३१
२०१२
जुलाई
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बैंगलुरु आश्रम, भारत
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आज हमने अपना विश्वविद्यालय भुवनेश्वर, ओडीशा में आरंभ किया| छात्रों
का पहला बैच विश्वविद्यालय में पहुँच गया है| और छात्रों का
पहला बैच हमारे लिये गर्व है क्योंकि यह उसकी
नींव है जो कि बहुत बड़ा और महान बनने वाला है|
श्री श्री विश्वविद्यालय मूल्यों और सार्वभौमिक सहयोग पर आधारित है|
विश्वविद्यालय में छात्रों को पूर्व और पश्चिम का सबसे श्रेष्ठ ज्ञान प्रदान कराया
जायेगा और वे सार्वभौमिक नागरिक बनेंगे| वे अपने कौशल और
प्रतिभा को विश्व भर में ले जायेंगे|
मैं अपने कुलपति डॉ मिश्र और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ राव और अन्य लोगों को
बधाई देता हूँ| इन सभी लोगों ने बहुत ही कम समय में गहरा परिश्रम किया| उन्होंने
भुवनेश्वर में भारी वर्षा के बावजूद सभी व्यवस्था की| उनके सामने
कई चुनौतियां थी और चुनौतियों के बावजूद उन्होंने प्रतिबद्ध दिनांक को ही विश्वविद्यालय
को आरंभ किया| जैसे हम आगे बढ़ेंगे तो इसमें और सुविधाएँ मुहैया कराई
जायेंगी|
मैं सभी छात्रों को भी बधाई देना चाहूंगा| आगे आप सब का भविष्य बहुत ही उज्जवल है| विश्वविद्यालय के आरंभ होने से पहले ही मुझे लोगों के विश्व भर से फोन आये और मुझे उनसे सुझाव मिल रहे थे कि कैसे वे विश्वविद्यालय से जुड़ सकते हैं| मुझे खुशी है कि आज इस शुभ दिन पर यह विश्वविद्यालय आरंभ हुआ| मुझे यकीन है कि छात्रों का यह पहला बैच हमारे समाज का नेतृत्व करेगा|
ज्ञान, व्यक्तित्व, सामाजिक विकास, सामाजिक जिम्मेदारी और सामाजिक नेतृत्व की ही
हम हमारे छात्रों से उम्मीद करते हैं| मुझे विश्वास है
कि ये छात्र उम्मीद की नई किरण जगायेंगे| वे आर्थिक व्यवस्था
में नई आशा जगायेंगे खास तौर पर जब आर्थिक संकट, नैतिक पतन, सामाजिक अन्याय, गरीबी
और अन्य चुनौतियां चरम पर हैं| मैं वह सारी चुनौतियां जिसका सामना आज समाज
कर रहा है उसे गिनना नहीं चाहता| लेकिन मुझे भरोसा है कि छात्रों को अच्छी
सुविधाएँ प्रदान की जायेगी जिससे वे लाखों लोगों के आंसू पोंछ पायेंगे और विश्व में
आर्थिक विकास और समृद्धि को वापस लायेंगे|
छात्रों में दो बातें आवश्यक है :
१.
आपका एक विशाल दृष्टिकोण होना चाहिये|
२. जितना संभव हो आप में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान ग्रहण करने की इच्छा होनी चाहिये| आपको पाठ्यक्रम
तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये लेकिन आपको पाठ्यक्रम से परे जाना चाहिये| आप जो
कुछ भी सीखना चाहते हैं, अपने शिक्षकों से उसकी मांग करनी चाहिये| छात्रों
के लिये यह बहुत आवश्यक है कि वे अत्यंत उत्साहित रहें|
संस्कृत में एक कहावत है कि, ‘यदि आप
एक विद्यार्थी हैं, तो सुख की कामना नहीं करनी चाहिये| और जो
विद्यार्थी सुख की चाहत रखते हैं, वे उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकते|’ विद्यार्थीना
कुतो सुखम, सुखार्थिना कुतो विद्या’|
इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको दुखी या असुविधाजनक होना चाहिये| लेकिन सिर्फ सुख और मजाक पर केंद्रित होने से उसका परिणाम यह होता है कि शिक्षा पीछे रह जाती है| जब आप ज्ञान पर केंद्रित रहते हैं तो फिर सुख जीवन भर के लिये मिल जाता है| ज्ञान और विवेक वह है जो सुख का भोर करते हैं चाहे वह आतंरिक या बाहरी सुख हो| इसलिये आप को ज्ञान और विवेक पर केंद्रित करना चाहिये फिर सुख अपने आप ही आ जाता है|
मुझे बहुत खुशी और विश्वास है कि यह पहली बैच के छात्र विश्व की बड़ी आशा के चमकते
हुये उदाहरण होंगे| जो लोग यहाँ पर एकत्रित हैं, मैं उन्हें
भी बधाई देना चाहूँगा| आप लोग मानवता के लिये एक नई नींव तैयार
कर रहे हैं| भविष्य में विश्वविद्यालय में ओस्टीओपेथी, नेचरोपेथी,
योग और आयुर्वेद के विभाग खोले जायेंगे, खास तौर पर वे जो देश में उपलब्ध नहीं हैं|
भारत में पहली बार हम ओस्टीओपेथी को पाठ्यक्रम के रूप में पेश करेंगे| भारत में
कोई भी ओस्टीओपेथी के बारे में नहीं जानता| जैसे हमारे पास
विषम चिकित्सा है, उसी तरह हमारे पास ओस्टीओपेथी है, जो मास्कुलोस्केलेटन ढांचे
(जोड़ों, मांसपेशियों
और रीढ़ की हड्डी) को ठीक करने पर केंद्रित होती है, जिससे कई और बीमारियाँ ठीक हो
जाती हैं| यह प्रतिरक्षा, समग्र अच्छा स्वास्थ्य और व्यक्ति के
पूर्ण स्वास्थ्य में सुधार करता है| इसलिये हम इस पाठ्यक्रम
की शुरुआत विश्वविद्यालय में कर रहे हैं| फिर इस विश्वविद्यालय
में अच्छे शासन के लिये एक महाविद्यालय की स्थापना कर रहे हैं| आज हर
क्षेत्र के लोगों को किसी योग्यता की आवश्यकता होती है| लेकिन
राजनीति गायब रहती है| इसलिये राजनीतिज्ञों की गुणवत्ता में कमी
आई है, पहले के जैसे नहीं हैं|
प्रशासन में भी ग्रामीण पंचायत के स्तर से संसद तक हमें अच्छे प्रशासक और नेताओं को निर्मित करना होगा| अच्छे शासन के लिये एक महाविद्यालय की स्थापना भी कतार में है| यह काफी जल्दी बनने वाला है| व्यवसाय प्रबंधन और व्यवसाय प्रशासन कोर्स की शुरुआत आज हो गई है लेकिन आने वाले दिनों में छात्रों को विश्व भर का ज्ञान प्रदान कराया जायेगा| हमने यह विश्वविद्यालय की शुरुआत इसी उद्देश्य से की है|
हम अपने बच्चों को दूर देश भेज देते हैं| हम उन्हें ऑस्ट्रेलिया,
लंदन और अमरीका भेज देते हैं और दूर देश में उनकी शिक्षा के लिये बहुत सारा धन एकग्रित
करते हैं| फिर भी हमारे बच्चों के साथ वहाँ पर अच्छा बर्ताव नहीं
किया जाता| उन्हें वहाँ पर बहुत हिंसा का सामना करना पड़ता हैं| हमारे
देश ने वहाँ पर कई बच्चों को खो दिया हैं| उन देशों में हमने
कई प्रतिभाशाली बच्चों को खो दिया हैं|
इसलिये मैंने सोचा कि विश्व के सबसे अच्छे शिक्षकों को भारत में बुलाया जाये और छात्रों को उस स्तर की शिक्षा यहाँ भारत में प्रदान की जाये जिसके लिये वे विदेश जाते हैं| यदि हमारे पास इतना अच्छा विश्वविद्यालय यहाँ होगा तो हमें हमारे बच्चों को विदेश भेजने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी| हम काफी सारा धन बचा पायेंगे और इस बात का भी संतोष होगा कि हमारे बच्चे यहाँ पर सुरक्षित हैं| मैं यह भी कहना चाहूँगा कि आने वाले सालों में आप अपने बच्चों को पढ़ाई के लिये इस विश्वविद्यालय में भेजे| यहाँ आपके बच्चे कम से कम यदि उससे उत्तम नहीं तो विदेशों के समान ही शिक्षा ग्रहण करेंगे| इस विश्वविद्यालय के द्वारा वे शैक्षिक उत्कृष्टता को हासिल करेंगे| एक बार फिर मैं सभी छात्रों को आशीर्वाद देता हूँ, वे युवा मन जिन्होंने इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया है| अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रहें और शीघ्र ही मैं आप सभी से मिलने आऊँगा|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी जब हम इस पथ पर है तो किस हद तक हम अन्य गुरुओं के ज्ञान
