बैंगलोर आश्रम, १४ नवंबर २००९
कन्नड़ में हो रहे Advanced Meditation Course, के तहत:
प्रश्न: मैं अपने गांव में कुछ बदलाव लाना चाहता हूँ, पर हर कोशिश में कई बाधाओं का सामना कर के मैं परेशान हो गया हूँ। क्या करूं?
श्री श्री: संघे शक्ति कलियुगे - एक या दो व्यक्ति अकले बदलाव को नहीं ला सकते। एक साथ जुड़ने की आवश्यकता है। उसके लिये ज्ञान का उदय आवश्यक है। लोगों को ऐसे कार्यक्रमों के लिये लाओ। लोगों को साथ लाकर ये काम करो। कभी कभी हम जो काम करते हैं, उनमे असफलता मिलती है। अगर बार बार असफलता मिले तो कभी कभी हिम्मत हार जाते हैं। पर जब हम बदलाव लाना चाहते हैं, तो चाहे हम १० बार क्यों ना हार जायें, हमें आगे बढ़ते रहना चाहिये। हमें मज़बूत होना चाहिये। ये जान लो कि तुम कभी अकेले नहीं होगे। समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिये लोगों को साथ में लेकर काम करो, सत्संग करो। मैं हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा।
प्रश्न: जब हम योगनिद्रा करते हैं तो अपने ध्यान को शरीर के विभिन्न भागों पर क्यों ले जाते हैं, जबकि हमें शरीर के स्तर से ऊपर उठना है?
श्री श्री: जब हम एक ऊंची इमारत बनाना चाहते हैं तो ध्यान रखते हैं कि उसकी नींव गहरी हो। धनुष की प्रत्यंचा को पूरी तरह पीछे तान कर खींचते हैं तो तीर आगे दूर तक जाता है। तो, मन के पार जाने के लिये हम अपना ध्यान शरीर पर लाते हैं, और फिर ये अनुभव करते हैं कि हम शरीर से परे हैं।
प्रश्न: दुनिया में इतनी समस्यायें हैं। ये अच्छा होता अगर हम में यह शक्ति होती कि हम उन सब समस्याओं को जान सकते, तो हम उनको सुलझाने में कुछ सहायता कर सकते।
श्री श्री: क्या जितना तुम टी वी पर देख रहे हो उतना काफ़ी नहीं है? तुम दुनिया की सब समस्याओं को क्यों जानना चाहते हो? अगर तुम्हें उन सब के बारे में ना भी पता हो, तब भी ध्यान और सत्संग से तुम बदलाव ला सकते हो। सभी समस्याओं को जानना कोई बड़ी बात नहीं है। तुम अपने ध्यान को जहां ले जाओगे वहां की जानकारी तुम्हें मिल जायेगी। जब तुम्हारे पास ये शक्ति आ जायेगी तो तुम इसका प्रयोग करना नहीं चाहोगे। एक विद्यार्थी हर समय अपनी सभी किताबें अपने सिर पर उठा कर नहीं घूमता। जब किसी किताब की आवश्यकता होती है तो वो उसे खोल कर देख लेता है। उसी तरह, तुम्हारे भीतर की चेतना सब जानती है। जब आवश्यक होता है वो जान लेती है। कुछ कर्मों को भोगना पड़ता है। कुछ कर्मों का असर उपायों द्वारा कम किया जा सकता है।
प्रश्न: भारत में चरणों में नमन करने का क्या महत्व है?
श्री श्री: केवल भारत में ही चरणों को इतना महत्व दिया गया है। चरण तुम्हें आगे ले जाते हैं। हमारी ऊर्जा, हाथों और पैरों द्वारा किसी को भी दी जा सकती है। ये ऊर्जा या स्पंदन सिर ग्रहण कर लेता है। उर्जा का संचरण सिर्फ़ एक दृष्टिपात से भी हो सकता है। केवल किसी की उपस्थिति में होने से भी दिव्य ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है।
प्रश्न: गुरुजी, आप कहते हैं कि खुद पर दोषारोपण करना ठीक नहीं है। पर मुझे लगता है कि कभी कभी इससे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है।
श्री श्री: अगर तुम्हें लगता है कि खुद पर दोशारोपण करने से तुम्हारे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है, तो करो। पर अगर तुम बार बार अपने आप को दोषी समझते रहे तो ये उत्तमता नहीं है। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखो कि तुम दूसरों को भी दोष ना दो! दूसरों को उत्तम बनाने की कोशिश ना करो!
हम सब में दिव्य गुण हैं। जब तुम किसी में इन गुणों को बढ़ाना चाहते हो और वो ऐसा नहीं चाहते तो क्या फ़ायदा? ये तो ऐसा होगा जैसा एक बुज़ुर्ग महिला सड़क पार करना ना चाहे और आप उसे ज़बरदस्ती सड़क पार करा दें।
हम जो भी काम करें अच्छे भाव से करें। किसी का श्राप तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकेगा अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध है। अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध नहीं है तो किसी के श्राप का असर ज़रूर पड़ेगा।
प्रश्न: नमक से बुरी नज़र उतारने का क्या महत्व है?
श्री श्री: हमारी ऊर्जा को नमक के प्रयोग से साफ़ किया जा सकता है। पश्चिम के देशों में लोग नमक से श्नान करते हैं। किसी और की भावनाओं से हमारी ऊर्जा में फ़र्क पड़ सकता है। इसकी चिंता करने के बजाय, नमक का प्रयोग कर लो।
हर वस्तु की अपनी ऊर्जा होती है। पानी में घुले नमक की वजह से लोगों को समुद्र के किनारे विश्राम महसूस होता है। नमक से शरीर और मन के विषाणु मिट जाते हैं। पर अगर नमक का अत्यधिक प्रयोग करोगे तो उच्च रक्तचाप हो सकता है। अगर रोज़ ही त्वचा नमकीन जल से स्पर्ष होती रहेगी तो त्वचा पर विपरीत असर पड़ेगा। मध्य मार्ग पर चलो-अति सर्वत्र वर्जयेत।
प्रश्न: शंख का क्या महत्व है? शंख का प्रयोग हर पूजा और उत्सव में होता है।
श्री श्री: प्राचीन समय में, शंख बजा कर लोग युद्ध की शुरुवात करते थे। हर वस्तु का एक विशेष स्पंदन होता है। शंख, शुभ और समृद्धि का प्रतीक है। शंख-भस्म स्वास्थ्य के लिये बहुत अच्छी है। ये शरीर में शक्ति लाती है।
इस सृष्टि में, घास के एक एक तिनके का भी महत्व है। बिल्व, परिजात, नीम – सब का अपना महत्व है। उससे भी अधिक, तुम सब का महत्व है। तुम्हारी चेतना महत्वपूर्ण है। तुम अपने आस पास के परिवेश को महत्व देते हो और अपने घर को कूड़े से भर लेते हो – तब इसका कोई महत्व नहीं होता। तो, पहले अपने हृदय को पवित्र रखो, तब तुम्हारे लिये सृष्टि की हर चीज़ महत्वपूर्ण होगी।
प्रश्न: कप्या वास्तु के महत्व के बारे में बताएं?
श्री श्री: सृष्टि में हरेक वस्तु का एक विशेष स्पंदन है। ये संसार स्पंदनों का एक सागर है। हर जीव का एक विशेष स्पंदन है। देवताओं को किसी ना किसी वाहन पर सवार दिखाया है। ये देवताओं के विशेष उर्जा के द्योतक हैं। हाथी अंतरिक्ष से श्री गणेश की विशेष उर्जा को आकर्षित करता है। शेर, देवी के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। मोर, भगवान सुब्रमण्यम के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। पर तुम इस सब की चिंता मत करो। बस ॐ नमः शिवाय कहो, वास्तु के सभी दोषों का निवारण हो जायेगा।
प्रश्न: क्या शास्त्रीय संगीत सीखने से हम आध्यात्मिक बनते हैं?
श्री श्री: संगीत लय योग है। भक्ति अलग है। भक्ति के बिना संगीत उतना सहायक नहीं है। उससे तुम्हारे दिमाग का केवल एक ही भाग विकसित होता है। संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास नहीं होता। ज्ञान, गान और ध्यान – तीनों की आवश्यकता है। ज्ञान से दिमाग के बाहिने भाग का पोषण होता है। गान से दिमाग के दाहिने भाग का पोषण होता है। ध्यान से दोनों भागों का पोषण होता है। ज्ञान, गान और ध्यान, तीनों की आवश्यकता है।
प्रश्न: मानव के रूप में जन्म को सभी जीवों से श्रेष्ठ क्यों कहा गया है?
