१२
२०१२
अगस्त
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बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
जो भजन हमने अभी अभी गाया वो जोगिया राग में था| हम इस राग को ‘राधा’ से नहीं जोड़ सकते|
पर यदि आप ‘शिव,शिव’, भजते हैं, तो इसे अनासक्ति के राग से जोड़ा जा सकता है|
एक बार किसी को शादी की रिसेप्शन पर गाने के लिये आग्रह किया गया| उसने कन्नड़ में गाना शुरु किया, “हे आत्मा, तुम इस शरीर को छोड़ कर क्यों चली गयी? क्या मृत्यु
उचित है?” क्या यह गीत उस अवसर के लिये
उपयुक्त था?
आप कोई गीत कहीं पर भी नहीं गा सकते| भाव और राग का मिलना आवश्यक
है|
हमारा जीवन भी ऐसा ही है| जीवन की नदिया बह रही है,
परंतु, आगे बढ़ते जाने की ओर ध्यान देने की अपेक्षा, हम पीछे की ओर जाते रहते हैं| आपने देखा होगा कि नदी के प्रवाह में कुछ स्थान ऐसे आते हैं
जहाँ पर कि कोई बाधा होती है, और पानी का प्रवाह पीछे की ओर हो जाता है, और वहां
गंदगी जमा हो जाती है| जो पानी आगे बह जाता है, वह
साफ रहता है|
इसी प्रकार, यदि हम आगे बढ़ते जाते हैं, तो मन में आनन्द रहता है| यदि हम बीते समय के विषय में सोचते रहते हैं तो हमारा मन भी
कबाड़खाना बन जाता है|
मुझे तो ऐसा ही लगता है| आपका क्या कहना है?
क्या बात है,आज कोई प्रश्न नहीं पूछ रहा? दो
ही कारण हो सकते हैं – एक तो यह कि आप सब कुछ
जानते हैं| और दूसरा यह कि आपको मेरा बोला एक
भी शब्द समझ नहीं आ रहा| (गुरुजी कन्नड़ में जो बोल
रहे थे) दोनों में से क्या बात है?
(श्रोता : जब
हम आपको देख लेते हैं तो सब प्रश्न भूल जाते हैं!)
बहुत बढ़िया!
प्रश्न : वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने क्या राज़ है?
श्री श्री रविशंकर : मेरे ख्याल में आप गलत व्यक्ति से
पूछ रहे हैं!
एक बार यहाँ, जर्मनी के एक सज्जन व इटली की एक महिला आईं| दोनों पहले कई बार शादी कर चुके थे| वे मेरे पास आये और बोले, “गुरुजी,
हमें आपका आशीर्वाद चाहिये| कम से कम यह विवाह तो सफल
हो|” मैंने उस सज्जन से पूछा कि क्या वे
इटालियन जानते हैं, तो उन्होंने कहा, ‘नहीं’| फिर उस महिला से पूछा कि वे जर्मन जानती है, तो उसने भी बोला
कि ‘नहीं’|
दोनों ही अंग्रेज़ी भी नहीं जानते थे| मैंने कहा, “एक दूसरे की भाषा मत सीखना| यह
विवाह सफल हो जायेगा|”
कन्नड़ में एक कहावत है,जिसमें कहा गया है कि, “शब्दों से ही झगड़े की शुरुआत होती है| शब्दों से ही लोग मज़ा लेते हैं| शब्दों से ही लोग धन अर्जित करते हैं| इसलिये शब्दों का प्रयोग बहुत किफायत से करना चाहिये|”
प्राय: जब लोगों में कोई गलतफहमी हो जाती है तो वे कहते हैं, “आओ, बात
करके सुलझा लें|” पर यह ‘बात करना’ बिल्कुल काम नहीं करता| हमें उस विषय पर बात करनी ही नहीं चाहिये। आगे बढ़ जाना
चाहिए, बस| बैठ कर बीती बातों की चर्चा न करें| बीती बातों पर सफाई न माँगें| कोई
गलती हो गई, तो हो गई, बस| आगे चलते रहें| उस स्थिति को याद करें जबकि आपसे कोई गलती हुई थी और सामने
वाला आपसे उस गलती की सफाई माँगता रहा था| किसी को सफाई देना या अपने
पक्ष को उचित ठहराना कितना बोझिल होता है, है न?
