"ईश्वर को देख नहीं सकते,पर हृदय उसकी उपस्थिति अनुभव करता है"
बैंगलौर आश्रम,(भारत), १२ नवम्बर २००९
श्री श्री रवि शंकर : तुम जानते हो, जब कोई स्वीकार कर लेता है कि वह मूर्ख है तब वह वास्तव में बुद्धिमान होता है| एक वास्तविक मूर्ख अपनी मूर्खता को नहीं पहचानता| हम एक रहस्यमय ब्रह्माण्ड में हैं। हम अनंत रहस्यों के समुद्र में गोते लगा रहे हैं| प्रत्येक परमाणु में
अनंत रहस्य हैं| विज्ञान इन रहस्यों को खोजने और प्रकट करने का प्रयत्न करता है लेकिन यह प्रयत्न एक छोटी नाव में समुद्र को खोजने के प्रयास के समान है| यह इतना छोटा है, और बहुत-कुछ खोजना अभी बाकी है, जो असंभव है| और जब विज्ञान एक रहस्य खोजने का प्रयत्न करता है, दस अन्य खड़े हो जाते हैं| कोई वैज्ञानिक नहीं कह सकता कि वह ब्रह्मंड के सारे रहस्यों को जानता है| कोई भी यह नहीं कह सकता| विज्ञान जितना खोजता है, वह पाता है कि अभी बहुत-कुछ बाकी है जो अज्ञात है-रहस्य है| तो रहस्य को सम्मान दो| यही चिदम्बर रहस्य है| चेतना में अनेक रहस्य हैं| तुम उन सबको नहीं समझ सकते| आकाश अनंत है| आकाश की तरह रहस्य भी अनंत हैं| हमारे पूर्वजों ने रहस्य का आदर किया| इसीलिए सहज समाधि का मंत्र गुप्त रखा जाता है| जिसे तुम गुप्त रखते हो, बढ़ता है| हम अपना प्रेम प्रतिदिन व्यक्त नहीं करते, हम प्रतिदिन ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’ नहीं कहते| जब तुम प्रेम में इतने गहरे होते हो, बस एक निगाह ही काफी होती है| कभी-कभी बार-बार कहने से प्रेम नष्ट हो जाता है| यदि तुम स्वयं को बिलकुल व्यक्त नहीं करते,तो भी यह बेकार है| अपने जीवन के अनुभवों को व्यक्त करने का एक उपयुक्त तरीका है| यह बीजारोपण की तरह होना चाहिए| यह कुछ इंच गहरा बोना चाहिए, न तो बस ज़मीन की ऊपरी सतह पर हो – न बहुत गहरा ही हो| तब संबंध पूरे जीवन भर चलता है| कोई बच्चा माँ से हर समय नहीं कहता ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’, यह उसके कार्यों से झलकता है|
एक योगी हमेशा संयमित रहता है – न तो बहुत अधिक कार्य न बहुत अधिक निद्रा (सो जाना)| न तो बहुत अधिक भोजन और न बहुत अधिक उपवास अनुकूल होते हैं| यह अनुकूल हल नहीं है| यदि तुम बहुत दिनों तक नहीं खाते यां इस तरह के काम करते हो तो यह केवल अपने शरीर को कष्ट देना नहीं, अपितु अपनी आत्मा को भी कष्ट देना है| तो अपने भोजन, आपसदारी और वाणी मैं संयम रखो| तब योग-सिद्धि (पूर्णता की स्थिति) प्राप्त होती है और सारी उदासी खत्म हो जाती है| तो दुःख से मुक्त होने के लिए अपनी साधना और ध्यान ज़ारी रखो|
ध्यान हमसे हो जाता है| हमें इसे प्रयत्न करके नहीं करना पड़ता| और सुंदर‘मैं नहीं जानता’ के भोलेभाव में बैठना, ध्यान की सभी बाधाओं से मुक्त होने का हल है|
चिदंबरम मंदिर में एक पर्दा है और उसके पीछे केवल एक दीवार है| ऐसा लगता है कि तुम एक दीवार को प्रणाम कर रहे हो, पर इसके पीछे एक गहरा अर्थ है| यह आकाश तत्त्व को सूचित करता है| जब तुम पर्दा हटाते हो, अंतरिक्ष प्रकट होता है| जब तुम मोह और कामनाओं के परदे को हटा देते हो, तो तुम विशाल अनंत आंतरिक विस्तार का अनुभव करते हो| कुछ क्षणों के लिए तुम्हारा मस्तिष्क विचारों से मुक्त हो जाता है| हम महसूस करते हैं कि कोई रहस्य है जिसकी हमने एक चमक जैसी, एक छोटी सी झलक देखी है और यह अनुभूति जीवन में एक बदलाव लाती है|
प्रश्न : हम कर्म से परे कैसे जा सकते हैं? यह कब शुरू हुआ और कब समाप्त होगा?
श्री श्री रवि शंकर : संसार की शुरुआत कब हुई?
श्रोता : नहीं पता|
श्री श्री रवि शंकर : संसार का अंत कब होगा?
श्रोता : नहीं पता|
श्री श्री रवि शंकर : यह प्रश्न भी उसी तरह का है| हम नहीं जानते कि कर्म-चक्र कब आरम्भ हुआ? हम आरम्भ तो नहीं जानते, पर कर्म के बीज ज्ञान की अग्नि में जलाए जा सकते हैं|
प्रश्न : गुरूजी, हमें अपनी पिछली छाप के कारण कष्ट क्यों भोगना पड़ता है अगर वर्तमान में हम निर्दोष होते हैं?
