१
२०१२
अगस्त
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बैंगलुरु आश्रम
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आज पूर्णिमा है – श्रावण पूर्णिमा| इसके पहली
वाली पूर्णिमा गुरु-पूर्णिमा थी, जो गुरु और शिक्षकों को समर्पित थी| उसके पहले बुद्ध
पूर्णिमा थी, और उसके भी पहले चैत्र-पूर्णिमा थी|
तो इस चौथी पूर्णिमा को श्रावण-पूर्णिमा कहते हैं, और ये वाला
पूरा चाँद भाई-बहन के सम्बन्ध को समर्पित है – रक्षा बंधन|
आज के ही दिन जनेऊ (पवित्र धागा) बदला जाता है| धागे को बदलने
का महत्व है - आपको ये याद दिलाना कि आपके कन्धों पर तीन जिम्मेदारियां या ऋण हैं –
माता-पिता के प्रति ज़िम्मेदारी, समाज के प्रति जिम्मेदारी और ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी|
ये हमारी तीन जिम्मेदारी या ऋण हैं| हम अपने माता-पिता के प्रति
ऋणी हैं, हम समाज के प्रति ऋणी हैं, और हम गुरु के प्रति ऋणी हैं; यानि ज्ञान के प्रति|
तो ये तीन प्रकार के ऋण हैं, और जनेऊ हमें इन तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाता है|
जब हम कहते हैं ‘ऋण’
– तो हमें लगता है कि ये कोई कर्जा है जो हमें वापिस करना है| लेकिन हमें इसे
एक जिम्मेदारी के रूप में समझना चाहिये| तो इस सन्दर्भ में ऋण का क्या अर्थ है?
जिम्मेदारी! यह है अपनी जिम्मेदारियों को
पुनः याद करना, पिछली पीढ़ी के प्रति, आने वाली पीढ़ी के लिए और वर्तमान पीढ़ी के लिए|
और इसी लिए, आप धागे को तीन बार लपेटते हैं| (जनेऊ)
यही इसका महत्व है – मुझे अपना शरीर शुद्ध रखना
है, अपना मन शुद्ध रखना है और अपनी वाणी शुद्ध रखनी है; शरीर, मन और वाणी में पवित्रता|
और जब आपके चारों ओर एक धागा लटका रहता है, तो आपको हर दिन ये याद आता है –
“ओह, मेरी ये तीन जिम्मेदारी हैं”|
पुराने दिनों में महिलाओं को भी ये धागा पहनना होता था| ये केवल
एक जाति या किसी और जाति तक ही सीमित नहीं था| इसे हर एक कोई पहनता था –
फिर चाहे वो ब्राह्मण हो, वैश्य, क्षत्रिय या शुद्र; लेकिन बाद में यह सिर्फ कुछ लोगों
तक ही सीमित रह गया|
जिम्मेदारी तो हर एक किसी के लिए होती है|
अब जब किसी की शादी हो जाती है, तो उन्हें छह धागे मिल जाते हैं
– तीन अपने लिए, और तीन अपनी पत्नी के भी| वैसे तो पत्नियों को भी लेना चाहिये,
लेकिन पति ही इसे ले लेते हैं| यह एक पुरुष-प्रधान समाज है; उनसे ये गलती हो गयी| पुराने
ज़माने में इसे महिलाएं भी लेती थीं – जिम्मेदारी लेने की प्रथा|
लेकिन अब शादी होने के बाद, पुरुष ही पत्नी की तरफ की भी जिम्मेदारी लेते हैं|
तो रक्षाबंधन पर, आप राखी बांधते हैं, जिसे हम friendship
band (दोस्ती का धागा) भी कहते हैं| यह नाम तो अंग्रेज़ी में अभी रखा गया है, लेकिन
रक्षा बंधन तो पहले से ही था| ये एक रक्षा का रिश्ता है, जहाँ बहन भाई की रक्षा करती
है|
इसलिए, रक्षा बंधन ऐसा त्यौहार है, जहाँ सारी बहनें जाती हैं,
और अपने भाइयों को राखी बांधती हैं| और ये कोई ज़रूरी नहीं है, कि वे उनके अपने सगे
भाई ही हों| बल्कि, वे तो सभी को राखी बांधती हैं, और सभी उनके भाई बन जाते हैं| तो
ये प्रथा इस देश में काफी प्रचलित है, और ये श्रावण पूर्णिमा का बहुत बड़ा त्यौहार है|
श्रावण पूर्णिमा के बाद आती है, भादो पूर्णिमा| इसे भी मनाया जाता
है| फिर आती है अनंत पूर्णिमा, जो अनन्तता का पूरा चाँद है| और फिर आती है शरद पूर्णिमा|
शरद पूर्णिमा को कहते हैं, कि बहुत बड़ा और बहुत सुन्दर चाँद होता है| अगर किसी का चेहरा
