अन्याय से लड़ना आपका धर्म है

१९
२०१२
दिसम्बर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
प्रश्न : गुरुदेव , अर्जुन ने युद्धभूमि में ही अपनी दुविधा क्यों कही ? युद्ध में आने के पहले भी तो वे भगवान कृष्ण के साथ बहुत समय व्यतीत करते थे , तब क्यों नहीं पूछ लिया ?
श्री श्री रविशंकर : सुनिए , अर्जुन ने कोई दुविधा नहीं कही थी | अर्जुन ने केवल इतना कहा था , मैं लड़ना नहीं चाहता’ , बस इतना ही |
वो तो कृष्ण थे जिन्होंने सबसे पहले प्रश्न पूछा | उन्होंने कहा , अर्जुन , तुम दुखी हो , तुम उन चीज़ों के लिए रो रहे हो जिनके लिए तुम्हें नहीं रोना चाहिये , और तुम बात कर रहे हो एक पंडित की तरह ! उन्होंने कहा ,
 अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः | |
(भगवद्गीता अध्याय २ , श्लोक ११)
इस तरह से भगवान कृष्ण ने गीता का आरंभ किया |
वे कहते हैं , तुम उस बात पर शोक मना रहे हो , जिसके लिए तुम्हें शोक नहीं मनाना चाहिये’ |
देखिये , यदि आप एक आर्मी ऑफिसर हैं , या पुलिस ऑफिसर हैं , तब आपको अपना काम करना है |
आज दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली है |
कल आर्ट ऑफ लिविंग के हज़ारों वोलंटियरों ने मिलकर इंडिया गेट पर एक कैंडल-लाइट मार्च करी | और आज कितने सारे और लोग उनके साथ आ गए हैं |
JNU (जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी) भी जुड़ गयी है , IIT (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) भी साथ है और DU (दिल्ली युनिवर्सिटी) भी जुड़ गयी है | बस किसी को पहला कदम लेने की देर थी |
कल सुबह दिल्ली की टीचर्स ने मुझसे पूछा कि , गुरुदेव , हम कैंडल-लाइट मार्च करना चाहते हैं |’
वहां न तो कोई नारे-बाज़ी थी , न किसी को दोष दिया , न किसी पर चिल्लाये , बस केवल सब लोग शांतिपूर्वक वहां जाकर बैठ गए | उन्होंने कुछ मिनट ध्यान किया , मोमबत्तियाँ जलाईं और सिर्फ यह जागरूकता जगाई कि महिलाओं को सुरक्षित रहना चाहिये |
एक समय था जब इस देश में महिलाएं इतनी सुरक्षित थीं , लेकिन अब तो ये बिल्कुल अलग जगह बनती जा रही है |
तो हमारे वोलंटियर और आर्ट ऑफ लिविंग के टीचर्स ने कल दोपहर को ही ये फैसला किया , कि वे कैंडललाइट मार्च और प्रार्थना करेंगे , और ६ बजे तक सब जगहों से लोग आ गए थे |
मुझे ऐसे लोगों में इतना बड़ा अंतर दिखता है , जिनको उस आंतरिक शान्ति की थोड़ी सी झलक मिल गयी है , उस अंदर की दुनिया के दर्शन हो गए हैं; बजाय उनके जो अपनी भावनाओं के बारे में कुछ नहीं जानते , या जिन्होंने अपने मन को कभी शांत नहीं किया है | जब ऐसे लोग कोई मुद्दा उठाते हैं , तो वे इतना गुस्से में हो जाते हैं , आक्रमक और हानिकारक बन जाते हैं |
मैं ये कहना चाहते हूँ कि अगर कोई पुलिसमैन ये कहे कि , मैं नियम और कानून की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाऊँगा’ , तब क्या होगा ?
तो यही हालत अर्जुन की थी | वह एक योद्धा था | और उसका काम था अन्याय से लोगों की रक्षा करना , और वह कह रहा था , मैं किसी की भी अन्याय से रक्षा नहीं करूँगा’ |
तब भगवान कृष्ण ने उससे कहा , अरे भई , आप तो पंडित की तरह बात कर रहे हैं , लेकिन आप नागरिकों की रक्षा करने के अपने धर्म से भाग रहे हैं’ |
ठीक वैसे ही , जैसे दिल्ली पुलिस कह रही है , ये मेरी जिम्मेदारी नहीं है; या फिर राजनेता कह रहे हैं , ये मेरा काम नहीं है’ |
मैं कुछ हद तक उनसे सहमत हूँ , क्योंकि जब तक लोगों के अंदर मानवीय मूल्य नहीं जागेंगे , तब तक कुछ चंद पुलिसकर्मी भी क्या कर लेंगे ? लेकिन फिर भी !!
