१२
२०१२
दिसंबर
|
बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
जब एक व्यक्ति
ध्यान करता है , उसे तपस्या कहते हैं (केंद्रित
प्रयत्न जो शुद्धि और आत्मिक ज्ञानोदय प्रदान करता है) | पर जब सारे विश्व के लोग एक साथ जुड़ कर ध्यान करते हैं , तो उसे यज्ञ कहते हैं और यह और भी विशेष होता है क्योंकि हम
एक सत्व और तालमेल का क्षेत्र बना लेते हैं जिसकी आज विश्व में अत्यधिक आवश्यकता
है | तो एक नए आरम्भ के लिए यह बहुत
सुन्दर और पूज्य है |
हमें याद रखना
चाहिए कि हम नवीन भी हैं और प्राचीन भी | सूर्य को देखिये , यह प्राचीन है , है न? फिर भी वह आज कितना
ताज़ा है ! किरणें कितनी ताज़ा हैं , वायु ताज़ा है , पेड़ कितने ताज़े हैं – पुराने पेड़ और ताज़े पत्ते !
ऐसे ही , आप भी हैं – नवीन , ताज़े |
ऐसे ही आपको
जीना चाहिए – मैं प्राचीन हूँ और नवीन भी , शाश्वत और अनंत ! स्वयं को ताज़ा और नया अनुभव कीजिये , और आप देखेंगे कैसे सारी समस्याएं और खेद कितनी सरलता से
लुप्त हो जाते हैं | स्वीकृति भीतर से उदय होती है , उत्साह भीतर से उद्भव होता है और हर स्तर पर ताल मेल बैठने
लगता है |
जीवन में आपको
तीन चीज़ों की आवश्यकता है – करुणा , आवेश , और वैराग्य | जब आप व्यथित हैं , तब वैरागी रहिये | जब आप खुश हैं , तब आवेश रखिये | आपको जीवन में कोई धुन होनी चाहिए | और सेवा करने की धुन सबसे अद्भुत चीज़ है जिसकी लालसा व्यक्ति
को होनी चाहिए |
तो , जब आप खुश हों , तो सेवा करने के लिए हमेशा तत्पर
रहिये | जब दुखी हों , तब वैरागी रहिये , और सदैव करुणामयी रहिये |
प्रश्न : गुरूजी , हम सांसारिक लोगों को कैसे
एहसास कराएं आज की चिंताजनक आर्थिक स्थिति में ध्यान का कितना महत्व और आवश्यकता
है ?
श्री श्री
रविशंकर : यहाँ अतीत की स्मृति आपकी सहायक होगी |
अतीत में देखो , दूसरे विश्व युद्ध में या उस से भी
पहले , विश्व इतने बड़े संकट में था | भोजन कम था और लोगों के पास सीमित साधन थे क्योंकि सब नष्ट
हो गया था , पर फिर भी लोग जीवित रहे |
इस धरती पर
हमने उस से भी बुरे वक्त देखे हैं | स्वतंत्रता से पहले , भारत में कितने संकट आये
| हमने बहुत से
संकटों का सामना किया – सूखा , बाड़ , अकाल , महामारी | लोगों ने ऐसे समयों का भी
सामना किया है और जिए हैं | अभी का समय पहले से अधिक
कठिन नहीं है , इस लिए , चिंता मत करिये , हमने वे सारे कठिन दौर पार
किये हैं |
अब का समय है
जब हमें मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करना है |
हमें एक दूसरे के काम आना है , मिलबांट के एक साथ रहना है | हमें आस पास के लोगों से अच्छे संपर्क बना कर रखने है | यह मानवीय सम्बन्ध हमें संकट से जूझने की शक्ति देंगे |
जब आप जानते
हैं कि आपके समर्थन में आपके पीछे लोगों का झुण्ड है तो आपको कोई भी भय क्यों हो ?
यदि आपका चेतना में , ईश्वर में विश्वास है तो वे आपका
ख्याल अवश्य रखेंगे , इस लिए आप उदास क्यों रहें ?
इस लिए , आपको हर संकट को ईश्वर की ,
मानवता की और भीतर की रौशनी की दिशा में मुड़ने का एक अवसर बनाना चाहिए |
प्रश्न : प्रिय गुरूजी , हर परिस्थिति में , सदा नवीन और अनंत कैसे बने रहें ? उदाहरण – जब हम लोगों से मिलते हैं ,
हमारी पिछली भेंटों की छवि मन में रहती है
|
श्री श्री
रविशंकर : हाँ , यह तो है | इसी कारण मैं कहता हूँ कि आप नवीन भी हैं और प्राचीन भी | आप नवीन है का यह अर्थ नहीं कि आप किसी का नाम भूल जायें | हर बार आप किसी से मिलें
, उनसे मत
पूछिए , “आपका नाम क्या है?” | नवीन होने का अर्थ अपनी याददाश्त खोना नहीं है | यादों की गहरायी अवश्य होगी , पर
उन यादों के साथ एक नयापन भी होगा | यह एक नवीन आत्मा का सार है | इस को समझाना थोड़ा कठिन है पर इसका यही अर्थ है | इस लिए , एक नया आरम्भ , एक नयी शुरुआत का अर्थ याददाश्त खोना नहीं है , ठीक है ?
