२६ मई २०१०,
बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न : गुरुजी, क्या आप सच में प्रबुद्ध हैं? मैं इस प्रश्न का सीधा उत्तर लिए बिना जाने वाली नहीं हूँ?
श्री श्री रवि शंकर : किसी भी प्रश्न का उत्तर तुरंत ही नहीं दे देते। एक बार एक जोड़ा किन्हीं गुरु के पास गए और दो प्रश्न पूछने की इच्छा ज़ाहिर की। गुरु बोले दो प्रश्नों का उत्तर दो साल सेवा करोगे तो देंगे। प्रश्न जितना महंगा होता है उत्तर के लिए उतनी मेहनत भी करनी पड़ती है। ठीक है तुम्हें उत्तर देंगे। पर अगर तुमने शर्त रखी है तो हम भी शर्त रखेंगे।
प्रश्न : कैसे मालूम हो कि किस पर विश्वास करें और किस पर ना करें?
श्री श्री रवि शंकर : अपने उपर भरोसा करो। जो तुम करोगे और जिस पथ पर चलोगे - उस पर विश्वास करो। अगर तुम्हें अपने पर ही विश्वास नहीं तो गुरु पर कैसे विश्वास करोगे। अपने उपर विश्वास हो जाए तो बहुत है।
गुरु संशय दूर नहीं करते बल्कि और संशय पैदा करते हैं। जितना तुम संशय की आग में पकोगे, तुम उतना ही पक्के हो जाओगे। सत्य कभी संशय से नहीं घबराता। सत्य छिप नहीं सकता।
रावण भी तो संत के भेस में आया था सीता मइया को हरणे। अगर तुम यह सोचो कि हर संत रावण है तो कैसे होगा? कितने संत हुए - वाल्मिकी, गौतम, विश्वामित्र..। अगर हर किसी को रावण समझोगे तो वाल्मिकी आश्रम से भी वंचित रह जाओगे। असली को देखोगे तो नकली पर संदेह आएगा। सिर्फ़ नकली को ही देखोगे तो असली पर भी संदेह होगा।
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