" अतीत एक स्मृति के सिवा कुछ भी नहीं है।"
बैंगलोर आश्रम,
२७ नवंबर २००९
प्रश्न : ये मेरा दसवां अड्वांस कोर्स है, पर मैं अभी तक भय से छुटकारा नहीं पा सका हूं। क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर : योगासन। योगासन से तुम्हारे नर्वस सिस्टम और एन्डोक्रिन सिस्टम दोनों की शक्ति बढ़ेगी।
प्रश्न : आप कहते हैं कि व्यक्तियों को वो जैसे हैं वैसा स्वीकार कर लो। मैं ऐसा करता हूं पर निराश और चिड़चिड़ा हो जाता हूं। कोई ऐसा उपाय बताइये कि मैं व्यक्ति को वो जैसा है वैसा स्वीकार भी कर लूं और चिड़चिड़ाऊं भी नहीं।
श्री श्री रवि शंकर : जब तुम अपने भीतर क्रोध महसूस करते हो, तो क्या अपने भीतर हो रही संवेदना को महसूस करते हो? दूसरे व्यक्ति को भूल जाओ। ये भीतर की संवेदना है जो तुम्हे कष्ट पंहुचा रही है। जब तुम उस संवेदना पर अपना ध्यान ले जाते हो, वो खत्म हो जाती है। अपने नर्वस सिस्टम को तुम खुद क्यों बिगाड़ रहे हो? तुम्हे पता है, तुम्हारे चेहरे पर व्यग्रता का भाव लाने के लिये ७२ मांस पेशियों पर दबाव होता है| तुम्हारे शरीर को ही नुक्सान होता है।
प्रश्न : मैं अपनी समस्याओं में फंस जाता हूं। इससे बाहर कैसे आऊं?
श्री श्री रवि शंकर : जब तुम सोचते हो कि तुम्हारी समस्या बहुत बड़ी है, जान लो कि तुम उन लोगों की समस्याओं से अन्जान हो जिनकी समस्या तुम्हारी समस्या से कई गुना अधिक है|। जब तुम अपनी समस्याओ की तुलना दूसरों की समस्याओं से करोगे तो तुम्हे अपनी समस्या बहुत छोटी जान पड़ेगी।
प्रश्न : वैराग्य और अस्वीकार की स्थिति में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर : जब तुम अपनी भावनाओं को समझ ना पाओ, मैं कहता हूँ उन्हे समझने की कोशिश का त्याग कर दो। कई बार तुम अपनी मानसिक स्थिति से परेशान हो कर परामर्श लेने जाते हो, तो परामर्शकर्ता तुम्हें बताता है, "ओह! बचपन में तुम्हारी मां तुम्हें मेले में घुमाने नहीं ले गई, इसलिये तुम क्रोध का अनुभव करते हो।" मैं तुमसे कहूंगा, अपने अतीत को एक सपने की तरह जानो और आगे बढ़ जाओ, भविष्य की ओर।
किसी घटना से तुम्हें सुख हुआ, किसी घटना से तुम्हें दुख हुआ। अपनी स्मृतियों में रह कर तुम वर्तमान को ख़राब कर रहे हो। अतीत एक स्मृति के सिवा कुछ भी नहीं है। अतीत की उस घटना का कुछ प्रभाव आज भी हो सकता है, पर वो घटना अब नहीं है। जागो और अपने आप को झंकझोरो।
तुमने देखा है कैसे एक कुत्ता या बिल्ली जब वो गन्दा हो जाता है, अपने आप को झाड़ता है और आगे बढ़ जाता है? हमें अपने मन की रक्षा वैसे ही करनी चाहिये।
प्रश्न : क्या ये सही है कि माता पिता अपने बच्चे के सदगुणों को महत्व ना देकर, उसके अवगुणों की तुलना दूसरों बच्चों के सदगुणों से करते रहें?
