"ऐसे सात गुण हैं जिन पर भारत को गर्व होना चाहिये"


चेन्नई, २६ नवंबर २००९


परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर ने चेन्नई के Great Lakes Institute of Management में MILK (Meditation and Inspiration Center for Living and Kindness) केन्द्र का उद्घाटन किया। श्री श्री ने छात्रों के साथ कुछ समय बिताया जिसमें की गई कुछ बातें निम्नलिखित हैं:

विष्णु शक्ति :
‘विष्णु
, नाग पर विश्राम करते हैं। उन्हें ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ता। बाकी के सब काम ब्रह्मा करते हैं। ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं और विष्णु उसका रखरखाव करते हैं। प्रबंधक लोग निर्माण और रखरखाव दोनो ही करते हैं।’

युवा शक्ति और बदलाव :

`आज दुनिया बदलाव की मांग कर रही है| युवाओं के पास अच्छा मौका है एक नई दुनिया बनाने का। आज दुनिया कुछ थम सी गई है। भारत से ही दुनिया में बदलाव आयेगा।
आर्थिक समृद्धि सच्ची समृद्धि नहीं है। जीवंतता, जोश, प्रेम, करुणा - भारत में से यह गुण प्रवाह हुए थे। जीवन का अर्थ ही है सृजन, उत्साह, प्रेम और करुणा। अगर ये गुण तुम में खत्म होने लगें तो तुम एक मृत शरीर रह जाओगे।‘

श्री श्री ने नई खोज और सृजन पर बहुत ज़ोर दिया। उन्होंने जो है केवल उसीकी देखभाल करने के इलावा सृजनात्मक विचारों को बढा़ने पए प्रोत्साहन दिया।
वसुधैव कुटुम्बकं
‘समस्त विश्व एक ही परिवार है – वसुधैव कुटुम्बकं। उस मायने में हमने खुद को दूसरों से अलग नहीं समझा। हमने जापान से सीखा कैसे एक टीम अच्छी तरह से कार्य करती है। हमने अंग्रेज़ों से तौर तरीके सीखे। अमरीका से marketing सीखी। जर्मनी से हमने तकनीकी सूझबूझ सीखी, और भारत ने विश्व को मानवीय गुण दिये।

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक बार मैनें सभी भक्तों से कुछ सृजनात्मक कार्य करने को कहा, क्योंकि सृजनात्मकता में आत्मा की झलक मिलती है। तीन महीने बाद सभी भक्त कुछ बढ़िया प्रोजेक्ट लेकर आये। एक टीम ने बिना अंडे की आइसक्रीम बनाई, और ये साबित करने में लग गये कि उनकी बनाई आइसक्रीम विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। एक बुज़ुर्ग महिला अपना प्रोजेक्ट लेकर आई। उसने एक रुमाल बनाया था, और उसने उस रुमाल के १७ तर्कसंगत गुण बताये जिनसे ये साबित कर सकी कि वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ रुमाल था।

आपने देखा, अमरीका में marketing skills उनके product से बेहतर हैं। भारत में हमारे पास बढ़िया products हैं, पर हमारी marketing skills कमज़ोर हैं।

भारत :

ऐसे सात गुण हैं जिन पर भारत को गर्व होना चाहिये। अभी इन्हें पूरी तरह पहचाना नहीं गया है।
भोजन :
भारत में भोजन के अनेक प्रकार हैं। भारत के एक छोटे से प्रांत त्रिपुरा में ही २०० से अधिक भोजन व्यंजन हैं।
उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत में प्रचलित अलग अलग व्यंजनों को नहीं जानते। दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत के भोजन को पूरी तरह नहीं जानते हैं। हमारे पास भोजन की अधिकतम क़िस्में है, फिर भी इस गुण को हम ठीक तरह market /project नहीं कर पाये हैं।

पर्यटन :

भारत के इतिहास का एक बहुत बड़ा हिस्सा अभी पर्यटकों से अछूता है।

संगीत और नृत्य :

भारतीय संगीत और नृत्य के कई प्रकार हमने अभी तक दर्शाये नहीं हैं।

वस्त्र और आभूषण :

भारतीय वेषभूषा विश्व भर में सराही जाती है। हमें अपने वस्त्रों पर कोई मान ही नहीं है! थाइलैंड और मलेशिया के लोगों को अपने वस्त्रों और आभूषणों पर बहुत गर्व है। हमें गर्व नहीं है। हम अपने आप को अच्छा नहीं समझते। Low self esteem हमारी मानसिकता और संस्कृति को खाये जा रही है।

