बैगलोर आश्रम, भारत
२७ मई २०१०
प्रश्न : हम जो भी कर रहे हैं सु:ख के लिए ही कर रहें हैं तो संसार में इतना दु:ख और पीड़ा क्यों है?
श्री श्री रवि शंकर : मुल्ला नज़रुदिन की एक कहानी है। उसकी पत्नि गर्भवती थी, और जन्म देने का समय आ गया था। पर बच्चा बाहर नहीं आ रहा था। जब डाक्टर ने मुल्ला को यह बताया तो वो दोड़ा खिलौनों की दुकान पर, खिलौना लाया और पत्नि के सामने रखकर बोला, "है तो मेरा ही बच्चा, लालाच से तो आ ही जाएगा"। पैदा होने के पहले से हम लालच लगाए बैठते हैं। जैसे खरगोश गाजर के पीछे भागता है। जीवन भर कुछ मिलने के पीछे भागते रहते हैं। कहीं से कुछ तो मिल जाए। कहाँ क्या लाभ होगा। लाभ का ही सोचते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को सु:ख कैसे मिलेगा? ना लोभी को सुख मिलता है और ना कामी को। जो अपनी चेतना में विश्राम करता है, सुख उसी को मिलता है। जो व्यक्ति अपने में केन्द्रित होता है वही सुखी है। सुख हमारे स्वभाव में है। व्यक्ति, परिस्थिति यां वस्तु से मिलने वाला सुख दो कोड़ी का है। अपने वास्तविक स्वभाव में केन्द्रित होकर जिस सुख की उपज होती है वही सच्चा सुख है। मै यह नहीं कह रहा कि व्यक्ति, परिस्थिति यां वस्तु में कोई सुख नहीं है, मोबत्ती में रोशनी है। पर अपने भीतर से जो सुख मिलता है उसकी किसी ओर सुख से तुलना ही नहीं की जा सकती।
सुख की तालाश में दौड़ी जा रही है दुनिया। तन जल गया, मन जल गया, प्राण जल गए और बुद्धि भ्रमित हो गई पर फिर उसी तालाश में अटके रहते हैं। जब गुरु मिलते हैं तो तुम जानते हो कि तुम प्रकाशमय हो, सुखमय हो। फिर मन शांत हो जाता है और तुम जानते हो कि जिसकी तालाश में तुम जगह जगह भटक रहे थे वो तुम ही हो।
प्रश्न : अनंत काल से पृथ्वी पर जीवन चल रहा है। किसी जीव को बड़े स्मृद्ध घर में जन्म मिलता है और कई जीव ऐसे हैं जिन्हें भरपेट खाने को भी नहीं मिलता। इसके पीछे क्या रहस्य है? किस आधार पर किसी जीव को जन्म मिलता है?
श्री श्री रवि शंकर : पांच रहस्यों में से एक रहस्य है जन्म रहस्य। कुदरत ने बहुत कृपा करके जन्म को रहस्य बनाया है। नहीं तुम दु:खी होते रहोगे पुरानी सारी बातों को याद करके। अच्छा है कि तुम नहीं जानते हो। एक समय ऐसा आएगा जीवन में जब तुम्हारा मन पूरी तरह से वर्तमान में टिकने लगेगा, तुम्हारी स्मृति भी जागेगी और तुम जान पाओगे कि तुम क्या थे, तुम कहाँ थे, तुम कौन थे। यह सब स्मृति तुममे जगने लगेगी। किसी किसी में ना भी जगे तो कोई हर्ज नहीं है।
यह सारा संसार कार्य और कारण से बना है (Cause and effect)। जो कुछ भी हो रहा है उसका कोई कारण है। पर फिर हमें कोई आज़ादी नहीं है क्या? ज़रूर आज़ादी है। कुछ हम लेकर आएं है और कुछ हम यहाँ करते हैं। हमें कर्म स्वातंत्र भी है, विवेक भी है। और हम कर्म का फल भी भोग रहे हैं। जैसे तुम्हे किसी ने पूंजी दिया, अब तुम उस पूंजी को कैसे बढ़ाओगे, उसका क्या करोगे यह तुम पर निर्भर करता है।
हरेक के जीवन में कर्म स्वतंत्र है और पूर्वाचिंत कर्म का भी असर है। गरीब भी अमीर हो सकता है और अमीर भी गरीब हो सकता है। यह सब सम्भावना है। जहाँ तुम पैदा हुए हो वो तुम कर्म से पैदा हुए हो पर जहाँ तुम पहुँचना चाहते हो वो तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है।
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality