"यदि तुम अपनी भावनाओं को अपनी जिम्मेदारी बनाते हो, तुम्हें कोई भी सुखी या दुखी नहीं कर सकता|"

प्रश्न : हम कैसे जानें कि सच्चा प्यार क्या है?

श्री श्री रविशंकर : हम कैसे जाने कि झूठा प्यार क्या है? मेरे प्रिय ! प्यार प्यार है, तुम इसे सच्चा या झूठा नहीं कह सकते| प्रेम पर संदेह मत करो| हम घृणा पर संदेह नहीं करते| क्या गारंटी है कि लोग तुमसे घृणा करते हैं? हो सकता है कि उस समय वे तुमसे गुस्सा हों ! प्रेम हमारा स्वभाव है| इच्छाओं और लालच के कारण कभी-कभी प्रेम छिप जाता है| प्रेम के बिना कोई प्राणी नहीं है| प्राण उर्जा प्रेम से ही बनी है| हज़ारों परमाणु मिलकर शरीर का निर्माण करते हैं| प्रेम(प्राण उर्जा) के बिना ये सभी परमाणु अलग-अलग हो जायेंगे और वह मृत्यु के सिवा कुछ नहीं है| जब प्राण शरीर को प्रेम करते हैं, तो शरीर में रहते हैं और जीवन होता है| जब उस प्रेम का अंत हो जाता है, मृत्यु होती है| हमें भावनाओं को प्रेम नहीं समझना चाहिए। प्रेम हमारी प्रकृति है। भावनाओं और प्रेम में अलगाव को जानो|

प्रश्न : अप्रसन्नता क्यों होती है?

श्री श्री रविशंकर : ताकि परमात्मा कुछ कार्य कर सके| एक बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर का खेल समझता है| यह एक कठपुतली के खेल में होने जैसा है| जब तुम ज्ञान में होते हो, तुम परमात्मा के हाथों में तार की तरह हो| इस ज्ञान के बिना तुम कठपुतली हो जाते हो|

प्रश्न : ज्योतिर्लिंग का क्या महत्व है? (भारत में १२ वर्णित तीर्थ-स्थल ज्योतिर्लिंग कहलाते हैं)

श्री श्री रविशंकर :
लिंग प्रतीक है| ज्योति प्रकाश है| ज्योतिर्लिंग प्रकाश का प्रतीक है| आदि-कालीन ऋषियों और साधुओं ने इन स्थानों पर ध्यान और तपस्या की, और इन स्थानों पर वो उर्जा प्रकट हुई| यहाँ (विशालाक्षी मंटप में) एक ज्योतिर्लिंग है| वह तुम्हें दिखाई नहीं देता, लेकिन वहाँ प्रकाश है| स्वयाम्ही तिर्तानी पुनाम्ही सन्तः -जहाँ कोई संत रमता है, वहीँ तीर्थ (पवित्र स्थल) होता है| प्रत्येक तीर्थ-स्थल वह स्थान है, जहाँ किसी संत ने ध्यान किया, तपस्या की और फिर अपनी शक्ति को पत्थर, पानी आदि में प्रेषित किया और वह स्थान उस चेतना से प्रकम्पित हो उठा| जब किसी स्थान में आध्यात्मिक ऊर्जा कम होती है, तब संघर्ष बढ़ता है| वहाँ ध्यान, पूजा, सेवा और आध्यात्मिक जीवन होना चाहिए| तब चैतन्य-शक्ति (आध्यात्मिक ऊर्जा) बढ़ती है|
प्रश्न: पानी भी भाप बनने में एक निश्चित समय लेता है| मेरी अज्ञानता दूर होने में कितना समय लगेगा|
श्री श्री रविशंकर: ‘मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ| मेरे लिए यह कैसे संभव है?’ ऐसा मत सोचो| केवल एक साधारण व्यक्ति ही यह ज्ञान प्राप्त कर सकता है| एक पात्र खाली होने में कितना समय लेता है? चाहे वह चांदी, कीचड़ या सोने से भरा हो, यह खाली होने में उतना ही समय लेता है| कीचड़ भरने में कम समय लगता है, सोना भरने में अधिक| तुम्हें बहुत प्रयास करना पड़ता है| लेकिन खाली होने में कोई समय और कोई प्रयास नहीं लगता| ईश्वर को प्राप्त करने के लिए किसी योग्यता व किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है|
अकिंचन- मैं कुछ नहीं हूँ।
अप्रयत्न- मैं कुछ नहीं करता।
अकाम- मैं कुछ नहीं चाहता।
जब तुम देखते हो कि किसी ने बड़ी तपस्या की और तब उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया, तो जानो कि ताप स्वयं को खाली करने के लिए था|
जब रजस शांत हो जाता है,सारी बेचैनी दूर हो जाती है| तब उसमें दैवी चेतना का अनुभव होता है| मत सोचो कि कोई प्रकट होगा और यह और वह बतलायेगा! वह केवल भ्रमित होना होगा| बस विश्राम करो| आराम और विश्राम में कोई दूरी नहीं है| ईश्वर तुम्हारे बिलकुल पास है| तो थोड़ी देर के लिए ध्यान करो| और महसूस करो कि तुम्हारा कुछ भी नहीं है| यदि तुम मंत्र-जाप करते हो, तो यह तुम्हें ध्यान में जाने में सहायता करता है| किसी भी पूजा में पहले ध्यान होता है| पूजा समाप्त होने पर भी ध्यान होता है| यह परम्परा छोड़ दी गयी है| इसके बिना यह चाबुक के बगैर घोड़े पर सवारी करने जैसा है| तुम घोड़े को कैसे नियंत्रित करोगे?
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन को एक ऐसे ही घोड़े की पीठ पर बिठाकर शहर के चारों ओर घुमाया जा रहा था| किसी ने मुल्ला से पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं| तो उन्होंने उत्तर दिया,‘घोड़े से पूछो|’
हमारा दिमाग भी ऐसा ही हो गया है| जहाँ कहीं हमारा दिमाग दौड़ता है, वहीं हम भी दौड़ते हैं| किसी को तुम्हारे बारे में सोचने की फुर्सत नहीं
है-कि तुम खुश हो या नहीं| यह ज्यादातर सिर्फ पूछने के उद्देश्य से है| वास्तव में कोई भी इसका उत्तर नहीं चाहता कि तुम कैसा महसूस कर रहे हो और तुम्हारा मन कैसा है, इसको खुश रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है| यदि तुम अपनी भावनाओं को अपनी जिम्मेदारी बनाते हो, तुम्हें कोई भी सुखी या दुखी नहीं कर सकता| जहाँ तुम्हें ईश्वर को बसाना है, वहाँ कूड़ा-करकट क्यों भरते हो? मन साफ़ रखो- यही ध्यान है| इसे आसक्ति और विरक्ति (लालसा और घृणा) से दूर रखो| यह शिष्य-वृत्ति है| एक शिष्य में घृणा का स्थान नहीं होना चाहिए| वहाँ केवल गुरु के लिए स्थान है|
मन निर्मल है|तुम्हारे संतुलन को बिगाड़ने का प्रयत्न करने वाली १,००,००० चीजें होंगी| अपनी घृणा का समर्पण कर दो, मन से इसे पूरी तरह निकाल दो यही अग्निहोत्र है| काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद तथा अन्य सभी बुरे आशायों (इरादों) – इन सबको इस आग में जल जाने दो| अपने भीतर निर्मल ज्योति (दोष-रहित शुद्ध प्रकाश) जलने दो| पुन: पुन: ज्ञान में रहने से तुम्हारा मन और बुद्धि को शुद्ध होता है | तुम्हारे और ईश्वर के बीच बुद्धि है| ज्ञान से इस अलगाव को दूर (नष्ट) किया जा सकता है| समर्पण, ज्ञान, भक्ति और ध्यान से, अलगाव मिट जाता है|