प्रश्न : प्रिय गुरूजी , क्या ध्यान से बौद्धिक स्तर
बढ़ता है ? यदि हाँ , तो ध्यान से ज्ञान कैसे बढ़ाएँ ?
श्री श्री
रविशंकर : ध्यान हमारे मन को आवश्यक विश्राम प्प्रदान करता है | विश्राम और मौन सृजन और ज्ञान की जननी हैं इस प्रकार यह आपके
ज्ञान की वृद्धि करता है |
प्रश्न : कहते हैं हम अपना पूरा जीवन एक ध्यान के रूप में जी सकते हैं | यह कैसे संभव है? मेरा जीवन एक ध्यान कैसे बन सकता है?
श्री श्री
रविशंकर : हर क्षण एक नयी शुरुआत है | आप उठते हैं , और कहते हैं , “यह एक नया आरम्भ है !” बस , यही है ! कोई “कैसे” का भाव नहीं है | बस स्वयं को मुक्त कर दीजिए |
प्रश्न : गुरूजी , कृपया बताइए कि वेदिक ज्ञान
कैसे पूरे विश्व का भला कर सकता है?
श्री श्री
रविशंकर : यह सबका फायदा कर रहा है यह तो स्वाभाविक है – योग , ध्यान , प्राणायाम , आयुर्वेद , यह सब वेदिक ज्ञान ही है
| वेद का अर्थ
ही ज्ञान है; प्राचीन और नवीन | प्राचीन ज्ञान में भी कुछ
मूल्य है और नवीन ज्ञान में भी कुछ | ये एक साथ चलते हैं समाज
में आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए |
प्रश्न : धर्म लोगों को बांटता क्यों है जबकि धर्म का उद्देश्य लोगों
को भगवान के समीप लाना है ?
श्री श्री
रविशंकर : जब अहं प्रवेश कर जाता है , तब धर्म में द्वंद्व
उत्पन्न हो जाता है | एक धर्म इस लिए महान हो जाता है
क्योंकि वह “मेरा” धर्म है , नाकि उसके अपने लिए | क्योंकि यह मेरा धर्म है
, इस लिए महान
है | यह “मैं”; अहम जो द्वंद्व का कारण
है , नाकि धर्म स्वयं | पर हम धर्म को एक कारण बना लेते हैं; अपनी पहचान बना लेते
हैं संसार में बहुत से झगडों के लिए , है ना ?
यदि धर्म को
केवल भगवान से जुड़ने के लिए प्रयोग किया जाए ना कि राजनीति के लिए तब धर्म
आध्यात्म बन जाता है |
प्रश्न : गुरूजी , मैं किस पर भरोसा कर सकता
हूँ जो कभी डगमगाय नहीं?
श्री श्री
रविशंकर : स्वयं पर | आपको किसी पर भी भरोसा क्यों करना
है? बस निश्चिन्त हो जाइए | आप देखेंगे कि सब कुछ स्वयं
अपने स्थान पर आ रहा है | जो भी आपको परेशान करता है , उसे यहाँ छोड़ दीजिए | उसे मुझे भेज दीजिए | मैं आपके साथ हूँ , हाँ !
प्रश्न : मैं हार के बारे में बहुत चिंता करता हूँ , विशेषतः जब मैं कुछ महत्वपूर्ण कर रहा होऊं | इस से मेरी क्षमता कम हो जाती है | मैं इस से कैसे बहार आऊ ?
श्री श्री
रविशंकर : एक नया आरम्भ | वह अतीत था , उसे त्याग दीजिए | विश्वास रखिये कि बहुत सी
नयी चीज़ें आपके जीवन में आणि हैं | एक बात जो आपको जाननी चाहिए
वो है कि आप स्वयं को नहीं जानते | जब आप अपने अतीत में आपने
क्या किया उसे देखते हिनहिन , या अपनी कमज़ोरी को देखते
हैं , तो आत्मविश्वास जगाने के लिए पहला
कदम है यह जाना कि आप स्वयं को नहीं जानते
| जब आप सोचते
हैं आप स्वयं को जानते हैं तभी आप स्वयं को इन सारे नकारात्मक विचारों और घटनाओं
से जोड़ते हैं | पर जब आप उठते हैं और देखते हैं , “अरे , मैं स्वयं को नहीं जानता” , तब यह एक नयी शुरुआत होती है | तब
आप पायेंगे कि आपमें इतनी सारी योग्यताएं और शक्तियां हैं जिनसे आप स्वयं अनभिज्ञ
थे |
प्रश्न : मैं कैसे अबद्धता से प्रेम कर सकता हूँ , बिना अपेक्षाओं और बंधनों के ?
श्री श्री
रविशंकर : आप प्रेम में सुरक्षा चाहते हैं
, और साथ ही आप
प्रतिबद्धता से भी डरते हैं | ऐसे में आपके मन में बहुत
से भाव लिपटे हुए हैं एक चीज़ में , और उसे संभ्रम कहते हैं | जब प्रेम में संभ्रम हो
, तो मैं
कहूँगा कि आप अधिक ध्यान करिये और विश्राम करिये | सब
कुछ स्वयं जगह पर आ जायेगा | |