बैंगलुरु आश्रम
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जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को
मनाया जाता है| अष्टमी तिथि का महत्व इसलिये है क्योंकि वह वास्तविकता
के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वरूपों में सुन्दर संतुलन को दर्शाता है, प्रत्यक्ष भौतिक
संसार और अप्रत्यक्ष आध्यात्मिक दायरे|
भगवान श्रीकृष्ण का अष्टमी तिथि के दिन जन्म होना यह
दर्शाता है कि वे आध्यात्मिक और सांसारिक दुनिया में पूर्ण रूप से परिपूर्ण थे| वे एक महान
शिक्षक और आध्यात्मिक प्रेरणा के अलावा उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ भी थे| एक तरफ
वे योगेश्वर हैं (वह अवस्था जिसे प्रत्येक योगी हासिल करना चाहता है) और दूसरी ओर वे
नटखट चोर भी हैं|
भगवान श्री कृष्ण का सबसे अद्भुत गुण यह है कि वे सभी
संतों में सबसे श्रेष्ठ ओर पवित्र होने के बावजूद वे अत्यंत नटखट भी हैं| उनका स्वभाव
दो छोरों का सबसे सुन्दर संतुलन है और शायद इसलिये भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व
को समझ पाना बहुत ही कठिन है| अवधूत बाहरी दुनिया
से अनजान है और सांसारिक पुरुष, राजनीतिज्ञ और एक राजा आध्यात्मिक दुनिया से अनजान
है| लेकिन भगवान
श्री कृष्ण दोनों द्वारकाधीश और योगेश्वर हैं|
भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा और ज्ञान हाल के समय के लिये
सुसंगत हैं क्योंकि वे व्यक्ति को सांसारिक कायाकल्पो में फँसने नहीं देती और संसार
से दूर होने भी नहीं देती| वे एक थके हुए
और तनावग्रस्त व्यक्तित्व को पुनः प्रज्वलित करते हुये और अधिक केंद्रित और गतिशील
बना देती है| भगवान श्री कृष्ण हमें भक्ति की शिक्षा कुशलता के साथ
देते हैं| गोकुलाष्टमी
का उत्सव मनाने का अर्थ है कि विरोधाभासी गुणों को लेकिन फिर भी सुसंगत गुणों को अपने
जीवन में उतार के या धारण कर के प्रदर्शित करना|
जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का सबसे प्रामाणिक तरीका यह
है कि आप को यह जान लेना होगा कि आपको दो भूमिकाएं निभानी हैं| यह कि आप
इस ग्रह के एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं और उसी समय आपको यह एहसास करना होगा कि आप सभी
घटनाओं से परे हैं और एक अछूते ब्राह्मण हैं| जन्माष्टमी
का उत्सव मनाने का वास्तविक महत्व अपने जीवन में अवधूत के कुछ अंश को धारण करना और
जीवन को अधिक गतिशील बनाना होता है|
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