोग कहते थे ठीक है, यदि आप रोज नहीं कर पाते तो कम से कम साल में शिवरात्री के दिन ध्यान कीजिये और जागते रहिये। आपके अंदर की गहराई से ईश्वर तत्व को जगाईये। ईश्वर आपके अंदर है उसे जागने दीजिये।

प्रश्नः क्या पूरी रात न सोने की कोई सर्थकता है। हमे कब तक जागना चाहिये ?
श्री श्री रविशंकर : नहीं अपने आपको ज्यादा तनाव मत दीजिये। सहज रहे।

प्रश्नः महाशिवरात्रि को महाशिवरात्रि क्यों कहते है महाशिवदिवस क्यों नहीं कहते ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ मैंने इसके बारे बोला है। उस किताब को पढ लीजिये। रात्री का अर्थ है जो आपको आराम देती है और विश्राम देती है। किससे? वह जो आपको तीन तपों से विश्राम देती है, वह शिवरात्रि है। तप है आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैवीक। तपस्या का मतलब है दुखः या रुकावटे। वह काल या अवधि जो हमे दुखों से राहत दिलाती है वह शिवरात्रि है।



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