पिछले पोस्ट के शेष अंश
प्रश्न : गुरूजी,महत्वकांक्षा और लालच क्या है? दोनों को अलग करने वाली लकीर क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : लालच वह है जब आपके लिए धन और अपने आप के इलावा कुछ महत्व नहीं रखता।
लालच वह है जब आप अपनी योग्यता से परे किसी वस्तु की कामना करते हो और किसी भी तरह उसे पाना चाहते हो| यही लालच है| महत्वकांक्षा वह है जब आप कोई लक्ष्य रखते हो और उसे पाना चाहते हो| यह ठीक है| लालच वह है 'मुझे ये किसी भी तरह किसी भी कीमत पर चाहिए ही चाहिए| चाहे इससे मुझे या किसी और को तकलीफ हो|
प्रश्न : गुरूजी, सब कुछ के लिए धन्यवाद| मैंने छ महीने पहले आर्ट ऑफ़ लिविंग शुरू किया| मुझे पता है मैं इस यात्रा को जरी रखूंगी क्योंकि यह जीवन को बदलने वाला है| मुझे जिज्ञासा हो रही है आप किस तरह अपने व्यस्त जीवन में अपने आप को आधुनिक तकनीक और ख़बरों से सूचित रखते हो|
(श्री श्री केवल मुस्कुराये)
प्रश्न : गुरूजी, मैंने देखा है कि अनजाने में मैं अपनी तुलना अन्य लोगों के साथ करने लगती हूँ| इसे कैसे बंद करूँ? कृपया मेरी मदद करो|
श्री श्री रवि शंकर : अनजाने में रोकने से यह आदत अनजाने ही खत्म हो जायगी| आप जानते हुए इसे क्यों रोकना चाहते हो? इसे ऐसे ही रहने दो| समझे! आपकी रोकने की कोशिश समस्या बन जायेगी| आप इसमें अटक कर रह जाओगे| केवल विश्राम में रहो| और अधिक ध्यान, अडवांस कोर्स और मौन रहने वाले कार्यक्रम करो| इससे अपने आप आदत छूट जाएगी|
प्रश्न : गुरूजी संतुलन और संयम को कैसे बनाये रखें? यदि मैं अपना जीवन १०० प्रतिशत रह कर जीउँ तो मैं घटनायों के प्रति लगाव और प्रेमातुर बन जाती हूँ| यदि मैं वैराग में रहूं तो थोड़ी सुस्त हो जाती हूँ| ओर कैसे खुद्द को जुड़ा हुआ महसूस करूँ?मुझे अभी भी खालीपन और विरह लगती है| इनसब का कोई जबाब नहीं मिलता|
श्री श्री रवि शंकर : यह बहुत अच्छा है| आप भाग्यशाली हो| जब आप विरह अनुभव करते हो तो वास्तव में आप पथ पर हो| बहुत अच्छा| इसके बारे में चिंता मत करो|
प्रश्न : जय गुरुदेव! क्या आप २०११ के बारे में बताएँगे? हम चिंतित हैं|
श्री श्री रवि शंकर : क्या आप को याद है ,यदि आपमें से कुछ लोग १९९९ में इसी आश्रम में थे तो बहुत से लोग डरे हुए थे,डर से लगभग पगला गए थे। वे पूछ रहे थे कि १९९९ में कम्प्यूटर क्रैश हो जायेंगे तो वे क्या करेंगे? हमें भोज नहीं मिलेगा| लोगों ने अपने घरो के भूतल में दूध और खाद्य समग्री इकट्ठी करनी शुरू कर दी थी| मैं उस वक्त हैलिफक्स में था और लोगों ने मुझे से यही एक प्रश्न किया था| लोग सामान इकट्ठा कर रहे थे और उन्होंने मुझे बताया, "हमने तीन महीने का अनाज इकट्ठा कर लिया है|" मैंने तब भी कहा था कि कुछ नहीं होगा| सब व्यवसाय हमेशा की तरह होंगे| अब भी मैं कह रहा हूँ २०१२ हम देखेंगे,१३ हम देखेंगे और सब व्यवसाय हमेशा की तरह होगें। सिर्फ यह होगा की लोग और अधिक अध्यात्मिक हो जायेंगे| आपने देखा होगा अभी के युवा और बच्चे (येस और येस + के बच्चे) कैसे प्रश्न पूछ्तें हैं| मुझे लगता है पुरानी पीढ़ी के लोग देख कर हैरान हो जायेंगे की युवा पीढ़ी कितनी अध्यात्मिक बनती जा रही है| जो प्रश्न आपको ४०-५० वर्ष की उम्र में आये उन्हें वे १५ बर्ष की उम्र में आ रहे हैं|"जीवन क्या है", जो यहाँ पर ५० या उससे ज्यादा उम्र के लोग हैं मैं उन से पूछता हूँ - क्या आपको ऐसे प्रश्न उस उम्र में आये थे? आज बच्चे इतने अध्यात्मिक हैं| समय आएगा जब आप देखोगे कि बच्चे और अधिक जागरूक हो जायेंगे| वे कपडे,गहनों और बहुत ज्यादा दिखावे में नहीं हैं| यद्यपि उनमें इलेक्ट्रोनिक चीजों के लिए इच्छा है और हाँ कारों के लिए भी| फिर भी यह इतना अधिक नहीं है जितना पहले के लोगों को था| आप लोगों में, युवाओ और बच्चों में बहुत अंतर देखोगे| वे ऐसे होंगे| शुरू में जब वीडियो खेल आए तो सब को वीडियो खेलों का कितना शौक था, वे सभी हिंसात्मक खेल| समय के साथ साथ यह कम होता जा रहा है| मुझे लगता है यह कम हो रहा है| यह होगा कि अधिक से अधिक लोगों का आध्यात्मिकता की ओर झुकाव होगा|
प्रश्न : मैंने इटरनिटी प्रोसेस किया| पिछले जन्मो से मैंने बहुत कुछ देखा| बहुत भक्ति का अनुभव हुआ| यहाँ तक मैंने आपको भी देखा| इसमें कितनी सचाई है? क्या मैं ऐसे ही बात को बढ़ा रही हूँ?
श्री श्री रवि शंकर : देखो इसमें संदेह मत करो| ये अनुभव एक मिश्रण है, एक तो आपकी पवित्र चेतना और आपके गहरे अनुभवों से आता है, और कुछ आपकी कल्पना से भी आ सकता है| कभी कभी आप जो कल्पना करते हो वो अनुभव हो जाता है| यह आम तौर पर मिश्रण होता है - २०% कल्पना ८०% वास्तविकता से मिल जाती है| आप को बैठ कर चिंता या सोचने कि आवश्यकता नहीं है| यह एक अनुभव है, जैसे भी यह आये इसे स्वीकार करो और आगे बढ़ो| लोगों को कई बार कूछ भ्रम भी हो जाते हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ अपने आप को किसी भूमिका के साथ जोड़ लेना अपने आप को सीमित कर लेना है| आप इन सब अनुभवों से कहीं अधिक हो| आप इन सब पहचानो से और बहुत कुछ हो| यही आत्म ज्ञान है| यही अध्यात्मिक ज्ञान है| यही उपनिषद ज्ञान है|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality