"बुद्दि की शुद्धि ज्ञान से होती है"

बैंगलोर आश्रम

तुम्हें प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये। तुम प्रतिदिन दांत मांजते हो। शरीर को स्वच्छ रखने के लिये नहाते हो। वैसे ही, प्रतिदिन थोड़ा ज्ञान सुनो और ध्यान करो। बुद्दि की शुद्धि ज्ञान से होती है। वो ज्ञान जो तुम्हें बोध कराता है कि यहां सब कुछ नाशवान है। संगीत और समरसता भावनाओं को शुद्ध बना कर हृदय को संपन्न बनाते हैं। कुछ देने से हृदय शुद्ध होता है। ज्ञान और ध्यान से सब शुद्ध हो जाता है।

प्रश्न : गुरुजी, किसी का देहांत होने पर ‘राम नाम सत्य है’ क्यों कहते हैं?

श्री श्री : किसी के देहांत पर तुम ये समझ जाते हो कि यही सत्य है। एक दिन हर किसी की मृत्यु होगी। जीवित रहते हुए तुम इस सत्य से अन्भिग्य रहते हो। तुम बेकार बातों में फंसे रहते हो।
सत्य को तुम टाल नहीं सकते। सौंदर्य का त्याग नहीं हो सकता। प्रेम की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो सकती।
ये तीन बातें ही याद रखने के लिये बहुत हैं। इन्हें पचाओ।

प्रश्न : यज्ञ के क्या क्या अंग होते हैं?

श्री श्री : किसी भी यज्ञ में ध्यान, दान, ज्ञान और गान होता है। गान दिमाग के दायें भाग को पुष्ट करता है। ज्ञान दिमाग के बायें भाग को पुष्ट करता है। ध्यान से दिमाग के दोनों भाग पुष्ट होते हैं। यज्ञ से हमारा विकास होता है।

प्रश्न : गुरुजी, अपना जीवनसाथी चुनते समय हमें उस में किन किन गुणों को परखना चाहिये?

श्री श्री : (मुस्कुराते हुये) मुझे इस का अनुभव नहीं है! उन से पूछो जिन्हें अनुभव है। तुम यहाँ वैवाहिक विभाग से भी मदद ले सकते हो।
तुम्हें पता है ये क्यों कहते हैं कि ‘विवाह स्वर्ग में पूर्वनिश्चित किये जाते हैं’? क्योंकि, तुम्हारे लिये चुनाव हो चुका है। तुम्हें सिर्फ़ उसे लेना है और आगे बढ़ना है। तुम चुनाव की प्रक्रिया से मुक्त हो। जो तुम्हारी थाली में आये, उसे लो और आगे बढ़ो।
तुम्हें पता है, सबसे अच्छी बात होगी कि तुम अपने जीवनसाथी की कमियों पर ध्यान ना दो। किसी भी रिश्ते में अगर दोनों व्यक्तियों का ध्यान आध्यात्म पर होगा तो वे समांनांतर रेखाओं की तरह बिना किसी टकराव के अनंत तक साथ साथ आगे बढ़ पायेगें। जिस क्षण आध्यात्म से ध्यान हटा और एक दूसरे पर गया तो टकराव होंगे। आध्यात्म के पथ पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रश्न : गुरुजी, विशालाक्षी मण्डप का निर्माण कैसे हुआ?

श्री श्री : मनुजी (एक शिष्य) ने कहा, "गुरुजी, एक सभा कक्ष होना चाहिये जहां लोग ध्यान कर सकें।" तो मैनें एक चित्र बनाया और उसे बनाया गया। पहले कोई सभा कक्ष नहीं था। अष्टावक्र गीता की व्याख्या ऐसी जगह की गई थी, जहां बारिश का पानी भीतर आ जाता था।
जब हमने विशालाक्षी मण्डप का उद्घाटन किया, तो इतने लोग आये कि वो उसी वक्त छोटा पड़ गया! तुम्हें पता है, जब लोग एक साथ ध्यान करते हैं तो वो ऊर्जा विशव में प्रसारित होती है।

प्रश्न : गुरुजी, इस स्थान का रहस्य क्या है?

श्री श्री : (मुस्कुराते हुए) रहस्य यहाँ है (अपने हृदय को इंगित करते हुए)।


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