दूसरे को कभी भी दोषी अनुभव नहीं होने देना चाहिये| यह बहुत महत्त्वपूर्ण है| जिसे भी आप दोषी होने की
अनुभूति करायेंगे, वह भीतर से आपको मित्र मानना छोड़ देगा| की अनुभूति करायेंगे, वह भीतर से आपको मित्र मानना छोड़ देगा| मित्रता का बंधन कमज़ोर पड़ जायेगा|
किसी को दोषी होने की अनुभूति कराये बिना उसे उसकी गलती का अहसास करवाना
एक कला है| जबकि, मनुष्य की सामान्य प्रवृत्ति
यह होती है कि पहले किसी को दोषी होने की अनुभूति करवाओ और फिर इस पर खुश हो जाओ| हमें इस सामान्य प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा और किसी को भी
दोषी होने की अनुभूति करवाने बचना होगा| तब, हमारे सम्बन्ध स्थाई हो
पायेंगे|
एक राज़ महिलाओं के लिये है और एक पुरुषों के लिये| शायद यह काम कर जाये| महिलाओं के लिये - कभी भी
पुरुष के अहं को चोट न पहुँचायें|
चाहे सारा जगत उसे नासमझ कहता रहे, पर पत्नी को ऐसा कभी नहीं कहना चाहिये| उसे कहना चाहिये, “आप इस धरती पर सबसे समझदार
व्यक्ति हो| आप अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं
करते, इसका अर्थ यह नहीं कि आपके पास दिमाग है ही नहीं!”
उसे हमेशा पति के अहं को पुष्ट करते रहना चाहिये| यह बहुत ही जरूरी है|
यदि पत्नी कहती रहेगी कि, “तुम किसी काम के नहीं| बिल्कुल निक्कमे हो,” तो वो सच में ही ऐसा बन
जायेगा|
अब, पुरुषों के लिये राज़ की बात – एक पुरुष को स्त्री की
भावनाओं को कभी आहत नहीं करना चाहिये| वह आपसे अपने भाई, माँ, या
परिवार के विषय में शिकायत करती रहे, पर आपको सहमति नहीं जतानी है| आपने सर हिलाना शुरु किया नहीं कि वह पलटी नहीं| अपनी शिकायतों को दोहराने के स्थान पर वह आपके बारे में
शिकायतों का अम्बार लगा देगी|
और यदि वह किसी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना चाहती है, या फिर, किसी
तीर्थस्थान, सिनेमा या फिर खरीददारी के लिये जाना चाहती है, तो चुपचाप मान जाइये
और क्रेडिट कार्ड उसके हवाले कर दीजिये!
तो, यदि आप स्त्री की भावनाओं को आहत नहीं करते तो सब कुछ ठीक रहता है।
अब आप दोनों के लिये – एक दूसरे से अपने प्रति
प्रेम का प्रमाण मत मांगिये| कभी भी ऐसे प्रश्न न करें, “क्या तुम मुझे सच में प्रेम करते/करती हो?” किसी को भी अपना प्रेम प्रमाणित करने का बोझ न सौंपें| आप समझ रहे हैं न कि मैं क्या कह रहा हूँ?
यदि आपको लगता है कि आपके प्रति उनके प्रेम में कोई कमी है तो ऐसा कभी न
कहें कि “आप मुझे प्रेम नहीं करते|” आपको कहना चाहिये, “आप मुझे इतना प्रेम क्यों
करते हैं?”