क्या आप जानते हैं , कितनी बार पुलिस फ़ोर्स का अनुशासन और उत्साह भंग हो जाता है | क्या आप जानते हैं क्यों ?
पुलिसकर्मी अपनी जान पर खेलते हैं , वे किसी अपराधी को ढूँढ कर उन्हें अंदर कर देते हैं , और फिर राजनेता उन्हें एक फोन कॉल करते हैं , और कहते हैं , नहीं , इस आदमी के खिलाफ़ कोई शिकायत नहीं होगी , उन्हें छोड़ दो’ , और फिर पुलिस वालों को उन्हें छोड़ना पड़ता है |
और फिर जब आप किसी अपराधी को इस तरह छोड़ देते हैं , तब वह आपके पीछे आता है और वे (पुलिसकर्मी) हतोत्साहित होते हैं |
यह अधर्म है |
एक और अधर्म है , यह रेसेर्वेशन बिल (आरक्षण बिल) |
मैं तो कहूँगा कि किसी को भी आरक्षण मिलना गलत है |
हाँ , नौकरी के लिए आरक्षण होना फिर भी ठीक है , लेकिन तरक्की के लिए आरक्षण , ये ठीक नहीं है |
आप देखिये , एक मैनेजर है और उसने अपने नीचे एक क्लर्क को नौकरी पर रखा है | अब सिर्फ इसलिए कि क्लर्क एक विशेष जाति का है , तीन साल में अगर वह सीनियर बन जाता है , तो उस मैनेजर के मनोबल का क्या होगा ?
इस देश की सारी प्रशासनिक व्यवस्था बर्बाद हो जायेगी | ये पूरी तरह से खत्म हो जायेगी , अगर जूनियर को सीनियर का सीनियर बना दिया जाए |
ज़रा सोचिये , यदि आप एक सुपरवाईजर हैं , और आपका जूनियर कुछ सालों में आपका भी सीनियर बन जाए तब क्या आपके अंदर इतनी हिम्मत होगी कि आप उसके काम के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहरा सकें ? सबसे पहले , नहीं ! दूसरा , मान लीजिए , कि आप अपने डिपार्टमेंट को बहुत अच्छी तरह से चला रहे हैं , और कल की तारीख में आपका जूनियर ही आपका सीनियर बन जाए , और फिर आपसे बदला ले , ये कितनी बेईज्ज़ती की बात है |
ये लोगों के लिए बहुत ही अपमानजनक होगा , जब किसी भी प्रशासनिक सेवा में पद में छोटा व्यक्ति अचानक वरिष्ठ बन जाए | ये प्रशासनिक सिस्टम को बिल्कुल खत्म कर देगा |
ये देश के लिए एक बहुत ही खेद की बात है |

आज सुबह से मैंने इतने लोगों को फोन किया है , और उनसे कहा है कि ये बिल्कुल बकवास है |
राज्यसभा में तो देश भर के बुद्धिजीवी लोगों को होना चाहिये | बुद्धिजीवियों का समूह इस तरह का कानून कैसे बना सकता है ? ये खतरनाक है | भविष्य में लोग इन्हें कभी भी माफ नहीं करेंगे |
यहाँ बात जाति की नहीं है | कुछ विशेष लोगों के गुट , जो आपके जूनियर हैं , उन्हें तरक्की दे दी जाती है , ताकि वे आपके सीनियर बन जाए सिर्फ इसलिए कि वे एक विशेष जाति के हैं ये बात बिल्कुल भी सही नहीं है | ये अन्याय है | मुझे नहीं लगता कि ये बात सुप्रीमकोर्ट भी मानेगा | और तो और , सुप्रीमकोर्ट तो इस कानून को पहले ही दो दफा ठुकरा चुका है , और फिर भी ये लोग ऐसा कानून बना रहे हैं | ये बिल्कुल अस्वीकार्य है |
जब कानून का न्यायालय (सुप्रीमकोर्ट) ही कह रहा है कि ये अन्याय है , और हम उस पूरी कार्यप्रणाली को ही घुमाने की कोशिश कर रहे हैं , तो ये बात बिल्कुल भी सही नहीं है | और हम आम जनता , बिल्कुल भी अपनी आँखें बंद कर के नहीं बैठ सकते |
शिक्षा में आरक्षण , नौकरी में आरक्षण ये ठीक है , लेकिन तरक्की में आरक्षण प्रशासनिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा ! ये एक बहुत ही गंभीर मामला है |
क्या आपको ऐसा नहीं लगता ? आपमें से कितने लोग ऐसा सोचते हैं ? (सब लोग अपना हाथ उठाते हैं)