श्री श्री रवि शंकर : अगर उनका लक्ष्य है कि उनका बच्चा कुछ सीखे, तो कभी कभी ऐसा करना ठीक होगा। परंतु हर बार अगर ऐसा हो, तो ये ठीक नहीं है।
प्रश्न : क्या कृपा से भाग्य बदल सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : हां। तभी तो उसे कृपा कहते हैं।
प्रश्न : गुरुजी, मुझमें क्रोध और अहंकार है। क्रोध के आवेश में मैं होश खो देता हूं। कृपया कोई उपाय बताइये।
श्री श्री रवि शंकर : जब तुम अपने आप पर क्रोध करते हो, तब तुम दूसरों पर भी क्रोध करोगे।
जब तुम दूसरों पर क्रोध करते हो, तो अपने आप पर क्रोध करते हो कि तुमने दूसरों पर क्रोध किया। ये एक पेन्ड्युलम जैसी प्रक्रिया है। इसे रोकना होगा।
अगर तुम्हें क्रोध आया, तो कोई बात नहीं। इस बात पर अपने आप पर क्रोध नहीं करना कि तुमनें दूसरों पर क्रोध कर लिया। कभी तुम्हें अच्छा लगता है, कभी बुरा लगता है। जीवन एक जंगल की तरह है। यहां कांटे भी हैं, फूल भी हैं, फल, मोर, हिरन, शेर, बाघ...सब हैं यहां। यहां सब का स्थान है। अपने दृष्टिकोण में समग्रता रखो।
तुम सहज रहो। विश्राम करो। घटनाओं को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहो। एक जगह पर रुक मत जाओ। ये मन कई प्रक्रियाओं से तुम्हें दुख में उलझाये रखता है। गान, ध्यान और सेवा करो। हमें अपने मन की रक्षा करनी है।
प्रश्न : एक सीधी स्थिति आगे चलकर बहुत जटिल कैसे बन जाती है?
श्री श्री रवि शंकर : तो क्या हुआ? आगे चलकर एक जटिल स्थिति सामान्य हो जाती है। हर जटिलता तुम्हारे कौशल की परीक्षा है। जब तुम उस जटिलता को सुलझा कर एक सामान्य स्थिति बना लेते हो, और अपने आप को कर्ता समझने लगते हो, तुम पाओगे कि स्थिति फिर से जटिल हो गई है, ताकि तुम्हारे अहं पर नियंत्रण हो सके। जब तुम ये जान लेते हो कि जो भी हो रहा है, वो दिव्य शक्ति की इच्छा से हो रहा है, तो तुम अहं से मुक्त हो जाओगे।
प्रश्न : इच्छा और अहं मुझे परेशान कर रहे हैं। क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर : सहज रहो। जो जैसा है, उसे स्वीकार करो।
प्रश्न : मैं अपनी पत्नि से लड़ता क्यों हूं, जबकि मैं उससे प्रेम करता हूं?
श्री श्री रवि शंकर : किसी ने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा कि वो अपनी पत्नि से इतना लड़ते क्यों थे, तो मुल्ला ने जवाब दिया, "क्योंकि मैं उससे इतना प्रेम करता हूँ। लड़ाई और प्रेम अलग अलग व्यक्तियों से करना तो न्याय नहीं होगा। ऐसा नहीं हो सकता! मैं सब कुछ एक ही व्यक्ति के साथ करता हूं।" लड़ाई भी जीवन का एक हिस्सा है।
जब तुम एक दूसरे पर बहुत अधिक ध्यान देते हो, तब कलह होती है। अगर दोनों का ध्येय एक हो - सेवा करना, समाज का उत्थान करना, तब लड़ाई नहीं होती और प्रेम खिलता है। हरेक पति-पत्नि के लिये बहुत काम है।
भारतीय विवाह पद्दति में सात वचन होते हैं। उनमें से एक वचन है - पति पत्नि साथ में मिलकर समाज के उत्थान के लिये कार्य करेंगे।
प्रश्न : गुरुजी, मैं आपको चिठ्ठी नहीं लिखता क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी समस्या यूं ही सुलझा देंगे। कई लोगों ने मुझे आप को चिठ्ठी लिखने को कहा है, पर मैं नहीं लिखता। जब मैं अड्वांस कोर्स के लिये आया तो मैने देखा के कई लोग अपनी समस्यायें चिठ्ठी में लिख रहे थे। कृपया बताइये कि मैं चिठ्ठी लिखूं या ना लिखूं?
श्री श्री रवि शंकर : तुम अपने हिसाब से चलो। दूसरों को उनके हिसाब से चलने दो। ये आवश्यक नहीं कि सब रास्ते एक जैसे ही हों।
प्रश्न : हीन भावना से कैसे छुटकारा पाऊं?
श्री श्री रवि शंकर : जा कर गांवों और झुग्गी-झोपड़ीयों में काम करो, तुम्हारा आत्मसम्मान वापस आ जायेगा। एक हफ़्ते, दस दिन, चाहे सप्ताह के अंत में छुट्टी के दिन जाकर काम करो। बच्चों को कुछ सिखाओ, और देखो तुम्हारा आत्मसम्मान कैसे बढ़ता है।
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