बहुत चमक रहा होता है, और वे बहुत तेजस्वी लग रहें होते हैं, तो उन्हें कहते हैं, “आप
शरद पूर्णिमा के जैसे लग रहें हैं”|
शरद पूर्णिमा को ही सबसे उत्तम माना जाता है| पूरे साल में सबसे
बड़ा, सबसे साफ़ चाँद इसी दिन दिखता है| अगर कोई बहुत मधुर हो, तो वे कहते हैं “शरद चन्द्र
निभानन”|
ऐसा कहते हैं कि देवी माँ का चेहरा शरद पूर्णिमा के चाँद जैसा
होता है| तो ये एक बहुत ही शुभ पूर्णिमा होती है|
और इसके बाद आती है, कार्तिक पूर्णिमा, जहाँ आप बहुत से दिए जलाते
हैं, और उत्सव मनाते हैं|
इसलिए, हर एक पूर्णिमा का कोई महत्व है, और उससे कोई न कोई उत्सव
जुड़ा हुआ है|
वो शरद पूर्णिमा का दिन था जब भगवान कृष्ण ने सभी गोपियों के साथ
नृत्य किया था| हालाँकि वे एक थे, और गोपियाँ अनेक, फिर भी उन्हें (गोपियों को) ऐसा
लगा जैसे कृष्ण एक से अनेक बन गए थे, और हर एक के साथ नृत्य कर रहें थे| तो हर कोई
मन्त्र-मुग्ध था! और हर एक को ऐसा लग रहा था, कि कृष्ण केवल उनके साथ हैं, और इस तरह
कृष्ण ने सबके साथ नृत्य किया| शरद पूर्णिमा तो इसके लिए बहुत जानी जाती है|
लोग इस दिन का उत्सव मनाते हैं| वे चांदनी रात में दूध रखते हैं,
और फिर उसे पीते हैं| तो इस तरह शरद पूर्णिमा के दिन उत्सव मनाया जाता है|
अगर आप अपने पूरे जीवन को एक उत्सव नहीं बना सकते, और हर एक दिन
को खुशी से मना नहीं सकते, तो कम से कम महीने में कुछ दिन तो उत्सव मना ही सकते हैं|
अगर महीने में कुछ चंद दिन भी ज्यादा हैं, तो फिर कमसे कम महीने में एक दिन, यानि पूर्णिमा
के दिन आप उत्सव मना सकते हैं; तो इस तरह साल में बारह उत्सव हो गए|
मन चन्द्रमा से इतना जुड़ा हुआ है, इसीलिये, चाहे वह नया चाँद हो,
या पूरा चाँद, हमारा मन ऊपर नीचे होता है| मन और चन्द्रमा का बहुत गहरा सम्बन्ध है,
और इसलिए वेदों में कहा है, ‘चन्द्रमा मनसो जाता’
– मन चन्द्रमा से नहीं बना है, चन्द्रमा मन से बना है| और इसलिए
ये दिन महत्वपूर्ण हैं|
जीवन अपने आप में महत्वपूर्ण है| मैं आपसे कहता हूँ, कि एक ज्ञानी
के लिए ये पूरा जीवन महत्वपूर्ण है|
तो इस दिन, जब ये पवित्र धागा (जनेऊ) बदला जाता है, तो इसे एक
संकल्प के साथ किया जाता है, कि “मुझे शक्ति प्रदान हो, कि मैं जो भी कर्म करूँ वे
कुशल और श्रुत हों”|
कर्म करने के लिए भी किसी को योग्यता चाहिये| और जब शरीर शुद्ध
हो, वाणी शुद्ध हो और चेतना जागृत हो, तभी काम पूरा होता है|
ऐसा कहा गया है, कि किसी को काम करने के लिए, चाहे वे आध्यात्मिक
हो या फिर सांसारिक काम, उन्हें कुशलता ज़रूरी है, योग्यता| और इस कुशलता और योग्यता
को पाने के लिए, आपको जिम्मेदार होना पड़ेगा| केवल एक ज़िम्मेदार व्यक्ति ही काम करने
के लायक है| देखिये, कितना सुन्दर सन्देश दिया गया है|
अगर आप किसी गैर-जिम्मेदार व्यक्ति को कोई काम देंगे, तो उससे
हमेशा नुकसान ही होगा|
अगर आप किसी गैर-जिम्मेदार व्यक्ति को किचन सँभालने के लिए कहेंगे,
और फिर अगले दिन सुबह नाश्ते के लिए जायेंगे, वे आपसे कहेंगे, “नाश्ता तो तैयार नहीं
है”|
अगर नाश्ता दोपहर के खाने के समय दिया जाए, तो मतलब वह इन्सान जिम्मेदार
नहीं है| और एक गैर-जिम्मेदार व्यक्ति कोई भी काम करने के लायक नहीं है| भले ही वह
आध्यात्मिक काम हो, या फिर सांसारिक काम| इसलिए, सबसे पहले हमें ये पता होना चाहिये,
कि जीवन में अपनी जिम्मेदारियां कैसे पूरी करनी चाहिये| और यज्ञोपवीत संस्कार
– माने ये सीखना कि जिम्मेदारी कैसे ली जाती है|
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