यही बात भगवान कृष्ण ने कही , दुर्योधन इतनी तबाही मचा रहा है , और तुम अपनी आँखें बंद करके बैठना चाहते हो | तुम्हारा धर्म है कि तुम लड़ो | चलो , उठो |’
और जब वह लड़ने के लिए तैयार हुआ , तब कृष्ण ने उसे ज्ञान दिया , योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय (भगवद्गीता अध्याय २ , श्लोक ४८)
वे कहते हैं , सबसे पहले अपने अंदर जाओ और खुद को शुद्ध करो | घृणा से लड़ाई मत करो , लेकिन न्याय के लिए लड़ो ; संतुलन के साथ लड़ाई करो |’
यदि आप गुस्से और रोष के साथ लड़ रहे हैं , तो आप खुद को ही हानि पहुंचा रहे हैं | क्योंकि जब आप क्रोध में होते हैं , और भावनात्मक आवेश में होते हैं , तब आपकी बुद्धि और आपका मन ठीक तरह से काम नहीं कर सकते |
इसीलिये , सबसे पहले आपके मन को शांत होना चाहिये | जब यह शांत और उत्तेजनाहीन होता है तब न्याय स्वयं ही प्रकट होगा , सही विचार आयेंगे , और आपके विचार और अधिक सृजनात्मक , रचनात्मक और सकरात्मक होंगे | नकारात्मक विचार तभी आते हैं जब आप क्रोध में होते हैं | जब आप शांत और सकारात्मक होते हैं , तभी रचनात्मक विचार आपके भीतर से निकलेंगे | यही भगवद्गीता का सार है |
वे कहते हैं , युध्यस्व विगतज्वरः ज्वरः का अर्थ है व्याकुलता , वह क्रोध या घृणा; सबसे पहले उससे मुक्त होईये , और फिर लड़िए |
देखिये , किस तरह भगवद्गीता वर्तमान की परिस्थिति से जुड़ गयी है | ये कितना प्रत्यक्ष है |
मैं उन वोलंटियर्स के लिए बहुत खुश हूँ जिन्होंने आज और कल पूरा पूरा दिन बिताया , और इंडिया गेट गए , लोगों में जागरूकता फैलाई , और पूरे देश में एक बड़ी लहर बनाई |
कल हमारे आर्ट ऑफ लिविंग वोलंटियर्स ने दिल्ली में जो किया , वह आज पूरे देश में फ़ैल गया है | हर जगह कैंडललाइट मार्च है , और लोग खड़े होकर महिलाओं के प्रति हिंसा के विरोध में बोल रहे हैं | ये एक अच्छा कदम है |
यही मैं कहता रहता हूँ , अपनी शक्ति को कम मत समझिए | हमारे अंदर जो शक्ति है , वह चीज़ों को बदल सकती है |
यहाँ आपमें से हर एक कोई एक लीडर है , और आप में से एक एक व्यक्ति आज समाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है | यदि आप सब एक साथ मिल जायें , और कुछ करें , तब ये देश बदल जाएगा और यहाँ के लोग भी बदल जायेंगे | ये निश्चित तौर पर होगा ही , क्योंकि हर एक किसी के अंदर एक हल्की सी जागरूकता है |
ज़रूरी ये है , कि हम सबको इसकी जिम्मेदारी लेनी है | हम किसी एक इन्सान की तरफ उंगली उठा कर ये नहीं कह सकते कि ये उसकी जिम्मेदारी है | इस देश की आबादी इतनी ज्यादा है , कि हम ये नहीं कह सकते कि इस एक पुलिसकर्मी ने अपनी ड्यूटी नहीं करी |
लोगों को जिम्मेदारी लेना शुरू करना होगा , और ये अब होने लगा है , जोकि एक बहुत ही अच्छी खबर है |

प्रश्न : क्या हमारी मृत्यु की तारीख निश्चित है , या फिर हमारे जीवन के दौरान वह बदल भी सकती है ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ , वह बदल सकती है |
जैसे जब आप हाईवे पर होते हैं , तो कुछ exit पॉइंट होते हैं , जहाँ से आप हाईवे से बाहर निकल सकते हैं , है न ?! उसी तरह हर एक के जीवन में , कुछ exit पॉइंट आते हैं | यदि आप एक पड़ाव चूक जाते हैं , तो आप अगले पड़ाव से निकल जाते हैं |