प्रश्न : मुझे कैसे और कब मन्त्रों का प्रयोग करना चाहिए?

श्री श्री रविशंकर : मंत्र का उच्चारण बिना प्रयास के और स्वाभाविक ढंग से करो| तुम्हें एक दिन में २४ घंटे जप नहीं करना है| थोड़ी देर जाप करो और ध्यान करो| तम्हें साफ़ होने के लिए २४ घंटे नहाना नहीं पड़ता ! कुछ मिनटों की सफाई तुम्हें पूरे दिन या कम से कम आधा दिन तारो-ताज़ा रखने के लिए काफी है| उसी प्रकार मंत्र-स्नान महत्त्वपूर्ण है|

प्रश्न : गुरु जी, मैं क्या करूँ, मैं नास्तिक बनूँ या आस्तिक?

श्री श्री रविशंकर : तुम अपने आप पर ठप्पा क्यों लगाना चाहते हो? एक दिन नास्तिक हो और एक दिन आस्तिक| क्या तुम ऐसा करने के लिए तैयार हो? जो भी तुम बनो, सच्चे बनो| आजकल तथाकथित नास्तिक सच्चे नहीं हैं| नास्तिक कहते हैं, ‘ऐसा कुछ भी नहीं जिसे मैं नहीं जानता|उसी का अस्तित्व है जो मुझे दिखता है, अन्य किसी का नहीं|’ आस्तिक कहता है, ‘मैं जानता हूँ कि जो मैं जानता हूँ उससे परे भी बहुत कुछ अज्ञात है|’
सृष्टि में किसी भी चीज़ के अस्तित्व को नकारने के लिए तुम्हें सृष्टि में प्रत्येक चीज़ को जानने की आवश्यकता है| अब इस सृष्टि के बारे में प्रत्येक चीज़ कौन जानता है? तुम केवल यह कह सकते हो कि ‘मैं नहीं जानता कि इस चीज़ का अस्तित्व है या नहीं|’ बिना समय और अंतरिक्ष की पूरी जानकारी के, किसी वस्तु के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। इस सृष्टि में, इस समय और अंतरिक्ष में क्या तुम हर चीज़ को जानते हो?
तुम्हारी अनभिज्ञता के प्रति तुम्हारी स्वीकृति तुम्हें एक नास्तिक बनने की इज़ाज़त नहीं देती| इसलिए तुम एक सच्चे नास्तिक नहीं बन सकते|

प्रश्न : गुरु जी, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?

श्री श्री रविशंकर : तुम बहुत भाग्यशाली हो| कितने लोग यह प्रश्न पूछे बिना ही जीवन जीते रहते हैं| इसका पोषण करो| यह प्रश्न तुम्हारे दिल
में है, तुम बहत भाग्यशाली हो| मैं तुम्हें एक बात बताता हूँ| वह जो इस प्रश्न का उत्तर जनता है, तुम्हें बतलायेगा नहीं और जो तुम्हें बतलाएगा,
वह जानता नहीं|


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