श्री श्री: क्योंकि तुम ये प्रश्न पूछ सकते हो और उनके जवाब समझ सकते हो। अगर तुम पूछते नहीं और समझते भी नहीं हो, तो तुम और जीवों से बेहतर नहीं हो।
प्रश्न: ध्यान करने के बावजूद भी मुझे गुस्से और तनाव का अनुभव होता है। मैं क्या करूं?
श्री श्री: तुम अब भी तनाव का अनुभव करते हो, पर वो चला जाता है, है ना? गुस्सा, तनाव...कई लोग तो ये जानते भी नहीं कि वो ऐसे हैं! कम से कम तुम जानते तो हो। एक सफ़ेद कपड़े पर धूल का एक कण भी नज़र आ जाता है। जब मन साफ़ हो तो थोड़ा सा गुस्सा और तनाव भी नज़र आ जाता है। धीरे धीरे तुम पाओगे के तुम्हें किसी बात से फ़र्क नहीं पड़ता। कुछ महीनों या सालों की साधना से तुम पाओगे कि तुम्हें कुछ नहीं छू सकता।
प्रश्न: महिलाओं की शिक्षा के विरोध में फ़तवे के बारे में आपकी क्या सलाह है?
श्री श्री: ये अज्ञान है। ये विकास के पथ में बाधा है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिये। अर्धनारीश्वर एक प्रतीक है – आधा भाग शिव है, और आधा भाग शक्ति है। महिलाओं के साथ दूसरे यां तीसरे दर्जे यां नौकर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिये।
‘वंदे मातरम नहीं गाना चाहिये क्योंकि वो धरती को मां का दर्जा देते हुये स्तुति है,’ - ऐसी बातों पर पर लोग अब ध्यान नहीं दे रहें हैं।
महिलाओं को सभी अधिकार मिलने चाहिये। महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिये। हर बात में उनकी राय होनी चाहिये। वोट बैंक के लिए राजनेता समाज को विभाजित कर सुविधाओं का उपभोग करते हैं। वे नहीं चाहते कि गरीब लोगों तक शिक्षा पहुंचे, ताकि वे हमेशा गरीबों पर राज़ करते रहें। ये एक सड़ा हुआ दिमाग है। हमें आगे बढ़ कर, जनता को शिक्षित करना है। निरक्षरता की वजह से ही गलत लोग राजनीति में प्रवेश पाते हैं।
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
कन्नड़ में हो रहे Advanced Meditation Course, के तहत:
प्रश्न: मैं अपने गांव में कुछ बदलाव लाना चाहता हूँ, पर हर कोशिश में कई बाधाओं का सामना कर के मैं परेशान हो गया हूँ। क्या करूं?
श्री श्री: संघे शक्ति कलियुगे - एक या दो व्यक्ति अकले बदलाव को नहीं ला सकते। एक साथ जुड़ने की आवश्यकता है। उसके लिये ज्ञान का उदय आवश्यक है। लोगों को ऐसे कार्यक्रमों के लिये लाओ। लोगों को साथ लाकर ये काम करो। कभी कभी हम जो काम करते हैं, उनमे असफलता मिलती है। अगर बार बार असफलता मिले तो कभी कभी हिम्मत हार जाते हैं। पर जब हम बदलाव लाना चाहते हैं, तो चाहे हम १० बार क्यों ना हार जायें, हमें आगे बढ़ते रहना चाहिये। हमें मज़बूत होना चाहिये। ये जान लो कि तुम कभी अकेले नहीं होगे। समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिये लोगों को साथ में लेकर काम करो, सत्संग करो। मैं हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा।
प्रश्न: जब हम योगनिद्रा करते हैं तो अपने ध्यान को शरीर के विभिन्न भागों पर क्यों ले जाते हैं, जबकि हमें शरीर के स्तर से ऊपर उठना है?