को सुन सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : मैं कहूँगा
कि सभी का सम्मान करें| एक ही ज्ञान है जो आपके पास उपलब्ध है| लेकिन
यदि आप इधर उधर खोज करते रहेंगे तो आपको भ्रम के अलावा कुछ नहीं मिलेगा| हम ‘सो हम’ कहने को
कहते हैं| कोई अन्य कहेगा कि नहीं ‘सो हम’ सही नहीं
है, ‘हम सा’ को करो| कोई तीसरा
व्यक्ति कहेगा कि ‘हम सा’ सही नहीं है ‘सदा सो
हम’ करना चाहिये और आप और बड़ी परेशानी में पड़ जायेंगे| इसलिये
सबका सम्मान करें और सिर्फ एक ही ज्ञान का पालन करें| यदि उसने
आपको संतोष दिया है और जीवन में उसके कारण कोई उत्थान हुआ है तो उसके और गहन में जाना
चाहिये| बहुत सारे गड्ढे खोदने की जरूरत नहीं| एक ही
स्थान में उसके गहन में जाना चाहिये|
प्रश्न : गुरूजी आप तो कर्म से परे हैं| लेकिन आप मानवता
की भलाई के लिये बहुत सारे अच्छे कर्म कर रहे हैं| फिर कर्म के सिद्धांत
के अनुसार आपको उसके परिणाम तो भोगने पड़ेंगे| फिर आप कैसे करेंगे?
श्री श्री रविशंकर : यह बहुत आसान है| पंख के
जितना हल्का|
प्रश्न : गुरूजी बहुत सालों से मेरे मन में एक इच्छा है जो अब तक पूरी नहीं हुई
है| इसका क्या कारण है?
श्री श्री रविशंकर : समय! उसे अपना काम करने दीजिये| आपको हर समय कहना चाहिये, यदि यह इच्छा मेरे लिये अच्छी है तो उसे पूरी करें अन्यथा नहीं|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी क्या आध्यात्म अनिवार्य है? आध्यात्मिक
पथ इतना फिसलने वाला क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : सच में? यह ऐसा
प्रतीत होता है पर ऐसा है नहीं| आध्यात्म का अर्थ है, AC माने Absolute
Comfort.
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं यह समझता हूँ कि दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वह
भगवान की जानकारी और मरज़ी से होता है| फिर वह अपराध के
दर को इतना बढ़ा कर उससे सामना करने लिये अच्छे कर्म क्यों करवाते हैं? कृपया
समझायें?
श्री श्री रविशंकर : ऐसे कई प्रश्न है| भगवान
ने दोनों आँखे आगे की ओर ही क्यों रखी हैं? उन्होंने एक आँख
आगे रखनी चाहिये थी और एक पीछे| फिर किसी को पीछे मुड कर देखने की जरूरत
ही नहीं पड़ती| कोई व्यक्ति अपने बाजू में चल सकता था? ठीक है| मेरे हिसाब
से भगवान में कल्पना की कुछ कमी है|
यदि आप किसी फिल्म के निर्देशक से पूछेंगे, कि एक हीरो को हीरोइन को हासिल करने
के लिये इतनी परेशानी क्यों झेलनी पड़ती है, और उसमें एक खलनायक क्यों होता है? आप इतना
सारा ड्रामा क्यों बनाते हैं? सब कुछ साफ और सुथरा क्यों नहीं होता| वह क्या
कहेगा? पता लगा लो| फिर मैं भी यही
कहूँगा क्योंकि भगवान भी यही कहेंगे|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी गुरु मंडल क्या होता हैं, कृपया इसे समझायें?
श्री श्री रविशंकर : जब आप गुरु के निकट जाने का प्रयास करते हैं तो कई बातें पथ पर आती हैं| इसे गुरु मंडल कहते हैं|
शुरुआत में कई बाधाएं आती हैं| जब उससे निकल जाते
हैं फिर कई आकर्षक बातें होती हैं| सिद्धियाँ, लालसा
और घृणा आती है| जब आप इससे भी निकल जाते हैं तो आप मंडल के मध्य में
पहुँच जाते हैं| मंडल का अर्थ है चक्र| आप यहाँ
पर गुरु के पास साधना करने आते हैं और अचानक एक सुंदर लड़के या लड़की को देखकर आप उसके
पीछे भागने लगते हैं| या आप ज्ञान की तलाश में आते हैं और आपका
मन कहने लगता है, कि ‘मुझे पैसे कमाने हैं और इसके लिये मैं क्या
कर सकता हूँ?’