श्री श्री रविशंकर : यदि तुम तीन साल पहले एक नारियल का पौधा लगाते हो, तो तुम्हें फल का आनंद बाद में मिलता है| तुम बैंक में धन जमा करते हो और इसे ब्याज सहित वापिस पाने कि आशा रखते हो, है न? यदि बैंक तुमसे इसे भूल जाने को कहे क्योंकि तुमने धन कई साल पहले जमा किया था, तो क्या तुम सहमत होगे? हम केवल वह फल चाहते हैं जो हमारे अनुकूल हो| हमें आवश्यकता है कि अपनी गलती महसूस करें, स्वीकार करें और आगे बड़ें| तब कर्म की तीव्रता घटती है| जाने-अनजाने में की गयी सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगना भी हमारी पूजा का एक अंग है|
प्रश्न : गुरु जी, अनेक आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक पाए जाते हैं,क्या हमें उन सबके पास जाने और उनकी शिक्षाओं को पढ़ने की आवश्यकता है?
श्री श्री रवि शंकर : प्रत्येक को आदर और सम्मान दो| एक मार्ग का अनुसरण करो| मान लो – तुम चार गुरुओं से मिलते हो और तुम चार मंत्र व विधियाँ लेते हो, तुम किसका उपयोग करोगे? यह चार अलग-अलग नावों पर अपने गंतव्य तक पहुँचने का प्रयास करने जैसा है| तुम कहीं नहीं पहुंचोगे| यदि तुम्हारे पहले कोई गुरु रहे हैं और अब तुम यहाँ आए हो, तो जानो कि उनकी वजह से ही तुम यहाँ तक पहुँचे हो|
सभी को गुरु कहना भी गलत है| केवल एक गुरु का सिद्धांत है| और सभी गुरु केवल तुम्हारी खुशी चाहते हैं| जब तुम कुआँ खोदना चाहते हो, तो यदि तुम दस जगह दो फुट गहरा खोदते हो, तुम्हें पानी नहीं मिलेगा| तुम्हें सिर्फ
एक जगह गहरे जाने की आवश्यकता है| सभी जगह जाने की आवश्यकता नहीं, यह ज़रूरी नहीं है| जब तुम एक मार्ग में विश्वास रखते हो और आगे बढ़ते हो, तब तुम निश्चय ही अपने गंतव्य तक पहुंचोगे|
प्रश्न : मैं स्वयं को दुर्बलता से कैसे मुक्त करूँ? क्या पूजा करना सहायक है?
श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारे पास सत्संग, ध्यान और प्राणायाम सर्वोत्तम उपहार है| मंत्रोच्चारण और पूजा का अपना अलग स्थान है| इसके बारे में बहुत परेशान मत हो| ध्यान करो और थोड़ी पूजा करो| इसे न तो बिलकुल छोड़ो और न अति करो|
प्रश्न : मैं ईश्वर का दर्शन कैसे करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : क्या तुमने हवा को देखा है? फिर भी तुम जानते हो कि वह है| तुम इसे महसूस कर सकते हो| इसी प्रकार तुम ईश्वर को देख नहीं सकते,पर हृदय उसकी उपस्थिति, प्राण (जीवन-शक्ति) का अनुभव करता है|
प्रश्न : गुरु जी, अपने रहस्य को प्रेम करने के लिए कहा है, पर मैं इसे जानने को भी उत्सुक हूँ|
श्री श्री रवि शंकर : उत्सुकता स्वाभाविक है| यह बुद्धि को तीव्र करता है| रहस्य के प्रति प्रेम, भावनात्मक स्तर को शुद्ध करता है| जीवन बुद्धि और भावनाओं का संतुलन है|
प्रश्न : यांत्रिकी और विज्ञान इतना आगे बढ़ चुके हैं, आध्यात्मिकता का उदय कब होगा?
श्री श्री रवि शंकर : यह पहले से ही हो रहा है| इतनी संख्या में तुम यहाँ हो| हमारे देश में विज्ञान और आध्यात्म विरोधी नहीं हैं| वे एक दूसरे के
पूरक हैं| दोनों आवश्यक हैं| भाव और बुद्धि दोनों ज़रूरी हैं| जैसे जब तुम दूरदर्शन (टी० वी०) देखते हो, तो देखना और सुनना दोनों महत्त्वपूर्ण हैं|
प्रश्न : गुरु जी, जब मैंने सुना कि २०१२ में विश्व का अंत होने जा रहा है, दूसरे रूप में मुझे यह वरदान लगी क्योंकि मैं अपनी दौड़ को रोकने, अपनी ओर वास्तव में देखने और जो मैं वास्तव में करना चाहता हूँ – उसे करने के योग्य हुआ| मैं अपने दिमाग को कुछ आराम दे सका|
श्री श्री रवि शंकर : प्रलय (मृत्यु) किसी समय भी आ सकती है| हजारों black holes हैं जो कभी भी सूर्य मंडल को निगल सकते हैं, सूर्य सावधानी से चल रहा है| मृत्यु आये या न आये, तुम्हें अपने शांति को बनाए रखना है। तृष्णा और घृणा में बिना फंसे न्याय और सत्य के समर्थन में कार्य करना है| जो तुम कर सकते हो, करो|
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