Information Technology :

ये भारत को नई ऊंचाइयों तक ले जायेगी।

आयुर्वेद :

भारत में २८० प्रकार के पौधे और जीव पाये जाते हैं जो विश्व में और कहीं नहीं पाये जाते। इस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता! आयुर्वेद इक्कीसवीं सदी की लोकप्रिय चिकित्सा पद्दति होगी।

त्रिफला :

विदेश में त्रिफला का नुसख़ा ले लिया गया है। ऐसी और भी भारतीय वस्तुएं हैं जो विश्व में अपनाई जा रहीं हैं, पर भारतीय लोग उनकी उपयोगिता से अंजान हैं।

आध्यात्म :

केवल अमरीका में योग के व्यवसाय का बाज़ार मूल्य २७ बिलियन डालर का है, और इसमें 99% वर्चस्व अमरीकीयों का है। योग, भारत का विश्व को दिया गया उपहार है। अमरीका में योग के अभ्यास में उपयोग होने वाली वस्तुयें बनाई जाती हैं। न्यू यार्क में एक जगह भजन और मंत्र-जप के लिये लोगों को सादर बुलाया जाता है। और भारत में हम मंत्र जप की महत्वता को भूल गए है।


प्रश्न-उत्तर

प्रश्न : राजयोग के अनुसार ध्यान करना उनके लिये उपयुक्त है जिन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिये अभ्यास और एकांत का कठिन व्रत लिया हो। एक व्यक्ति जिस के पास कई ज़िम्मेदारियां हो, आसानी से ध्यान नहीं कर सकता। आप ने कहा कि सभी को ध्यान करना चाहिये। एक साधारण व्यक्ति के लिये इसका क्या अर्थ हुआ?

श्री श्री :
योग के कई प्रकार हैं। राज योग एक राज-मार्ग है। योग के किसी किसी प्रकार में साधना-अभ्यास में बहुत समय देते हैं। योग के कुछ प्रकार उन लोगों के लिये भी होते हैं जिन के पास कई ज़िम्मेदारियां होती हैं, और थोड़े ही समय में साधना हो जाती है। ध्यान हरेक व्यक्ति के लिये उपयोगी है।

प्रश्न : आपने सृजनातमकता और नई खोज का महत्व बताया है। पर इनके साथ कुछ जोखिम और अनिश्चित्ता भी बनी रहती है। कोई नई तकनीक या वस्तु कई बार असफल होने के बाद ही सफल हो पाती है। इन असफलताओं से कैसे निपटें? बार बार असफल होने के बाद भी नई खोज की यात्रा कैसे जारी रखें?

श्री श्री :
असफलता, विकास प्रक्रिया का एक अंग है। ध्यान करने से तुम्हें असफलताओं के बावजूद आगे बढ़ने में सहायता मिलेगी। असफलता के बिना भी कोई नई खोज और सृजन संभव है अगर तुम अपने अंतर्ज्ञान का सही प्रयोग करो तो। ध्यान से अंतर्ज्ञान विकसित होता है।
ध्यान और अंतर्ज्ञान के सामंजस्य से किसी नई खोज या सृजनात्मक कार्य में असफलता की संभावना शून्य हो जाती है। अगर अंतर्ज्ञान अधिक विकसित नहीं है तो असफलतायें अधिक आती हैं।

प्रश्न : भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। अगर हम फल के बारे ना सोचे तो कड़ी मेहनत से कर्म क्यों करना चाहेंगे?

श्री श्री :
फल पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर तुम्हारा ध्यान केवल कर्म फल पर है तो तुम ठीक तरह अपना कर्म नहीं कर पाओगे।
एक दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले व्यक्ति का उदाहरन लेते हैं – अगर वह बार बार पीछे मुड़कर देखता रहे कि पीछे से कौन आ रहा है, और आगे के रास्ते से उसका ध्यान भटके, तो वो कितना ही अच्छा क्यों ना दौड़ता हो, पर वो हार जायेगा। तुम्हें अपने ही मार्ग पर आगे जाना है और दौड़ पूरी करनी है - चाहे तुम जीतो या हारों।भगवान श्री कृष्ण की सलाहें बहुत व्यवहारिक और उपयोगी है।

प्रश्न : साधना के अनेको प्रकार और पथ हैं। मैं किसे चुनूं?