यह सारी बाधाएं आपके एक केंद्र बिंदु को दर्शाती है, आपकी केंद्र में पहुँचने की
शक्ति को| आप नकारात्मकता, भ्रम, आकर्षण की बाधाओं से निकल सकते हैं
और फिर ये सारी बाधाएं केंद्र की ओर चली जायेंगी| और फिर अहंकार,
कि मैं गुरु से श्रेष्ठ हूँ| जो गुरु कह रहे हैं, वह मैं भी जानता हूँ| मैं इससे
और अच्छा कर सकता हूँ| इस तरह की योग माया आयेगी| यह सब
होगा और उसे गुरु मंडल कहते हैं|
प्रश्न : क्या आर्ट ऑफ लिविंग अन्नाजी के आंदोलन का समर्थन करती है?
श्री श्री रविशंकर : आर्ट ऑफ लिविंग IAC
(India Against Corruption) आंदोलन का संस्थापक सदस्य है| हम शरुआत
से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हैं और हमारे प्रयास निरंतर जारी हैं| मैं अन्नाजी
और उनकी टीम से अनुरोध करता हूँ कि वे अपना अनशन छोड़ दें| इस देश
के लिये आप के प्रयासों की काफी आवश्यकता है| करीब ३५० युवा
वहाँ पर ६ दिनों से बैठे हैं और सातवाँ दिन आने वाला है| और ज्यादा
अनशन न करें और शरीर को और अधिक कष्ट न दें| मैं आप से अनशन
छोड़ने की अपील करता हूँ लेकिन आंदोलन जारी रखें| बहुत सारा काम
करना है और हमें इस देश में बहुत सारा बदलाव लाना है| भ्रष्टाचार
को समाप्त करना होगा और हम सब इस प्रयास में एकजुट हैं|
हम सब का एक लक्ष्य है; इस देश से भ्रष्टाचार को मिटाना, लेकिन हमारे तरीके अलग हैं| हमारे काम करने के तरीके अलग हैं| हमारा दृष्टिकोण किसी का अपमान या आलोचना करना नहीं हैं| हम किसी के घर में जाकर हिंसा फैलाना नहीं चाहते| हम किसी तरह की हिंसा और आक्रमण में विश्वास नहीं रखते|
हमारे सत्संग में एक ऐसी उर्जा है जो सकारात्मक और उच्च है| क्रोध
और जलन की नहीं बल्कि उत्साह, आशा और कुछ करने की इच्छा और बदलाव लाने की चाहत| और हम
अपने लक्ष्य की तरफ इसी उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं| सजगता और उत्साह
के साथ आगे बढ़ना ही आर्ट ऑफ लिविंग है| इसी पथ को हमने
हर वक्त अपनाया है| इसलिये हमें विरोध पूर्ण सजगता, ज्ञान और
संगीत के साथ करना चाहिये| अन्नाजी अनशन पर बैठे हैं और उस स्थल पर
हमारे आर्ट ऑफ लिविंग के गायक बैठकर भजन गान कर रहे हैं और लोगों को प्रोत्साहित कर
रहे हैं| दुर्भाग्यवश कल वहाँ कुछ उपद्रवी लोग थे और वे आर्ट
ऑफ लिविंग से नहीं थे| ऐसा नहीं करना चाहिये और मैं किसी भी उपद्रवी हरकत को मंजूरी नहीं देता| हमें एक क्रांति पूरी सजगता के साथ लानी
चाहिये| इसलिये हमें सोच कर कृत्य करने चाहिये|
प्रश्न : गुरूजी मैंने अभी अभी टीटीसी पूरा किया
है| मैंने फुल टाइम टीचर बनना चाहिये या नहीं, उसके क्या मापदंड है?
श्री श्री रविशंकर : अपने घर
की जिम्मेदारियों को देखे| यदि आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं है तो आप
फुल टाइम टीचर बन सकते हैं| यदि घर में आपकी बहुत सारी जिम्मेदारियां
है तो आपने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुये दूसरी तरफ प्रशिक्षण देना शुरू कर देना
चाहिये|
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