२२ मई २०१०,
बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न : आपके लिए खुशी की क्या परिभाषा है?
श्री श्री रवि शंकर : जिस दिशा में जीवन के बहने की प्रवृत्ति है।
प्रश्न : आपकी खुशी की सबसे अच्छी स्मृति क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : खुशी तब है जब तुम अपने लिए कुछ नहीं चाहते, और केवल देना चाहते हो। जहाँ इच्छाएं खत्म होती हैं और साझा करना(बांटना) शुरु होता है, वहीं खुशी है। स्मृति खुशी नहीं है। जब तुम खुश होते हो, तुम सब भूल जाते हो। जब खुशी नहीं रहती, तब तुम अपनी स्मृति में खुशी तलाशते हो। संसार में लोग खुशी की कल्पना यां खुशी की संमृति में रहते हैं। यह यां तो भूतकाल में रहना है यां भविष्य में। पर खुशी वर्तवान में है। यह तुम्हारा स्वभाव है।
प्रश्न : जब मैं एकांत में होता हूं तो भीतर आनंद अनुभव करता हूं। पर लोगो के साथ मन बाहरी परिस्थितियों में फ़ंस जाता है। क्या कोई ऐसा तरीका है कि सबके साथ रहते हुए भी मै वही भीतर का आनंद महसूस करूँ।
श्री श्री रवि शंकर : तुम सही जगह पर हो।
प्रश्न : पाप और पुण्य क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : पाप वही है जो तुम्हे भी दुख दे और औरों को भी दुख दे। पुण्य वही है जो तुम्हे भी खुशी दे और औरों को भी खुशी दे।
प्रश्न : ऐसा कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण १६ गुण सम्पन्न थे, श्री राम १२ गुण सम्पन्न थे, और हनुमान १४ गुण सम्पन्न थे। तो फ़िर श्री राम को अवतार कैसे कह सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : ऐसा भक्तों की महिमा गाने के लिए कहा गया है। असल में गुरु और शिष्य दोनो भगवान हैं। भक्तो की महिमा गाने के लिए और उनका स्तर ऊँचा करने के लिए भगवान स्वयं झुक जाते हैं। यह ऐसा है जैसे एक पिता अपने पुत्र को अपने से ऊँचा अपने कंधे पर उठा लेता है। अगर हनुमान श्री राम से बलिष्ठ नहीं होते तो उनकी सहायता कैसे करते? यह ऐसा है जो मुझसे बलवान है वही मेरा सामान उठा सकता है।
श्री राम को भी हनुमान की सहायता की आवश्यकता थी। इसी तरह ईश्वर भी तुमसे सहायता चाहते हैं। इसलिए हमें धर्म का कार्य,समाज की भलाई का कार्य, करना चाहिए। जो समाज की भलाई का कार्य करता है, ईश्वर भी उनका ध्यान रखते हैं। ईश्वर का काम करना, समाज के लिए काम करना, हमारे में दैवी गुण खिलने का संकेत है।
इसीलिए हनुमान जी श्री राम का काम करते रहे, पर उनमें कभी यह अहंकार नहीं आया कि वह श्री राम की सहायता कर रहे हैं। वह जानते थे कि यह तो केवल माया है और उन्हे ऐसा भाग्य मिला है कि वह श्री राम का काम कर सकें। वह श्री राम के दास बनकर उनका सारा काम करते रहे।
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