श्री श्री :
योग सभी को एक साथ लाता है। योग के साथ सब आ जाता है। सुदर्शन क्रिया तुम्हारी मदद करेगी। ये आज के नौजवानों के लिये उपयुक्त हैं जो कि बहुत व्यस्त रहते हैं। थोड़े समय में ही वे गहरे अनुभव प्राप्त करते हैं। इसका कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं है।

प्रश्न : क्या धार्मिक क्रियायें करना आवश्यक है? मैं ध्यान के पथ पर हूँ और कभी कभी धार्मिक क्रियायें करने में मेरी रुचि नहीं होती।

श्री श्री :
ये संस्कृति की बात है। धार्मिक क्रियाओं से खुशी का माहौल बनता है। उत्सव में कोई बुराई नहीं है। पटाखे, इत्यादि..
पारंपरिक उत्सवों से परिवार में, खासतौर पर बच्चों में अपनापन बढ़ता है।

माओवादियों के घरों में भगवान के चित्र या दिया जलाने की प्रथा नहीं होती। जब बच्चे ऐसे माहौल में बड़े होते हैं तो वे अपने जीवन में बहुत खालीपन पाते हैं।
रूस में ४० सालों तक कोई धर्म नहीं था। कथीड्रलों को तोड़ा गया। और एक कथीड्रल को तोड़कर स्विमिंग पूल बना दिया गया! तबाही के उस समय के गुज़र जाने के बाद अब दोबारा उस चर्च को बनाया गया है। अगर लोग धर्म का पालन नहीं करते तो कुछ समय के बाद उन्हें खालीपन महसूस होता है। धर्म केले के छिलके की तरह हैं और आध्यात्म बीच का फल।

प्रश्न : गुरुजी, ऐसा क्यों है कि संस्कृत भाषा का जन्म भारत में हुआ पर उसका दूसरा संदर्भ शिकागो में पाया जाता है?

श्री श्री :
तुमने तो मेरा सवाल पूछ लिया! हम संस्कृत पर अपना स्वामित्व खो रहे हैं। तुम्हें पता है डाक्टर भीम राओ अम्बेडकर ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा था और नसीरुद्दीन ऐहमद नें उनका समर्थन किया था। मलयालम के ८०% शब्द संस्कृत के हैं। तेलेगु के ७०% शब्द संस्कृत के हैं। तामिल के ३०% शब्द संस्कृत के हैं और हिंदी के ८०% शब्द संस्कृत के हैं। विदेशी भाषाओं में भी कई शब्द संस्कृत से मिलते जुलते हैं – जैसे कि ‘स्वसा – sister’, `दुहिता – daughter’ । हालांकि हमने इन के बीच की कड़ी खो दी है और संस्कृत की साख को नहीं बना सके।

तुम्हें पता है Italian में बारिश को क्या कहते हैं? ‘Piyorja!’ इसका संस्कृत शब्द है ‘पर्जन्य’। ऐसी बहुत सी मिसालें मिलती हैं।

प्रश्न : एक सोच के अनुसार हमें अपने प्रतिद्वंद्वी के कार्य-कलापों के बारे में सजग रहना चाहिये। अगर ऐसा नही किया तो हमारी स्थिति उस घोड़े जैसी होगी जिसे सामने के रास्ते के सिवा कुछ नहीं दिखता। नहीं तो ऐसा हो सकता है कि हम दुनिया का सबसे बढ़िया calculator बना पायें, जबकि दुनिया computer के युग में पंहुच चुकी हो! इन दोनों विपरीत विचारों के बारे में आप का क्या विचार है?

श्री श्री :
युवाओं को दोनों ही स्थितियों का समन्वय करना है। अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रति सजग रहना चाहिये, और साथ ही अर्जुन की तरह अपने ध्येय पर दृष्टि होनी चाहिये। अपने परिवेश के प्रति सजग रहो और अपने ध्येय के प्रति एकाग्रचित्त रहो। हद से अधिक महत्वाकांक्षी होने से कुछ लाभ मिलने वाला नहीं है। अपने अंतर्ज्ञान, जोश और विश्राम को बढ़ाओ। इससे तुम्हें वो सब मिलेगा जिसकी तुम्हें आवश्यकता होगी।


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