३०
२०१२
नवम्बर
|
बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
यदि आप अपने जीवन में खिलना चाहते हैं , तो ये पाँच
दिन और पाँच अनुभव आपके लिए बहुत आवश्यक हैं –
आपको एक दिन किसानों के साथ बिताना चाहिये | सुबह से लेकर
शाम तक , पूरा
दिन किसानों के साथ बिताईये और देखिये कि वे किस प्रकार बीज बोते हैं , किस तरह पौधों
को पानी देते हैं
, और कैसे वे पौधों की देखभाल करते हैं |
ये सब देखकर आप जीवंत होते हैं | जब आप ये समझते हैं , कि भोजन को
किस तरह उगाया जाता है , और किसानों के द्वारा कितनी मेहनत करी जाती है , तब आप भोजन
का सम्मान करेंगे
, आप पेड़-पौधों का और पर्यावरण का भी सम्मान करेंगे |
इसलिए , किसानों के साथ एक दिन बिताना बहुत ज़रूरी है |
एक दिन आपको जेल में बिताना चाहिये |
आप समझेंगे कि कि कोई अपराधी कैसे बनता है , और आप ये
भी समझेंगे कि हर अपराधी किसी न किसी तरह से खुद हालातों का शिकार होता है | उनके पास
कोई ज्ञान नहीं था
, वे एक हालात में फँस गए थे , और इसलिए उन्होंने वह गुनाह कर दिया | आप उनके लिए
बहुत करुणा और क्षमा का अनुभव करेंगे |
एक दिन आपको अस्पताल में बिताना चाहिये | आप देखेंगे
कि कैसे लोग कष्ट में हैं , तब आपको अपने जीवन का मूल्य जान पाएंगे | आप यह देख
पाएंगे कि आप कितने भाग्यशाली हैं | आपके अंदर करुणा जागेगी और आप चाहेंगे
कि आप अपने जीवन का बेहतर उपयोग करें | साथ ही आप अपनी सेहत के प्रति भी और
सतर्क हो जायेंगे
|
इसलिए , अस्पताल में एक दिन बिताने से यह होगा |
एक दिन आपको पागलखाने में बिताना चाहिये | यदि आप एक
दिन पागलखाने में बिताएंगे , तो आप देखेंगे कि वे किस तरह अआप्को डांट हैं , और किस तरह
से आपसे बात करते हैं |
जब आपकी बिना किसी गलती के आपको दांत पड़े , तब आप ये
समझते हैं कि ये सारी दुनिया ऐसी ही है | तब आप क्रोध नहीं करते | वह अहंकार
जो कहता है , ‘मैं’ , ‘मेरा’ , ‘मैं जानता
हूँ’ – ये सब विलुप्त
हो जाएगा |
यदि आप केवल एक दिन के लिए , एक पागल व्यक्ति की तरह व्यवहार करें , तो आप बहुत
सहज हो जायेंगे
| आपने अपने चारों ओर अहंकार की जो दीवारें बना रखी हैं , कि ‘मैं कोई हूँ’ , वे सरलता
से गिर जायेंगी
| तब आप लोगों को और बेहतर तरह से समझ पाएंगे , और सबसे घुल-मिल
पाएंगे | और
फिर कोई भी आपको परेशान नहीं कर पायेगा , क्योंकि आप जानते होंगे कि ये पूरी
दुनिया ही एक पागलखाना है |
हर एक कोई अपनी ही दुनिया में रहता है , और सोचता
है कि केवल वह ही सही है |
यदि आप इस्रेल जायेंगे , तो वहां इस्रेल पागलखाने में एक विशेष वार्ड है जिसे ‘जेरुसलेम सिंड्रोम’ कहते हैं |
कभी कभी जब लोग तीर्थयात्रियों की तरह आते हैं , तो वे जेरुसलेम
जाते हैं , और
वहां उन्हें लगता है कि वे ही ईसा मसीह हैं , या मैरी हैं , या इन्हीं
में से कोई किरदार – और
फिर वे उन्हीं की तरह व्यवहार करने लगते हैं | तो इन लोगों को जेरुसलेम सिंड्रोम
नामक वार्ड में डाल देते हैं | वे पागल हो जाते हैं |
तो जब आप पागलखाने में जाते हैं , तब आप खुद अपने मन को और अच्छे से समझ पाएंगे | यह अनुभव आपके जीवन में एक प्रकार की समृद्धि लाएगा | आप फिर आलोचना से अप्रभावित रहेंगे | यदि कोई आपकी आलोचना करेगा , तब आप टूट के बिखर नहीं जायेंगे |
अक्सर लोग आलोचना को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाते | वे ये नहीं
समझ पाते कि इस दुनिया में लोग पागल हैं |
तो इस तरह आप पागलखाने में केवल एक दिन बिताने से , हर आलोचना
पर मुस्कुराने की क्षमता पा जाते हैं |
और फिर एक दिन आपको स्कूल में बिताना चाहिये |
स्कूल में एक दिन बिताईये , और फिर आप देखेंगे कि आप कहाँ से कहाँ
पहुँच गए हैं |
आप अपने खुद के विकास को दोबारा जांचेंगे | आपके अंदर
सहनशीलता आएगी | आप
देखेंगे कि आपको बच्चों के साथ कितने सब्र से रहना पड़ता है , और फिर आप
और अधिक जिम्मेदारी लेने लगेंगे |
जिस तरह से आप बच्चों को सँभालते हैं , उसी तरह से
आपको दुनिया के सारे लोगों के साथ रहना होता है |
तो , आपके जीवन के ये पाँच दिन आपके लिए बहुत मूल्यवान रहेंगे |
यदि आप ये पाँच दिन नहीं निकाल सकते , तो आश्रम
में एक दिन ही काफी है |
आप यहाँ घूमिये , और आपको काफी पागल लोग मिल जायेंगे |
यहाँ एक स्कूल भी है , यहाँ किसान भी है , आप जाकर खेती
भी कर सकते हैं
|
यहाँ अस्पताल भी है , आप वहाँ जाकर लोगों की देखभाल भी कर
सकते हैं | और
अगर आप चाहें तो ऐसा भी मान सकते हैं , कि आप जेल में हैं |
तो एक जेल को छोड़कर आपको यहाँ बाकी चारों अनुभव तो मिल ही सकते
हैं |
बस यहाँ एक ही दिन काफी है |
पुराने दिनों में , जब हमने आश्रम शुरू ही किया था , तब अगर आप
एक बार आश्रम में आ जातेथे , तो शहर वापिस जाने के की लिए कोई साधन नहीं होता था |
इस सड़क पर केवल दो ही बसें चलती थीं | एक सुबह ११
बजे , और
एक शाम को ५ बजे
| कोई ऑटो रिक्शा नहीं थे , न टैक्सी , कुछ भी नहीं |
तो जो लोग शुरू के दिनों में आश्रम आते थे , वे यहाँ आकर
फँस जाते थे |
सुबह ११ बजे आकर आप शाम से पहले यहाँ से वापिस नहीं
जा सकते थे , क्योंकि
कोई बस , टैक्सी , या यातायात
का कोई साधन ही नहीं था |
और तो और , यहाँ कोई दुकानें भी नहीं थीं , बस केवल एक चाय की दुकान थी और वहां
भी केवल चाय ही मिलती थी , और शायद कॉफ़ी भी |
वो आश्रम के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी
थी , बस ! और कुछ भी यहाँ मिलता नहीं
था | एक भी दुकान नहीं थी | लेकिन खैर , अब आपने वह मौका खो दिया | बहुत देर हो गयी ! |