बैंगलोर आश्रम, १० नवंबर २००९
प्रश्न : गुरुजी, आप कहां गये थे और वहां आपने क्या किया?
श्री श्री : मैं जहाँ भी जाता हूं सत्संग होता है, उत्सव होता है।
प्रश्न : पिछले चार सालों से मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ। हाल ही में एक गलतफ़हमी की वजह से उसने मुझसे रिश्ता तोड़ दिया है। मैं उसके साथ विवाह करना चाहता हूँ, पर मैं नही जानता कि इसके लिये क्या करूँ।
श्री श्री : जब तुम किसी इच्छा की पूर्ति के लिये बेचैन होते हो तो तुम्हारा मन उत्तेजित हो जाता है। तुम्हारा व्यक्तित्व का आकर्षण कम हो जाता है। तुम्हें अपने भीतर की गहराई में जाना होगा। तुम्हें शांत और केन्द्रित होना होगा।तुम्हें अपने आप को खुश, आकर्षक, मज़बूत और सूक्ष्म बनाना है। किसी दुखी व्यक्ति के साथ कौन रहना चाहता है? पहले अपने दुख से छुटकारा पाओ।
जो बीत गया उसे जाने दो। बीते हुये जीवन से शिक्षा लो और आगे बढ़ो। तुम्हें मज़बूत, सौम्य और शांत बनना है।
जब तुम ध्यान, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया और योगासन करते हो, तो तुम तुरंत ही फ़र्क देखोगे। जब फ़र्क आयेगा तो तुम पाओगे कि तुम्हारी इच्छायें पूरी होने लगी हैं।
जब तुम किसी इच्छा की पूर्ति के लिये बहुत बेचैन होते हो, तो दो ही विकल्प रहते हैं – आत्महत्या या योग में विश्राम। केवल आध्यात्म और ज्ञान ही तुम्हारे जीवन में आकर्षण ला सकता है। एक योगी ऐसा व्यक्ति होता है जो अपनी इच्छायें तो पूरी कर सकता है, औरों की इच्छायें भी पूरी कर सकता है।
प्रश्न : गुरुजी, मैं समझना चाहता हूँ कि लोग कहते हैं कि मृत्यु के बाद हमें अपनी आंखें, शरीर के अंग, इत्यादि दान कर देने चाहिये। हम कैसे दान कर सकते हैं, जब ये शरीर ही हमारा नहीं है?
श्री श्री : अपनी आंखों या शरीर के अंगों का दान देना ठीक है। ये जानो कि जब तुम नहीं रहोगे, तो ये शरीर तुम्हारा नहीं रहेगा। तुम्हें पता है, विदेशों में लोग ये भी तय कर लेते हैं कि वो मरने के समय क्या कपड़े पहनेंगे, कहाँ दफ़नाये जायेंगे। वे अपने शरीर से बहुत आसक्त रहते हैं। ऐसी सोच भय को जन्म देती है। तुम क्या दान दे रहे हो ये महत्व नहीं रखता क्योंकि वो तुम्हारा है ही नहीं। तो, इसके बारे में इतना सोचने की और चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।
प्रश्न : गुरुजी, कभी कभी ध्यान करने में मुश्किल होती है। मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री : कभी कभी तुम्हें लगता है कि तुम्हारे मन में बहुत सारे विचार आ रहे हैं। अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारा मन शांत हो, तो तुम्हें अभ्यास और वैराग्य करना होगा। अभ्यास और वैराग्य से तुम ध्यान कर पाओगे। मन अगर ज़रुरत से ज़्यादा महत्वाकांक्षी हो तो भी मन में ज़्वरता रहती है। रोज़ १५-२० मिनट ज्ञान सुनो और फिर साधना का अभ्यास करो, तुम पाओगे तुम सहज ही ध्यान हो रहा है।
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