श्री श्री: जब हम एक ऊंची इमारत बनाना चाहते हैं तो ध्यान रखते हैं कि उसकी नींव गहरी हो। धनुष की प्रत्यंचा को पूरी तरह पीछे तान कर खींचते हैं तो तीर आगे दूर तक जाता है। तो, मन के पार जाने के लिये हम अपना ध्यान शरीर पर लाते हैं, और फिर ये अनुभव करते हैं कि हम शरीर से परे हैं।
प्रश्न: दुनिया में इतनी समस्यायें हैं। ये अच्छा होता अगर हम में यह शक्ति होती कि हम उन सब समस्याओं को जान सकते, तो हम उनको सुलझाने में कुछ सहायता कर सकते।
श्री श्री: क्या जितना तुम टी वी पर देख रहे हो उतना काफ़ी नहीं है? तुम दुनिया की सब समस्याओं को क्यों जानना चाहते हो? अगर तुम्हें उन सब के बारे में ना भी पता हो, तब भी ध्यान और सत्संग से तुम बदलाव ला सकते हो। सभी समस्याओं को जानना कोई बड़ी बात नहीं है। तुम अपने ध्यान को जहां ले जाओगे वहां की जानकारी तुम्हें मिल जायेगी। जब तुम्हारे पास ये शक्ति आ जायेगी तो तुम इसका प्रयोग करना नहीं चाहोगे। एक विद्यार्थी हर समय अपनी सभी किताबें अपने सिर पर उठा कर नहीं घूमता। जब किसी किताब की आवश्यकता होती है तो वो उसे खोल कर देख लेता है। उसी तरह, तुम्हारे भीतर की चेतना सब जानती है। जब आवश्यक होता है वो जान लेती है। कुछ कर्मों को भोगना पड़ता है। कुछ कर्मों का असर उपायों द्वारा कम किया जा सकता है।
प्रश्न: भारत में चरणों में नमन करने का क्या महत्व है?
श्री श्री: केवल भारत में ही चरणों को इतना महत्व दिया गया है। चरण तुम्हें आगे ले जाते हैं। हमारी ऊर्जा, हाथों और पैरों द्वारा किसी को भी दी जा सकती है। ये ऊर्जा या स्पंदन सिर ग्रहण कर लेता है। उर्जा का संचरण सिर्फ़ एक दृष्टिपात से भी हो सकता है। केवल किसी की उपस्थिति में होने से भी दिव्य ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है।
प्रश्न: गुरुजी, आप कहते हैं कि खुद पर दोषारोपण करना ठीक नहीं है। पर मुझे लगता है कि कभी कभी इससे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है।
श्री श्री: अगर तुम्हें लगता है कि खुद पर दोशारोपण करने से तुम्हारे व्यक्तित्व में उत्तमता आती है, तो करो। पर अगर तुम बार बार अपने आप को दोषी समझते रहे तो ये उत्तमता नहीं है। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखो कि तुम दूसरों को भी दोष ना दो! दूसरों को उत्तम बनाने की कोशिश ना करो!
हम सब में दिव्य गुण हैं। जब तुम किसी में इन गुणों को बढ़ाना चाहते हो और वो ऐसा नहीं चाहते तो क्या फ़ायदा? ये तो ऐसा होगा जैसा एक बुज़ुर्ग महिला सड़क पार करना ना चाहे और आप उसे ज़बरदस्ती सड़क पार करा दें।
हम जो भी काम करें अच्छे भाव से करें। किसी का श्राप तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकेगा अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध है। अगर तुम्हारा हृदय शुद्ध नहीं है तो किसी के श्राप का असर ज़रूर पड़ेगा।
प्रश्न: नमक से बुरी नज़र उतारने का क्या महत्व है?
श्री श्री: हमारी ऊर्जा को नमक के प्रयोग से साफ़ किया जा सकता है। पश्चिम के देशों में लोग नमक से श्नान करते हैं। किसी और की भावनाओं से हमारी ऊर्जा में फ़र्क पड़ सकता है। इसकी चिंता करने के बजाय, नमक का प्रयोग कर लो।
हर वस्तु की अपनी ऊर्जा होती है। पानी में घुले नमक की वजह से लोगों को समुद्र के किनारे विश्राम महसूस होता है। नमक से शरीर और मन के विषाणु मिट जाते हैं। पर अगर नमक का अत्यधिक प्रयोग करोगे तो उच्च रक्तचाप हो सकता है। अगर रोज़ ही त्वचा नमकीन जल से स्पर्ष होती रहेगी तो त्वचा पर विपरीत असर पड़ेगा। मध्य मार्ग पर चलो-अति सर्वत्र वर्जयेत।
प्रश्न: शंख का क्या महत्व है? शंख का प्रयोग हर पूजा और उत्सव में होता है।
श्री श्री: प्राचीन समय में, शंख बजा कर लोग युद्ध की शुरुवात करते थे। हर वस्तु का एक विशेष स्पंदन होता है। शंख, शुभ और समृद्धि का प्रतीक है। शंख-भस्म स्वास्थ्य के लिये बहुत अच्छी है। ये शरीर में शक्ति लाती है।
इस सृष्टि में, घास के एक एक तिनके का भी महत्व है। बिल्व, परिजात, नीम – सब का अपना महत्व है। उससे भी अधिक, तुम सब का महत्व है। तुम्हारी चेतना महत्वपूर्ण है। तुम अपने आस पास के परिवेश को महत्व देते हो और अपने घर को कूड़े से भर लेते हो – तब इसका कोई महत्व नहीं होता। तो, पहले अपने हृदय को पवित्र रखो, तब तुम्हारे लिये सृष्टि की हर चीज़ महत्वपूर्ण होगी।
प्रश्न: कप्या वास्तु के महत्व के बारे में बताएं?
श्री श्री: सृष्टि में हरेक वस्तु का एक विशेष स्पंदन है। ये संसार स्पंदनों का एक सागर है। हर जीव का एक विशेष स्पंदन है। देवताओं को किसी ना किसी वाहन पर सवार दिखाया है। ये देवताओं के विशेष उर्जा के द्योतक हैं। हाथी अंतरिक्ष से श्री गणेश की विशेष उर्जा को आकर्षित करता है। शेर, देवी के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। मोर, भगवान सुब्रमण्यम के विशेष स्पंदन को आकर्षित करता है। पर तुम इस सब की चिंता मत करो। बस ॐ नमः शिवाय कहो, वास्तु के सभी दोषों का निवारण हो जायेगा।
प्रश्न: क्या शास्त्रीय संगीत सीखने से हम आध्यात्मिक बनते हैं?
श्री श्री: संगीत लय योग है। भक्ति अलग है। भक्ति के बिना संगीत उतना सहायक नहीं है। उससे तुम्हारे दिमाग का केवल एक ही भाग विकसित होता है। संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास नहीं होता। ज्ञान, गान और ध्यान – तीनों की आवश्यकता है। ज्ञान से दिमाग के बाहिने भाग का पोषण होता है। गान से दिमाग के दाहिने भाग का पोषण होता है। ध्यान से दोनों भागों का पोषण होता है। ज्ञान, गान और ध्यान, तीनों की आवश्यकता है।
प्रश्न: मानव के रूप में जन्म को सभी जीवों से श्रेष्ठ क्यों कहा गया है?
श्री श्री: क्योंकि तुम ये प्रश्न पूछ सकते हो और उनके जवाब समझ सकते हो। अगर तुम पूछते नहीं और समझते भी नहीं हो, तो तुम और जीवों से बेहतर नहीं हो।
प्रश्न: ध्यान करने के बावजूद भी मुझे गुस्से और तनाव का अनुभव होता है। मैं क्या करूं?
श्री श्री: तुम अब भी तनाव का अनुभव करते हो, पर वो चला जाता है, है ना? गुस्सा, तनाव...कई लोग तो ये जानते भी नहीं कि वो ऐसे हैं! कम से कम तुम जानते तो हो। एक सफ़ेद कपड़े पर धूल का एक कण भी नज़र आ जाता है। जब मन साफ़ हो तो थोड़ा सा गुस्सा और तनाव भी नज़र आ जाता है। धीरे धीरे तुम पाओगे के तुम्हें किसी बात से फ़र्क नहीं पड़ता। कुछ महीनों या सालों की साधना से तुम पाओगे कि तुम्हें कुछ नहीं छू सकता।
प्रश्न: महिलाओं की शिक्षा के विरोध में फ़तवे के बारे में आपकी क्या सलाह है?
श्री श्री: ये अज्ञान है। ये विकास के पथ में बाधा है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिये। अर्धनारीश्वर एक प्रतीक है – आधा भाग शिव है, और आधा भाग शक्ति है। महिलाओं के साथ दूसरे यां तीसरे दर्जे यां नौकर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिये।
‘वंदे मातरम नहीं गाना चाहिये क्योंकि वो धरती को मां का दर्जा देते हुये स्तुति है,’ - ऐसी बातों पर पर लोग अब ध्यान नहीं दे रहें हैं।
महिलाओं को सभी अधिकार मिलने चाहिये। महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिये। हर बात में उनकी राय होनी चाहिये। वोट बैंक के लिए राजनेता समाज को विभाजित कर सुविधाओं का उपभोग करते हैं। वे नहीं चाहते कि गरीब लोगों तक शिक्षा पहुंचे, ताकि वे हमेशा गरीबों पर राज़ करते रहें। ये एक सड़ा हुआ दिमाग है। हमें आगे बढ़ कर, जनता को शिक्षित करना है। निरक्षरता की वजह से ही गलत लोग राजनीति में प्रवेश पाते हैं।
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality