२५ मई २०१०
बैंगलोर आश्रम, भारत
प्रश्न : मैने अतीत में बहुत पाप किए हैं? क्या मैं इस पवित्र पथ के लायक हूँ? मैं पश्चाताप करना चाहता हूँ।
श्री श्री रवि शंकर : पश्चाताप करने का भाव उठा तो काम बन गया। सत्बुद्धि जागी तभी तो पश्चाताप का भाव उठा। नहीं तो हम यही कहते हैं जो किया वो सही है। कुछ गलत हुआ और उसका पश्चाताप करना मतलब वर्तमान में तुम शुद्ध हो गए। शुद्ध बुद्धि में ही पश्चाताप का भाव जगता है। अशुद्ध बुद्धि हो तो व्यक्ति अपनी की हुइ गलती का भी समर्थन करता रहता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति गलती करता है और उसका समर्थन करने लगता है तो मान लेना उसमे अभी सात्विकता नहीं जागी। पश्चाताप करने का मन हुआ तो शुद्ध बुद्धि जागी। वर्तमान में तुम शुद्ध हो गए हो। भूतकाल में मत रहो। यह संकल्प लो कि भविष्य में तुम ऐसा नहीं करोगे।
कुछ लोग आत्म ग्लानी के साथ पश्चाताप करते हैं। उससे भी काम नहीं बनता और तृप्ति नहीं होती। इसीलिए गुरु-शिष्य परंपरा है। गुरु कह देते थे यह कर लो और हो गया खत्म। यां अपने मन की बात गुरु से कह दिया तो भी खत्म हो गया। अपने मन में भी यह कह देने से कि भूल हो गइ, मन शांत हो जाता है। भूल क्यों हुइ? अज्ञान की वजह से। अब ज्ञान का दिया जल गया भीतर तो तुम वर्तमान में शुद्ध हो गए।
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