प्रार्थना का सार

०१
२०१२
दिसम्बर
बैंगलुरु आश्रम, भारत

भारत में एक महान संत हुए हैं | वे एक गल्लाबान थे और कर्नाटक में बारहवीं सदी में हुए थे | उनका नाम था कनकदास |
बारहवीं सदी ऐसा समय था जब पूरे भारत में एक भक्ति की लहर उठी थी | बल्कि , भारत ही नहीं , पूरी दुनिया में! मुझे लगता है कि फ्रांसेस्को डीअस्सिसी (अस्सिसी के सेंट फ्रान्सिज़ इटली के महान संत) भी उसी समय हुए थे , बारहवीं और पंद्रहवीं सदी के बीच में |
कनकदास कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे | उन्होंने कन्नड़ में बहुत से सुन्दर गीत लिखे हैं | तो , कर्नाटक में सभी लोग इन गीतों के बारे में जानते हैं |
ऐसी कहानी है , कि उन्हें मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी , क्योंकि वे गरीब थे और निचली जाति के थे | तो इसीलिये , वे मंदिर के बाहर रहकर ही प्रार्थना करते रहे , क्योंकि मंदिर तो खास तौर पर अमीर लोगों और ऊपरी जाति के लोगों के लिए ही था |
तो क्या हुआ , कि मंदिर की दीवार टूट गयी और भगवान कृष्ण की मूर्ति पूरी घूम गयी और कनकदास को दर्शन दिए | और जो लोग दूसरी तरफ बैठकर पूजा कर रहे थे , वे सब आश्चर्यचकित रह गए | ये यहाँ पर बहुत जानी-मानी बात है |
आज भी , उडुपी कृष्ण मंदिर में , आप देखेंगे , कि जब आप मंदिर में अंदर प्रवेश करते हैं , तो मूर्ति का मुहँ विपरीत दिशा में है | वहां एक टूटी हुई दीवार है , और आप उस टूटी दीवार के अंदर से ही मूर्ति को देख सकते हैं | इसे कनकदास की खिड़की कहते हैं , जहाँ से उन्होंने खड़े होकर प्रार्थना करी थी |
ऐसा कहा जाता है , कि उसी समय से जात-पात और की प्रथा समाप्त कर दी गयी थी |
बहुत से लोगों ने जात-पात और के विरूद्ध आवाज़ उठाई है | कनकदास उनमें से ही एक थे और उनकी सभी ने प्रशंसा करी है |
ये कहानी है |

प्रश्न : गुरुदेव , क्या आप स्त्री-ऋषियों के बारे में बता कर सकते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ , कुछ महिला-ऋषि भी हुई हैं , तथा और आने की भी गुंजाइश है | बहुत कम स्त्री-ऋषि रहीं हैं , देखा जाए तो ज्यादा है ही नहीं |
मीरा एक ऐसी ही महान भक्त थीं |
तमिलनाडु में भी एक महिला थीं , वे अव्वैयार के नाम से जानी गयी हैं , और उन्हें तमिल साहित्य की माता माना गया है | जो भी कोई तमिल का अध्ययन करता है , वह अवैयर से अछूता नहीं है , है न ? यहाँ कितने तमिल हैं ? (कुछ लोग अपना हाथ उठाते हैं)
(सत्संग में एक महिला आतिचुडी के बारे में बात करती हैं , यह अवैयार के द्वारा लिखी रचना है)
आतिचुडी अक्षर हैं न ?
जैसे से एप्पल’ , बी से बॉल’ , सी से कैट उसी तरह उन्होंने हर अक्षर के लिए कुछ दार्शनिक बनाया है | तो , बचपन से लेकर , अक्षरों को मूल्यों के साथ सिखाया जाता है , और यही उन बुद्धिमान महिला , माता ने किया |
उनकी कहानी बहुत रोचक है | वे एक बहुत सुन्दर दिखने वाली युवती थीं , और उनके माता-पिता चाहते थे , कि उन विवाह हो जाए , लेकिन वे ऐसा नहीं चाहती थीं |
राजा ने उन्हें देखा , और उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट करी | उन दिनों में , राजा को सबसे उत्तम चीज़ प्राप्त करने का अधिकार था , और वे तो बहुत ही अच्छी थीं | तो राजा उनसे शादी करना चाहता था | और जब राजा कुछ पूछे , तो आप ना नहीं कर सकते थे |
तो कहानी में कुछ ऐसा था , कि उन्होंने गणेश से प्रार्थना करी | वे गणेश की भक्त थीं |
भारत में आप अपने स्वयं के भगवान चुन सकते हैं | हालाँकि , भगवान एक ही है , लेकिन एक होते हैं , इष्ट देवता’ | हर एक कोई अपनी पसंद के मुताबिक भगवान का कोई भी रूप चुन सकता है |
देखिये , एक ही ईश्वर है , एक अल्लाह , एक परमात्मा , आप कुछ भी नाम चुन लीजिए , केवल अपने लिए | और फिर आप उस नाम से एल व्यक्तिगत सम्बन्ध बना लेते हैं |
तो गणेश उनके व्यक्तिगत भगवान थे , और उन्होंने उनसे प्रार्थना करी , मुझे बूढ़ी बना दीजिए’ |
और ऐसा कहा जाता है कि उसी पल उनके सारे बाल सफ़ेद हो गए , और वे बूढ़ी दिखने लगीं | जब राजा ने आकर उन्हें देखा तो उनसे शादी करने से इनकार कर दिया , और उन्हें अकेला छोड़ दिया |
तो ये कहानी है |

प्रश्न : गुरुदेव , हिंदुत्व में इतनी सारी प्रार्थनाएँ हैं | कुछ देवी के लिए , कुछ विष्णु के लिए | हर प्रार्थना के लिए ऐसा कहते हैं , कि इसके नियमित जाप से आपको लाभ होगा | अब सारी प्रार्थनाएँ एक ही बात कहती हैं , तो कैसे जानें कि किसका अनुसरण करें ?
श्री श्री रविशंकर : पहली बात तो ये है , कि भगवान या ईश्वर दोनों एक ही है | आप केला कहो , या बनाना कहो एक ही बात है | सेब कहो या एप्पल कहो एक ही बात है |
ईश्वर की स्तुति से ईश्वर खुश हो जाता है , ये ग़लतफहमी है | आप अपने घर की खिड़की खोलेंगे , तो सूरज घर के अंदर आ जाएगा | लेकिन यदि बंद करेंगे , तो क्या सूरज नाराज़ हो जाएगा ? क्या वह किरण नहीं देगा ? ऐसा नहीं होता!
हम जो भी प्रार्थना करते हैं , वह अपनी खुशी के लिए करते हैं | अपने उत्थान के लिए करते हैं | भगवान की खुशामदी करने के लिए नहीं | इसीलिये , जो लोग भगवान को खुश करने के लिए उपवास रखते हैं , वे सब मूर्ख लोग हैं |
यदि आप ये सोचकर भगवान की प्रार्थना करते हैं , कि वे आपको विशेष रूप से कोई फल दे देगा ये नहीं , लेकिन हाँ , अगर आप प्रार्थना करेंगे , तो आपको प्रार्थना का फल मिलगा ही ये तो नियम है | आप खिड़की खोलेंगे , तो सूरज तो घर के अंदर आएगा ही | और जब सूरज घर के अंदर आएगा , तो उसका लाभ तो आपको होगा ही |
भगवान को तो हम अच्छे लगते ही हैं , मगर हमें भी भगवान अच्छे लगने लगें , इसी को भक्ति कहते हैं | पूजा का अर्थ ही है , कि जिसे पूर्णता से किया जाए | मन इतना भर आया , कि आभार व्यक्त करने के लिए हमने जो किया , वही पूजा है | जब हम इतने खुश हैं , इतने तृप्त हैं कि हम कहें , भगवान मैं इतना आभारी हूँ | आपने हमको इतना दिया! जब भाव उमड़ता है , तो उसके साथ कुछ क्रिया जुड़ ही जाती है |
किसी अभिव्यक्ति के बगैर , दुनिया में कोई आम आदमी रह ही नहीं सकता | इसीलिये , आप जब आने किसी मित्र से या और किसीसे मिलते हैं , तो क्या करते हैं ? हाथ मिलायेंगे , या पीठ ठोकेंगे , या फिर कुछ करके ही अपने मन के भाव को अभिव्यक्त करते हैं | इसी तरह से , जब भक्त बहुत प्रेम में पड़ता है , तब वह कुछ देना चाहता है , कुछ करना चाहता है | इसीलिये , पूर्वजों ने पूजा की विधि बनाई | भगवान ने जो भी कुछ आपको दिया , वही आप उसे अर्पण करें | भगवान ने आपको फूल दिए , तो आप भी यह कहकर उन्हें फूल चढ़ाते हैं , कि हमारा दिल भी हमेशा आपके प्रति ऐसे ही खिला रहे’ | उन्होंने आपको जल दिया , तो आप जल चढ़ाकर कहते हैं , हम भी जल की तरह ऐसे विनम्र हो जाए’ , सबको ठंडक पहुंचाएं’ , हम भी जीवन के आधार बनें’ | हमारा जीवन भी ऐसा हो ये होती है प्रार्थना |
अक्षत , माने क्या ? जिसका कभी क्षति नहीं होती , जो कभी खत्म नहीं होता , कभी छूटता नहीं | जिसे वैज्ञानिक कहते हैं एनर्जी जो न कभी बनाई जाती है , न कभी खत्म होती है | जैसे आप अन्न खाते हैं , वह आपके शरीर में जाता है , वापिस निकलता है , और फिर वापिस पृथ्वी में जाकर अन्न बन जाएगा | वह राख बन कर पृथ्वी में चला जाएगा | जब शरीर को दफन करते हैं , तब भी तो शरीर पाँचों तत्वों में मिल जाता है | इसीलिये , अक्षत चढ़ाते हैं |
फिर , चन्दन चढ़ाते हैं | ताकि हर तरफ सुगंध फैलें |
हमारी पाँचों इन्द्रियां , आंख , कान , नाक , जिह्वा , त्वचा यानी इनके लिए जो अनुकूल हैं , उन सबको हम पूजा में प्रयोग में लाते हैं |
घंटी बजाते हैं , ताकि मन में जो भी विचार हैं , वे इधर उधर सब दूर हो जाएँ , और मन एकाग्र हो जाए | खूब नगाड़े बजाते हैं , शेहनाई बजाते हैं , खूब शोर करते हैं ताकि मन वर्तमान में आ जाए |
फिर हम कपूर से आरती करते हैं | क्यों ? ये कहते हैं , कि हे भगवान तू हर दिन चाँद और सूरज को मेरे चारों ओर घुमाता है , आज मैं इस छोटे से कपूर के दिए से आपकी आरती करता हूँ |’ मैं भी अपने आप को खुश कर लूं , मेरे जीवन की ज्योति कभी भी आपसे दूर न हो , आपके ही चारों ओर घूमें |’ इस भाव से ही आरती करते हैं |
भारत भर में लोग आरती करते हैं , लेकिन किसी को आरती का सही अर्थ नहीं मालूम | आरती का अर्थ है , अत्यंत सुख’ | सच में यही सुख है’ , जब ऐसा लगे | शरीर का कण-कण खिल उठे , वही आरती है | जिसमें तृप्ति मिले | रति माने क्या ? आनंद , खुशी , मस्ती | ऐसा आनंद आपको मिले , उसी को आरती कहते हैं |
जीवन ऐसा झूमें , जहाँ देखूं , वहां ईश्वर ही ईश्वर |
इसी को पूजा कहते हैं , भगवान की खुशामदी को पूजा नहीं कहते |
जो अपनी खुशी , अपनी तृप्ति के लिए करते हैं , उसे ही पूजा कहते हैं |
लेकिन हमारे देश में लोग पेड़े ले लेकर मूर्ति के आँख , मुहँ नाक सबमें घिसते हैं | और मन में यह अपराध भाव रहता है , कि हमारे पास तो एक ही फूल हैं , हनुमान जी नाराज़ हो जायेंगे | हनुमान जी पर रखेंगे , तो शंकर भगवान नाराज़ न हो जायें | मन में इस तरह के भ्रम पैदा हो जाते हैं | इसीलिये , कहते हैं , कि सब ईश्वर एक ही है | सबमें एक को देखो और एक में सबको देखो | यही इसका सार है |

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया समर्पण के बारे में बताएँ , मुझे लगता है कि समर्पण मुझे थोडा अनभिज्ञ बना रहा है , जब मैं बीते वक़्त कि ओर देखता हूँ , तो लगता है कि जब भी मुझे कोई निर्णय लेना होता था या उस पर काम करना होता था तब मैं सोचता था की सब कुछ तो गुरुदेव संभाल रहे हैं तो वो ही सब करेंगे , इसलिए तब उस अवस्था में मैं कुछ करने की बजाय ,ये विश्वास करता था कि जो होना है वो स्वयं ही हो जायेगा | तो कृपया बताएँ कि मुझे किस प्रकार का समर्पण करना चाहिए जिस से कि मैं अनभिज्ञ नहीं बनूँ ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये दोनों संकल्प ( एक दृढ निश्चय या कुछ कार्य करने की इच्छा ) और समर्पण साथ साथ चलते हैं | एक बार आपने अपनी तरफ से १००% कर दिया तब आपके करने को कुछ बचता ही नहीं , तब आप समर्पण कर दीजिये | अपना कार्य पूरा कर देने के बाद आप उस कार्य के फल की इच्छा को समर्पित कर सकते हैं , लेकिन कुछ भी काम नहीं करने से आपको कुछ नहीं मिलेगा | हमें जो भी करना है उसको १००% करना चाहिए और तब हमें उस कार्य के पूर्ण होने की या फल की इच्छा को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए | हमें समर्पण करते वक़्त ये भाव मन में रखना चाहिए कि हमारे लिए जो भी सर्वोत्तम होगा वो हमें मिल जायेगा | अपनी तरफ से सारे प्रयत्न , सारी मेहनत करने के उपरांत उस कार्य के फल की इच्छा को ईश्वर को समर्पित कर दीजिये , आप समझ रहे हैं  , मैं क्या कह रहा हूँ ? आपको ये नहीं करना है कि बस आराम से बैठ गए और सोचा ,"अरे , मैंने तो समर्पण कर दिया है , अब सब काम अपने आप हो जायेगा |"
वो पूर्णता की अवस्था , सिद्धावस्था , धीरे धीरे आती है , उसको आने में वक़्त लगता है | जब आप अपनी साधना में इतने मज़बूत , इतने सिद्ध हो जाते हैं कि कोई राग , कोई बैर नहीं बचता और ही कोई इच्छाएं बचती | तब उस अवस्था को नैष्कर्म सिद्धि ( बिना कुछ कार्य किये किसी चीज़ को पा लेने की क़ाबलियत ) कहते हैं |
ये वो अवस्था है जब बिना कुछ प्रयत्न किये ही आपकी सब कार्य , ससब इच्छाएं स्वयं ही पूर्ण हो जाती हैं , और जब तक ये अवस्था नहीं आती तब तक हमें अपने कार्य करते रहना चाहिए | सिद्धावस्था में आप भक्ति में इतने गहरे उतर जाते हैं कि आपको किसी बात की प्यास नहीं रहती और ही किसी प्रकार के प्रयत्न करने पड़ते हैं | सोचने से पहले ही आपकी सब इच्छाएं पूरी हो जाती हैं | यहाँ कितने लोगो ने ऐसा अनुभव किया है ? (श्रोताओ में बहुत से भक्तो ने हाथ उठाया) देखिये , ऐसा सच में हो ही रहा है |
अब हम कैसे इस अवस्था को पा सकते हैं ? जैसे जैसे हम आध्यात्म के पथ पर गहरे उतारते जाते हैं , हम और ज्यादा संतोष में आते हैं | जितने संतोषी हम होते हैं उतने ही ज्यादा हम इन सब सिद्धियों को पाने के योग्य होते जाते हैं | सिद्धि को पाना कोई भूतकाल या भविष्य की बात नहीं है , ये ऐसा है जिसे अभी वर्तमान में पाया जा सकता है | ये सिद्धियाँ अभी ढकी हुई हैं , और इन पर से पर्दा धीरे धीरे हट रहा है | और जैसे जैसे पर्दा और हटेगा , ये सब योग्यताएं हम में सहज ही आने लगेंगी |

प्रश्न : गुरुदेव , बहुत से ज्ञान की पुस्तको में मैंने पढ़ा है , सब कुछ सिर्फ एक ही चेतना है , और हम सब उसका ही एक हिस्सा हैं | अगर ऐसा है तो समर्पण का क्या अर्थ है ? ऐसा क्या है जो हम समर्पित कर रहे है और किसको समर्पित कर रहे हैं , जबकि सब एक ही चेतना है |
श्री श्री रविशंकर : हाँ , बिलकुल सही | दरअसल समर्पण को कुछ है ही नहीं , लेकिन जब मन को लगता है कि मैं अलग हूँ , भिन्न हूँ , अकेला हूँ , तब इस बात से हटने को आप समर्पण करें और विश्राम में जायें | ये माँ के घर पर होने के अहसास को जगाने जैसा है | उस अहसास को जगाने और छोड़ देने के कृत्य को ही समर्पण कहा गया है , बस | ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे आपने समर्पण करना है , समझ गए ?
इसीलिए तीन तरह के पथ हैं - कर्म योग अर्थात कार्य का पथ , भक्ति योग अर्थात भक्ति का पथ , ज्ञान योग अर्थात ज्ञान का पथ | ज्ञान का पथ ये है कि आप जागृत होकर ये समझें कि सब कुछ एक से ही बना है , दो तो कुछ है ही नहीं | लेकिन जब आप ये भूल जाते हैं और समझने लगते हैं कि दो हैं , जब कुछ ऐसा होता है कि जहाँ आप अटक जाते हैं , आपके मन में बहुत बोझ सा जाता है और आप उसको बर्दाश्त नहीं कर पाते , तब आप कहते हैं ," मैं इसको छोड़ता हूँ " , ये समर्पण है | इसका बहुत अच्छा उदाहरण है , "आप रेलगाड़ी में बैठे हों और अपना सामान कंधो पर उठाये हुए हों , हालाँकि सीट बहुत आरामदायक है लेकिन आपके कंधे और सर पर सामान का बोझ होने से आप बहुत असुविधा महूस कर रहे हों | तभी कोई आकर आपसे कहे कि अरे , सामान नीचे रख दो | ऐसे भी तुम्हारा और तुम्हारे सामान का बोझ तो गाड़ी ने ही उठाया हुआ है , आराम से बैठो | आपको उस पूर्ण आराम की अनुभूति कराने को ही शरणागति कहते हैं |

प्रश्न : गुरुदेव , इस बात से क्या फर्क पड़ता है अगर मेरी पसंद परंपरागत तरीके से हट कर है | लोग कहते हैं , "तुम्हे शादी करनी चाहिए , बच्चे होने चाहिए , संपत्ति होनी चाहिए" अगर मैं इस बात से हटता हूँ तो मुझे लगातार कहा जाता है कि मैं गलत हूँ | मुझे नहीं लगता कि अगर मेरी अपनी कुछ पसंद है तो उसमें कुछ गलत है , मेरी अपनी एक पसंद होनी चाहिए | इस मामले में मैं क्या करूँ  ? हम कैसे अपने परिवार , अपने समाज के विरुद्ध जाके अकेले खड़े होकर भी प्रसन्न रह सकते हैं और अपनी एक अलग सोच , पसंद बना सकते हैं  ?
श्री श्री रविशंकर : हाँ , यह बहुत मुश्किल काम है | आपको अपने माता पिता को इस बात को समझाना चाहिए कि जो सब करते हैं आप वो नहीं करना चाह रहे | आप जानते हैं , इसमें सबसे बेहतर ये होगा कि आप इन सब बातो के लिए मुक्त विचार रखें , अड़ नहीं जायें | इस बारे में दिमाग को खुला रखें और जैसे होता है उसको उस प्रकार से स्वीकार करते जायें | मेरे विचार से यही इस बात को देखने का बेहतर तरीका है | आप जानते हैं कि एक शादी में और एक परिवार में , हमेशा कुछ समझौतों की ज़रूरत होती है | आप केवल ये नहीं कह सकते कि ये मेरा तरीका है , आपको बीच का रास्ता अपनाना होता है | आपको दूसरे साथी का भी ध्यान साथ साथ रखते हुए चलना होता है , तो जीवन में हमेशा कुछ कुछ समझौते करने होते हैं
इसलिए मुक्त विचारधारा रखिये , किसी भी हालत में अपनी ख़ुशी को मत खोइये | कुछ ऐसे लोग है जो अविवाहित है , अकेले है और वो खुश नहीं है | और वही दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग है जो विवाहित है और खुश नहीं है | दोनों ही हालत में हालत ज्यादा ठीक नहीं है | मैं कहता हूँ कि आप विवाहित हैं या नहीं हैं , जैसे भी हैं , बस खुश रहिये , ये सबसे ज़रूरी है | जिन लोगों के बच्चे नहीं है , वो दिन रात रोते है और वो खुश नहीं है | और ऐसे भी लोग है जिनके बच्चे है पर फिर भी वो खुश नहीं है | तो आपकी ख़ुशी इन सब प्रकार के हालात से , हर अवस्थाओं से अलग है | ऐसे मत सोचिये , "अरे , जब मैं सुन्दर लगूंगा तब मैं खुश हो जाऊँगा | अगर मैं बूढा हो रहा हूँ तब मैं खुश नहीं रहूँगा " , नहीं , ऐसा नहीं है | एक बात को अपने मन में पक्का कर लीजिये की चाहे कुछ भी हो जाये , मैं खुश रहूँगा , संतुष्ट रहूँगा |

प्रश्न : गुरुदेव , मैं एक घटना आपको बताना चाहता हूँ | मैं कहीं जा रहा था और मैंनेकेले खरीदे , एक केला मैंने खा लिया और दूसरा मैंने रख लिया | मैंने सड़क पर एक भिखारी को देखा तो मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे वो केला इस भिखारी को दे देना चाहिए | और तभी मेरे मन में ख्याल आया की इसको बाद के लिए रख लेता हूँ और मैंने उस केले कोबाद के लिए रख लिया | क्या मैंने कुछ गलत किया ? क्या मुझे उस भूखे व्यक्ति को वो केला दे देना चाहिए था ?
श्री श्री रविशंकर : मैं बताता हूँ , बिलकुल यही होता है , इतने सरे लोग इतना सारा खाना खरीदते हैं और फिर उसको फ्रिज में रख देते हैं , कुछ समय बाद उन्हें पता चलता है कि वो खराब होना शुरू हो गया है | आप में से कितने लोग ऐसा करते हैं ? पहले खाना फ्रिज में रखते हैं , फिर उसको फ़ेंक देते हैं ? (श्रोताओं में से बहुत से लोगों ने हाथ उठाया) ये विश्व भर में लोगों की आदत है | क्या आप जानते हैं कि जितना खाना फेंका जाता है , उस में से एक तिहाई फ्रिज में से आता है ? और लगभग एक चौथाई , दुकानों में से आता है क्योंकि उसकी ख़त्म होने की तारीख निकल चुकी होती है | विश्व भर में ऐसे जमा करके रखने की आदत है |
मैं कहता हूँ , सहज रूप से तुरंत कार्य करें | अगर उसको रखना चाहें तो रखें , और अगर कोई भूखा व्यक्ति दिखे और आप उसे देना चाहें तो दे दें | आपको कोई एक निश्चित सिद्धांत रखने की ज़रूरत नहीं है | "मुझे अपने लिए केला रखना है , और देना नहीं है" ये ठीक नहीं है और ही ये ठीक है , कि हमेशा मुझे दे देना है |
सहज रहिये , आराम से रहिये , और कभी ये कीजिये और कभी वो कीजिये |

प्रश्न : गुरुदेव ,कल मेरी मुलाक़ात एक महिला से हुई और उन्होंने मुझे बताया , कि लगभग २० साल पहले उनके गुरु उनके सपने में आये और कहा कि उनका जन्म इस समाज की सुरक्षा करने के लिए हुआ है | उनके इस स्वप्न ने उन्हें भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने को प्रोत्साहित किया , जबकि वो कभी एक खिलाडी भी नहीं रही | वो कहती हैं कि उनके प्रशिक्ष में गुरु जी ने उनकी मदद की और आज वो भारत के सबसे बेख़ौफ़ पुलिस अफसरों में से एक हैं | क्या सच में ऐसा हो सकता है ? क्या कोई ताक़त सच में किसी व्यक्ति को यहाँ तक पहुंचा सकती है ?
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं , ५ तरह के स्वप्न होते हैं |
पहले होते हैं जिनमें आप की खुद की कल्पना आप के सामने आती है | आपकी अपनी इच्छाएं , डर ये सब आपके सामने में आती है |
दूसरे प्रकार के स्वप्न वो होते हैं जिसमें आप जो अब तक अनुभव कर चुके हैं , वो आपके सामने आता है |
तीसरे होते हैं जो अंतर्ज्ञान से सम्बंधित होते हैं , जो कुछ भी भविष्य में होने वाला होताहै वो सपने में दिखता है |
चौथे प्रकार के सपने होते हैं जिनका आपसे कुछ लेना देना नहीं होता , लेकिन उस जगह से होता है जहाँ आप रह रहे होते हो , मन लीजिये की आप उड़ीसा में हो , और आप होटल के कमरे में सो रहे हो , या किसी के घर हो , तब सपने में आपको उड़िया भाषा सुनाई देगी , क्या आपने ऐसे अनुभव किया है ? आप जब बंगाल में सो जाओ तो आपको सपने में बंगाली भाषा सुनाई देगी | ये चौथे प्रकार के स्वप्न होते हैं |
पांचवे प्रकार के स्वप्न इन सब का कुछ कुछ मिश्रण होते हैं , उनमें सब कुछ थोड़ा थोड़ा होता है |
लगभग ९०% स्वप्न यही पांचवे प्रकार के होते हैं , इन में , कुछ अंतर ज्ञान होगा , कुछ ये होगा , कुछ वो होगा , इसलिए आपको सपनो पर ज्यादा विश्वास या भरोसा नहीं करना चाहिए | हाँ , कभी कभी कुछ सपने आपके अंतर्ज्ञान पर आधारित होते हैं , लेकिन कभी कभी आपके दर या इच्छाएं भी उस रूप में बाहर आती हैं | आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ ?
आप इसको पूरी तरह से नकार भी नहीं सकते और स्वीकार भी नहीं कर सकते , इसलिए इसके बारे में आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है , ये सब योग माया है , साधक के साथ ये सब घटित होता रहता है , सलिए उसको और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है | और जब आप ध्यान करते हो , ज्ञान के पथ पर चलते हो तब आप इन सब से मुक्ति पा सकते हो |

प्रश्न : गुरुदेव , हमारी यात्रा , का से निराकार की ओर है , तब गुरु के साथ होना कितना महत्वपूर्ण है ? हम बहुत वरिष्ठ लोगो को गुरु के पीछे भागते हुए देखते हैं , तो हमें क्या करना चाहिए ? सिर्फ ज्ञान में रहना चाहिए , गुरु की मौजूदगी को महसूस करना चाहिए या आप के पीछे भागना चाहिए ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये , कोई भी मेरे पीछे नहीं है , सब मेरे सामने हैं | आपको जो करना है वो करिए , मुझे कोई आवश्यकता नहीं है , अगर आप एक जगह पर रह कर प्रसन्न हो , बहुत अच्छी बात है | और किसी तरीके के अपराध बोध में मत रहो , मैं आपको किसी समस्या में नहीं डालना चाहता हूँ | जब दिल कहे की भागो और दिमाग कहे की मत भागो तब आप दुविधा में जाते हैं | तो मैं तो आपके मन की तरफदारी कर रहा हूँ दिमाग की , क्योंकि दोनों ही ज़रूरी हैं , आपको तय करना कि आपको क्या करना है , कभी एक को जिताओ और कभी दूसरे को | कभी कभी आपके दिल को जीतना चाहिए और कभी आपके दिमाग को , यही जीवन है | ये सब समझौते हैं | ये जान लीजिये कि कहीं एक शक्ति है , और चमत्कार होते हैं , तो चमत्कारों को होने का मौका दो |

प्रश्न : गुरुदेव , आप कहते हैं कि पसंद हमारी है और आशीर्वाद आपका है , क्या होगा अगर हमने जो चुना वो आपके विस्तृत दृष्टि के जैसा नहीं हुआ तो ? हमें ये कैसे पता चलेगा और हम उसको कैसे ठीक करेंगे ? क्या आप हमें अपने मार्ग पर वापिस लेन की ज़िम्मेदारी लेते हैं ?
श्री श्री रविशंकर : (हँसते हुए) हर मार्ग मेरा ही मार्ग है , मैं आपके लिए सबसे अच्छा चाहता हूँ , और मैं चाहता हूँ कि वो आप चुनें | ऐसा नहीं है कि मैं आपके लिए चुनता हूँ | मैं चाहता हूँ कि आप खुद चुनें , क्योंकि आप जो कुछ भी चुनते हैं , उसमें आपका विकास होता है |