प्रश्न : यदि कोई हमें उकसाता है, तो क्या हमें चुप रहना चाहिये या फिर
उसे सबक सिखाना चाहिये? यदि हम चुप रहते हैं तो इसे
हमारी कमज़ोरी माना जायेगा, और यदि हम उसे सबक सिखाते हैं तो यह कहा जायेगा कि
हमारा आध्यात्मिक विकास नहीं हुआ|
श्री श्री रविशंकर : किसी को सबक सिखाने के लिये आपको
शांत रहना चाहिये| यदि आप गुस्सा करते हैं, विचलित
होते हैं तो आप किसी को सबक नहीं सिखा सकते|
और हर बार मार खाने के लिये अपना दूसरा गाल भी आगे नहीं कर सकते| सबक सिखाइये, पर सहृद्यता के साथ| यह आपको बल प्रदान करेगा|
जब आप उस व्यक्ति के हालात को और वह आपको क्यों उकसा रहा है, यह समझ
जायेंगे तो आप उससे शांत व निर्मल मन से निपट पायेंगे|
प्रश्न : उन लोगों से कैसे निपटें जो कि लगातार नकारात्मकता फैलाते रहते
हैं?
श्री श्री
रविशंकर : पहले
तो, यह जान लीजिये कि कोई भी लगातार नकारात्मकता नहीं फैला सकता| दूसरे, इसके साथ युक्ति से निपटें| तीसरे, इस पर ध्यान न दें|
प्रश्न : कृपया बतायें कि मैं इस
स्थिति से कैसे निपटूं? मैं किसी से बिना किसी अपेक्षा
के प्रेम करता हूँ पर वह मुझे कोई महत्त्व नहीं देते। मैं इस पीड़ा का सामना कैसे
करूँ?
श्री श्री रविशंकर : ओह, तो वे आपको महत्त्व नहीं देते? वे आपको प्रेम के बदले प्रेम नहीं देते? वे अपने प्रेम को प्रदर्शित नहीं करते, यही समस्या है न? अच्छा होगा, कि उनके प्रेम पर संदेह न करें|
यदि आपको लगता है कि वे प्रेम नहीं करते, तो “आप मुझे प्रेम नहीं करते” यह
कह कर उन पर दोषारोपण करने की अपेक्षा, उनसे पूछें, “आप मुझे इतना प्रेम क्यों
करते हैं?”
जरा सोच कर देखिये, यदि कोई आपसे हमेशा शिकायत करता रहे कि आप उससे स्नेह
नहीं करते, आप उसके साथ खुश नहीं हैं, मित्रवत नहीं हैं, तो आपको कैसा लगेगा?
(उत्तर : हमें लगता है कि हमारे पीछे ही पड़ गया है|)
हाँ! अब आप समझे न कि आप दूसरों के साथ क्या कर रहे हैं?
कोई भी ऐसे व्यक्ति का साथ नहीं चाहता जो कि हर समय शिकायत करता रहे|
क्या कोई ऐसे व्यक्ति के साथ रहना चाहेगा, जो उसके पीछे पड़ा रहे, और जिस
को हर समय अपने प्रेम का प्रमाण व सफाई देनी पड़े? नहीं!
कितना बोझिल, कितना उबाऊ है यह!
