मई २०१०,
जर्मन
भारतीय दूतावास को संबोधित करते हुए श्री श्री रवि शंकर द्वारा कहे शब्दों के कुछ अंश:
आपको पता है हम जीवन में इतनी नीरसता क्यों अनुभव करते हैं? क्योंकि हम एक बहुत औपचारिक महौल में रह रहे हैं। हमारे शब्दों में भी औपचारिकता होती है। हम ऐसे माहौल में रह रहे हैं जहाँ केवल शब्द हैं पर उनके पीछे भावनाएं कम ही दिखती हैं। क्या आप संतुष्ट होते हैं यदि आप किसी के घर जाते हैं और वो आपको केवल औपचारिक तरीके से मिलते हैं। अगर आप भारत के गाँव में किसी के घर जाते हैं तो उनके व्यवहार में भावनाएं होती हैं। वो व्यवहार दिल को छूता है।हमारा अस्तित्व हमारे शब्दों से अधिक व्यक्त करता है। हमें सच में तृप्ति तभी मिल सकती है जब हम अपने केन्द्र से जुड़े होते हैं। और यह कैसे संभव हो सकता है? जब हम तनाव मुक्त होते हैं।
प्रश्न : आप शत्रुता मिटाने के लिए क्या दृष्टिकोण रखते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : बहुत बार जो शत्रु दिखाई पड़ते हैं वास्तव में उनमें शत्रुता नहीं होती। मैं आपको इराक में हमारे किए गए कार्य का उदाहरण देता हूँ। हमने वहाँ के पीड़ित युवायों को ध्यान और सुदर्शन क्रिया दिया। इससे उनमें बड़ा परिवर्तन आया। वहाँ के युवा मंत्री ने ५० युवायों को बैंगलोर आश्रम प्रशिक्षिण के लिए भेजा। शुरु में ऐसा करना चुनौती था पर एक महीने के समय में उनमें अद्भुत परिवर्तन था। इन लोगों ने वापिस जाकर हज़ारों लोगों को मन में शांति बनाए रखना सिखाया। ना ही घर में और ना ही स्कूल में किसी ने हमें नकारात्मक भावनाओं को संभालना सिखाया। मन में गुस्सा, लालच, परेशानी, उदासी इत्यादि भावनाएं उठती हैं पर इनको कैसे सम्भाला जाए और मन को कैसे शांत किया जाए, यह हमें किसी ने नहीं सिखाया।
मैं यह नहीं कहता कि हमारे पास दुनिया भर के संघर्ष को कल ही समाप्त करने का समाधान है। यह संभव नहीं है। पर हमें आक्रामक या दुश्मन लगने वाले व्यक्तियों में ध्यान से आए बदलाव को देखकर बहुत उम्मीद मिली है।
२००१ में कश्मीर में बड़ी मुश्किल परिस्थिति थी पर अब वहाँ हालात काफी बेहतर हैं। हम थोड़ा थोड़ा करके बदलाव ला सकते हैं। जहानाबाद में भी हमारे प्रयास का अच्छा परिणाम है। इससे मुझे दुनिया के तमाम संघर्ष क्षेत्रों में काम करने का प्रोत्साहन मिला है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक बड़ी चुनौती है।
जब कुछ लोग यह सोचते हैं कि केवल वो ही स्वर्ग में जाएंगे और बाकी सब नर्क में तो वो ओरों के किए नर्क बना देते हैं। हमें उन्हे एक व्यापक मानसिकता लाना आवश्यक है। हर बच्चे को दुनिया के अन्य धर्मों के बारे में थोड़ा थोड़ा ज्ञान होना चाहिए। हमें खाद्य पदार्थों के साथ साथ ज्ञान को सार्वभौमिक बनाने की आवश्यकता है। तनाव के कारण व्यक्ति यां तो आक्रमक हो जाता है यां आत्मघाती। दोनो का ही समाधान है कि व्यक्ति को मन शांत रखना सिखाया जाए। यह बहुत ज़रूरी है कि उन्हे नकारात्मक भावनाओं और तनाव से कैसे मुक्त होना है, यह सिखाया जाए। हमें देखना है कि हम उनका घाव कैसे भर सकते हैं। घाव भरना अत्याधिक आवश्यक है।
प्रश्न : कृप्या आप सदमे से बाहर आने की बारे में कुछ बताएं।
श्री श्री रवि शंकर : सुनामी के बाद मछुआरों को समुद्र के पास जाने से भी डर लगता था। वे किसी दूर स्थान पर जाने की प्रार्थना कर रहे थे। सारे जीवन काल में उन्होंने इसके इलावा कुछ और नहीं किया था। ध्यान के कुछ ही मिनटों और प्राणायाम से वे तीन दिनों में ही इस सदमे से बाहर आ गए। तीसरे दिन इन्ही लोगों ने समुद्र में वापिस जाने की इच्छा ज़ाहिर की। 9 / 11 की घटना के बाद भी यही देखा गया। ’आर्ट ओफ़ लिविन्ग’ के कई स्वयंसेवक ऐसे क्षेत्रों में शांति लाने के लिए समर्पित हैं।
प्रश्न : क्या आप बदलाव लाने में एक महिला के योगदान के बारे में बता सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : महिलायों की महान भूमिका है। एक महिला कई पुरुषों को प्रभावित कर सकती है - भाई को, पिता को, पुत्र को, पति को। महिलाओं में अधिक शक्ति और प्रभाव है। भारतीय संस्कृति में रक्षा मंत्रालय माँ दुर्गा के पास, वित्त मंत्रालय माँ लक्ष्मी के पास और शिक्षा मंत्रालय माँ सरस्वति के पास रहे हैं। सभी शक्तिशाली विभाग महिलाओं के पास ही रहे हैं। भारत में पुरुष और महिला को बराबर के भागीदार मानते हैं। वहाँ अर्धनारिश्वर की अवधारणा है - ईश्वर ना स्त्री है और ना पुरुष। परमात्मा आधा पुरुष और आधा महिला है। हर कोई ऐसे ही है। कोई पूर्ण पुरुष या महिला नहीं है। हम में हमारे माता और पिता दोनो के भाग हैं। हमे महिलाओं का आदर करना चाहिए। महिलाओं को समाज में और अधिक नेतृत्व लेना चाहिए। मुझे लगता है महिलाएं बेहतर शांति ला सकती है। तब दुनिया में संघर्ष, लालच और भ्रष्टाचार कम होगा। भ्रष्टाचार केवल अपनेपन की सीमा से बाहर हो सकता है। दिल भ्रष्ट नहीं हो सकता। यह दिमाग है जो भ्रष्ट हो जाता है। दिल की तड़प हमेशा पुराने की होती है पर मन नए की ओर भागता है। मन में और अधिक पाने की दौड़ लगी रहती है लेकिन दिल कहता है, "मैं खुश हूँ"। दिल कुछ देना चाहता है और मन कुछ लेना चाहता है। महिला में दिल का उपयोग अधिक होता है। नेतृत्व के विकास और अधिक सामाजिक जिम्मेदारी लेने के साथ साथ महिला को यह गुण भी कायम रखना चाहिए।
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