प्रश्न: विकास के आधुनिक सिद्धांत (Modern theory of evolution) के बारे में आपके क्या विचार हैं? अगर यह सत्य है तो आत्माएं किस चरण में आती हैं? उससे पहले आतमाओं की क्या स्थिति होती है?
श्री श्री रवि शंकर: आधुनिक सिद्धांत विकसित हो रहे हैं | उनके अनुसार सब कुछ कहीं से शुरु हुआ है |मैं इसे linear understanding कहूँगा| लेकिन एक spherical thinking भी है जिसकी यहाँ कमी है| ओरिएंट में sperical thinking रही है| पच्छम में linear understanding| सबका कहीं से शुरु होना आवश्यक है| एक एडम और ईव होने ही चाहिए जिनकी सब संतान हैं| इसके आधार पर हर कोई एक दूसरे का भाई यां बहिन है| तो फिर कोई किसी से शादी कैसे कर सकता है? इस तरह से शादी ही एक अपराध हुआ| अगर ईश्वर एक एडम और ईव बना सकते हैं तो वह ऐसे और भी बना सकते थे| और फिर ईश्वर ने ऐसा ज्ञान का फल क्यों बनाया जिसे खाने के लिए मना ही करना था? इस तरह से हमारी सोच बहुत संकुचित है और हमे व्यापक समझ अपनाने की आवश्यकता है| हमे गोलाकार सोचने की आवश्यकता है| शुरुआत में किसी एक जीव का नहीं बल्कि सबकी, सब वस्तुयों की एक साथ रचना हुइ| अगर मैं तुमसे पूछ्ता हूँ कि टैनिस की गेंद का प्रारंभ बिन्दु कौन सा है तो तुम्हारा क्या उत्तर होगा? गेंद पर हर एक बिन्दू पहला है, और अंतिम भी | प्राचीन लोगों की यही सोच रही| तभी उन्होने कहा, "संसार आदि है और अनंत भी", अर्थात इसकी ना शुरुआत है और ना ही अंत| आत्मा की ना कोई शुरुआत है और ना अंत| जिस कारण ब्रह्मांड का अस्तित्व है , उस दिव्यता की ना शुरुआत है और ना ही अंत| तीनो एक ही हैं| यही अद्वैत का सिद्धांत है कि सब कुछ एक ही तत्व से बना है| यही theory of relativity है| String theory और आधुनिक वैज्ञानिकों का भी यही कहना है| आइन्सटाईन भगवद गीता का अध्ययन करके हैरान रह गया था|
ब्रह्मड में सबकुछ, चाहे जीवीत है यां अजीवित, एक ही चेतना से बना है| प्राचीन ग्रंथ जैसे उपनिष्द और गुरु ग्रंथ साहिब में भी यही कहा गया है| सिक्खों में अभिवादन करने का बहुत उत्तम तरीका है - सत्श्रियाकाल| सत+ श्री + अकाल: सत - सत्य, श्री - धन, अकाल - जो समय से परे है| तो जब आप यह कह कर अभिवादन करते है, आप एक दूसरे को अपना वासत्विक स्वरूप याद दिलाते हैं, वो स्वरूप जो समय से परे है और आपका असली धन है| तुम अपने से बाहर क्या ढूंढते हो, सब कुछ अपने भीतर ही है|
प्रश्न: यदि सब कुछ बदल रहा है, कुछ भी करने का क्या मतलब है?
श्री श्री रवि शंकर: यह सवाल पूछने में क्या मतलब है? उत्तर समझने में क्या मतलब है? हम कुछ करते हैं क्योंकि हम कुछ किए बिना नहीं रह सकते
यह भी बदलाव का हिस्सा है|
'सब कुछ बदल रहा है' - यह समझने के लिए है|
पर हमें कुछ करते रहना है, और यदि हम ऐसा करते हैं जो हमे शांति देता है और विकास की तरफ ले जाता है तो यह बहाव की दिशा में तैरने जैसा है|
और कुछ ऐसा करना जो हमे विकास से दूर ले जाता है, बहाव की उल्टी दिशा में तैरने जैसा है|
प्रश्न: अपने प्रति अपराधबोध और आलोचना के भाव से कैसे बाहर आ सकते हैं? मुझे ऐसा करके बहुत दुख होता है जब्कि मैं जानता हूँ जो मैने किया वो मेरे लिए सबसे बेहतर था|
श्री श्री रवि शंकर: और Advance कोर्स
प्रश्न: अहंकार क्या है? क्या अहंकार और प्रेम एकसाथ चल सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: अहंकार अलगाव की भावना है, एक अलग पहचान की भावना
तीन प्रकार का अहंकार है:
१. 'मैं यह हूँ'
२. 'मैं यह नहीं हूँ'
३. 'मैं दूसरों से भिन्न हूँ'
अहंकार कैसे लुप्त हो सकता है?
जब अहंकार का विस्तार होता है 'मैं यह हूँ', 'मै यह भी हूँ', 'मैं वो भी हूँ'| मुश्किल तब होती है जब हम किसी एक पहचान में फंस जाते है| जैसे कि अगर तुम सेना अधिकारी हो और घर पर भी तुम वैसा ही व्यवहार करते हो तो मुश्किल होती है| तुम सेना अधिकारी हो, यह तुम्हारी एक पहचान है| पर तुम एक पिता, एक पति, एक पुत्र भी हो यह सभी तुम्हारी पहचान है| जब तुम इन सब भूमिकाओं को एक जैसा महत्व देते हो तो अहंकार घुल जाता है| एक संकुचित पहचान से दिव्यता के साथ पहचान करना ही अहंकार का विस्तार करना है तुम मैंपन से अहं ब्रह्म की ओर बढ़ते हो| 'मैं कुछ हूँ' से 'मैं कुछ नहीं हूँ', और 'मैं कुछ नहीं हूँ' से 'मै सबकुछ हूँ' पर यह बहुत दार्शनिक लगता है तुम अपने दफ्तर में जाकर यह नहीं कह सकते कि तुम कुछ नहीं हो ना ही तुम अपने घर पर कह सकते हो कि तुम सबकुछ हो ऐसा करने से कुछ नहीं होगा| मैं कहूँगा, अपने अहंकार से बाहर आने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है - सहजता|
अहंकार से तुम असहज, अप्राकृतिक और अलग महसूस करते हो हर किसी से हर परिस्थिति में सहजता से व्यवहार करना, यह एक बच्चे की तरह सरल रहना है|
अहंकार के बारे में एक अंतिम बात यह कहूँगा कि अगर तुम्हे लगता है कि तुममें अहंकार है तो इससे छेड़-छाड़ मत करो| इसे अपनी जेब में रखो और चिन्ता मत करो
प्रश्न: मैं अपने शरीर को शुद्ध कैसे कर सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: प्राणायाम, सही भोजन, मन और शरीर को विश्राम देकर, और सही मार्गदर्शन में उपवास रखकर
प्रश्न: हम कौन से निर्णय दिल से लेते हैं और कौन से दिमाग से?
श्री श्री रवि शंकर: व्यापार दिमाग से और सेवा दिल से करो
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