अच्छा साथी वही है जो हमेशा उत्साह बढ़ाता रहता है| यदि कोई उदास होता है तो वे कहता है, ‘हे, चलो, छोड़ो| भूल जाओ सब| चलो आगे की सोचें|’
वह, जो उत्साह से भरा रहे, वह, जो आपको आगे ले जाये, वही अच्छा साथी है|
वह, जो सफाई मांगता रहे, आप पर संदेह करता रहे, अच्छा साथी नहीं हो सकता|
इसलिये, अपने प्रति किसी के प्रेम पर कभी संदेह न करें| कभी हर समय संशय व शिकायतों से घिरे न रहें| आगे बढ़ते चलें|
प्रश्न : भारत में आर्ट ऑफ लिविंग सहित बहुत सी संस्थायें हैं, जोकि योग व
ध्यान सिखाती हैं| सभी एक ही उद्देश्य के लिये कार्य
कर रही हैं, और वो है – मानवजाति को शांति प्रदान
करना, तो फिर ये संस्थायें इतनी भिन्न क्यों हैं?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, एक ही उद्देश्य वाले लोग
हमेशा साथ रहेंगे| चाहे वे भिन्न भिन्न तरीकों से इसे
कर रहे हैं, फिर भी कहीं कोई द्वन्द्व नहीं है, क्योंकि सबका उद्देश्य एक सा ही है|
जानते हैं न, जीव विविधता प्रेमी है|जब मैं पाकिस्तान गया, तो
लोगों ने पूछा कि भारत में इतने सारे देवता क्यों हैं? भगवान तो एक ही होना चाहिये| मैंने उन्हें बताया, आपके पास एक ही गेहूँ से बने इतने सारे
पकवान क्यों हैं? भगवान ने भी तो कितनी सारी सब्जियां उगाई हैं| उसने केवल एक ही पौधा उगा कर यह नहीं कहा, “सारा जीवन यही खाओ|” देखिये ईश्वर ने कितनी
विभिन्न प्रकार की सब्जियां व फल बनाये हैं, हैं न? ऐसे
ही, भारत में बहुत से देवता हैं, पर परमात्मा एक ही है| एक ही परमात्मा विभिन्न आकारों व नामों में है| यही उत्सव मनाने के समान है!
देखो यहाँ सब लोगों ने कितने रंग पहन रखे हैं| यदि सभी ने एक ही तरह के कपड़े पहने होते, तो यह किसी मिलट्री
कैंप की तरह लगता| है न? समझ गये न?
विविधता सृष्टि का सौंदर्य है और हमें इसका आदर अवश्य करना चाहिये|
जब मैंने ऐसा कहा तो वे बहुत ही खुश हुये और कहा, “किसी ने पहले कभी भी इस प्रकार से नहीं समझाया था!”
प्रश्न : एक व्यक्ति ईश्वर में विश्वास करता है, पर दूसरों को धोखा देता
है, लूटता है| दूसरा ईश्वर में विश्वास नहीं करता,
पर कभी धोखा नहीं देता| कौन सही है?
श्री श्री रविशंकर : आप ने पहले ही उत्तर दे दिया है!
यह तो ये पूछने के समान है कि, ‘एक प्लेट में कोयला रखा है
और एक में मक्खन, आप क्या लेना चाहेंगे?’ यह तो बिल्कुल साफ है!
यदि कोई ईश्वर में विश्वास करता है, तो वह धोखा कैसे दे सकता है? मेरी समझ में यह नहीं आ रहा|
ऐसा हो सकता है कि दूसरों को धोखा देने के लिये उसकी आत्मा उसे बुरी तरह
से कचोट रही हो और वह ईश्वर से क्षमा माँग रहा हो|
जो व्यक्ति धोखा देता है, वो अज्ञान में फंसा होता है| कोई विशालता नहीं होती| उसमें कहीं न कहीं डर छुपा
रहता हैऔर इसीलिये वह ऐसे काम करता है|
प्रश्न : मेरा एक मित्र पागल हो गया है| वह
२४X७ घंटे काम करता रहता है| उसके माता-पिता समझ नहीं पा रहे कि क्या करें? मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : मैं
देख रहा हूँ कि आजकल ऐसा बहुत हो रहा है| आज कल दबाव बहुत है – साथियों से आगे निकलने का, परीक्षा में अच्छा करने का| इसलिये वे दिन रात पढ़ते रहते हैं|
एक युवा मेरे
पास आया और कहने लगा कि वे चार बड़े लैंप अपने मेज़ पर लगा कर पढ़ता है और दिन रात
पढ़ता ही रहता है| पर यह ठीक नहीं है| दिमाग का ध्यान रखने की भी आवश्यकता है| आप इस प्रकार दिमाग का अत्यधिक प्रयोग नहीं कर कर सकते|नहीं तो एक दिन अचानक कुछ होगा और दिमाग का फ्यूज़ उड़ जायेगा!
नियमित योग व
ध्यान करिये| इसे कभी कभी कर लेना काफ़ी नहीं है| ऐसे सभी मामलों को येस+ के अधिकारियों के सामने अवश्य लायें|
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